रूस ने भारत और चीन के बीच जारी तनाव पर चेतावनी दी है और कहा है कि इससे पूरे यूरेशिया क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ेगी. रूस का कहना है कि तनातनी का गलत इस्तेमाल अन्य सक्रिय ताकतें अपने भू-राजनीतिक उद्देश्य के लिए कर सकती हैं.
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पिछले कई महीनों से भारत और चीन के बीच एलओसी के मुद्दे पर तनाव बना हुआ है और इस मुद्दे को सुलझाने के लिए कई दौर की बातचीत भी हो चुकी है. इस बीच रूस ने भारत और चीन के बीच जारी तनाव पर चिंता जताते हुए कहा है कि तनाव बढ़ने से यूरेशिया में क्षेत्रीय अस्थिरता और बढ़ेगी और अन्य देश इस टकराव का अपने भू-राजनीतिक मकसद के लिए गलत इस्तेमाल कर सकते हैं.
गुरुवार को पत्रकारों से बात करते हुए रूसी मिशन के उप-प्रमुख रोमन बाबुश्किन ने कहा कि दो एशियाई शक्तियों के बीच तनाव से रूस स्वाभाविक रूप से चिंतित है. उन्होंने कहा, "एलएसी पर जारी तनाव का शांतिपूर्ण समाधान बिना देर किए जरूरी है." उन्होंने इस बात के भी संकेत भी दिए कि रूस बैक चैनल वार्ता का इस्तेमाल तनाव कम करने के लिए कर सकता है.
उन्होंने आगे कहा, "रूस एक विशिष्ट स्थिति में है क्योंकि उसके संबंध दोनों चीन और भारत के साथ विशेष और रणनीतिक रूप से अहम हैं और यह संबंध स्वभाव से स्वतंत्र है. हम स्वाभाविक रूप से भारत-चीन के मौजूदा तनाव से चिंतित हैं."
भारत और चीन के शंघाई सहयोग संगठन और ब्रिक्स का सदस्य होने का संदर्भ देते हुए बाबुश्किन ने कहा जब बहुपक्षीय मंच पर सहयोग की बात आती है तो सम्मानजनक संवाद ही प्रमुख हथियार होता है. साथ ही बाबुश्किन ने कहा है कि रूस सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें एस-400 भारत को जल्द सप्लाई करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है. इस हथियार प्रणाली की पहली खेप की आपूर्ति अगले साल के अंत तक होनी है.
उन्होंने एस-400 सौदे के बारे में कहा, "फिलहाल समय सीमा में कोई बदलाव नहीं हुआ है. पहली खेप की आपूर्ति 2021 के अंत तक होने की उम्मीद है लेकिन हम उस आपूर्ति के लिए बहुत मेहनत कर रहे हैं."
गौरतलब है भारत ने ट्रंप प्रशासन की चेतावनी के बावजूद अक्टूबर 2018 में एस-400 मिसाइल प्रणालियों की पांच इकाइयों को खरीदने के लिए रूस के साथ पांच अरब डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. रूस ने ऐसा ही एक समझौता नाटो के सदस्य तुर्की के साथ भी किया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति की नीतियां दुनिया की दिशा तय करती हैं. एक नजर बीते 11 अमेरिकी राष्ट्रपतियों के कार्यकाल और उस दौरान हुई मुख्य घटनाओं पर.
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डॉनल्ड ट्रंप (2017-2021)
2017 में भले ही हिलेरी क्लिंटन को उनसे ज्यादा वोट मिले लेकिन जीत ट्रंप की हुई. अमेरिका और मेक्सिको के बीच दीवार बनाने और अमेरिका को फिर से "ग्रेट" बनाने के वादे के साथ ट्रंप चुनावों में उतरे थे. उनके कार्यकाल में अमेरिका पेरिस जलवायु संधि से और विश्व स्वास्थ्य संगठन से दूर हुआ. वे कभी कोरोना को चीनी वायरस बोलने से पीछे नहीं हटे. हालांकि उन्हें किम जोंग उन से मुलाकात करने के लिए भी याद रखा जाएगा.
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बराक ओबामा (2009-2017)
2007 की आर्थिक मंदी से कराहती दुनिया में ओबामा ताजा झोंके की तरह आए. देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति ने इराक और अफगानिस्तान से सेना वापस बुलाई, लेकिन उन्हीं के कार्यकाल में अरब जगत में खलबली मची, इस्लामिक स्टेट बना और रूस से मतभेद चरम पर पहुंचे. ओबामा ने पेरिस में जलवायु परिवर्तन की ऐतिहासिक डील करवाई. वह भारत की गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति भी बने.
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जॉर्ज डब्ल्यू बुश (2001-2009)
बुश के सत्ता संभालने के बाद अमेरिका और पूरी दुनिया ने 9/11 जैसा अभूतपूर्व आतंकवादी हमला देखा. बुश के पूरे कार्यकाल पर इस हमले की छाप दिखी. उन्होंने अल कायदा और तालिबान को नेस्तनाबूद करने के लिए अफगानिस्तान में सेना भेजी. इराक में उन्होंने सद्दाम हुसैन को सत्ता से बेदखल कर मौत की सजा दिलवाई. बुश के कार्यकाल में भारत के साथ दशकों के मतभेद दूर हुए और दोस्ती की शुरुआत हुई.
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बिल क्लिंटन (1993-2001)
बिल क्लिंटन शीत युद्ध खत्म होने के बाद राष्ट्रपति बनने वाले पहले नेता थे. 1992 में सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस कमजोर पड़ गया. क्लिंटन ने रूस को अलग थलग करने के बजाए मुख्य धारा में लाने की कोशिश की. क्लिंटन के कार्यकाल में अफगानिस्तान आतंकवाद का गढ़ बन गया. अमेरिका और पाकिस्तान की मदद से पनपा तालिबान सत्ता में आ गया. क्लिंटन का कार्यकाल आखिर में मोनिका लेवेंस्की अफेयर के लिए बदनाम हो गया.
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जॉर्ज बुश (1989-1993)
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिकी नौसेना के पायलट और बाद में सीआईए के डायरेक्टर रह चुके जॉर्ज बुश के कार्यकाल में दुनिया ने ऐतिहासिक बदलाव देखे. सोवियत संघ टूटा. बर्लिन की दीवार गिरी और पूर्वी व पश्चिमी जर्मनी का एकीकरण हुआ. लेकिन उनके राष्ट्रपति रहने के दौरान खाड़ी में बड़ी उथल पुथल रही. इराक ने कुवैत पर हमला किया और अमेरिका की मदद से इराक की हार हुई.
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रॉनल्ड रीगन (1981-1989)
कैलिफोर्निया के गवर्नर रॉनल्ड रीगन जब राष्ट्रपति बने तो सोवियत संघ के साथ शीत युद्ध चरम पर था. सोवियत सेना अफगानिस्तान में थी. कम्युनिज्म के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए रीगन ने अमेरिका के सैन्य बजट में बेहताशा इजाफा किया. रीगन ने पनामा नहर की सुरक्षा के लिए सेना भेजी. उन्होंने कई सामाजिक सुधार भी किये. रीगन को अमेरिकी नैतिकता को बहाल करने वाला राष्ट्रपति भी कहा जाता है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने उदार कूटनीति अपनाई. उन्हीं के कार्यकाल में मध्य पूर्व में कैम्प डेविड समझौता हुआ. पनामा नहर का अधिकार वापस पनामा को दिया गया. सोवियत संघ के साथ साल्ट लेक 2 संधि हुई. लेकिन 1979 में ईरान की इस्लामिक क्रांति के दौरान तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर हमले और कई अमेरिकियों को 444 दिनों तक बंधक बनाने की घटना ने उनकी साख पर बट्टा लगाया.
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जेराल्ड फोर्ड (1974-1977)
रिचर्ड निक्सन के इस्तीफे के बाद उप राष्ट्रपति फोर्ड को राष्ट्रपति नियुक्त किया गया. बिना चुनाव लड़े देश के उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति बनने वाले वे अकेले नेता है. उन्हें संविधान में संशोधन कर कार्यकाल के बीच में उपराष्ट्रपति बनाया गया था. राष्ट्रपति के रूप में फोर्ड ने सोवियत संघ के साथ हेल्सिंकी समझौता किया और तनाव को कुछ कम किया. फोर्ड के कार्यकाल में ही अफगानिस्तान संकट का आगाज हुआ.
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रिचर्ड निक्सन (1969-1974)
निक्सन के कार्यकाल में दक्षिण एशिया अमेरिका और सोवियत संघ का अखाड़ा बना. भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के बाद बांग्लादेश बना. निक्सन और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अनबन तो दुनिया भर में मशहूर हुई. लीक दस्तावेजों के मुताबिक निक्सन ने इंदिरा गांधी को "चुडैल" बताया. वियतनाम में बुरी हार के बाद निक्सन ने सेना को वापस भी बुलाया. उन्हीं के कार्यकाल में साम्यवादी चीन सुरक्षा परिषद का सदस्य बना.
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लिंडन बी जॉनसन (1963-1969)
जॉनसन जब राष्ट्रपति बने तो वियतनाम युद्ध चरम पर था. उन्होंने वियतनाम में अमेरिकी सैनिकों की संख्या बढ़ाई. जॉनसन के कार्यकाल में तीसरा अरब-इस्राएल युद्ध भी हुआ. अरब देशों की हार के बाद दुनिया ने अभूतपूर्व तेल संकट भी देखा. इस दौरान अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग की हत्या के बाद बड़े पैमाने पर नस्ली दंगे हुए. जॉनसन ने माना कि अमेरिका में अश्वेत लोगों से भेदभाव बड़े पैमाने पर हुआ है.
तस्वीर: Public domain
जॉन एफ कैनेडी (1961-1963)
जेएफके कहे जाने वाले राष्ट्रपति ने अपने कार्यकाल में क्यूबा का मिसाइल संकट देखा, भारत और चीन का युद्ध भी उन्हीं के सामने हुआ. कैनेडी के कार्यकाल में ही पूर्वी जर्मनी ने रातों रात बर्लिन की दीवार बना दी. युवा राष्ट्रपति ने न्यूक्लियर टेस्ट बैन ट्रीटी भी करवाई. कैनेडी के कार्यकाल में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच अंतरिक्ष होड़ भी शुरू हुई. 1963 में कैनेडी की हत्या कर दी गई.