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युद्ध के कारण कम हो रहा है रूसी पासपोर्ट का आकर्षण

ऐलेक्सी स्ट्रेलनिकोव
२६ फ़रवरी २०२४

रूसी नागरिकता हासिल करने वाले युवाओं को सेना में शामिल होना पड़ सकता है. इसके कारण पिछले दो सालों में रूसी पासपोर्ट के लिए आवेदन करने वालों की संख्या में भारी कमी आई है.

अपना रूसी पासपोर्ट हाथ में थामे बॉर्डर क्रॉसिंग पार करती एक महिला.
रूसी पासपोर्ट के लिए आवेदन करने वाले विदेशियों की संख्या पहले से कम हुई है. तस्वीर: Kay Nietfeld/dpa/picture alliance

फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था. इसके बाद से रूसी नागरिकता हासिल करने में लोगों की रुचि तेजी से कम हुई है. रूस के गृह मंत्रालय के मुताबिक, 2023 में करीब 63 हजार लोगों ने रूसी नागरिकता के लिए आवेदन किया. यह संख्या 2022 के मुकाबले आधी और 2015 के मुकाबले एक चौथाई थी.

डेनिस (बदला हुआ नाम) का जन्म लातविया के लीपाजा शहर में हुआ था. डेनिस 1994 तक यहां रहे. उसके बाद वह अपने परिवार के साथ रूस के वेलिकी नोवगोरोड शहर में बस गए और रूसी नागरिकता ले ली. साल 2012 में उन्हें रूस और लातविया के पासपोर्ट में से किसी एक को चुनना था क्योंकि लातविया ने तय किया था कि यूरोपीय संघ और नाटो में शामिल देशों की ही दोहरी नागरिकता स्वीकार की जाएगी.

40 वर्षीय डेनिस ने डीडब्ल्यू को बताया, "तब मैंने रूस की नागरिकता को चुना. मैं नोवगोरोड में रहता था, लेकिन अपने दोस्तों से मिलने लातविया भी जाता रहता था. उस दौरान मुझे पता नहीं था कि रूस किस दिशा में आगे बढ़ रहा है."

2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, तो इसके बाद डेनिस अपना सामान बांधकर लातविया लौट गए. वह उम्मीद कर रहे हैं कि उन्हें लातविया की स्वदेश वापसी योजना का फायदा मिलेगा क्योंकि उनके दादा लातवियाई थे. अब उन्होंने अपनी रूसी नागरिकता छोड़ने का मन बना लिया है.

रूसियों की मौत का बढ़ता आंकड़ा

‘सिविक असिस्टेंस कमिटी' रूस का एक गैर-सरकारी संगठन है, जो प्रवासियों और शरणार्थियों की मदद करता है. यह संगठन बताता है, "पिछले साल रूसी अधिकारियों ने नागरिकता पाने की प्रक्रिया को सरल बना दिया . लेकिन अब रूस का पासपोर्ट मिलने के साथ ही सेना में भी रजिस्ट्रेशन हो जाता है. इससे पता चलता कि क्यों अब कम लोग रूसी नागरिकता के लिए आवेदन कर रहे हैं."

एस्टोनिया जैसे यूरोप के कई देशों में रूसी भाषा बोलने वाले लोगों की खासी संख्या है. तस्वीर: Peter Kovalev/TASS/dpa/picture alliance

सिविक असिस्टेंस कमिटी कहती है, "हमारे हिसाब से मौजूदा राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति के चलते रूस की नागरिकता रखना घाटे का सौदा हो गया है."

इस संगठन को संदेह है कि अधिकारियों ने रूसी नागरिकता हासिल करने की प्रक्रिया को इसलिए आसान बनाया कि रूस जंग में बहुत सारे नागरिकों को खो चुका है. इसके अलावा, सेना भर्ती अभियान के दौरान बड़ी संख्या में लोग देश छोड़कर जा चुके हैं. अमेरिकी सेना के खुफिया विभाग का आकलन है कि यूक्रेन के साथ जंग में अब तक तीन लाख से ज्यादा रूसी नागरिक मारे गए हैं और घायल हुए हैं.

स्वतंत्र जनसांख्यिकी विशेषज्ञ एलेक्सी रक्शा के मुताबिक, देश में लामबंदी अभियान की शुरुआत के बाद से करीब छह लाख लोग रूस छोड़कर जा चुके हैं. वह कहते हैं, "यह एक बड़ा नुकसान था, क्योंकि देश छोड़कर जाने वाले ज्यादातर लोग पढ़े-लिखे और उच्च आयवर्ग के थे. दूसरी तरफ, रूस की कुल जनसंख्या कम नहीं हुई है. यूक्रेन के करीब 30 लाख शरणार्थी अब रूस में रहते हैं." रूसी अधिकारियों के मुताबिक तो यह आंकड़ा 50 लाख तक है.

रूस के गृह मंत्रालय के मुताबिक, साल 2022 में करीब 6.9 लाख लोगों ने रूस की नागरिकता हासिल की. इनमें से लगभग आधे यूक्रेनी नागरिक थे, जिन्हें यूक्रेन के कुछ इलाकों पर रूस का कब्जा होने के बाद रूसी पासपोर्ट मिला था.

नागरिकता के लिए आवेदन कर रहे प्रवासी श्रमिक

रूसी नागरिकता के लिए स्वेच्छा से आवेदन करने वालों में ज्यादातर ताजिकिस्तान और कजाकिस्तान के लोग हैं. 2023 में इन दोनों देशों से 25 हजार नागरिक रूस आए. 2022 में यह आंकड़ा और भी ज्यादा था. सिविक असिस्टेंस कमिटी कहती है कि इन दोनों देशों के नागरिकों के बीच रूसी नागरिकता की मांग कम हो रही है. कजाकिस्तान के लोगों में यह ज्यादा तेजी से घट रही है.

लाखों की संख्या में यूक्रेनी शरणार्थी रूस में रह रहे हैं. तस्वीर: AP/dpa/picture alliance

यह जानते हुए भी कि उन्हें रूस की तरफ से लड़ने के लिए युद्ध में भेजा जा सकता है, लोग रूसी नागरिकता क्यों चाहते हैं? प्रवासियों को कानूनी मदद उपलब्ध कराने वाली मानवाधिकार कार्यकर्ता वेलेंटीना चुपिक इसका जवाब देती हैं. वह कहती हैं कि ये लोग ऐसे गांवों और छोटे कस्बों से आते हैं, जहां कोई काम ही नहीं है.

ताजिकिस्तान के प्रवासी मजदूर रूसी नागरिकता चाहते हैं क्योंकि इससे उन्हें रूस में ज्यादा अधिकार मिल जाते हैं. चुपिक कहती हैं, "उनमें से कई लोगों को लगता है कि युद्ध उन्हें प्रभावित नहीं करेगा और आवेदन में अपना स्थायी पता नहीं बताने पर वे सेना में भर्ती होने की अनिवार्यता से भी बच सकते हैं.” हालांकि, रूस के कुछ इलाकों में सिर्फ उन्हीं श्रमिकों को पासपोर्ट दिए जा रहे हैं, जिन्होंने सेना के साथ युद्ध में लड़ने पर रजामंदी दी है.

हमवतन लोगों की वापसी

रूस ने 2004 में हमवतन लोगों के लिए एक पुनर्वास योजना शुरू की थी. इसका मकसद दूसरे देशों में रह रहे रूसियों की वतन वापसी कराना था, ताकि रूस की सिकुड़ती जनसंख्या की भरपाई हो सके और ग्रामीण इलाकों में श्रमिकों की कमी पूरी की जा सके.

इस योजना के तहत रूस आने वालों के लिए रूसी भाषा बोलना, रूस के साथ संबंध बनाए रखने की इच्छा रखना और रूसी संस्कृति की परंपरा में पला-बढ़ा होना जरूरी है. इस योजना में आवेदन करने से लेकर रूसी नागरिकता मिलने तक की प्रक्रिया में छह साल लग सकते हैं. सबसे पहले आवेदनकर्ताओं को रेजिडेंस परमिट लेकर रूस में कम-से-कम पांच साल तक रहना होता है. इनमें से तीन साल रूसी अधिकारियों द्वारा बताए गए इलाकों में रहने की शर्त होती है.

सिविक असिस्टेंस कमिटी के मुताबिक, पिछले साल लगभग आधे आवेदनकर्ताओं के विचार बदल गए और वे पुनर्वास योजना से बाहर निकल गए. इस योजना में शामिल होने वाले और गृह मंत्रालय में रजिस्ट्रेशन कराने वाले लोगों की संख्या में काफी अंतर है. चुपिक कहती हैं कि कई लोग योजना में शामिल होते हैं, लेकिन बाद में अपना मन बदल लेते हैं और रूस नहीं जाते हैं.

स्वीडन में हो रही है युद्ध की तैयारी

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कई जर्मन भी चाह रहे रूसी पासपोर्ट

रूसी नागरिकता के लिए यूरोपीय लोगों ने बहुत कम आवेदन किया. हालांकि, जर्मनी और लातविया इसके अपवाद हैं. पिछले साल लातविया के करीब 600 लोग रूस चले गए. वहीं जर्मनी के करीब 800 लोगों ने अस्थायी शरण के लिए आवेदन किया. यह पिछले सालों के मुकाबले ज्यादा संख्या थी. रूस आने वालों में कई लोग या तो पहले सोवियत संघ के नागरिक थे, या उनके माता-पिता सोवियत संघ के नागरिक रहे थे और करीब 30 साल पहले यूरोप चले गए थे.

वे-होम टेलीग्राम चैनल रूसी नागरिकता के लिए आवेदन करने से जुड़ी सलाह देता है. इसे रूसी अधिकारियों का भी समर्थन प्राप्त है. इसके 25 हजार सब्सक्राइबरों में से आधे जर्मनी और कजाकिस्तान के हैं. कई रूसी भाषी उपयोगकर्ताओं ने एक सर्वे में यूरोप छोड़ने के कारण बताए थे. 43 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि वे अपनी और बच्चों के भविष्य की चिंता के कारण यूरोप छोड़ रहे हैं. 39 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि वे ऐतिहासिक उथल-पुथल के समय में रूस के साथ खड़ा होना चाहते हैं. वहीं, 39 फीसदी ने नाजीवाद और रूसोफोबिया को कारण बताया.

इस टेलीग्राम चैनल से जुड़े आधे सदस्यों ने कहा कि वे फिलहाल रूस नहीं जाना चाहते. वे सिर्फ प्रक्रिया के बारे में जानकारी जुटा रहे थे. उनके मुताबिक, वे रूसी पासपोर्ट हासिल करने के लिए जरूरी सरकारी प्रक्रिया के बारे में जानना चाहते थे. साथ ही, दोहरी नागरिकता रखने से जुड़े विकल्पों का भी पता लगाना चाहते थे.

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