रूस का एक उपग्रह अंतरिक्ष में टूटकर 100 टुकड़ों में बंट गया. इसके मलबे से बचने के लिए अंतरिक्ष यात्रियों को शरण लेनी पड़ी.
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से पृथ्वीतस्वीर: NASA Earth/ZUMA Wire/ZUMAPRESS.com/picture alliance
विज्ञापन
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने कहा है कि रूस का एक उपग्रह टुकड़े-टुकड़े हो गया और इसका मलबा इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की ओर बढ़ने लगा, जिसके बाद अंतरिक्ष यात्रियों को बचने के लिए शरण लेनी पड़ी.
पी-1 नाम का यह उपग्रह 2022 में ही काम करना बंद कर चुका था. इसके टूटने की वजह अभी सामने नहीं आई है. अमेरिकी अधिकारियों ने कहा है कि इसके मलबे से अन्य उपग्रहों को फिलहाल कोई खतरा नहीं है.
यह घटना 26 जून को हुई और मलबा जब फैलने लगा तो इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों को करीब एक घंटे तक अपने यान में छिपा रहना पड़ा. रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोसकोसमोस ने इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है.
100 से ज्यादा टुकड़े हुए
अमेरिकी स्पेस कमांड के पास रडार का एक वैश्विक नेटवर्क है जो अंतरिक्ष में मौजूद उपग्रहों पर नजर रखता है. उसने कहा कि पी-1 टूटकर 100 से ज्यादा टुकड़ों में बंट गया था. उपग्रहों की निगरानी करने वाली कंपनी लियोलैब्स ने कहा कि गुरुवार दोपहर तक उसने कम से कम 180 टुकड़े गिन लिए थे.
मोमबत्ती की ऊर्जा से रॉकेट गया अंतरिक्ष में
एक जर्मन कंपनी ने पहली बार मोमबत्ती वाले मोम की ऊर्जा से रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजने का परीक्षण किया है. यह रॉकेट छोटे व्यावसायिक उपग्रहों को अंतरिक्ष तक कम खर्चे में पहुंचाएगा.
तस्वीर: HyImpulse /dpa/picture alliance
परीक्षण उड़ान पर रवाना हुआ रॉकेट
7 मई, 2024 को सुबह 5 बजे (जीएमटी) दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया में कूनीब्बा के लॉन्च साइट से इसे परीक्षण उड़ान पर भेजा गया. इसका नाम एसआर75 रखा गया है.
तस्वीर: HyImpulse /dpa/picture alliance
एसआर75
परीक्षण में इस्तेमाल हुआ रॉकेट 12 मीटर लंबा और 2.5 टन वजनी है. यह करीब 250 किलो तक का वजन, पृथ्वी से 250 किलोमीटर की ऊंचाई तक ले जा सकता है. समुद्र तल से 100 किलोमीटर की ऊंचाई के बाद अंतरिक्ष की सीमा शुरू हो जाती है.
तस्वीर: Marijan Murat/dpa/picture alliance
मोमबत्ती के मोम की ऊर्जा
इस रॉकेट में ऊर्जा के लिए पैराफीन यानी मोमबत्ती के मोम और तरल ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया गया है. आमतौर पर रॉकेट में लिक्विड हाइड्रोजन और लिक्विड ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया जाता है. इस ईंधन को रॉकेट में इस्तेमाल के लिए -432 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा किया जाता है.
तस्वीर: HyImpulse /dpa/picture alliance
हाईइंपल्स
रॉकेट बनाने वाले स्टार्टअप हाईइंपल्स में 65 लोग काम करते हैं. यह जर्मन अंतरिक्ष एजेंसी डीएलआर से ही निकला हुआ एक स्टार्टअप है. इसे पहले ही तकरीबन 10 करोड़ यूरो की कीमत का ऑर्डर मिल चुका है. यह ऑर्डर उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए है.
तस्वीर: Hiimpulse/dpa/picture alliance
उपग्रह भेजने का खर्च घटेगा
हाइड्रोजन की जगह पैराफीन का इस्तेमाल कर खर्च को घटाने की कोशिश है. पैराफीन से उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने का खर्च तकरीबन आधा हो जाएगा. अलग अलग रॉकेटों के हिसाब से फिलहाल सबसे सस्ती सेवा भारत की इसरो और इलॉन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स मुहैया कराते हैं.
तस्वीर: Hiimpulse/dpa/picture alliance
लोगों के पैसे से बना स्टार्टअप
स्टार्टअप के ज्यादातर प्रोजेक्ट निजी पैसे से शुरू हुए हैं हालांकि उसे कुछ सार्वजनिक संस्थाओं से भी पैसा मिला है. हाईइंपल्स को व्यावसायिक उपग्रहों की मांग बढ़ने की उम्मीद है. यह स्टार्टअप 2032 तक सालाना 70 करोड़ यूरोप का कारोबार करने की चाह रखता है.
तस्वीर: Marijan Murat/dpa/picture alliance
हाईइंपल्स का अगला प्रोजेक्ट
अगले साल के आखिर तक कंपनी ने एक बड़ा रॉकेट लॉन्च करने का लक्ष्य बनाया है. यह रॉकेट 600 किलो तक वजन वाले उपग्रह को भी अंतरिक्ष में ले कर जा सकेगा. जर्मनी के आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हाबेक ने हाल ही में हाईइंपल्स के वर्कशॉप का दौरा किया था.
तस्वीर: Marijan Murat/dpa/picture alliance
उपग्रह अंतरिक्ष में पहुंचाने का बाजार
बीते दशकों में अंतरिक्ष में उपग्रह से लोगों तक को ले जाने का बाजार बड़ी तेजी से उभरा है. अमेरिका, रूस, यूरोप, भारत, चीन और दूसरे कई देश इस बाजार में हैं. 2000-2010 तक हर साल 70 से 110 उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे गए. 2011-2019 आते आते यह संख्या 129 से 586 तक चली गई. 2020 से अब तक हर साल एक हजार से ज्यादा उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे गए हैं.
तस्वीर: SpaceX/UPI Photo/Newscom/picture alliance
8 तस्वीरें1 | 8
अंतरिक्ष में मानवनिर्मित उपग्रहों और उपकरणों के मलबे में पिछले कुछ सालों में लगातार वृद्धि हुई है. हालांकि इस मलबे के कारण किसी बड़े हादसे की संभावना कम होती है लेकिन लगातार बढ़ता मलबा वैज्ञानिकों के लिए चिंता का सबब रहा है.
पी-1 उपग्रह जब टूटा तब वह पृथ्वी की निचली कक्षा में करीब 355 किलोमीटर की ऊंचाई पर था. यह छोटे उपग्रहों के लिए एक लोकप्रिय क्षेत्र है, जहां हजारों छोटे उपग्रह स्थापित हैं. इनमें स्पेस एक्स के स्टारलिंक उपग्रहों का बड़ा नेटवर्क और चीन का स्पेस स्टेशन भी शामिल है, जिस पर तीन अंतरिक्ष यात्री मौजूद हैं.
लियोलैब्स ने कहा, "चूंकि यह मलबा निचली कक्षा में फैला है तो हमारा अनुमान है कि इस खतरनाक मलबे को हटने में हफ्तों से लेकर महीनों तक का समय लग सकता है.”
छह अंतरिक्ष यात्री मौजूद
बुधवार को जब पी-1 टूटा तब इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर मौजूद पांच अमेरिकी और एक रूसी अंतरिक्ष यात्री को नासा ने चेतावनी भेजी और उन्हें सुरक्षा के लिए जरूरी तय कार्रवाई का निर्देश दिया. तब वे सभी उन अंतरिक्ष यानों में जा बैठे, जिनमें उड़कर वे पृथ्वी से अंतरिक्ष में गए हैं. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि खतरा बढ़ने पर वे वहां से निकल सकें.
अंतरिक्ष में रहने का वर्ल्ड रिकॉर्ड
रूसी अंतरिक्ष यात्री ओलेग कोनोनेंको ने अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा समय बिताने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है. वह कुल मिलाकर 879 दिन अंतरिक्ष में बिता चुके हैं.
तस्वीर: Roscosmos Space Corporation/AP/picture alliance
अंतरिक्ष में 879 दिन
अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा समय बिताने का रिकॉर्ड अब रूसी अंतरिक्ष यात्री ओलेग कोनोनेंको के नाम दर्ज हो गया है. 59 वर्ष के कोनोनोंको 879 दिन अंतरिक्ष में बिता चुके हैं.
तस्वीर: Bill Ingalls/NASA/Getty Images
पिछला रिकॉर्ड
अब तक अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा समय बिताने का रिकॉर्ड रूसी एस्ट्रोनॉट गेनादी पडाल्का के नाम था जिन्होंने 879 दिन, 11 घंटे, 29 मिनट और 48 सेंकड बिताए थे. यह रिकॉर्ड 2015 में बना था.
तस्वीर: AP/NASA/BILL INGALLS
पांच बार अंतरिक्ष यात्रा
ओलेग कोनोनेंको 2008 से अब तक पांच बार अंतरिक्ष यात्रा कर चुके हैं. वह कहते हैं, “इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की हर यात्रा अलग होती है क्योंकि वहां लगातार बदलाव होते रहते हैं और उसी हिसाब से तैयारी करनी पड़ती है. लेकिन अंतरिक्ष की यात्रा मेरा बचपन का सपना था.“
तस्वीर: Bill Ingalls/NASA/Getty Images
1,000 दिन की ओर
कोनोनेंको की मौजूदा यात्रा 15 सितंबर 2023 को शुरू हुई थी. जब तक यह अभियान खत्म होगा वह कुल मिलाकर 1,000 दिन अंतरिक्ष में बिता चुके होंगे.
तस्वीर: Shamil Zhumatov/AFP/Getty Images
रिकॉर्ड के लिए नहीं
पेशे से इंजीनियर कोनोनेंको ने एक इंटरव्यू में कहा, “मैं अंतरिक्ष में रिकॉर्ड बनाने नहीं जाता बल्कि इसलिए जाता हूं कि मुझे अपने काम से प्यार है. जब मैं बच्चा था, तब से अंतरिक्ष में जाने के बारे में सोचा करता था. पृथ्वी की कक्षा में रहने और काम करने का मौका मुझे बार-बार यहां आने को प्रेरित करता है.”
तस्वीर: Mikhail Metzel/AFP/Getty Images
छोटी शुरुआत से बड़ी मंजिल तक
कोनेनेंको रूस तुर्कमेनिस्तान के चारद्जू में जन्मे थे जो तब सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करता था. उनके पिता ड्राइवर थे और मां तुर्कमेनिस्तान एयरपोर्ट पर टेलीफोन ऑपरेटर. पहली कोशिश में वह इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लेने में नाकाम रहे थे और उन्होंने मकैनिक के तौर पर काम किया. लेकिन दूसरी कोशिश में वह कामयाब रहे.
तस्वीर: Roscosmos Space Corporation/AP/picture alliance
6 तस्वीरें1 | 6
इन अंतरिक्ष यात्रियों में बुच विलमोर और सुनीता विलियम्स भी हैं जो 6 जून को बोइंग के स्टारलाइनर यान से स्पेस स्टेशन गए थे. उन्हें आठ दिन बाद ही वापस आना था लेकिन स्टारलाइनर में खराबी के कारण वे वहीं फंसे हुए हैं और उन्हें वापस लाने की कोशिशें की जा रही हैं.
इन दोनों के अलावा एक रूसी अंतरिक्ष यात्री ने स्पेसएक्स के यान क्रू ड्रैगन में शरण ली, जो मार्च में अंतरिक्ष में गया था. बचे हुए तीन अंतरिक्ष यात्रियों ने रूस के सोयूज यान में शरण ली जो पिछले साल सितंबर में उन्हें लेकर गया था. करीब एक घंटे बाद ये अंतरिक्ष यात्री वापस स्पेस स्टेशन में लौटे.
अंतरिक्ष में पृथ्वी के ऊपर 25 हजार ऐसे टुकड़े मौजूद हैं जिनका आकार चार इंच से ज्यादा है. ये टुकड़े उपग्रहों में हुए विस्फोट या उनकी टक्कर के कारण बने हैं. इनके कारण वैज्ञानिकों को केसलर इफेक्ट की चिंता है. केसलर इफेक्ट उस प्रक्रिया को कहते हैं जिनमें उपग्रह मलबे से टकराकर टूटते हैं और मलबे की मात्रा बढ़ती जाती है. इस तरह और ज्यादा उपग्रहों के टूटने का खतरा भी बढ़ता जाता है.
विज्ञापन
मिसाइल तो नहीं थी?
2021 में अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने रूस की तब कड़ी आलोचना की थी जब उसने अपने एक काम करना बंद कर चुके उपग्रह को विस्फोट से ध्वस्त कर दिया था. यह विस्फोट प्लेस्तेस्क से भेजी गई एक एंटी-सैटेलाइट मिसाइल (एसैट) के जरिए किया गया.
यह विस्फोट असल में 2022 में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण से पहले एक परीक्षण था जिसके कारण मलबे के हजारों टुकड़े पृथ्वी की कक्षा में फैल गए. अंतरिक्ष पर नजर रखने वाले हार्वर्ड के खगोलविद जोनाथन मैक्डोवेल ने बताया कि रीसर्स-पी1 नाम के इस उपग्रह के टूटने से ये टुकड़े पृथ्वी के वातावरण तक भी पहुंचे लेकिन रूस की तरफ से मिसाइल के लॉन्च का कोई अलर्ट नहीं था.
बाहरी अंतरिक्ष से सबसे नजदीकी परत में इतना क्यों तापमान?
02:59
This browser does not support the video element.
वह कहते हैं, "मुझे यकीन नहीं होता कि वे एसैट के निशाने के तौर पर इतने बड़े उपग्रह का इस्तेमाल करेंगे. लेकिन आजकल रूसियों के बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है.”
जो उपग्रह अपनी उम्र पूरी कर लेते हैं और काम करना बंद कर देते हैं वे कई सालों तक कक्षा में घूमते रहते हैं और फिर पृथ्वी पर गिर जाते हैं. कुछ दुर्लभ मामलों में ऐसा होता है कि वे उड़कर पृथ्वी की कक्षा में 36 हजार किलोमीटर की ऊंचाई पर उस जगह पहुंच जाते हैं जहां सक्रिय उपग्रह मौजूद हैं.
रोसकोसमोस ने पी-1 को 2021 में तब डिकमीशन कर दिया था, जब उपकरणों की खराबी के कारण उसने काम करना बंद कर दिया था. यह फैसला एक साल बाद सार्वजनिक किया गया था. तब से यह उपग्रह लगातार नीचे की ओर आ रहा है और अंततः पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश कर जाएगा.