कलाश्निकोव बना रही है नए रिकॉर्ड, भारत का भी योगदान
३० सितम्बर २०२२
रूस की मशहूर कलाश्निकोव राइफल ने बिक्री के कई पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. कंपनी को उम्मीद है कि इस साल उसका बिक्री का 20 साल का रिकॉर्ड टूट जाएगा.
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यूक्रेन युद्ध से लेकरभारत के साथ हुए समझौते तक, कलाश्निकोव के लिए यह साल बेहतरीन जा रहा है. रूसी हथियार कंपनी क्लाश्निकोव का कहना है कि इस साल उसका 20 साल का रिकॉर्ड टूट सकता है.
गुरुवार को कलाश्निकोव के अध्यक्ष ऐलन लशनिकोव ने इजेव्स्क शहर में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि कंपनी की बिक्री इस साल 40 प्रतिशत बढ़ चुकी है. हालांकि उन्होंने कोई आंकड़े तो नहीं दिए लेकिन कहा कि यह बिक्री निर्यात के कारण बढ़ी है.
एके 203 असॉल्ट राइफल में क्या खास है
कलाश्निकोव असॉल्ट राइफल दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली राइफल हैं. सुरक्षाबलों और विद्रोहियों की पहली पसंद का नया संस्करण एके 203 भारतीय सुरक्षाबलों का प्रमुख हथियार बनने जा रहा है. क्या खास है एके 203 में.
तस्वीर: Kalashnikov Group
पुरानी सीरीज का विस्तार
एके 203 इससे पहले आ चुकी एके 100 सीरीज का परिस्कृत संस्करण है. इसमें पुरानी कुछ कमियों को दूर कर इसकी मारक क्षमता और इस्तेमाल को बेहतर बनाया गया है. नई राइफल हल्की होने के साथ ही कई नई सुविधाओं से भी लैस है.
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आकार और भार
खाली मैगजीन के साथ इसका भार 4.1 किलो है. लंबाई 880 मिलीमीटर जबकि बट को फोल्ड कर दें, तो लंबाई 705 मिलीमीटर. बैरल की लंबाई 415 मिलीमीटर है.
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मारक क्षमता
यह राइफल एक मिनट में 600 गोलियां दाग सकती है. सेमीऑटोमैटिक और ऑटोमैटिक दोनों मोड में यह राइफल काम करती है. मैगजीन में एक बार 30 गोलियां भरी जा सकती हैं.
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हमले की रेंज
एके 203 से निकली 7.26 एमएम की गोलियां 400 मीटर की दूरी पर मौजूद निशाने को छलनी कर सकती हैं. हालांकि अपुष्ट खबरों में इनकी रेंज 500-800 मीटर तक बताई जा रही है.
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ताबड़तोड़ फायरिंग
एके 203 समेत कलाश्निकोव राइफलों की एक बड़ी विशेषता है उनका कभी भी जाम ना होना. दूसरे राइफलों के लिए यह बात उतने पक्के तौर पर नहीं कही जा सकती. एक सेकेंड में 10 बुलेट यानी 3 सेकेंड में मैगजीन खाली. निशाने का हाल क्या होगा समझा जा सकता है.
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एडजस्टेबल फोल्डिंग बट
एके 200 सीरिज की सभी राइफलों में एडजस्टेबल फोल्डिंग बट है जो एर्गोनॉमिक पिस्टल ग्रिप से लैस है. यह राइफल की पकड़ को सुरक्षित और मजबूत बनाता है.
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सेफ्टी टैब
राइफल को दुर्घटनावश चलने से बचाने के लिए इसमें सेफ्टी टैब नए तरीके का है. यह ट्रिगर फिंगर को ऐसी स्थिति में दबने से रोकता है और राइफल को अवांछित इस्तेमाल से बचाता है.
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पिकेटिनी रेल
राइफल के अपर और लोअर हैंडगार्ड पर पिकेटिनी रेल है जिन पर टेलिस्कोपिक लेंस लगाए जा सकते हैं. पुराने संस्करणों में इसके ना होने की वजह से स्नाइपर इसका इस्तेमाल नहीं कर पाते थे. एके 203 में यह कमी दूर हो गई है.
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खोलना आसान
इस राइफल के हिस्सों को अलग करना बेहद आसान है. ऊपरी हिस्से में लगे रोटेटिंग लैच को हल्का सा घुमाकर इसे खोला जा सकता है, इसके बाद इसके पुर्जे अलग करना चुटकियों का काम है.
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साइलेंसर
इस सीरिज की सभी राइफलों में साइलेंसर लगाए जा सकते हैं. सुपरसोनिक एम्युनिशन के लिए बने खास साइलेंसर इस हथियार को एकदम बेआवाज बना सकते हैं.
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कलाश्निकोव की विरासत
बेहद मारक साथ ही हल्का और टिकाऊ होना एके राइफलों की खास पहचान रही है. इस्तेमाल में आसान और नए एसेसरिज जोड़ कर इन हथियारों को और मारक और आकर्षक बना दिया गया है. एके 203 मिखाइल कलाश्निकोव की विरासत को एक कदम और आगे ले जाती है.
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रूसी रक्षा मंत्रालय के हवाले से लशनिकोव ने जोर देकर कहा कि उनकी प्राथमिकता रूस की सेना है. उन्होंने कहा, "कंपनी के सारे विभाग बिना किसी अपवाद के यह सुनिश्चित करने में लगे हैं कि देश की रक्षा क्षमताओं से, खासकर मौजूदा माहौल में कोई समझौता ना हो.”
पिछले साल अगस्त में कंपनी ने ऐलान किया था कि उसने रूस के रक्षा मंत्रालय के साथ एक समझौता किया है जिसके तहत लाखों एके-12 राइफल बनाई जाएंगी. रूसी सेना के हथियारों को बदला जा रहा है और आधुनिक मॉडल उपलब्ध कराए जा रहे हैं.
निर्यात में उछाल
कलाश्निकोव दुनिया की सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली राइफल है. इन्हें यूक्रेन में भी इस्तेमाल किया जा रहा है. हालांकि लशनिकोव ने कहा कि कंपनी की बिक्री में लगातार वृद्धि की मुख्य वजह विदेशी खरीददार हैं. उन्होंने कहा कि अभी सितंबर चल रहा है और कंपनी का निर्यात पिछले साल को पार कर चुका है.
लशनिकोव ने कहा, "हमारी उत्पादन क्षमताओं को इस साल काफी गहनता से प्रयोग किया जा रहा है.” कई देशों ने कलाश्निकोव राइफल खरीदी हैं. भारत को 70,000 एके 103 क्लाश्निकोव राइफल मिल रही हैं.
रूस की हथियार निर्यात करने वाली कंपनी रोसबरोन एक्सपोर्ट ने कहा था वह अब हर साल एक लाख से ज्यादा कलाश्निकोव राइफलें विदेशों को बेच रही है. रोसबरोन एक्सपोर्ट ने एक बयान में कहा था कि ‘एशिया पैसिफिक क्षेत्र के विदेशी खरीददारों के हित में कलाश्निकोव अपनी एके राइफलों का उत्पादन बढ़ा रही है.'
पुतिन ने आजमाया कलाश्निकोव
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पिछले साल भी कलाश्निकोव का निर्यात काफी बढ़ा था. इसी साल फरवरी में कलाश्निकोव ने एक बयान जारी कर कहा था कि 2020 के मुकाबले 2021 में कंपनी ने 70 प्रतिशत ज्यादा निर्यात किया है.
2021 में कलाश्निकोव का मुख्य निर्यात एके-100 और एके-200 मॉडल का हुआ था. उस बयान में कंपनी के डायरेक्टर जनरल व्लादिमीर लेपिन ने कहा था कि कलाश्निकोव के हथियार और उपकरण 27 देशों को सप्लाई किए जा रहे हैं.
पिछले साल जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत गए थे तो दोनों देशों के बीच कई रक्षा समझौतों पर दस्तखत हुए थे. उनमें भारतीय सेना के लिए एके-203 राइफलों की खरीद का समझौता भी शामिल था. भारतीय रक्षा मंत्रालय ने भारत और रूस के साझा उपक्रम इंडो-रशिया राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इसके तहत कलाश्निकोव ने भारत को राइफल उपलब्ध कराने के साथ-साथ तकनीकी सहायता और भारत में उत्पादन क्षमताओं का भी करार किया है.
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घातक है क्लाश्निकोव
कलाश्निकोव एक ऑटोमेटिक राइफल (AK) है जो दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली बंदूक है. इसे अक्सर बिना लाइसेंस के विदेशों में भी नकल कर लिया जाता है. इस राइफल के आधुनिक मॉडल आ गए हैं लेकिन आज भी लोग कलाश्निकोव को एके-47 से जानते हैं जिसे मिखाइल कलाश्निकोव ने डिजाइन किया था. एके यानी ऑटोमेटिक कलाश्निकोव 1947 में इस्तेमाल के लिए मंजूर हुई थी लिहाजा इसका नाम एके-47 पड़ गया.
70 साल से सबसे कामयाब राइफल एके 47
एके 47 दुनिया की सबसे कामयाब राइफल है. 7 दशक से यह दुनिया में सेना, सुरक्षाबल से लेकर चरमपंथियों, अपराधियों तक का पसंदीदा हथियार है. रूस की यह राइफल 30 से ज्यादा देशों में लाइसेंस लेकर या बगैर लाइसेंस के बनाई जाती है.
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नाम
एके 47 के नाम में एके का मतलब है "आवटोमाट कलाशनिकोवा". इसे बनाने वाले मिखाइल क्लाश्निकोव के नाम पर राइफल को यह नाम मिला. 47 अंक 1947 से आया क्योंकि इसी साल इस राइफल का ट्रायल शुरू हुआ था.
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सबसे कामयाब
राइफल की संख्या, उपयोग के साल और दुनिया भर में मौजूदगी के लिहाज से एके 47 मानव इतिहास की सबसे कामयाब असॉल्ट राइफल है. इसकी बराबरी करने वाली दूसरी कोई राइफल दुनिया में नहीं है.
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कई राइफलों का संगम
एके 47 राइफल मूल राइफल नहीं है. यह पहले से मौजूद कई डिजाइनों को मिला कर बनाई गई. इसका ट्रिगर तंत्र, सेफ्टी कैच, रोटेटिंग बेल्ट और गैस आधारित हरकत की अवधारणाएं दूसरे भारी हथियारों से ली गईं हैं. हालांकि सारे गुणों को इस तरह से मिलाया गया कि कम निर्माण लागत और इसकी लंबी उम्र ने इतिहास रच दिया.
लंबी कोशिशों के नतीजे में आई यह हल्की राइफल आसानी से मोड़ी और संभाली जा सकती थी और इसके बाद भी इसकी मारक क्षमता बहुत ज्यादा थी. इसका अचूक निशाना एक और खूबी थी जिसने इसे लोकप्रिय बनाया. सैनिकों के लिए हाथ में राइफल लेकर इतनी तेजी से फायर कर पाना पहले मुमकिन नहीं था और इसी अंदाज ने इसे सिरमौर बना दिया.
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मिखाइल कलाश्निकोव
1919 में एक किसान के घर पैदा हुए मिखाइल तिमोफेयेविच कलाश्निकोव सोवियत आर्मी में लेफ्टिनेंट जनरल और देश के नायक बने. इतिहास में वह दुनिया के सबसे मशहूर हथियार डिजाइनर के रूप में दर्ज हो गए. लंबी बीमारी के बाद 2013 में 94 साल की उम्र में उनकी मौत हुई. मॉस्को में एक चौराहे पर उनकी मूर्ति भी लगाई गई है.
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लंबी कोशिश के बाद सफलता
1938 में रेड आर्मी में भर्ती हुए कलाश्निकोव को उनके छोटे कद के कारण टैंक मैकेनिक बनाया गया. दूसरे विश्व यद्ध में वह टैंक कमांडर बन चुके थे और युद्ध में गंभीर रूप से घायल हो गए. 1941 से 1942 में इलाज के दौरान ही उन्होंने सोवियत सेना के लिए नई राइफल डिजाइन की. उनके डिजाइन को तो मंजूरी नहीं मिली लेकिन उनके सीनियरों ने उन्हें छोटे हथियार डिजाइन करने के काम में लगा दिया.
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150 हथियारों के डिजायनर
सेना के लिए कलाश्निकोव ने इंजीनियरों के साथ मिल कर एके 47 राइफल डिजाइन की. इसके बाद वह अपने पूरे करियर में इस राइफल को बेहतर बनाने पर काम करते रहे. सिर्फ एके 47 ही नहीं, उन्होंने 150 दूसरे हथियारों के डिजाइन बनाने में मदद की.
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एके 47 से आगे भी
1945 में एक प्रतियोगिता के दौरान कलाश्निकोव ने एके 47 राइफल तैयार की जो ट्रायल के लिए भेजी गई और इस प्रतियोगिता में विजयी रही. 1947 में सोवियत सेना ने इसे आधिकारिक रूप से अपना हथियार बनाया. बाद में रूस और दूसरे देशों ने इसके कई अलग अलग वर्जन तैयार किए. इनमें एकेएम, एके 103, एके 56 और एके 74 प्रमुख हैं. एके 56 चीन में डिजाइन किया गया.
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सात दशक में 7.5 करोड़ राइफल
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक अब तक करीब 7.5 करोड़ एके 47 राइफलें बनाई गई हैं. कलाश्निकोव श्रेणी के कुल राइफलों की तादाद 10 करोड़ से ज्यादा है. इसमें अनाधिकारिक रूप से या फिर चोरी छिपे बनाई जाने वाली राइफलों का ब्यौरा शामिल नहीं है.
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लंबाई और वजन
करीब 24-35 इंच की लंबाई वाली एके 47 राइफल का वजन बिना मैगजीन के करीब 3.47 किलो होता है. इसकी मैगजीन में 30 गोलियां होती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
मारक क्षमता
अलग अलग फायरिंग मोड में प्रति मिनट 40-100 गोलियां निकलती हैं जो 350 मीटर की रेंज में अपने निशाने को छलनी कर सकती हैं.
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भारत में इंसास
भारत में बनने वाले इंसास, कलांतक और इंसास लाइट मशीन गन भी एके 47 का ही प्रतिरूप माने जाते हैं जिन्हें बिना लाइसेंस लिए त्रिचुरापल्ली की ऑर्डिनेंस फैक्टरी में बनाया जाता है.
तस्वीर: Imago/ZUMA Press
दुनिया भर में निर्माण
आधुनिक आयुध कारखानों से लेकर पाकिस्तान के कबायली इलाकों तक में इसे सरकारी और अवैध तरीके से बनाने का काम होता है. दुनिया के बाजार में इसकी कीमतें भी इसी बात से तय होती हैं कि यह कहां बनी और इसे कैसे खरीदा गया.
तस्वीर: Fotolia/Haramis Kalfar
खास लोगों की खास एके 47
तस्वीर में दिख रही एके 47 राइफल खासतौर पर सद्दाम हुसैन के लिए तैयार करवाई गई थी. यह अब भी बगदाद के म्यूजियम में रखी है.
तस्वीर: Getty Images/AFP
हथियार हो तो रूस का
यूरोप से लेकर मध्यपूर्व और एशिया से लेकर अफ्रीका और अमेरिका तक में इन राइफलों को सैनिकों और विद्रोहियो के हाथ में देखा जा सकता है. जंग कोई किसी से किसी बात के लिए लड़े, रूस हथियार सिर चढ़ कर बोलता है.
तस्वीर: Reuters
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2020 में जारी एक अनुमान के मुताबिक कलाश्निकोव 106 देशों की सेनाओं द्वारा प्रयोग की जाती है. उस अनुमान में कहा गया कि अलग-अलग मॉडल की 10 करोड़ से ज्यादा एके राइफलें दुनियाभर में मौजूद हैं. एके-47 को अब तक बना सबसे घातक हथियार भी कहा जाता है. एक मिनट में 600 गोलियां दागने की क्षमता रखने वाली इस राइफल से अब तक जितने लोग मारे गए हैं वह दो बार प्रयोग हुए परमाणु बम से भी ज्यादा हैं.