सुरक्षा परिषद की बैठक छोड़कर चले गए रूसी राजदूत
७ जून २०२२संयुक्त राष्ट्र में रूस के राजदूत वासीली नेबेनजिया उस वक्त सुरक्षा परिषद की एक बैठक से दनदनाते हुए बाहर निकले, जब यूरोपीय काउंसिल के अध्यक्ष चार्ल्स माइकल ने उनके देश पर दुनिया को खाद्य संकट में धकेलने का आरोप लगाया. माइकल ने कहा कि यूक्रेन में युद्ध छेड़कर रूस ने दुनिया में भोजन का संकट खड़ा कर दिया है.
माइकल ने रूस की सेनाओं पर युद्ध अपराध और मानवता के विरुद्ध अपराध करने का भी आरोप लगाया. उन्होंने यौन हिंसा का खासतौर पर जिक्र करते हुए कहा कि रूस की सेना इसे "डराने, दबाने और यातनाएं देने के” हथियार रूप में इस्तेमाल कर रही है.
इससे पहले नेबेनजिया ने अपने बयान में हर आरोप को खारिज किया था. उन्होंने अपने सैनिकों पर यौन हिंसा के आरोपों को कोरा झूठ बताते हुए उनकी निंदा की. गुस्से में बैठक से बाहर निकलने के बाद नेबेनजिया ने पत्रकारों को बताया, "मैं वहां नहीं रुक सकता था क्योंकि चार्ल्स माइकल झूठ फैलाने के लिए यहां आए थे.”
"रूस ही जिम्मेदार है"
15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद में चार्ल्स माइकल ने कहा, "श्रीमान राजदूत महोदय, आइए ईमानदारी से बात करें. क्रेमलिन खाद्य आपूर्ति को विकासशील देशों के खिलाफ एक छिपी हुई मिसाइल की तरह इस्तेमाल कर रहा है. इस खाद्य संकट के लिए रूस ही जिम्मेदार है.”
यूएन: 2021 में चार करोड़ और लोग खाद्य संकट में घिरे
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंटोनियो गुटारेश यूक्रेन और रूस से खाद्य सामग्री का निर्यात शुरू करवाने के लिए ‘पैकेज डील' के रूप में एक समझौता करवाने की कोशिश कर रहे हैं. इस बारे में तुर्की में बुधवार को एक बैठक होनी है, जिसमें हिस्सा लेने के लिए रूस के विदेश मंत्री सर्गई लावरोव वहां पहुंच रहे हैं
24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था, जिसे उसने "विशेष सैन्य अभियान” का नाम दिया था. इस कार्रवाई का सीधा असर दुनियाभर की खाद्य आपूर्ति पर हुआ. अनाज, खाने के तेल, ईंधन और खाद के दाम तेजी से बढ़े.
बढ़ता जा रहा है संकट
यूक्रेन और रूस दुनिया भर में पैदा होने वाले गेहूं का एक तिहाई उगाते हैं. लेकिन दोनों देशों के बीच युद्ध का असर उत्पादन और सप्लाई दोनों पर पड़ा है. निर्यात तो लगभग पूरी तरह से बंद हो गया क्योंकि यूक्रेन के बंदरगाह पर रूसी सेना की घेराबंदी है और बुनियादी ढांचे के साथ ही अनाजों के गोदाम भी युद्ध में तबाह हो रहे हैं.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतें और ज्यादा बढ़ने की आशंका है, जो इस साल की शुरुआत से अब तक 40 फीसदी तक बढ़ चुकी हैं. भारत के कुछ बाजारों में इसकी कीमत 25,000 रुपये प्रति टन है जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य 20,150 रूपये ही है.
सबसे बड़ी मुश्किल अफ्रीकी देशों को है. अफ्रीका करीब 40 फीसदी गेहूं का आयात यूक्रेन और रूस से करता है. दुनिया में गेहूं की बढ़ती कीमतों ने लेबनान में इसके भाव 70 फीसदी बढ़ा दिए हैं. हालांकि, कीमतें बढ़ने की वजह सिर्फ रूस-यूक्रेन युद्ध ही नहीं है. गेहूं के साथ-साथ मक्का, चावल और सोयाबीन की कीमतें भी बढ़ गई हैं, क्योंकि खरीदार वैकल्पिक अनाजों की ओर मुड़ रहे हैं.
युद्ध को देखते हुए आर्थिक मुनाफाखोरों ने अनाजों के व्यापार में हाथ डाल दिया है. कृत्रिम रूप से कीमतें बढ़ाई जा रही हैं, क्योंकि वे बाजार की अनिश्चितता का फायदा उठाना चाहते हैं. जी-7 देशों के कृषि मंत्रियों ने इसकी बाकायदा शिकायत की है.
रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)