शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के लिए भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद पहुंच गए हैं. करीब नौ साल बाद किसी भारतीय विदेश मंत्री का पाकिस्तान दौरा हो रहा है.
भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से कायम तनाव की पृष्ठभूमि में बीते कई दिनों से एससीओ की यह बैठक चर्चा में है, खासतौर पर भारत के इस बैठक में शामिल होने के फैसले के कारण. परमाणु शक्ति संपन्न देश भारत और पाकिस्तान के आपसी रिश्तों में पिछले कई सालों से ठंडापन पसरा है. कश्मीर मुद्दे से लेकर सीमा पार से आतंकवाद, दोनों देशों के बीच तनाव और शत्रुता का कारण रहा है.
भारत-पाकिस्तान में द्विपक्षीय वार्ता नहीं होगी
भारतीय विदेश मंत्रालय ने 14 अक्टूबर को एक बयान जारी कर कहा, "एससीओ की बैठक हर साल आयोजित की जाती है और इसमें संगठन के व्यापार और आर्थिक एजेंडे पर ध्यान केंद्रित किया जाता है." बयान में आगे कहा गया, "विदेश मंत्री एस. जयशंकर बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे. भारत एससीओ फ्रेमवर्क में सक्रिय रूप से शामिल है."
भारत और पाकिस्तान, दोनों पहले ही एससीओ की मुख्य बैठक के इतर दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच द्विपक्षीय वार्ता से इनकार कर चुके हैं. एस. जयशंकर ने यह कहते हुए द्विपक्षीय वार्ता से इनकार कर दिया था कि उनकी यात्रा एक बहुपक्षीय कार्यक्रम के लिए है. पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक डार ने भी कहा कि अभी भारत से द्विपक्षीय वार्ता की कोई योजना नहीं है. उन्होंने कहा था कि द्विपक्षीय बातचीत के लिए ना ही भारत ने अनुरोध किया है और ना ही पाकिस्तान ने.
क्यों अहम है भारतीय विदेश मंत्री की पाकिस्तान यात्रा?
जयशंकर की पाकिस्तान यात्रा को नई दिल्ली की ओर से एक महत्वपूर्ण फैसले के रूप में देखा जा रहा है. हाल ही में एक कार्यक्रम में जयशंकर ने कहा था कि किसी भी पड़ोसी की तरह, भारत भी पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध रखना चाहेगा, लेकिन सीमा पार आतंकवाद को नजरअंदाज करके यह नहीं हो सकता. भारत ने लगातार कहा है कि पाकिस्तान के साथ बेहतर संबंध केवल आतंक और हिंसा से मुक्त माहौल में ही संभव हो सकते हैं.
अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा वापस लिए जाने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के भारत के फैसले के बाद दोनों राष्ट्रों के संबंध और बिगड़ गए. भारत द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद पाकिस्तान ने भारत से अपने राजनयिक संबंधों को सीमित कर लिया था.
पूर्व राजनयिक अशोक सज्जनहार ने समाचार चैनल एनडीटीवी से कहा, "अब पाकिस्तान के पाले में है कि वह भारत-पाकिस्तान रिश्ते सामान्य होने की बात करे. 2019 में पुलवामा और फिर बालाकोट के बाद भारत ने साफ कर दिया है कि बातचीत और आतंकवाद एक साथ नहीं चल सकते, लेकिन तब से पाकिस्तान ने कोई रचनात्मक कदम नहीं उठाया." उन्होंने आगे कहा, "अनुच्छेद 370 का पाकिस्तान से कोई लेना-देना नहीं है. यह भारत का आंतरिक मामला है. नतीजतन, अगर रिश्ते सुधारने हैं तो पाकिस्तान को पहले कदम उठाने होंगे."
नरेंद्र मोदी सबसे लोकप्रिय नेता
डेटा एनालिसिस कंपनी मॉर्निंग कंसल्ट ने दुनिया के 25 सबसे बड़े नेताओं की अपने-अपने देशों में लोकप्रियता का आकलन कर बताया है कि नरेंद्र मोदी सबसे लोकप्रिय नेता हैं. यह 28 अगस्त से 3 सितंबर के बीच हुए सर्वे पर आधारित है.
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चंद लोकप्रिय नेता
सर्वेक्षण के मुताबिक 25 में से सिर्फ चार देशों के नेता ऐसे हैं जहां आधी से ज्यादा जनता उन्हें पसंद करती है. सबसे ज्यादा रेटिंग वाले नेताओं में नरेंद्र मोदी (भारत), खाविएर मिलेई (अर्जेन्टीना), आंद्रेस मानुएल लोपेज ओबराडोर (मेक्सिको), विओला आमहर्ड (स्विट्जरलैंड), डॉनल्ड टुस्क (पोलैंड), सिमोन हैरिस (आयरलैंड), डिक शूफ (नीदरलैंड्स) और एंथनी अल्बानीजी (ऑस्ट्रेलिया) की रेटिंग पॉजीटिव है.
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नरेंद्र मोदी सबसे ऊपर
इस सूची में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे ऊपर हैं. 72 फीसदी लोग उन्हें पसंद करते हैं, जबकि 22 फीसदी लोग नापसंद करते हैं. सिर्फ छह फीसदी लोग ही ऐसे हैं जिनकी कोई राय नहीं है.
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सबसे नापसंद नेता
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक-इयोल को सबसे कम रेटिंग मिली हैं. उन्हें 75 फीसदी लोगों ने नापसंद किया जबकि उन्हें पसंद करने वालों की संख्या मात्र 17 फीसदी है. दूसरे नंबर पर चेक रिपब्लिक के पेट्र फियाला हैं जिन्हें सिर्फ 19 फीसदी लोग पसंद करते हैं, जबकि उन्हें नापसंद करने वाले 76 फीसदी हैं.
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सबसे कम लोकप्रिय नेता
इस सर्वे के मुताबिक दुनिया के कई जानेमाने नेताओं को अपनी जनता के बीच नापसंदगी झेलनी पड़ रही है. इनमें जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्त्स और फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों भी हैं. शॉल्त्स को 73 फीसदी लोगों ने नापसंद किया जबकि उन्हें पसंद करने वालों की संख्या 20 फीसदी है. माक्रों को नापसंद करने वाले लोगों की संख्या 70 फीसदी है.
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वैश्विक संकटों का असर
सर्वेक्षण के विश्लेषण में कहा गया है कि 2020-21 की कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया के बहुत नेताओं की लोकप्रियता को नुकसान पहुंचाया है. उस दौरान हुए नुकसान की भरपाई बहुत से नेता नहीं कर पाए हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को 39 फीसदी लोग पसंद करते हैं जबकि 55 फीसदी नापसंद करते हैं.
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यूरोपीय जनता में नाराजगी
इस सर्वेक्षण में सबसे कम लोकप्रिय नेताओं में अधिकतर यूरोप के हैं. रिपोर्ट के मुताबिक यूरोप की आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों का असर जनता के रवैये में सबसे ज्यादा दिख रहा है. ब्रिटेन, इटली, बेल्जियम, स्पेन और स्वीडन के नेताओं की रेटिंग भी नकारात्मक है. (वीके/एए)
शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग भी पाकिस्तान पहुंचे हैं. रूसी प्रधानमंत्री मिखाइल मिशुस्तिन समेत अन्य सदस्य और पर्यवेक्षक देशों के सात और प्रधानमंत्री भी शरीक हो रहे हैं. बेलारूस, किर्गिज गणराज्य, मंगोलिया के प्रधानमंत्री भी पाकिस्तान पहुंच चुके हैं. ईरान के उपराष्ट्रपति मोहम्मद रजा आरिफ बैठक में अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
एससीओ की मुख्य बैठक 15 अक्टूबर को होगी. इससे पहले मंगलवार (14 अक्टूबर) को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ प्रतिनिधियों के स्वागत में रात्रिभोज देंगे. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि शरीफ इस बैठक से इतर द्विपक्षीय बैठकें भी करेंगे. एससीओ में भारत, पाकिस्तान, चीन, रूस, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और बेलारूस हैं.
हिंसा के साये में शिखर सम्मेलन
दो दिनों की इस बैठक के लिए इस्लामाबाद में सुरक्षा के सख्त उपाए किए गए हैं. 17 अक्टूबर तक शहर की सुरक्षा के लिए सेना को तैनात किया गया है. इस्लामाबाद और रावलपिंडी में तीन दिनों की छुट्टी घोषित कर दी गई है. राजधानी में तीन दिनों के लिए बाजार और स्कूल बंद रहेंगे और सुरक्षा के लिए 10,000 से अधिक पुलिस, अर्धसैनिक बल और सैन्य कर्मियों को तैनात किया गया है.
इतनी सतर्कता और इंतजाम अलग-अलग अलगाववादी समूहों द्वारा हिंसा में वृद्धि के बीच अनिश्चित सुरक्षा स्थिति को भी दर्शाते हैं. इस महीने की शुरुआत में प्रतिबंधित बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने कराची में दो चीनी इंजीनियरों और एक अन्य हमले में 20 खनिकों की हत्या कर दी थी. 14 अक्टूबर को खैबर पख्तूनख्वा के बन्नू जिले में पुलिस मुख्यालय पर हमला करने की कोशिश कर रहे कम-से-कम पांच आतंकवादियों की पुलिस से मुठभेड़ में मौत हो गई थी.
क्या है शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन
क्या रूस, चीन और भारत आपसी मतभेद पाटकर जी-7 का विकल्प बन पाएंगे. ये सारे देश शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) के सदस्य हैं.
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स्थापना
यूरोप और एशिया, यानी यूरेशिया को राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा के मुद्दे पर जोड़ने के लिए 15 जून 2001 को चीन में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन का एलान किया गया. 2002 में इसके चार्टर पर दस्तखत हुए और 19 सितंबर 2003 से यह संस्था काम करने लगी.
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शुरुआती सदस्य
शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन की नींव रखने वाले देशों में चीन, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं. उज्बेकिस्तान के बिना इन पांच देशों का समूह पहले शंघाई-5 कहलाता था.
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भारत और पाकिस्तान की एंट्री
जुलाई 2005 में कजाखस्तान की राजधानी अस्ताना में हुए एससीओ सम्मेलन में भारत, ईरान, मंगोलिया और पाकिस्तान के राष्ट्र प्रमुख पहली बार शामिल हुए. भारत और पाकिस्तान पिछले साल संस्था के सदस्य बने. एससीओ के सदस्य देशों में दुनिया की आधी आबादी रहती है.
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बढ़ता कारवां
अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन के ऑब्जर्वर देश बन चुके हैं. इन देशों पर नजर रखी जा रही है. जरूरी शर्तें पूरी होने के बाद इनकी सदस्यता पर विचार किया जाएगा.
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डॉयलॉग पार्टनर
अर्मेनिया, अजरबैजान, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका और तुर्की को डॉयलॉग पार्टनर बनाया गया है. एससीओ के आर्टिकल-14 के तहत डॉयलॉग पार्टनर ऐसा देश या ऐसी संस्था होगी जो एससीओ के लक्ष्यों और सिद्धांतों को साझा करे, जिसका एससीओ से रिश्ता समान साझा हितों पर टिका हो.
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एससीओ की मुश्किलें
शंघाई कोऑपरेशन आर्गनाइजेशन के सदस्य देश आतंकवाद, कट्टरपंथ और अलगाववाद से मिलकर निपटने पर सहमत होते हैं. लेकिन जब बात भारत-पाकिस्तान संबंधों और भारत-चीन सीमा विवाद ही आती है तो पेंच फंस जाता है. सीमा विवाद सहयोग में बाधा बन जाता है.
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नाटो का जवाब
पश्चिम के मीडिया पर्यवेक्षकों को लगता है कि एससीओ की स्थापना का असली मकसद नाटो को जवाब देना है. रूस और चीन बिल्कुल नहीं चाहते कि अमेरिका उनकी सीमा से सटे इलाकों के करीब पहुंचे. 2005 में एससीओ देशों ने अमेरिका से यह भी कहा कि वह सदस्य देशों से अपनी सेना हटाए. उस वक्त उज्बेकिस्तान में अमेरिकी सेना तैनात थी.
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सैन्य साझेदारी
बीते कुछ बरसों में एससीओ देशों की बीच सैन्य सहयोग में तेजी आई है. 2014 के सम्मेलन में सामूहिक सुरक्षा संधि संस्था बनाने की मांग भी उठी. इस पर चर्चा जारी है.