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समाज

किसी धर्म का नहीं, यह है "सबका घर"

एम. अंसारी
१० अप्रैल २०१८

क्या हिन्दू और मुसलमान एक ही छत के नीच रह सकते हैं? इसका जवाब है दिल्ली में बना "सबका घर". देश की राजधानी में यह एक ऐसा घर है, जहां हिन्दू, मुसलमान, सिख और ईसाई एक छत के नीचे मेल-जोल और प्यार से रहते हैं.

Indien Religion Sabka Ghar
तस्वीर: DW/A.Ansari

दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के पास बना "सबका घर" किसी भी धर्म और किसी भी मान्यता के अनुयायी का खुले दिल से स्वागत करता है. जैसा नाम है, वैसा ही "सबका घर" का काम भी है. यहां रहने आए लोगों से यह नहीं पूछा जाता कि वे किस धर्म के हैं और उनकी मान्यताएं क्या हैं, वे भगवान या खुदा में विश्वास रखते हैं या नहीं.

तस्वीर: DW/A.Ansari

साल 2017 से स्थापित "सबका घर", समाज में धार्मिक सद्भावना, आपसी प्यार और दूसरों के प्रति सम्मान का संदेश दे रहा है. पिछले नौ महीनों में इस घर में देश के दूर दराज के इलाकों से हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई धर्म के करीब 1500 लोग रह चुके हैं. गांधीवादी विचारधारा से जुड़े लोगों के अलावा यहां ऐसे भी लोग आते हैं, जिनकी विचारधारा दक्षिणपंथी है.

सांप्रदायिकता के खिलाफ मुहिम

सरहदी गांधी के नाम से मशहूर खान अब्दुल गफ्फार खान के बनाए संगठन खुदाई खिदमतगार को भारत में दोबारा जिंदा करने वाले और "सबका घर" के सह-संस्थापक फैसल खान बताते हैं, "सबका घर के जरिए लोगों को दूसरे धर्मों के बारे में करीब से जानने का मौका मिलता है. धर्मों के बारे में जो मिथक समाज में फैले हुए हैं, वे इस घर के जरिए खत्म होते हैं. यहां रहने वाले हिन्दू भाई को मुस्लिम को करीब से जानने का मौका मिलता है, तो दूसरी ओर मुसलमान भाई को हिन्दू समाज के बारे में बेहतर और सटीक जानकारी हासिल होती है. मैंने इस घर में रहते हुए धर्मों के प्रति फैले भ्रम को ध्वस्त होते देखा है. इस घर के जरिए हम कट्टर से कट्टर इंसान को गैर सांप्रदायिक बनाने की कोशिश करते हैं."

इसी घर में पिछले नौ महीनों से रह रहे खुदाई खिदमतगार के राष्ट्रीय कार्यकारणी के सदस्य और "सबका घर" के सह-संस्थापक डॉ. कुश कुमार कहते हैं, "सबका घर शुरु होने से पहले मैं और फैसल खान साथ रहते थे. हम दोनों को ख्याल आया कि क्यों ना ऐसा कुछ किया जाए जिससे और भी लोग एक छत के नीचे रह सकें और इस सोशल एक्सपेरिमेंट में शामिल हो सकें. हम चाहते थे कि अलग-अलग धर्मों के लोग साथ रह कर अपनी-अपनी गलतफहमियां दूर करें और नफरत की दीवार को गिरा दें. मैंने महसूस किया है कि यहां रहने से इंसान के अंदर सहिष्णुता का भी विकास होता है."

असहमति पर सहमति

जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में एलएलबी के छात्र सुयश त्रिपाठी भी इस घर में पिछले कुछ महीनों से रह रहे हैं. वे बताते हैं, "इस घर में रहते हुए मैंने कई चीजें सीखीं, जैसे दूसरे के विचारों को सुनना और उऩका सम्मान करना. घर में जो हम सद्भावना सीखते हैं, उसको समाज में अमल में लाते हैं. मेरे यहां रहने का अनुभव बहुत ही सकारात्मक है. यहां रहते हुए हमें दूसरे धर्म के बारे में अच्छी-अच्छी बातें जानने को मिलती हैं. हम हर मुद्दे पर खुली बहस करते हैं और अगर हम असहमत होते हैं, तो बड़े ही विनम्रता से कह देते हैं कि हम आपके विचार से असहमत हैं. सामने वाला भी हमारी असहमित को मान लेता है. इस घर की यही बड़ी खासियत है.”

सुयश त्रिपाठी कहते हैं कि जब उनके धर्म के लोगों को पता चला कि वे मुसलमानों के साथ घर साझा करते हैं, तो उन्होंने सुयश को ऐसा ना करने को कहा लेकिन जब सुयश ने उन्हें समझाया और अपने अनुभव बताएं, तो उनके भी विचार बदल गए. सुयश के मुताबकि, "समाज में इन दिनों जो सांप्रदायिक मतभेद दिख रहा है, वङ सिर्फ ऊपरी सतह पर है. जमीनी स्तर पर अगर आप आपस में बात करें, तो मतभेद अपने आप ही खत्म हो जाते हैं. नफरत को बातचीत के जरिए खत्म किया जा सकता है."

टूट रहे हैं भ्रम

फैसल खान के साथ रहने से पहले डॉ. कुश कुमार के मन में मुस्लिम समाज के प्रति कुछ गलतफहमियां भी थीं. लेकिन जब वे साथ रहने लगे, तो कई मिथक टूट गए. डॉ. कुमार बताते हैं, "समाज में मुस्लिमों के बारे में एक आम गलतफहमी यह है कि वे दोनों पहर में मांसाहारी व्यंजन खाते हैं लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. मैंने साथ रहते हुए देखा कि ये लोग हमारी ही तरह सब्जी भी बड़े शौक से खाते हैं. वैसे ही मुस्लिम समाज में हिन्दुओं के प्रति भ्रम है कि वे शुद्ध-अशुद्ध और छुआ-छूत को बहुत कड़ाई से मानते हैं लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. हम साथ बैठते हैं, साथ खाना खाते हैं और पानी पीते हैं."

फिलहाल इस घर में 8 लोग रहते हैं. दो केरल, चार उत्तर प्रदेश, एक महाराष्ट्र और एक पुदुचेरी से. यहां कोई तीन दिन के लिए रहने आता है, तो कोई पिछले साल जून 2017 से रह रहा है. घर में रहने वाले सदस्य को अपना काम खुद ही करना होता है. साथ ही दूसरों के आत्मसम्मान का भी ख्याल रखना होता है. सभी लोग साथ खाना बनाते हैं और साथ ही खाते भी हैं. इस दौरान वे देश के हालात पर भी बिना किसी संकोच के अपना नजरिया रखते हैं.

ताकि कम हो सके नफरत

यहां रहने आए लोगों से किसी तरह का किराया नहीं लिया जाता है, बल्कि लोग स्वेच्छा से ही आर्थिक योगदान देते हैं. मुस्लिम बहुल इलाके में स्थित "सबका घर" आस पास के लोगों के बीच भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. फैसल बताते हैं कि आस-पड़ोस के लोग भी घर के मेहमानों के लिए खीर और नाश्ता लेकर आते हैं और यहां बैठकर विचार साझा करते हैं.

दिल्ली के अलावा एक और "सबका घर" पुदुचेरी में खोला गया है जहां इसी तरह से लोग रह सकते हैं. फैसल खान और डॉ. कुमार आने वाले महीनों में इस प्रयोग को देश के अन्य शहरों में भी आजमाना चाहते हैं. फैसल कहते हैं, "भले ही हमारी कोशिश छोटी है लेकिन समाज से अगर जरा भी नफरत कम होती है, तो यह मानवता के लिए बहुत बड़ी बात होगी."

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