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समाजभारत

हिंसा के बाद सहारनपुर का माहौल तो शांत है लेकिन बाजार ठप

समीरात्मज मिश्र
२१ जून २०२२

पश्चिमी यूपी के सहारनपुर में 10 जून को हुई हिंसा के बाद स्थिति भले ही सामान्य है लेकिन हिंसा का असर फर्नीचर मार्केट पर अब भी दिख रहा है. विदेशों से ऑर्डर मिलने बंद हो गए हैं और कारीगर डर के मारे काम पर नहीं आ रहे हैं.

Indien Möbelmarkt in Saharanpur
सहारनपुर अपने नक्काशीदार फर्नीचर के लिए दुनिया भर में मशहूर हैतस्वीर: Mansoor Badar

सहारनपुर की जामा मस्जिद में गत दस जून को जुमे की नमाज के बाद हुई हिंसा का असर यहां के मशहूर फर्नीचर व्यवसाय पर पड़ा है. हर दिन करोड़ों रुपये के टर्नओवर वाले इस बाजार में व्यवसायी अब हर दिन कुछ लाख रुपयों का व्यापार भी नहीं कर पा रहे हैं. हिंसा के बाद लोगों ने मार्केट से दूरी बना ली है तो दूसरी ओर तमाम कारीगर भी खौफ के कारण काम पर नहीं आ रहे हैं.

सहारनपुर उत्तर भारत के सबसे बड़े फर्नीचर बाजार में से एक है और यह लकड़ी पर नक्काशी के लिए दुनिया भर में मशहूर है.  कोरोना संकट के बाद बाजार की स्थिति सुधर रही थी लेकिन हिंसा की वजह से व्यापार ठप पड़ गया है.

सहारनपुर के पुराने शहर में ज्यादातर लोग इसी व्यवसाय से जुड़े हैं और यहां के करीब 80 फीसद कारीगर भी लकड़ी से ही संबंधित कामों में लगे हैं. 10 जून को इसी इलाके में हिंसा हुई थी. स्थानीय सभासद और सहारनपुर टिंबर एसोसिएशन के सचिव मंसूर बदर कहते हैं कि न सिर्फ लकड़ी की नक्काशी की चीजों का व्यापार ठप हो गया है बल्कि लकड़ी की सप्लाई भी ठप हो गई है और लकड़ियां खराब हो रही हैं.

बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के पैगंबर मोहम्मद पर कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद उनके खिलाफ कार्रवाई और गिरफ्तारी को लेकर 10 जून को यूपी के कई शहरों में हिंसा हुई थी. कानपुर, प्रयागराज और सहारनपुर में हिंसा का असर सबसे ज्यादा रहा. इन जगहों पर आगजनी और पत्थरबाजी के अलावा गोली चलने की भी घटनाएं हुई थीं. हिंसा में शामिल सैकड़ों लोगों को अब तक गिरफ्तार किया जा चुका है और कई लोगों के घर भी बुलडोजर से ढहाए गए हैं.

कारोबारी कहते हैं कि ऑर्डर मिलने बहुत कम हो गए हैंतस्वीर: Mansoor Badar

करोड़ों के ऑर्डर अटके

डीडब्ल्यू से बातचीत में मंसूर बदर कहते हैं, "यहां के वुडेन आइटम्स की मांग न सिर्फ खाड़ी देशों में है बल्कि यूरोप और अमेरिका में भी है. कोरोना की वजह से दो साल से पूरा व्यापार ठप पड़ा था लेकिन पिछले कुछ समय से स्थिति सुधर रही थी. लेकिन यूक्रेन-रूस युद्ध और अब जुमे के बाद हुई हिंसा ने तो व्यापार बिल्कुल ठप कर दिया है. जहां हर दिन विदेशों से 8-10 ऑर्डर आया करते थे, वहीं पिछले दस दिन से एक भी ऑर्डर नहीं आया है. करोड़ों रुपये के ऑर्डर भी स्टैंड बाई पर चले गए हैं.”

मंसूर बदर कहते हैं कि ऑर्डर स्टैंड बाई होने की वजह से लकड़ी की बिक्री पर भी असर हुआ है. मंसूर बदर बताते हैं कि पुराने शहर से ज्यादातर व्यापार अब नई मार्केट में आ गया है जो खाताखेड़ी में है. इसी मार्केट में लकड़ी से जुड़ी हुई ज्यादातर चीजों की दुकानें आ गई हैं और कई एक्सपोर्टर्स ने अपने दफ्तर भी यहां बना लिए हैं. हिंसा के बाद इसी इलाके में सबसे ज्यादा प्रशासन ने कार्रवाई भी की है.

मंसूर बदर कहते हैं, "यहां दो मकान टूटे हैं, कई लोग गिरफ्तार भी हुए हैं. इसीलिए अभी भी डर का माहौल है. हालांकि प्रशासन काफी सहयोग कर रहा है और स्थिति भी अब बिल्कुल शांत हो गई है लेकिन बाहर के लोगों को अभी भी बहुत भरोसा नहीं है. दूसरी ओर, कारीगर डर के मारे काम पर नहीं आ रहे हैं.”

डरे हुए हैं लोग

सहारनपुर हिंसा में सौ से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है. उनमें से ज्यादातर लोग इसी इलाके के हैं, सभी मजदूर हैं और लकड़ी के ही काम से जुड़े हुए हैं. मंसूर बदर भले ही कह रहे हों कि स्थिति शांत है लेकिन काम करने वाले मजदूरों का खौफ उन्हें दोबारा काम पर जाने से रोक रहा है.

खाताखेड़ी में ही एक दुकान पर काम करने वाले रमेश कुमार बताते हैं, "लोगों को लग रहा है कि पुलिस अभी भी तलाश कर रही है और यदि काम पर लौट आए तो किसी को भी पकड़ सकती है. लोगों के सामने भुखमरी का संकट है, लेकिन पुलिस के डर के मारे काम पर नहीं आ रहे हैं. जितने लोग पकड़े गए हैं वो सब के सब यहीं काम करने वाले मजदूर हैं, इसीलिए और भी ज्यादा डरे हुए हैं.”

सहारनपुर में फर्नीचर मार्केट की तमाम दुकानों पर पिछले दस दिन से सन्नाटा पसरा हुआ है. स्थानीय दुकानदारों की मानें तो कई दिनों तक दुकानें बंद ही रहीं लेकिन अब खुल भी रही हैं तो न तो ग्राहक आ रहे हैं और न ही कारीगर या फिर काम करने वाले अन्य मजदूर. मार्केट की सबसे पुरानी दुकानों में से एक नेशनल हैंडीक्राफ्ट के मालिक रईस अहमद कहते हैं, "लकड़ी की चीजें कोई रोजमर्रा की जरूरत वाली चीजें तो हैं नहीं. आदमी सोचता है कि अभी माहौल नहीं ठीक है जब ठीक होगा तब चलेंगे. हालांकि माहौल अब ठीक है लेकिन बाहर के आदमी को इतनी जल्दी भरोसा नहीं होता है."

अहमद को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में सब ठीक हो जाएगा. वह कहते हैं, "बाहर के ऑर्डर भी नहीं मिल रहे हैं. हालांकि आजकल मार्केट में बहुत सा काम ऑनलाइन होता है और हमारे पास भी ऑनलाइन ऑर्डर आता है लेकिन कारीगर न होने के कारण हम ऑर्डर भी डिलीवर नहीं कर पा रहे हैं.”

सहारनपुर के फर्नीचर बाजार में आजकल वीरानी सी छाई हैतस्वीर: Mansoor Badar

दूर दूर तक है मांग

फर्नीचर मार्केट में व्यापार ठप होने का असर स्थानीय कामगारों पर भी पड़ा है क्योंकि ज्यादातर लोग इसी व्यवसाय से किसी न किसी रूप में जुड़ हैं. रिक्शे से सामान की ढुलाई करने वालों पर भी रोजी-रोटी का संकट मंड़रा रहा है क्योंकि जब बिक्री ही नहीं हो रही है तो उसकी ढुलाई यानी ट्रांसपोर्टेशन कैसे होगा.

पूरी दुनिया में लकड़ी पर नक्काशी के लिए मशहूर सहारनपुर का वुड कार्विंग उद्योग से यहां पर घर-घर में लोग जुड़े हैं. शहर के खाताखेड़ी, शाहजी की सराय, पुरानी मंडी, कमेला कालोनी, पीरवाली गली, आजाद कॉलोनी, पुल कम्बोहान सहित गली मोहल्लों तक में लकड़ी पर हाथ से नक्काशी का काम किया जाता है. यहां लकड़ी के पेंसिल बॉक्स, मोमबत्ती स्टैंड से लेकर बेड, सोफे और लकड़ी के पर्दे तक तैयार किए जाते हैं. इस काम में यहां लाखों लोग जुड़े हैं और हर साल सैकड़ों करोड़ रुपये का राजस्व सरकार को मिलता है.

यहां का बना लकड़ी का सामान न सिर्फ भारत के तमाम हिस्सों में जाता है बल्कि खाड़ी देशों के अलावा अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, रूस, यूक्रेन जैसे दुनिया के कई देशों में भी निर्यात होता है.

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