बेलारूस के विपक्ष को ईयू का सर्वोच्च मानवाधिकार पुरस्कार
२३ अक्टूबर २०२०
यूरोपीय देश बेलारूस में लोकतंत्र और आजाद विचारों के लिए आंदोलन करने वाली विपक्ष की नेता स्वेतलाना तिखानोव्स्काया को यूरोपीय संघ ने इस साल के सखारोव पुरस्कार से सम्मानित किया है.
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यूरोपीय संसद ने बेलारूस की नेता स्वेतलाना तिखानोव्स्काया को इस साल के 'सखारोव पुरस्कार' से नवाजा है. यूरोपीय संघ की तरफ से मानवाधिकार के लिए काम करने वालों का यह सबसे बड़ा पुरस्कार है. यह हर साल दिया जाता है. बेलारूस पर 26 सालों से राज कर रहे राष्ट्रपति आलेक्जेंडर लुकाशेंको को चुनावी टक्कर देने वाली एक आम घरेलू महिला तिखानोव्स्काया को देश में विपक्ष को फिर से खड़ा करने का श्रेय दिया जाता है.
संसद के अध्यक्ष डेविड सासोली ने कहा, "बेलारूस की सड़कों पर हुए विशाल विरोध प्रदर्शनों ने पूरी दुनिया को हिला दिया." उन्होंने जोर दे कर कहा, "वहां की सरकार और राष्ट्रपति चुनाव हार चुके हैं. अब वक्त आ गया है कि वे जनता की आवाज सुनें." यूरोपीय संघ लुकाशेंको को राष्ट्रपति नहीं मानता क्योंकि उसकी नजर में अगस्त के चुनाव "ना तो स्वतंत्र थे और ना ही निष्पक्ष." हाल में यूरोपीय संसद ने बेलारूस के साथ संबंधों को लेकर नए कदम उठाए हैं जिनमें तिखानोव्स्काया के नेतृत्व में बनी कोऑर्डिनेशन काउंसिल को देश की जनता का वैध प्रतिनिधि स्वीकार करना शामिल है.
अगस्त में हुए राष्ट्रपति चुनाव के बाद तिखानोव्स्काया अपनी सुरक्षा के लिए देश के बाहर अज्ञातवास में रहने को मजबूर हैं. पुरस्कारों की घोषणा करते हुए बेलारूस के पूरे विपक्ष आंदोलन और देश में सक्रिय राजनीतिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का जिक्र किया गया.
बेलारूस में चक्कर क्या चल रहा है?
अगस्त की शुरुआत से बेलारूस चर्चा में है. कोरोना संकट के बीच भी वहां लाखों लोग प्रदर्शन के लिए जुट रहे हैं. जानिए बेलारूस का पूरा मामला क्या है.
कहां है बेलारूस?
यूरोपीय देश बेलारूस रूस और यूक्रेन की सीमा पर स्थित है. 1991 में यह सोवियत संघ से अलग हुआ और 1994 आलेक्जांडर लुकाशेंको यहां के पहले राष्ट्रपति बने. 26 साल बीत गए हैं लेकिन आज भी लुकाशेंको ही वहां के राष्ट्रपति बने हुए हैं.
विवाद की जड़
1994 से आज तक लुकाशेंको कोई चुनाव नहीं हारे हैं. हालांकि हर बार चुनाव में धांधली की खबर आती है लेकिन लुकाशेंको को इससे कभी कोई फर्क नहीं पड़ा है. पर 9 अगस्त 2020 को हुए चुनावों में जब उन्हें 80 फीसदी बहुमत मिलने की घोषणा हुई तो जनता ने विद्रोह कर दिया.
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आंदोलन का चेहरा
लुकाशेंको की मुख्य विरोधी स्वेतलाना तिखानोवस्काया को औपचारिक रूप से महज 10 फीसदी ही वोट मिले, जबकि जनता ने बढ़ चढ़ कर उनका साथ दिया था. ऐसे में ना केवल देश की जनता ने, बल्कि यूरोपीय संघ ने भी चुनाव के नतीजों को ठुकरा दिया.
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सड़कों पर उतरे लोग
हाथों में विरोध का लाल और सफेद झंडा लिए लाखों लोग सकड़ों पर उतरे और "लुकाशेंको जाओ" के नारे लगाने लगे. राष्ट्रपति ने इसके पीछे "विदेशी ताकतों का हाथ" बताया. लेकिन लोग नहीं रुके. इन प्रदर्शनों में दो लोगों की जान भी गई.
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हिरासत में नागरिक
शुरुआत में ही प्रदर्शन करने वाले करीब 7,000 लोगों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. इसके बाद स्वेतलाना तिखानोवस्काया ने पुलिस और सेना से नागरिकों का साथ देने और विद्रोह करने की अपील की.
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टीवी स्टूडियो खाली
बेलारूस के राष्ट्रीय प्रसारक "बीटी" में सैकड़ों की संख्या में पत्रकारों, कैमरा कर्मियों और अन्य स्टाफ ने इस्तीफा दे दिया. इन्होंने सरकार की आवाज बनने से इनकार कर दिया. इस दौरान लाइव टीवी पर खाली स्टूडियो देखा गया.
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फैक्ट्रियां भी खाली
फैक्ट्रियों में काम करने वालों को अब तक लुकाशेंको का समर्थक माना जाता रहा है लेकिन 17 अगस्त को इन्होंने भी हड़ताल कर दी और "लुकाशेंको जाओ" के नारे लगाने लगे. पूरे देश में लुकाशेंको को हटाने की आवाजें गूंजने लगीं.
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मरते दम तक नहीं छोडूंगा!
लुकाशेंको ने एक जवाबी रैली निकाली जिसमें उन्होंने कहा कि जब तक वे जिंदा हैं, वे दोबारा चुनाव नहीं होने देंगे. उन्होंने कहा, "जब तक आप लोग मुझे मार नहीं देते, तब तक कोई नए चुनाव नहीं होंगे."
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सुरक्षाबलों से खिलवाड़
पुलिस कहीं सरकार के खिलाफ ना हो जाए, इस डर से लुकाशेंको ने 18 अगस्त को 300 सुरक्षबलों को मेडल दिए. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इसका चुनाव और उसके बाद होने वाले प्रदर्शनों से कोई लेना देना नहीं है लेकिन बावजूद इसके कई पुलिसकर्मियों ने नौकरी छोड़ने का फैसला किया.
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बीचबचाव में ईयू
20 अगस्त को फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल से मुलाकात की और रूस और ईयू की मदद से बेलारूस के मामले में मध्यस्थता करने की पेशकश की. पर साथ ही रूस को चेतावनी भी दी कि अपने पड़ोसी देश में वह कोई आक्रामक हस्तक्षेप ना करे.
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न्यूज वेबसाइटें सेंसर
देश में करीब 20 न्यूज वेबसाइटों को ब्लॉक कर दिया गया है ताकि लोगों तक प्रदर्शनों की खबर ना पहुंच सके. यहां तक कि अखबारें भी नहीं छप रही हैं. देश के सरकारी पब्लिशिंग हाउस का कहना है कि उनकी मशीनें खराब हो गई हैं.
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सेना को आदेश
इस बीच सेना तैनात कर दी गई है और आदेश दिए गए हैं कि राष्ट्रपति की सुरक्षा अगर खतरे में आती है तो सेना "कड़े से कड़ा कदम" उठाए. लुकाशेंको ने कहा है कि सेना पर "देश की अखंडता" बचाने की जिम्मेदारी है.
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लाखों की तादाद में
रविवार, 23 अगस्त को करीब डेढ़ से दो लाख लोग प्रदर्शनों के लिए राजधानी मिंस्क की सड़कों पर जमा हुए. राष्ट्रपति की धमकियों का इन पर कोई असर होता नहीं दिख रहा है.
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हाथ में एके-47
लुकाशेंको ने कह तो दिया कि मुझे हटाना है तो मार डालो लेकिन अब उन्हें अपनी जान की चिंता होने लगी है. यही वजह है कि जब लाखों लोग प्रदर्शन कर रहे थे, तब वे बुलेट प्रूफ वेस्ट पहने और हाथ में क्लाशनिकोव राइफल पकड़े अपने घर के बाहर नजर आए.
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उनसे पहले यह पुरस्कार नेल्सन मंडेला, कोफी अन्नान और रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स जैसी प्रमुख लोगों और संगठनों को दिया जा चुका है. पुरस्कार के लिए चुने जाने पर तिखानोव्स्काया ने ईयू को धन्यवाद दिया. डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में पत्रकारों से बातचीत में तिखानोवस्काया ने कहा "यह उनका निजी पुरस्कार नहीं है, बल्कि सभी बेलारूसियों को मिला सम्मान है." उनकी टीम ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि यह पुरस्कार "उन बेलारूसियों को जाता है जो सत्ता परिवर्तन के लिए हमारे साझा, शांतिपूर्ण संघर्ष को जारी रखे हुए हैं."
तिखानोव्स्काया के पति यूट्यूब पर ब्लॉगिंग करने वाले एक मशहूर शख्स रहे हैं. वह चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन घटनाक्रम ऐसा रहा कि उनकी उम्मीदवारी का नामांकन भरने से पहले ही लुकाशेंको सरकार ने उन्हें जेल में डलवा दिया. इसके बाद पेशे से अंग्रेजी की शिक्षिका रही उनकी पत्नी तिखानोवस्काया ने चुनाव में खड़े होने का फैसला किया.
चुनावों के बाद उनके देश छोड़ने के बावजूद बेलारूस की राजधानी मिंस्क में हर सप्ताहांत बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. प्रदर्शनकारी दावा करते हैं कि चुनाव में तिखानोव्स्काया की ही जीत हुई थी लेकिन राष्ट्रपति लुकाशेंको ने अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल कर नतीजा बदलवा दिया. ऐसे दावे और प्रदर्शन करने वाले हजारों बेलारूसियों को हिरासत में ले लिया गया और बहुत से तिखानोव्स्काया समर्थकों को पुलिस की बर्बरता और पिटाई का शिकार बनना पड़ा है.
विपक्ष ने राष्ट्रपति लुकाशेंको को इस रविवार 26 अक्टूबर तक इस्तीफा देने की अंतिम समय सीमा दी है. मिंस्क के प्रदर्शनकारियों ने कहा है कि अगर लुकाशेंको ऐसा नहीं करते तो उन्हें और बड़े स्तर के विरोध प्रदर्शनों और हड़तालों का सामना करना पड़ेगा.
आरपी/एनआर (डीपीए, एएफपी)
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