भारत के ऑटो सेक्टर की रफ्तार पिछले कुछ समय से थमी है. दिसंबर में यहां की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी मारुति सुजुकी की गाड़ियों की बिक्री में बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है. हालांकि साल के हिसाब से गाड़ियों की बिक्री गिरी है.
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भारत की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी ने दिसंबर 2019 में अपनी कारों की बिक्री का आंकड़ा जारी किया है. मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में दिए गए इन आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर 2019 में कंपनी ने 1,33,296 गाड़ियां बेची हैं. यह संख्या पिछले साल दिसंबर में बेची गईं 1,28,338 गाड़ियों से 3.9 प्रतिशत ज्यादा है. कंपनी ने स्थानीय स्तर पर बेची गई गाड़ियों और निर्यात की गई गाड़ियों का भी आंकड़ा दिया है. दिसंबर महीने में 1,25,735 गाड़ियां भारतीय बाजार में बेची गईं. यह संख्या पिछले साल बेची गईं 1,21,479 गाड़ियों से 3.5 प्रतिशत ज्यादा है. साथ ही निर्यात की गई गाड़ियों की संख्या में 10.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है. पिछले साल दिसंबर में जहां 6,859 गाड़ियां निर्यात की गई थीं वहीं इस साल 7,561 गाड़ियां निर्यात की गईं.
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सभी गाड़ियों में से अगर यात्री गाड़ियों जैसे कार या एसयूवी की बात करें तो उनकी बिक्री भी 2.5 प्रतिशत बढ़ी है. दिसंबर 2018 में यह संख्या 1,19,804 थी वहीं इस साल 1,22,784 कारों और एसयूवी गाड़ियों की बिक्री हुई. इस महीने हुई बिक्री में मिनी सेगमेंट जिसमें ऑल्टो, एसप्रेसो और पुरानी वैगन आर कार शामिल हैं, की बिक्री 13.6 प्रतिशत कम हो गई. पिछले साल ऐसी 27,649 कारें बिकी थीं लेकिन इस साल इस महीने 23,883 कारें ही बिकीं. हालांकि कॉम्पैक्ट सेगमेंट जिसमें नई वैगन आर, स्विफ्ट, सिलेरिओ, बलेनो और डिजायर गाड़ियां आती हैं, में इस साल दिसंबर में 27.9 फीसदी का उछाल दर्ज किया गया है. दिसंबर 2018 में ऐसी 51,346 कारें बिकी थीं लेकिन इस साल यह संख्या 65,673 पहुंच गई है. ओमनी और ईको की बिक्री पिछले साल के मुकाबले इस महीने 51.8 प्रतिशत कम हो गई. पिछले साल दिसंबर में जहां 15,850 ऐसी कारें बिकी वहीं इस साल यह संख्या 7,634 पर पहुंच गई.
दिसंबर में कंपनी की बिक्री पिछले साल की तुलना में भले ही बढ़ी हो लेकिन वित्त वर्ष की तुलना करने पर मारुति की पिछले साल की बिक्री इस साल के मुकाबले ज्यादा थी. वित्त वर्ष 2018-19 में अप्रैल से दिसंबर तक 14,03,970 गाड़ियां मारुति ने बेची थीं. लेकिन वित्त वर्ष 2019-20 में यह संख्या 16.1 फीसदी गिरकर 11,78,272 रह गई है. अगर यात्री वाहनों की बात करें तो उनकी बिक्री में इस दौरान 18.6 प्रतिशत की कमी आई है. वहीं माल ढुलाई में काम आने वाले मारुति के वाहनों की बिक्री 10.9 प्रतिशत बढ़ी है. 2018-19 के आठ महीनों में ऐसे 16,394 वाहन बिके थे वहीं 2019-20 में 18,188 माल ढुलाई वाहन बिके हैं.
कैसे होता है क्रैश टेस्ट
कारों को सुरक्षित बनाने के लिए विकसित देशों में कई कड़े नियम हैं. सड़क पर आने से पहले कारों को क्रैश टेस्ट भी पास करना होता है. कैसे किया जाता है क्रैश टेस्ट.
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एनकैप और एडीएसी
जर्मन मोबाइल क्लब एडीएसी और यूरोपियन न्यू कार एसेसमेंट प्रोग्राम (यूरो एनकैप) यूरोप के कई देशों में माना जाता है. यूरोपीय बाजार में नया मॉडल उतारने से पहले कार कंपनियों को इनके टेस्ट पर खरा उतरना पड़ता है. इसमें कई तरह से कार की जांच की जाती है, उसके बाद ही गाड़ी को सड़क पर उतरने की अनुमति दी जाती है. एनकैप की दुनिया भर में शाखाएं हैं.
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फ्रंट क्रैश टेस्ट की तैयारी
सीधी टक्कर होने पर कार में सवार लोगों को क्या होगा, यह जानने के लिए फ्रंट क्रैश टेस्ट किया जाता है. कार की अगली दो सीटों पर इंसान जैसी डमी बैठाई जाती है. पिछली सीट पर सेफ्टी सीट के साथ बच्चा होता है.
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फिर सामने से टक्कर
इसके बाद कार को 64 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से लोहे के ढांचे पर भिड़ाया जाता है. टक्कर को कई कैमरों से फिल्माया जाता है. इसका स्लो मोशन वीडियो भी बनाया जाता है. देखा जाता है, कार कितनी उछली, कितने एयरबैग खुले, कब खुले. बच्चे को क्या हुआ. गाड़ी के अंदर बैठायी डमी को कहां कहां कितनी चोट आई.
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साइड क्रैश
फ्रंट क्रैश टेस्ट के बाद साइड क्रैश टेस्ट होता है. इसमें 50 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से आ रही एक फ्रंट लोडेड क्रैन जैसी गाड़ी को टेस्ट की जा रही कार पर साइड से मारा जाता है. साइड एयरबैग न हो तो इसके परिणाम घातक होते हैं.
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पोल क्रैश टेस्ट
इसमें कार को सामने और साइड से पोल से टकराया जाता है. इसके जरिये पोल या पेड़ से टकराने पर होने वाले असर का पता लगाया जाता है.
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रोल ओवर टेस्ट
इस टेस्ट में गाड़ियों को पलटाया जाता है. इस दौरान यह देखा जाता है पलटने पर साइड बॉडी और उलटने पर छत कितना दबाव बर्दाश्त कर सकते हैं. ज्यादातर विकसित देशों में बसों और सार्वजनिक वाहनों के लिए यह अनिवार्य टेस्ट है क्योंकि यहां मामला यात्री सुरक्षा का है.
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कहां हैं भारतीय कारें
सुरक्षा के लिहाज से भारत में बिकने वाली ज्यादातर कारें अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरी नहीं उतरतीं. सस्ती और किफायती कार बनाने के चक्कर में कार कंपनियों को क्वॉलिटी से समझौता करना पड़ता है.
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कैसे कैसे समझौते
भारत में बिकने वाली छोटी कारों में अब भी एयरबैग और एंटी ब्रेकिंग सिस्टम (एबीएस) नहीं होता. एयरबैग सिर और छाती की चोट से बचाता है. वहीं एबीएस, तेज ब्रेक मारने पर पहियों को एक ही दिशा में लॉक नहीं होने देता है
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कौन कौन नाकाम
भारत में बिकने वाली पांच कारें हाल ही में ग्लोबल एनकैप के टेस्ट में नाकाम रहीं. इनमें फ्रेंच कंपनी रेनो की क्विड, जापानी कंपनी सुजुकी की इको और सिलेरियो और हुंडई की इयोन शामिल है. ये तो छोटी या मझोली कारें हैं. महिंद्रा की एसयूवी और बेहद लोकप्रिय स्कॉर्पियो भी टेस्ट में फेल हो गई.
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सख्त होंगे नियम
भारत सरकार ने कहा है कि 2017 से भारत में भी कारों के लिए क्रैश टेस्ट रेगुलेशन लागू होगा. फिलहाल जो कारें सड़कों पर हैं उनके लिए भी 2019 सेफ्टी चेक रेगुलेशन आएगा.
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ऑटो सेक्टर की सबसे बड़ी कंपनी मारुति सुजुकी की बिक्री में आई इस कमी के लिए कई सारी वजहों को जिम्मेदार माना जा रहा है. इसमें एक वजह बीएस 4 मानक से बीएस 6 मानकों का अपनाए जाना और सरकारी नीतियों से पड़ रहे असरों को भी माना गया है. भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने युवाओं द्वारा अपनी गाड़ी की जगह कैब सुविधा को अपनाने को भी बिक्री में गिरावट का एक कारण बताया था.