रूस के सैन्य खर्च में पिछले साल बड़ी कटौती देखी गई. 1998 के बाद यह पहला मौका जब इतनी कटौती की गई है. विशेषज्ञ इसकी वजह रूस के खिलाफ लगाए गए पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को मानते हैं.
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पश्चिमी देशों के साथ रूस का तनाव लगातार बढ़ रहा है. फिर भी रूस का सैन्य खर्च पिछले साल घटकर 66.3 अरब डॉलर पर आ गया. यह 2016 के मुकाबले 20 प्रतिशत कम है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की सालाना रिपोर्ट में यह बात कही गई है.
पिछली बार 1998 में बड़े आर्थिक संकट के बीच रूस को अपना सैन्य खर्च घटाने के लिए मजबूर होना पड़ा था. सिपरी के सीनियर रिसर्चर सिमोन वेजेमन का कहना है, "रूस में सेना का आधुनिकिकरण लगातार प्राथमिकता बना हुआ है, लेकिन आर्थिक समस्याओं के कारण सैन्य बजट को सीमित कर दिया गया है. 2014 से रूस आर्थिक मुश्किलें झेल रहा है." उनका इशारा यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप को रूस में मिलाए जाने के बाद लगे प्रतिबंधों की तरफ था.
नाटो के साथ रूस के रिश्ते हमेशा ही ठंडे रहे हैं. लेकिन आजकल ये रिश्ते शीत युद्ध के बाद सबसे निचले स्तर पर आ गए हैं. इसकी एक वजह सीरिया में दोनों पक्षों के बीचे तीखे मतभेद हैं तो दूसरी तरफ ब्रिटेन में रूस के एक पूर्व जासूस को जहर दिए जाने का मामला भी है.
रूस ने जैसे तैसे अभी तक अपने रक्षा बजट को प्रभावित नहीं होने दिया था. इसके लिए उसने बुनियादी ढांचे और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में कटौती की. लेकिन वेजेमन कहते हैं कि 2017 में उसके सामने कोई विकल्प नहीं था और सैन्य बजट में कटौती करनी ही पड़ी. वह कहते हैं, "रक्षा बजट को उच्च स्तर पर बनाए रखना अब संभव ही नहीं रहा है. रूस को अब एक कदम पीछे हटना ही पड़ेगा."
सबसे ज्यादा सैन्य खर्च वाले देश ये हैं
आज दुनिया कई संकटों में घिरी है. इसलिए 2017 में विश्व का सैन्य खर्च 1.7 ट्रिलियन तक जा पहुंचा. लेकिन सबसे ज्यादा सेना पर कौन खर्च कर रहा है. जानिए इस साल स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट क्या कहती है.
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अमेरिका (610 अरब डॉलर)
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चीन (228 अरब डॉलर)
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सऊदी अरब (69.4 अरब डॉलर)
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रूस (66.3 अरब डॉलर)
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भारत (63.9 अरब डॉलर)
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फ्रांस (57.8 अरब डॉलर)
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ब्रिटेन (47.2 अरब डॉलर)
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जापान (45.4 अरब डॉलर)
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जर्मनी (44.3 अरब डॉलर)
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दक्षिण कोरिया (39.2 अरब डॉलर)
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ब्राजील (29.3 अरब डॉलर)
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इटली (29.2 अरब डॉलर)
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ऑस्ट्रेलिया (27.5 अरब डॉलर)
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कनाडा (20.6 अरब डॉलर)
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तुर्की (18.2 अरब डॉलर)
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इस बीच नाटो के 29 सदस्य देशों ने 2017 में सेना पर 900 अरब डॉलर खर्च किए, जो सिपरी के मुताबिक दुनिया के कुल सैन्य खर्च का 52 फीसदी है. 2017 में मध्य और पश्चिमी यूरोप में सैन्य खर्च में क्रमशः 12 प्रतिशत और 1.17 प्रतिशत का इजाफा देखा गया है. इसकी एक वजह रूस की तरफ से पैदा संभावित खतरा है.
अमेरिका दुनिया में सबसे ज्यादा रक्षा बजट वाला देश बना हुआ है. 2017 में उसने अपनी सेना पर 610 अरब डॉलर की रकम खर्च की. सिपरी की रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका का खर्च टॉप10 में शामिल सात देशों चीन, सऊदी अरब, रूस, भारत, फ्रांस, ब्रिटेन और जापान के संयुक्त रक्षा बजट से भी ज्यादा है.
सिपरी के मुताबिक शीत की युद्ध की समाप्ति के बाद 2017 में दुनिया का सैन्य खर्च 1.7 ट्रिलियन डॉलर के साथ अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है. सिपरी अध्यक्ष यान इलियासन ने एक बयान में कहा, "लगातार बढ़ता सैन्य खर्च चिंता का विषय है. यह दुनिया भर में चल रहे संकटों के शांतिपूर्ण समाधान की कोशिशों को कमजोर करता है."
एके/एनआर (एएफपी)
रूस के इन हथियारों से सहम जाती है दुनिया
शीत युद्ध के बाद से रूस को सैन्य रूप से कमजोर माना जाने लगा. लेकिन सीरिया के संघर्ष ने साफ कर दिया है कि रूस सैन्य रूप से बहुत ताकतवर है. रूस के पास ऐसे कई हथियार हैं जो मॉस्को को फिर से सुपरपावर बना सकते हैं.
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टी-14 टैंक
यह पांचवीं पीढ़ी का टैंक है. रूस ने इसे 2015 में लॉन्च किया. इस टैंक को रोबोटिक कॉम्बैट व्हीकल में भी बदला जा सकता है. हाल ही में रूस ने इस पर 152 एमएम की तोप लगाने का एलान किया है. रूसी उपप्रधानमंत्री दिमित्रि रोगोजिन के मुताबिक, यह तोप "एक मीटर मोटी स्टील की चादर को भेद सकती है."
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युद्धपोत प्योत्र वेलिकी
अटलांटिक महासागर में रूस के उत्तरी बेड़े का यह सबसे घातक युद्धपोत है. परमाणु ऊर्जा से चलने वाला यह युद्धपोत किरोव क्लास युद्धपोतों का हिस्सा है. नाटो इसे "विमानवाही पोतों का हत्यारा" कहता है. यह बैलेस्टिक मिसाइल को भी नष्ट कर सकता है.
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सुखोई टी-50
रूस का यह लड़ाकू विमान अमेरिका के हर तरह के लड़ाकू विमानों पर भारी पड़ता है. 2010 में पहली उड़ान के बाद रूस और भारत ने इसे साथ बनाने का फैसला किया. रणनीतिक साझीदारी के तौर पर रूस और भारत 2017 से इसे बड़े पैमाने पर बनाएंगे. लेकिन इस योजना पर वित्तीय मतभेद भारी पड़ रहे हैं.
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एस-400 मिसाइल
रफ्तार 17,000 किलोमीटर प्रति घंटा और 400 मीटर के दायरे में किसी भी लक्ष्य को भेदने की क्षमता के चलते पायलट इससे घबराते हैं. सीरिया के उडारान खामेमिम बेस में जब रूस ने इन मिसाइलों को तैनात किया तो अमेरिका को अपने लड़ाकू विमान वहां से हटाने पर मजबूर होना पड़ा. अब रूस एस-400 को और बेहतर कर रहा है.
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सुखोई एसयू-35
रूस का यह लड़ाकू विमान अमेरिका के एफ-16 पर भारी पड़ता है. इसका मुकाबला करने के लिए अमेरिका ने एफ-35 बनाया. लेकिन हाल ही में अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन के मुताबिक एफ-35 भी सुखोई से कमतर है. सुखोई एसयू-35 की तेज रफ्तार और जबरदस्त चपलता को टक्कर देना बहुत मुश्किल है.
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हाइपरसोनिक रॉकेट वाईयू-71
रूस काफी समय से परमाणु हथियारों के लिए हाइपरसोनिक मिसाइल बनाना चाहता था. "प्रोजेक्ट 4204" नाम के सीक्रेट कोड के साथ रूस ने वाईयू-71 बनाया. इसकी रफ्तार 12,000 किलोमीटर प्रतिघंटा है. जैन्स इंटेलिजेंस रिव्यू के मुताबिक यह मिसाइल आराम से नाटो के डिफेंस सिस्टम को भेद सकती है.
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लड़ाकू हेलीकॉप्टर एमआई-28एन
अमेरिकी कंपनी बोइंग के अपाचे लॉन्गबो लड़ाकू हेलीकॉप्टर रफ्तार और हथियारों की क्षमता के मामले में इससे पीछे हैं. रूस का यह हेलीकॉप्टर टैंक, बख्तरबंद गाड़ियों पर हमला कर सकता है. यह रात में भी उड़ता है.
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विमानवाही एडमिरल कुजनेत्सोव
एडमिरल कुजनेत्सोव दुनिया का अकेला विमानवाही पोत है जो कई तरह की एंटी बैलेस्टिक हथियारों और पनडुब्बी से लैस है. 1990 में पेश किया गया यह पोत अमेरिकी विमानवाही पोतों से उलट अकेला समंदर का सफर कर सकता है. वैसे 1991 में सोवियत संघ के विघटन के वक्त यह पोत यूक्रेन के हाथ लगने वाला था.
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Tupolev Tu-160M
टीयू-160एम इस वक्त दुनिया का सबसे बड़ा और भारी बमवर्षक है. रूसी पायलट इसे "सफेद हंस" कहते हैं. 2014 में आधुनिकीकरण के बाद टीयू-160एम की युद्ध क्षमता दोगुनी कर दी गई.
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परमाणु पनडुब्बी यूरी डोग्लोरुकी
बीते दशक में रूस ने बड़ी पनडुब्बियों के बजाए छोटी पनडुब्बियां बनानी शुरू कीं लेकिन यह जानलेवा साबित हुआ. यूरी डोग्लोरुकी के साथ रूस ने इस तकनीकी बाधा को दूर किया. साउंडप्रूफ होने की वजह से समंदर में इसका पता लगाना बहुत ही मुश्किल है. इसमें परमाणु हथियार लगाए जा सकते हैं.