जिंबाब्वे के ग्रामीण इलाकों में जहां इंटरनेट और बिजली नहीं है, वहां एसएमएस सेवा दी जा रही है ताकि किसान अपनी फसल को कठोर मौसम और कीटों से बचा पाए.
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पश्चिमी जिंबाब्वे के ग्रामीण इलाके में जहां अलकतरे की सड़क मौजूद नहीं है, जफत नगवें हर मौसम में इस बात को लेकर चिंतित रहते थे कि सूखा और कीट नियंत्रण के बारे में सलाह देने वाले उन तक कैसे पहुंचेंगे. नगवें का खेत उत्तरी बुलावायो से 24 किलोमीटर दूर स्थित है. खेत इतने सुदूर इलाके में स्थित है कि साल, दो साल में शायद ही वहां आने वाले किसी कृषि अधिकारी से उनकी मुलाकात हो पाती है. नगवें जैसे छोटे किसानों की मदद के लिए स्थानीय चैरिटेबल संस्था कृषि अधिकारी को भेजते हैं.
थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से बातचीत में नगवें बताते हैं, "हमारे लिए विशेषज्ञों की सलाह लेना हमेशा से मुश्किल रहा है. यहां पर सड़कों की सुविधा ना के बराबर है और आपको बाहर जाने के लिए कार के सहारे जोखिम लेकर जाना होता है."
नगवें अपने खेत में मक्का, टमाटर और गोभी की फसल की तैयारी कर रहे हैं. पिछले साल टर्निंग मेटाबेलेलैंड ग्रीन (टीएमजी) के अधिकारी नगवें के खेत तक पहुंचे और उन्हें सैटेलाइट द्वारा इकट्ठा की गई जारी जानकारी के इस्तेमाल के बारे में बताया. अधिकारियों ने सैटेलाइट से इकट्ठा किए गए डाटा को किसान के फोन तक पहुंचाने का तरीका समझाया. जिंबाब्वे कृषि क्षेत्र के लिए सैटेलाइट आधारित तकनीक को अपनाने में सुस्त रहा है, लेकिन कृषि जानकारों का कहना है कि तकनीक के इस्तेमाल से देश के किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के अनुकूल बनाने में मदद मिल रही है. कई किसान अब भी मौसम की पारंपरिक भविष्यवाणी प्रणालियों पर भरोसा करते हैं और ग्राउंड एक्सटेंशन अधिकारियों द्वारा कभी-कभार मिलने वाली सलाह पर निर्भर रहते हैं.
टीएमजी के साथ काम करने वाले कृषिविज्ञानी लजाजी म्लिलो कहते हैं कि मौसम विभाग द्वारा दिए सामान्य पूर्वानुमानों के मुकाबले टीएमजी का डाटा ज्यादा अधिक सटीक होता है. साथ ही वह कहते हैं कि मोबाइल फोन तकनीक की मदद से वह कम से कम समय में ऐसे किसानों तक पहुंच सकते हैं जहां खुद पहुंचना मुश्किल है. म्लिलो ने नगवें को बताया कि कैसे अधिकारी उनके 67 एकड़ खेत को गूगल मैप के जरिए देख सकते हैं और साथ ही सैटेलाइट डाटा को जोड़कर मौसम के मिजाज से लेकर फसलों के स्वास्थ्य तक को जान सकते हैं. म्लिलो ने उन्हें समझाते हुए कहा, "मैं अपने दफ्तर से ही आपके खेत पर होने वाली गतिविधि की निगरानी कर सकता हूं. हमें आपकी फसल की प्रगति की जांच के लिए यहां आने की जरूरत नहीं है."
म्लिलो कहते हैं कि कम बारिश वाले क्षेत्र में विशेषज्ञ किसानों को फसल के बारे में सही सलाह दे सकते हैं. उनके मुताबिक, "विशेषज्ञ किसान को बीज लगाने और तकनीक के इस्तेमाल के बारे में सलाह दे सकते हैं." जिंबाब्वे के ग्रामीण इलाकों में बहुत सारे किसानों के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है और कई किसानों के पास बिजली कनेक्शन भी नहीं है, ऐसे में टीएमजी उनके साथ एसएमएस के जरिए संवाद करता है."
बड़े देशों में ऐसा है कृषि का हाल
दुनिया में कृषि के लिए हालात अच्छे नहीं रहे. दुनिया के पांच सबसे ज्यादा खाद्यान्न पैदा करने वाले देशों में कृषि का हिस्सा लगातार घट रहा है.
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भारत
भारत में कृषि की हालत लगातार खराब होती जा रही है, हालांकि अब भी देश की अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका अहम बनी हुई है. साल 2017-18 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक देश की कुल जीडीपी में कृषि का हिस्सा लगभग 16 फीसदी का है. साथ ही करीब 49 फीसदी लोग रोजगार के लिए इस पर निर्भर करते हैं.
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चीन
चीन के नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स के साल 2013 के आंकड़ों मुताबिक देश की कुल जीडीपी में 10 फीसदी हिस्सा कृषि का है. चीन को दुनिया का बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब माना जाता है, लेकिन पिछले एक दशक से देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का भी बड़ा योगदान है. गेहूं, चावल और आलू के उत्पादन में चीन का दुनिया में पहला स्थान है.
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अमेरिका
अमेरिका का कृषि क्षेत्र अत्याधुनिक मशीनों से लैस है, जिसके चलते देश खादयान्न उत्पादन का बड़ा हब है. अमेरिका के कृषि मंत्रालय के आंकड़ों मुताबिक देश की कुल जीडीपी में कृषि का योगदान महज एक फीसदी है. वहीं 1.3 फीसदी लोग ही रोजगार के लिए इस निर्भर करते हैं. अमेरिका दुनिया में मक्के का सबसे बड़ा उत्पादक है. वहीं गेहूं उत्पादन में इसका दुनिया में तीसरा स्थान है.
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रूस
भौगोलिक कारणों के चलते रूस की कृषि क्षेत्र में अपनी सीमाएं हैं. साल 2016 के विश्व बैंक के आंकड़ों मुताबिक देश की कुल जीडीपी में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी चार फीसदी है. देश की लगभग 10 फीसदी आबादी रोजगार के लिए कृषि पर निर्भर करती है. रूस दुनिया में आलू का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है. वहीं गेंहू उगाने में इसका दुनिया में चौथा स्थान है.
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ब्राजील
दक्षिण अमेरिकी देश ब्राजील की जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी महज 5.6 फीसदी तो है लेकिन कृषि आधारित उद्योगों का हिस्सा तरीबन 23.5 फीसदी है. यह आंकड़े देश की प्रमुख कृषि संगठन सीएनए के हैं बीते सालों में यहां कृषि आधारित उद्योगों में बहुत तेजी आई है. ब्राजील की 15 फीसदी आबादी रोजगार के लिए कृषि पर निर्भर करती है.
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इसके फायदे ऐसे हैं कि टीएमजी किसानों को उनके इलाकों में होने वाले कीट के हमलों या फिर मौसम के बदलाव को लेकर एसएमएस भी भेज सकता है. म्लिलो कहते हैं, "अगर किसी के पास उपयुक्त जानकारी और आधुनिक ज्ञान है तो खेती करना उतना कठिन नहीं है जितना कि हम सोचते हैं." म्लिलो के मुताबिक पिछले साल प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद से दो हजार के करीब छोटे किसान इस अभियान से जुड़ चुके हैं.
"किसानों को चाहिए बारिश"
विशेषज्ञों का कहना है जिंबाब्वे की 80 फीसदी ग्रामीण आबादी जीविका के लिए बारिश आधारित कृषि पर निर्भर है. कठोर मौसम और जलवायु परिवर्तन उन्हें अत्यधिक असुरक्षित कर रहे हैं. जैसे-जैसे दक्षिण अफ्रीका में सूखा लंबा और कठोर होता जा रहा है, जिंबाब्वे अपने परेशान किसानों की मदद करने के लिए नए-नए तरीकों की तलाश कर रहा है. जिंबाब्वे के संघर्ष करते किसानों के लिए सैटेलाइट डाटा और अन्य आधुनिक तकनीकों से उम्मीद जगी है कि वह खराब फसल के चक्र को तोड़ पाएंगे. नगवें कहते हैं वह किसी भी तकनीक का इस्तेमाल करने को तैयार हैं. वह कहते हैं, "हमें सिर्फ बारिश की जरूरत है लेकिन हम निश्चित रूप से किसी भी चीज की सराहना करेंगे जो हमें राहत देगी."
भारत की पहचान एक कृषि प्रधान देश के रूप में रही है लेकिन देश के बहुत से किसान बेहाल हैं. इसी के चलते पिछले कुछ समय में देश में कई बार किसान आंदोलनों ने जोर पकड़ा है. एक नजर किसानों की मूल समस्याओं पर.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Adhikary
भूमि पर अधिकार
देश में कृषि भूमि के मालिकाना हक को लेकर विवाद सबसे बड़ा है. असमान भूमि वितरण के खिलाफ किसान कई बार आवाज उठाते रहे हैं. जमीनों का एक बड़ा हिस्सा बड़े किसानों, महाजनों और साहूकारों के पास है जिस पर छोटे किसान काम करते हैं. ऐसे में अगर फसल अच्छी नहीं होती तो छोटे किसान कर्ज में डूब जाते हैं.
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फसल पर सही मूल्य
किसानों की एक बड़ी समस्या यह भी है कि उन्हें फसल पर सही मूल्य नहीं मिलता. वहीं किसानों को अपना माल बेचने के तमाम कागजी कार्यवाही भी पूरी करनी पड़ती है. मसलन कोई किसान सरकारी केंद्र पर किसी उत्पाद को बेचना चाहे तो उसे गांव के अधिकारी से एक कागज चाहिए होगा.ऐसे में कई बार कम पढ़े-लिखे किसान औने-पौने दामों पर अपना माल बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं.
तस्वीर: DW/M. Krishnan
अच्छे बीज
अच्छी फसल के लिए अच्छे बीजों का होना बेहद जरूरी है. लेकिन सही वितरण तंत्र न होने के चलते छोटे किसानों की पहुंच में ये महंगे और अच्छे बीज नहीं होते हैं. इसके चलते इन्हें कोई लाभ नहीं मिलता और फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Seelam
सिंचाई व्यवस्था
भारत में मॉनसून की सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. इसके बावजूद देश के तमाम हिस्सों में सिंचाई व्यवस्था की उन्नत तकनीकों का प्रसार नहीं हो सका है. उदाहरण के लिए पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में सिंचाई के अच्छे इंतजाम है लेकिन देश का एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी है जहां कृषि, मॉनसून पर निर्भर है. इसके इतर भूमिगत जल के गिरते स्तर ने भी लोगों की समस्याओं में इजाफा किया है.
तस्वीर: picture alliance/NurPhoto/S. Nandy
मिट्टी का क्षरण
तमाम मानवीय कारणों से इतर कुछ प्राकृतिक कारण भी किसानों और कृषि क्षेत्र की परेशानी को बढ़ा देते हैं. दरअसल उपजाऊ जमीन के बड़े इलाकों पर हवा और पानी के चलते मिट्टी का क्षरण होता है. इसके चलते मिट्टी अपनी मूल क्षमता को खो देती है और इसका असर फसल पर पड़ता है.
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मशीनीकरण का अभाव
कृषि क्षेत्र में अब मशीनों का प्रयोग होने लगा है लेकिन अब भी कुछ इलाके ऐसे हैं जहां एक बड़ा काम अब भी किसान स्वयं करते हैं. वे कृषि में पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं. खासकर ऐसे मामले छोटे और सीमांत किसानों के साथ अधिक देखने को मिलते हैं. इसका असर भी कृषि उत्पादों की गुणवत्ता और लागत पर साफ नजर आता है.
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भंडारण सुविधाओं का अभाव
भारत के ग्रामीण इलाकों में अच्छे भंडारण की सुविधाओं की कमी है. ऐसे में किसानों पर जल्द से जल्द फसल का सौदा करने का दबाव होता है और कई बार किसान औने-पौने दामों में फसल का सौदा कर लेते हैं. भंडारण सुविधाओं को लेकर न्यायालय ने भी कई बार केंद्र और राज्य सरकारों को फटकार भी लगाई है लेकिन जमीनी हालात अब तक बहुत नहीं बदले हैं.
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परिवहन भी एक बाधा
भारतीय कृषि की तरक्की में एक बड़ी बाधा अच्छी परिवहन व्यवस्था की कमी भी है. आज भी देश के कई गांव और केंद्र ऐसे हैं जो बाजारों और शहरों से नहीं जुड़े हैं. वहीं कुछ सड़कों पर मौसम का भी खासा प्रभाव पड़ता है. ऐसे में, किसान स्थानीय बाजारों में ही कम मूल्य पर सामान बेच देते हैं. कृषि क्षेत्र को इस समस्या से उबारने के लिए बड़ी धनराशि के साथ-साथ मजबूत राजनीतिक प्रतिबद्धता भी चाहिए.
तस्वीर: DW/P. Mani Tewari
पूंजी की कमी
सभी क्षेत्रों की तरह कृषि को भी पनपने के लिए पूंजी की आवश्यकता है. तकनीकी विस्तार ने पूंजी की इस आवश्यकता को और बढ़ा दिया है. लेकिन इस क्षेत्र में पूंजी की कमी बनी हुई है. छोटे किसान महाजनों, व्यापारियों से ऊंची दरों पर कर्ज लेते हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों में किसानों ने बैंकों से भी कर्ज लेना शुरू किया है. लेेकिन हालात बहुत नहीं बदले हैं.