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तेजी से पिघल रहे हैं अंटार्कटिका के तटीय ग्लेशियर

११ अगस्त २०२२

सैटेलाइट चित्र दिखा रहे हैं कि अंटार्कटिका के तटीय ग्लेशियर अनुमान से ज्यादा तेज गति से पिघल रहे हैं. इससे दुनिया भर में समुद्र के स्तर के तेजी से बढ़ने को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं.

Antarktis - Meereis schrumpfte im Februar, fünf Jahre nach dem vorherigen Rekordtief
तस्वीर: picture alliance/Global Warming Images

सैटेलाइट चित्रों के नए अध्ययन से पता चला है कि प्रकृति को इस टूटती हुई बर्फ को फिर से बनाने में जितना समय लगेगा ये ग्लेशियर उससे भी तेज गति से पिघल रहे हैं. बर्फ के पिघलने को लेकर जो पुराने अनुमान थे, पिछले 25 सालों में उससे दोगुना नुकसान हो चुका है.

लॉस एंजेलेस के पास नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किया गया यह अध्ययन इस तरह का पहला अध्ययन है. इसे नेचर पत्रिका में छापा गया है. अध्ययन की मुख्य खोज यह है कि ग्लेशियरों के पिघल कर सागर में गिरने से लगभग उतनी ही बर्फ कम हो रही है जितनी समुद्र के गर्म होने की वजह से नीचे से आ रही गर्मी से पिघल रही है.

अंटार्कटिका की आइस शीट से टूटा 11 मील लंबा एक आइसबर्गतस्वीर: picture alliance / Global Warming Images

पहली प्रक्रिया को "कार्विंग" और दूसरी को "थिन्निंग" कहते हैं. दोनों ने मिलकर 1997 से अभी तक अंटार्कटिका की बर्फ के घन को 12 ट्रिलियन 12 हजार अरब टन कम कर दिया है. यह अभी तक के अनुमान से दोगुना ज्यादा है.

अध्ययन के मुख्या लेखक वैज्ञानिक चैड ग्रीन के मुताबिक कुल मिला कर सिर्फ "कार्विंग" से ही पिछले 25 सालों में करीब 37,000 किलोमीटर वर्ग बर्फ खत्म हो चुकी है. यह लगभग स्विट्जरलैंड के क्षेत्रफल के बराबर है.

नासा की घोषणा में ग्रीन ने कलह, "अंटार्कटिका के किनारे टूट रहे हैं. और जब बर्फ कम और कमजोर होती है तब इस महाद्वीप के विशाल ग्लेशियर वैश्विक समुद्री सतह के बढ़ने की गति बढ़ा देते हैं." उन्होंने बताया कि इसके परिणाम बहुत बुरे हो सकते हैं.

हमारे ग्लेशियरों का बचना बहुत मुश्किल

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बर्फ की "थिन्निंग" की तरह ग्लेशियरों की "कार्विंग" भी पश्चिम अंटार्कटिका में ज्यादा तेजी से हुई है. इस इलाके में गर्म होती समुद्र की लहरों का ज्यादा प्रकोप देखा गया है. लंबे समय से माना जाता था कि पूर्वी अंटार्टिका की बर्फ उतनी कमजोर नहीं हैं, लेकिन ग्रीन ने बताया कि पूर्वी अंटार्कटिका में भी "बेहतरी से ज्यादा नुकसान देखने को मिल रहा है."

ग्रीन ने बताया कि मार्च में विशाल कांगेर-ग्लेंजर आइस शेल्फ का टूट कर बिखर देना पूरी दुनिया के लिए एक चौंकाने वाली घटना थी. यह पूर्वी अंटार्कटिका में हुआ था. ग्रीन का कहना है कि संभव है यह आने वाले दिनों में यहां आइस शेल्फ के और कमजोर होने का संकेत हो.

कांगेर-ग्लेंजर आइस शेल्फ के टूटने का नासा द्वारा उपलब्ध कराया गया सैटेलाइट चित्रतस्वीर: NASA/AP/picture alliance

कैंब्रिज विश्वविद्यालय में रॉयल सोसाइटी रिसर्च प्रोफेसर एरिक वुल्फ शोध के नतीजों की तरफ ही ध्यान दिलाते हुए कहते हैं, "अच्छी खबर यह है कि अगर हम पेरिस समझौते द्वारा तय किए गए दो डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वॉर्मिंग के लक्ष्य पर टिके रहें, तो पूर्वी अंटार्कटिक की बर्फीली चादर के पिघलने से होने वाला समुद्री स्तर का बढ़ना कम रह सकता है."

हालांकि उन्होंने चेताया कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को अगर रोका नहीं गया तो इससे "अगली कुछ सदियों में समुद्र का स्तर कई मीटर बढ़ जाने का" खतरा रहेगा. 

सीके/एए (रॉयटर्स)

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