सऊदी अरब में पिछले एक महीने से लगभग हर हफ्ते नए सामाजिक सुधारों की घोषणा हो रही है. कुछ लोग इसे सार्थक बदलाव के तौर पर देख रहे हैं, तो कुछ का कहना है कि यह सिर्फ शाही घराने का प्रोपेगेंडा है.
तस्वीर: Amr Nabil/AP Photo/picture alliance
विज्ञापन
इस महीने की शुरुआत में, सऊदी अरब के अधिकारियों ने पिता या अन्य पुरुष रिश्तेदारों से अनुमति लिए बिना वयस्क महिलाओं को स्वतंत्र रूप से रहने की अनुमति देने के लिए एक कानून में संशोधन किया.
इसके कुछ दिनों बाद, अधिकारियों ने घोषणा की कि महिलाएं, पुरुष अभिभावक की अनुमति के बिना सऊदी अरब के अंदर स्थित इस्लाम के सबसे पवित्र स्थलों में से एक मक्का की तीर्थ यात्रा पर जाने के लिए पंजीकरण करा सकती हैं. वे चाहें तो अन्य महिला तीर्थयात्रियों के साथ यात्रा कर सकती हैं.
फिर इस हफ्ते, जनरल कमीशन फॉर ऑडिओ-विज़ुअल मीडिया (जीसीएएम) के सऊदी अधिकारियों ने बताया कि कानूनी संशोधनों का मतलब है कि आयातित पुस्तकों और पत्रिकाओं के लिए जांच प्रक्रियाओं को सरल बनाया जाएगा. सऊदी अरब में इस सेंसरशिप को सख्त सेंसर में से एक माना जाता है.
अधिकारियों ने अंग्रेजी भाषा के स्थानीय प्रकाशन ‘सऊदी गजट' को बताया कि नई प्रक्रियाओं का मतलब कम सेंसरशिप है. इससे खाड़ी देश में आयातित किताबों को ज्यादा लोग पढ़ सकेंगे.
मई के अंत में, देश के इस्लामी मामलों के मंत्रालय ने यह भी कहा कि जब अजान के लिए आवाज दी जाती है, तो उस समय मस्जिद में इस्तेमाल होने वाले एक तिहाई लाउड-स्पीकर ही चालू किए जाने चाहिए. यह कदम ध्वनि प्रदूषण को कम करने की पहल के तौर पर देखा जा सकता है, लेकिन रूढ़िवादी राजशाही में यह कदम विशेष रूप से विवादास्पद रहा है. वजह ये है कि यहां धर्म से जुड़े मामलों को जीवन के अन्य पहलुओं के मुकाबले ज्यादा तवज्जो दी जाती है.
तेजी से हो रहे बदलाव
इस तरह के सुधार सऊदी अरब में न तो पहली बार हो रहे हैं और न ही इसके आखिरी होने की संभावना है. सऊदी अरब के पिछले राजा अब्दुल्ला बिन अब्दुलअजीज अल सऊद के समय से ही देश में लगातार सामाजिक परिवर्तन हो रहा है. हालांकि, हाल के कई सुधारों को तथाकथित विजन 2030 का हिस्सा माना जा सकता है.
सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने 2016 में देश में व्यापक स्तर पर सामाजिक-आर्थिक सुधारों का प्रस्ताव तैयार किया था. ये प्रस्ताव देश को आधुनिक और उदार बनाने के प्रयास का हिस्सा हैं, ताकि व्यापार और पर्यटन के लिए बेहतर माहौल बन सके.
देखिएः पर्दा फैशन या मजबूरी
पर्दा: फैशन या मजबूरी
घूंघट, बुर्का, नकाब या हिजाब - इनके कई अलग नाम और अंदाज हैं. ऐसे पर्दों से अपने व्यक्तित्व को ढकने को दासता का प्रतीक मानें या केवल एक फैशन एक्सेसरी, यहां देखिए दुनिया भर के चलन.
तस्वीर: Getty Images/C.Alvarez
ईरान में प्रचलित हिजाब
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Mehri
मलेशिया का हिजाब 'टुडोंग'
तस्वीर: Getty Images/AFP/S.Khan
इराक में पूरा ढकने वाला पर्दा
तस्वीर: Getty Images/D.Furst
तुर्की में प्रचलित इस्लामी हेडस्कार्फ
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Altan
फलस्तीन के सुरक्षा दस्ते में शामिल महिलाएं
तस्वीर: Getty Images/AFP/M.Abed
भारतीय महिलाओं का दुपट्टा
तस्वीर: Getty Images/AFP/S.Jaiswal
लेबनान की मारोनीट ईसाई महिलाओं का सिर ढकने का अंदाज
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Baz
ईसाई महिलाओं का शादी में पहना जाने वाला घूंघट
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D.Kitwood
अफगानी औरतों का पूरे शरीर ढकने वाला पर्दा
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A.Karimi
नेपाल और भारत के ग्रामीण इलाकों का घूंघट
तस्वीर: Getty Images/R.Dran
फलीस्तीनी महिलाओं का पूरा चेहरा ढकने वाला नकाब
तस्वीर: Getty Images/AFP/M.Kahana
चेहरे पर जाली वाली डिजायनर हैट
तस्वीर: Getty Images/Ramage
चीन के एक समुद्री बीच पर फेसकिनी पहले चीनी महिला
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H.Jiexian
पश्चिम अफ्रीका के सेनेगल में हिजाब फैशन
तस्वीर: Getty Images/AFP/Seyllou
14 तस्वीरें1 | 14
2016 के बाद से इस दिशा में कई कदम उठाए गए हैं. महिलाओं को गाड़ी चलाने की अनुमति देना, सिनेमाघरों पर दशकों से लगे प्रतिबंध को हटाना और महिलाओं को अकेले यात्रा करने की अनुमति देना इनमें शामिल है. सऊदी अरब में शराब पर प्रतिबंध है. हालांकि, ऐसी बातें कही जा रही हैं कि सीमित अनुमतियों के साथ देश में शराब के इस्तेमाल की इजाजत भी दी जा सकती है.
सऊदी पर नजर रखने वालों का कहना है कि देश में तेजी से बदलाव हो रहे हैं. वॉशिंगटन में अरब गल्फ स्टेट्स इंस्टीट्यूट में स्कॉलर रॉबर्ट मोगिएलनिकी इन बदलावों को ‘सुधार की एक रोमांचक गति' के तौर पर देखते हैं. वह कहते हैं, "ऐसा लगता है कि नियम बनाने वाले काफी जल्दबाजी में हैं."
युवाओं का समर्थन
मोगिएलनिकी कहते हैं, "यह स्पष्ट था कि विजन 2030 को लेकर कुछ बदलाव की जरूरत थी. मेरे विचार से, क्राउन प्रिंस और उनके साथ काम करने वाले नीति निर्माता लंबे समय के उद्देश्यों को पूरा करने और जमीन पर बेहतर तरीके से काम करने के बीच संतुलन खोजने की कोशिश कर रहे हैं.
ऐसे में हाल में हुए कुछ बदलावों का तुरंत असर होगा. देश में होने वाले इन सुधारों को लेकर युवाओं का सबसे अधिक समर्थन मिलता है." सऊदी अरब की दो-तिहाई नागरिकों की उम्र 35 साल से कम है.
राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर और कार्नेगी एंडोमेंट के मध्य पूर्व कार्यक्रम के एक सीनियर फेलो नेथन ब्राउन ने डीडब्ल्यू को बताया कि लाउडस्पीकर की आवाज कम करने जैसे कुछ बदलाव सऊदी से बाहर के लोगों को मामूली लग सकते हैं, लेकिन कुल मिलाकर ये काफी महत्वपूर्ण सुधार हैं. कुछ साल पहले तक इनमें बदलाव करना असंभव लगता था.
देखिएः कब मिले सऊदी महिलाओं को अधिकार
सऊदी अरब में कब-कब मिले महिलाओं को अधिकार
सऊदी अरब को महिलाओं के दृष्टिकोण से एक पिछड़ा देश माना जाता है. यहां महिलाओं के अधिकार पुरुषों की तुलना में कम हैं. जानिए सऊदी अरब में किन-किन सालों में ऐसे बड़े बदलाव हुए जो महिलाओं को बराबरी देते हैं.
तस्वीर: Reuters/H. I Mohammed
1955: लड़कियों के लिए पहला स्कूल
सऊदी अरब में लड़कियों के लिए पहला स्कूल दार-अल-हनन 1955 में खोला गया, उस साल तक कुछ ही लड़कियों को किसी भी तरह की शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिलता था. इसी तरह लड़कियों के लिए पहला सरकारी स्कूल 1961 में खोला गया था.
तस्वीर: Getty Images/AFP/F. Nureldine
1970: लड़कियों के लिए पहली यूनिवर्सिटी
लड़कियों के लिए पहली यूनिवर्सिटी "रियाद कॉलेज ऑफ एजुकेशन" थी जो साल 1970 में खोली गयी थी. यह देश में महिलाओं की उच्ची शिक्षा के लिए पहली यूनिवर्सिटी थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/V. Sharifulin
2001: महिलाओं का पहचान पत्र
21वीं सदी के साथ सऊदी अरब में एक और नई शुरूआत हुई और यह शुरुआत थी महिलाओं के पहचान पत्र की. हालांकि यह पहचान पत्र महिला के अभिभावक की स्वीकृति से जारी किये जाते थे, लेकिन 2006 से बिना किसी इजाजत के महिलाओं को पहचान पत्र जारी किये जा रहे हैं.
तस्वीर: Getty Images/J. Pix
2005: जबरन शादी का अंत
सऊदी अरब ने जबरन शादी पर 2005 में रोक लगाया. हालांकि, विवाह प्रस्ताव लड़के और लड़की के पिता के बीच तय होना जारी रहा.
तस्वीर: Getty Images/A.Hilabi
2009: पहली महिला मंत्री
2009 में राजा अब्दुल्ला ने सऊदी अरब की सरकार में पहली महिला मंत्री नियुक्त किया और इस तरह नूरा अल-फैज महिला मामलों के लिए उप शिक्षा मंत्री बनीं.
तस्वीर: Foreign and Commonwealth Office
2012: पहली महिला ओलंपिक एथलीट्स
सऊदी अरब ने पहली बार महिला एथलीट्स को ओलंपिक की राष्ट्रीय टीम में हिस्सा लेने की अनुमति दी. इन खिलाड़ियों में सारा अत्तार थीं, जो 2012 के ओलंपिक खेलों में लंदन में स्कार्फ पहन कर 800 मीटर की रेस दौड़ीं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/J.-G.Mabanglo
2013: महिलाओं को साइकिल/मोटरसाइकिलों की सवारी करने की अनुमति
सऊदी नेताओं ने महिलाओं को 2013 में पहली बार साइकिल और मोटरबाइक की सवारी करने की अनुमति दी. हालांकि, इस पर भी शर्ते थीं महिलाएं केवल मनोरंजक क्षेत्रों में, पूरे शरीर को ढंक कर और एक पुरुष रिश्तेदार की उपस्थित में सवारी कर सकती थीं.
तस्वीर: Getty Images/AFP
2013: शूरा में पहली महिला
फरवरी 2013 में, राजा अब्दुल्ला ने सऊदी अरब की सलाहकार परिषद शूरा में 30 महिलाओं को शपथ दिलवायी. इसके बाद इस समिति में महिलाओं को नियुक्त किया जाने लगा जल्द ही वे सरकारी दफ्तर भी संभालेंगी.
तस्वीर: Getty Images/F.Nureldine
2013: शूरा में पहली महिला
फरवरी 2013 में, राजा अब्दुल्ला ने सऊदी अरब की सलाहकार परिषद शूरा में 30 महिलाओं को शपथ दिलवायी. इसके बाद इस समिति में महिलाओं को नियुक्त किया जाने लगा जल्द ही वे सरकारी दफ्तर भी संभालेंगी.
तस्वीर: REUTERS/Saudi TV/Handout
2015: वोट देने का अधिकार
2015 में सऊदी अरब के नगरपालिका चुनाव में, पहली बार महिलाओं ने वोट डाला साथ ही उन्हें इन चुनावों में उम्मीदवार बनने का भी मौका मिला. इसके विपरीत, 1893 में, महिलाओं को वोट का अधिकार देने वाला पहला देश न्यूजीलैंड था. जर्मनी ने 1919 में ऐसा किया था.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Batrawy
2017: सऊदी स्टॉक एक्सचेंज की पहली महिला प्रमुख
फरवरी 2017 में, सऊदी अरब स्टॉक एक्सचेंज ने सारा अल सुहैमी के रूप में अपनी पहली महिला अध्यक्ष को नियुक्त किया था. इससे पहले 2014 में वह नेशनल कामर्शियल बैंक (एनसीबी) की पहली महिला सीईओ भी बनाई जा चुकी थीं.
तस्वीर: pictur- alliance/abaca/Balkis Press
2018: महिलाओं को ड्राइव करने की अनुमति दी जाएगी
26 सितंबर, 2017 को, सऊदी अरब ने घोषणा की कि महिलाओं को जल्द ही ड्राइव करने की अनुमति दी जाएगी. जून 2018 से उन्हें गाड़ी के लाइसेंस के लिए अपने पुरुष अभिभावक से अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी साथ ही गाड़ी चलाने के लिए अपने संरक्षक की भी जरूरत नहीं होगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/G. Hamdy
12 तस्वीरें1 | 12
ब्राउन कहते हैं, "अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि ये सुधार किस तरह के पैटर्न स्थापित कर रहे हैं. मेरी सामान्य प्रतिक्रिया यह है कि ये सुधार कुछ सामाजिक क्षेत्रों में उदारीकरण की प्रवृत्ति का हिस्सा हैं, लेकिन राजनीतिक क्षेत्रों में नहीं. कुछ दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण हैं और इसलिए उन्हें कम नहीं माना जाना चाहिए. हालांकि, ये संरचनात्मक बदलाव नहीं हैं."
सब कुछ बदल रहा
ब्राउन और कार्यक्रम में एक अन्य फेलो, यास्मीन फारूक ने "सामाजिक उदारीकरण और राजनीतिक उदारीकरण एक साथ नहीं चलते हैं" शीर्षक वाले एक लेख में लिखा, "सऊदी अरब के धार्मिक सुधार कुछ भी नहीं बल्कि सब कुछ बदल रहे हैं." उन्होंने कहा, "हकीकत में सारी चीजें विपरित हुई हैं. कई ऐसे बदलाव हैं जो कर्मचारियों, प्रक्रिया, नौकरशाही, और कानून में फेरबदल के लिए हैं. ये सार्थक बदलाव नहीं हैं. यह बात याद रखना जरूरी है कि इनमें से कई बदलावों को फिर से वापस लिया जा सकता है."
हालांकि, जिस तरह से लगातार सुधार और बदलाव हो रहे हैं, वह सऊदी के शाही परिवार के भीतर की सत्ता को पहले से अधिक केंद्रीकृत कर रही है. यह भी संदेह जताया जा रहा है कि सत्ता की संरचना में बदलाव, नए आयोग और कार्यालय के निर्माण, और तेजी से हो रहे सुधार के ज़रिए मोहम्मद बिन सलमान यह पक्का करना चाहते हैं कि नौकरशाह उनके प्रति वफादार हैं. साथ ही, वे सत्ता पर अपनी पकड़ और मजबूत बनाना चाहते हैं.
विज्ञापन
वहाबवाद का अंत?
यह भी कहा जा रहा है कि इन बदलावों से सऊदी अरब के मौलवियों की शक्ति को कम हो रही है और देश अपने सामाजिक, कानूनी और राजनीतिक जीवन की कट्टर धार्मिक परंपराओं से दूर जा रहा है. सदियों से, सुन्नी इस्लाम के एक कठोर रूप को वहाबवाद के रूप में जाना जाता है, जो कुरान का सख्ती से पालन करने पर जोर देता है. इसी के तहत सऊदी अरब की संस्कृति और रहन-सहन तय हुआ. हालांकि, नए सुधार इसे बदल रहे हैं.
धार्मिक पुलिस की स्थिति में बदलाव को एक उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है. पहले इस विभाग से जुड़े लोग सड़कों पर गश्त करते थे और पर्याप्त कपड़े नहीं पहनने वालों पर कार्रवाई करते थे. साथ ही, यह सुनिश्चित करते थे कि अजान के समय रेस्तरां और अन्य दुकान बंद रहें.
तस्वीरों मेंः अरबी भाषा बोलने वाले देश
अरबी भाषा बोलने वाले देश
अरब जगत का नाम मध्य पूर्व से जुड़ी खबरों में आपने अकसर सुना होगा. लेकिन क्या आपको मालूम है कि इस अरब दुनिया में कौन से देश शामिल हैं. चलिए जानते हैं.
क्षेत्रफल: 1.85 लाख वर्ग किलोमीटर, आबादी: 1.70 करोड़, राजधानी: दमिश्क, मुद्रा: सीरियन पाउंड.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. Vasilyeva
16. यमन
क्षेत्रफल: 5.27 लाख वर्ग किलोमीटर, आबादी: 2.75 करोड़, राजधानी: सना, मुद्रा: यमनी रियाल.
तस्वीर: picture alliance/dpa/abaca/A. Homran
17. जॉर्डन
क्षेत्रफल: 89.34 हजार वर्ग किलोमीटर, आबादी: एक करोड़, राजधानी: अम्मान, मुद्रा: दीनार.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Doppagne
18. मॉरिटानिया
क्षेत्रफल: 10.3 लाख वर्ग किलोमीटर, आबादी: 43.01 लाख, राजधानी: नोआकचोट, मुद्रा: ओएगुइया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Stringer
19. फलस्तीन
(अभी अलग देश नहीं बना है.)
तस्वीर: picture-alliance/ZUMA Wire/C. Faga
20. जिबूती
क्षेत्रफल: 23.20 हजार वर्ग किलोमीटर, आबादी: 9.42 लाख, राजधानी: जिबूती, मुद्रा: जिबूतियन फ्रांक.
तस्वीर: DW/G.T. Haile-Giorgis
21. सोमालिया
क्षेत्रफल: 6.37 लाख वर्ग किलोमीटर, आबादी: 1.43 करोड़, राजधानी: मोगादिशु, मुद्रा: सोमाली शिलिंग.
तस्वीर: Getty Images/AFP
21 तस्वीरें1 | 21
आज इनके पास अपराधियों को गिरफ्तार करने की शक्ति नहीं है. ब्राउन कहते हैं, "यह कहना जल्दबाजी होगी कि वहाबवाद का अंत नजदीक आ गया है. सऊदी की राष्ट्रीय पहचान में वहाबवाद और धर्म की भूमिका पर कम जोर दिया गया है."
क्या यह सिर्फ प्रोपेगेंडा है?
तमाम सुधारों के बावजूद, सऊदी अरब में अगर कुछ नहीं बदला है, वह है इसके नेताओं के निर्णय लेने से जुड़ी अपारदर्शिता. यही वजह है कि कई सुधारों के बावजूद भी, यह अनिश्चितता बनी हुई है कि आखिर सऊदी के शासक चाहते क्या हैं.
आलोचकों का कहना है कि सामाजिक उदारीकरण और राजनीतिक उदारीकरण के बीच का अंतर समस्या बना हुआ है. कई मानवाधिकार संगठन इसे महज पाखंड बताते हैं. वे कहते हैं कि नियम में बदलाव के बावजूद गाड़ी चलाने पर महिलाओं को जेल में डाल दिया जाता है. शाही घराने मौत की सजा को कम करने की बात करते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा मौत की सजा इसी देश में दी जाती है.
जर्मनी की राजधानी बर्लिन स्थित यूरोपियन सऊदी ऑर्गनाइजेशन फॉर ह्यूमन राइट्स में शोधकर्ता दुआ धैनी कहती हैं कि सुधारों का प्रभाव पड़ता है, लेकिन यहां सीमित है. वह आगे कहती हैं, "जो कोई भी सुधारों का विरोध करता है उसे गिरफ्तारी, निंदा या "कठोर सजा" का सामना करना पड़ सकता है."
अरब शेखों के शौक के चलते खतरे में पाकिस्तानी बाज
04:17
This browser does not support the video element.
धैनी ने सऊदी अरब के लाल सागर तट पर भविष्य में बनने वाले मेगासिटी परियोजना, निओम की ओर इशारा किया. उन्होंने इलाके में रहने वाले हुवैत जनजाति का जिक्र करते हुए कहा, "यहां हरे-भरे शहर बसाने के बारे में बहुत सारी बातें कही गईं. कहा गया कि लोग यहां स्वस्थ जीवन जी पाएंगे. लेकिन जो लोग यहां पीढ़ियों से रह रहे थे, उन्हें अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है."
कथित तौर पर, विस्थापन का विरोध करने वाले एक आदिवासी नेता की सऊदी सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी. धैनी कहती हैं, "कुछ बदलाव हुए हैं लेकिन राजनीतिक कैदियों के साथ व्यवहार करने या बोलने की स्वतंत्रता को लेकर ज्यादा फर्क नहीं आया है. ये सुधार मानवाधिकारों की स्थिति को सार्थक तरीके से प्रभावित नहीं करते हैं और जब तक वे ऐसा नहीं करते हैं, यह वास्तव में सिर्फ प्रोपेगेंडा हैं."