ब्रिक्स में शामिल होने से क्यों झिझक रहे हैं कुछ देश
२ फ़रवरी २०२४
सऊदी अरब ब्रिक्स में शामिल होगा या नहीं, यह अब तक साफ नहीं हो पाया है. कई बार ऐलान हो चुका है लेकिन अब तक स्थिति साफ नहीं हो पाई है. क्यों झिझक रहे हैं कुछ देश?
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सऊदी अरब ने कहा है कि वह अभी भी ब्रिक्स में शामिल होने पर विचार कर रहा है और उसने कोई आखिरी फैसला नहीं किया है. एक दिन पहले ही दक्षिण अफ्रीका ने कहा था कि सऊदी अरब समेत 5 देश ब्रिक्स में शामिल हो रहे हैं. लेकिन समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने सऊदी सरकार के सूत्रों के हवाले से लिखा है कि अभी उसने कोई फैसला नहीं किया है.
गुरुवार को दक्षिण अफ्रीका के विदेश मंत्री नालेदी पैंडोर ने कहा था कि सऊदी अरब ब्रिक्स में शामिल हो चुका है. लेकिन एक सऊदी नेता ने कहा, "सऊदी अरब ने अभी तक ब्रिक्स में शामिल होने के आमंत्रण का जवाब नहीं दिया है."
सऊदी अरब ब्रिक्स में शामिल होने में आनाकानी करने वाला पहला देश नहीं है. इससे पहले दक्षिण अमेरिकी देश अर्जेन्टीना भी ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका (BRICS) के संगठन में शामिल होने से औपचारिक तौर पर इनकार कर चुका है.
पांचों देशों के नेताओं को भेजे एक पत्र में अर्जेन्टीना के राष्ट्रपति हाविएर मिलेई ने कहा कि अभी उनके देश के लिए इस संगठन की पूर्ण सदस्यता का सही समय नहीं है. यह पत्र 22 दिसंबर को लिखा गया था.
ब्रिक्स का विस्तार
सऊदी अरब और अर्जेन्टीना उन छह देशों में से हैं जिन्हें पिछले साल अगस्त में ब्रिक्स की सदस्यता के लिए आमंत्रित किया गया था. इन देशों को 1 जनवरी 2024 से पूर्ण सदस्य बन जाना था. मिलेई के पूर्ववर्ती वामपंथी नेता अल्बेर्टो फर्नान्डेज ने ब्रिक्स की सदस्यता का समर्थन किया था क्योंकि वह इसे नए बाजारों तक पहुंचने के एक मौके के तौर पर देखते थे.
इन देशों को मिला ब्रिक्स में शामिल होने का न्योता
40 देश, ब्रिक्स में शामिल होना चाहते हैं. लेकिन फिलहाल न्योता छह को ही मिला है. ये देश 2024 से ब्रिक्स के पूर्ण सदस्य होंगे.
तस्वीर: Sergei Bobylev/dpa/TASS/picture alliance
नए सदस्यों के लिए रजामंदी
ब्रिक्स सम्मेलन की मेजबानी कर रहे दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने छह देशों को फुल मेंबरशिप का न्योता देने की जानकारी दी है. ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के संगठन ब्रिक्स में शामिल होने के लिए सभी सदस्यों की रजामंदी जरूरी होती है.
तस्वीर: Sergei Bobylev/Imago Images
मिस्र
मिस्र अरब जगत में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है. स्वेज नहर को नियंत्रित करने वाले मिस्र के भारत और रूस से ऐतिहासिक संबंध रहे हैं. एशिया और यूरोप के बीच होने वाला ज्यादातर समुद्री परिवहन मिस्र के मुहाने से ही गुजरता है.
तस्वीर: Suez Canal Authority/REUTERS
इथियोपिया
पूरी तरह जमीनी बॉर्डर से घिरा इथियोपिया, जनसंख्या के लिहाज से नाइजीरिया के बाद अफ्रीकी महाद्वीप का दूसरा बड़ा देश है. गरीबी और सूखे से जूझने के बावजूद बीते 23 साल से इथियोपिया की अर्थव्यवस्था हर साल औसतन 10 फीसदी प्रतिवर्ष की दर से दौड़ रही है.
तस्वीर: AMANUEL SILESHI AFP via Getty Images
ईरान
पश्चिमी देशों के साथ तनावपूर्ण संबंध रखने वाला ईरान मध्य पूर्व में एक बड़ी ताकत है. हाल के महीनों में चीन की मध्यस्थता में ईरान और खाड़ी के देशों के रिश्ते सुधर रहे हैं. ब्रिक्स में एंट्री, ईरान को अंतरराष्ट्रीय मंच से जोड़ने का काम करेगी.
तस्वीर: Francois Mori/AP Photo/picture alliance
अर्जेंटीना
कभी दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप की अहम ताकत कहा जाने वाला अर्जेंटीना, आज आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहा है. ब्राजील का पड़ोसी ये देश अमेरिका और चीन का बड़ा कारोबारी साझेदार है.
तस्वीर: Martin Villar/REUTERS
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई)
मध्य पूर्व एशिया से अमेरिका का मोहभंग हो चुका है. इलाके में अमेरिका के साझेदार रहे देशों को अब नए रिश्ते बनाने पड़ रहे हैं. इसी कोशिश में यूएई तेजी से एशियाई ताकतों के साथ संबंध बढ़ा रहा है.
तस्वीर: Kamran Jebreili/AP Photo/picture alliance
सऊदी अरब
सऊदी अरब दुनिया का अकेला ऐसा देश है, जिसके तटों पर लाल सागर और फारस की खाड़ी हैं. इस्लाम का पवित्र केंद्र माना जाने वाला सऊदी अरब भी अब अमेरिकी छाया से निकलकर नए साझेदार तलाश रहा है.
तस्वीर: Fayez Nureldine/AFP/Getty Images
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इसी तरह सऊदी अरब ने भी अगस्त में हामी भरी थी. 1 जनवरी को पांच देशों के शामिल हो जाने का ऐलान भी हो गया था. इनमें यूएई, मिस्र, ईरान और इथियोपिया भी शामिल थे. लेकिन सऊदी अरब को लेकर संशय बना रहा. जनवरी की शुरुआत में देश के वित्त मंत्री फैसल अल-इब्राहिम ने कहा कि वे अभी आमंत्रण पर विचार ही कर रहे हैं.
ब्रिक्स देश चाहते हैं कि उनके संगठन का विस्तार हो ताकि उनकी आर्थिक और सामरिक ताकत बढ़े. ब्रिक्स अपने आपको विकासशील देशों के नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहा है. रूस और चीन कहते रहे हैं कि मौजूदा वैश्विक व्यवस्था पुरानी पड़ चुकी है और दुनिया एक नई व्यवस्था की ओर बढ़ रही है.
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अमेरिका को चुनें या चीन को
जिस व्यवस्था को चीन और रूस पुरानी बताते हैं, उसमें अमेरिका दुनिया का नेता माना जाता है. शीत युद्ध खत्म हो जाने के बाद कमोबेश यही व्यवस्था चलती रही क्योंकि दूसरी दुनिया के नेता के रूप में सोवियत संघ के खत्म हो जाने के बाद अमेरिका को कोई चुनौती नहीं रही थी.
क्या सिर्फ भारत के भरोसे है मालदीव का टूरिज्म?
मालदीव की एक तिहाई अर्थव्यवस्था टूरिज्म पर निर्भर है और 2023 में वहां सबसे ज्यादा पर्यटक भारत से गए. लेकिन भारत पर उसकी निर्भरता कितनी है? जानिए...
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भारत में मालदीव विरोध
मालदीव के कुछ जूनियर मंत्रियों द्वारा भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर टिप्पणियों के बाद भारत में मालदीव का विरोध हो रहा है. पर्यटकों से वहां घूमने ना जाने की अपील की जा रही है. और इसका असर संख्या पर दिखने भी लगा है.
आंकड़े बताते हैं कि 2023 में मालदीव जाने वाले पर्यटकों में सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की थी. मालदीव के पर्यटन मंत्रालय के मुताबिक वहां भारत के दो लाख 9 हजार 198 टूरिस्ट गए. लेकिन आंकड़े कुछ और भी बताते हैं.
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भारत जितने ही रूसी पर्यटक
2023 में जितने भारतीय पर्यटक मालदीव गए, लगभग उतने ही टूरिस्ट रूस के भी थे. रूसियों की संख्या दो लाख 9 हजार 146 थी, यानी भारत से सिर्फ 52 कम.
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बढ़ रहे हैं चीनी पर्यटक
मालदीव जाने वाले चीनी पर्यटकों की संख्या में पिछले साल 24 फीसदी का बड़ा उछाल देखा गया जबकि भारत के टूरिस्टों की संख्या बढ़ी नहीं. 2023 में वहां चीन के एक लाख 87 हजार 118 पर्यटक गए.
अगर यूरोपीय टूरिस्टों की कुल संख्या देखी जाए तो एकमुश्त वे बाकी किसी भी देश से ज्यादा बनते हैं. 2023 में यूके (1,55,730), जर्मनी (1,35,090), इटली (1,18,412) और फ्रांस (49,199) के ही करीब पांच लाख टूरिस्ट मालदीव गए थे.
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अमेरिका का भी योगदान
2023 में अमेरिका के 74,575 टूरिस्ट मालदीव घूमने गए थे.
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लेकिन अब चीन एक महाशक्ति के रूप में अमेरिकी नेतृत्व को चुनौती दे रहा है. अमेरिका और चीन के बीच तनातनी ही सऊदी अरब और अन्य देशों को किसी एक तरफ होने से रोक रही है. सऊदी अरब लंबे समय से अमेरिका का साझीदार रहा है. लेकिन हाल के सालों में चीन के साथ उसकी नजदीकियां बढ़ी हैं. अब सऊदी अरब के लिए दोनों में से किसी एक को चुनने में झिझक साफ नजर आ रही है.
अर्जेन्टीना में स्थिति थोड़ी अलग है. वहां पिछले साल नवंबर में राष्ट्रपति बने मिलेई विदेश नीति के मामले में ‘पश्चिम से मुक्त देशों' के साथ खड़ा होने की बात करते हैं. इन पश्चिमी देशों में अमेरिका और इस्राएल का नाम उन्होंने खासतौर पर लिया है. राष्ट्रपति चुनाव के लिए प्रचार के दौरान मिलेई ने वामपंथी सरकारों वाले देशों की भी निंदा की थी और कहा था कि वह उनके साथ कूटनीतिक रिश्ते भी नहीं रखेंगे. लेकिन वह चीन के साथ जाने को लेकर भी सशंकित हैं इसलिए ब्रिक्स में शामिल होने से उन्होंने इनकार कर दिया.