सऊदी अरब के भावी शहर नियोम का स्याह पक्ष
१९ मई २०२३सऊदी अरब, नियोम के निर्माण पर जोरशोर से जुटा है. ये एक फ्यूचरिस्टिक मेगासिटी और पर्यावरण के अनुकूल बताया जा रहा प्रोजेक्ट है. लेकिन मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए अंतरराष्ट्रीय आलोचना के घेरे में भी है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक शहर के लिए चिन्हित इलाके के रैबासी, होवाइटाट जनजाति के लोगों को विस्थापित किया जा रहा है और सही मुआवजा दिए बिना ही उनके घर गिराये जा रहे हैं. यही नहीं, एक आदमी की मौत भी हो चुकी है, और तीन और लोगों को मौत की सजा की तस्दीक हो चुकी है. आतंकवाद के आरोपों में तीन और जनजातीय लोगों को 50 साल की जेल की सजा सुना दी गयी है.
रिपोर्ट के मुताबिक, "आतंकवाद के आरोप लगाने के अलावा लोगों को कथित रूप से जबरन घर खाली करने का विरोध करने के लिए गिरफ्तार भी किया गया. ये सब नियोम प्रोजेक्ट और द लाइन नाम से बनने वाले 170 किलोमीटर लंबे लीनियर शहर के निर्माण के नाम पर किया जा रहा है."
सऊदी अरब के शासक और एमबीएस नाम से मशहूर 37 वर्षीय सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने वादा किया था कि निर्माण कार्य से प्रभावित लोगों को योजना और क्रियान्वयन प्रक्रियाओं में शामिल किया जाएगा. इसके बावजूद मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है.
500 अरब डॉलर का नियोम निर्माण सऊदी अरब के आर्थिक और सामाजिक बदलाव के विजन 2030 का एक हिस्सा है. 2017 में एमबीएस ने सुधारों का ये सिलसिला शुरू किया था. इस सिलसिले के दौरान महिलाओं के अधिकारों में सुधार किया गया, देश में पर्यटकों की आमद में बढ़ोत्तरी हुई, और देश की अर्थव्यवस्था को विविध बनाने और तेल राजस्व पर उसकी निर्भरता को कम करने के लिए वैकल्पिक आय स्रोत खोले गए.
निर्माण योजना के मुताबिक 2039 में नियोम शहर बन कर तैयार हो जाएगा. ये लाल सागर तट के पास 26,500 वर्ग किलोमीटर के सऊदी भूभाग पर बन रहा है. सऊदी सरकार की योजना है कि शहर में आला दर्जे की प्रौद्योगिकी और तकनीकी का इस्तेमाल होगा जिसका केंद्र आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर रहेगा. उसमें एक हवाई अड्डा, हाई-स्पीड ट्रेनें, और ड्रोन होंगे- और ये सब के सब सिर्फ अक्षय ऊर्जा स्रोतों से चलेंगे. ये प्रोजेक्ट अंतरराष्ट्रीय निवेश का एक व्यापक प्लेटफॉर्म भी बन गया है.
तवज्जो निवेश को, मानवाधिकारों को नहीं
जर्मनी स्थित सेंटर फॉर एप्लाइड रिसर्च इन पार्टनरशिप विद द ओरियंट (कारपो) में वरिष्ठ शोधकर्ता सेबस्टियान जोन्स ने डीडब्ल्यू को बताया, "नियोम का निर्माण कार्य शुरू हो चुका है. लेकिन प्रोजेक्ट अभी अपनी बहुत ही शुरुआती अवस्था में है." उन्होंने ये भी कहा कि बहुत से अंतरराष्ट्रीय परामर्शदाता फिलहाल नियोम में काम पर जुटे हैं. उनके मुताबिक, "नियोम से लंदन या न्यू यार्क के लिए कई सीधी उड़ानें हैं, तो इरादे साफ हैः सऊदी अरब वाकई में हर हाल में नियोम बनाना चाहता है."
उन्हें लगता है कि नियोम का भावी शहर, मोहम्मद बिन सलमान की देश को एक नयी आधुनिकता में ले जाने की योजना का प्रतीक है. वह कहते हैं, "अपनी अंतरराष्ट्रीय अपील की वजह से, प्रोजेक्ट को लागू करने का बड़ा भारी दबाव भी है. अगर वह इसमें नाकाम रहे तो जो भरोसा उन्हें आबादी के एक बड़े हिस्से में हासिल है उसे काफी गंभीर नुकसान पहुंच सकता है." नियोम अगर नाकाम रहा तो अंतरराष्ट्रीय निवेश ठिकाने के तौर पर सऊदी अरब की साख पर भी बट्टा लगेगा.
मानवाधिकार संगठन रिप्रीव की मध्य पूर्व निदेशक जीड बासयोनी ने डीडब्ल्यू को बताया, "लेकिन चमकदार ब्रोशर ये नहीं दिखाते हैं कि ये शहर जबरन बेदखली, राज्य की हिंसा और मौत की सजाओं पर बन रहा है." उन्हें लगता है कि नियोम प्रोजेक्ट "मोहम्मद बिन सलमान के सऊदी अरब से जुड़े तथाकथित 'विजन' और उनकी हुकूमत के दमनकारी यथार्थ के बीच मौजूद खाई" का प्रतीक है.
'सऊदी खून से सना है नियोम'
लंदन स्थित सऊदी मानवाधिकार संस्था एएलक्यूएसटी (अलक्वेस्ट) की डायरेक्टर ऑफ क्म्युनिकेशंस लीना अल-हथलाउल भी यही मानती हैं. सऊदी औरतों के अधिकारों की मशहूर एक्टिविस्ट लाउजान अल-हथलाउल की बहन लीना ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमारी मुख्य चिंता ये है कि नियोम, सऊदी खून पर बन रहा है."
वह कहती हैं, "जनजातीय लोगों के खिलाफ मुकदमे बंद कमरों में चलाए गये. प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए न्यायपालिका लोगों को फांसी पर लटकाने तक पर आमादा है."
तेल, अमेरिका या रूस: सऊदी अरब वास्तव में किसके साथ है?
सऊदी अरब में नियोम अकेली जगह नहीं है, जहां से लोग जबरन बेदखल किए गये हैं. जनवरी से अक्टूबर 2022 तक, बंदरगाह शहर जेद्दाह में अधिकारियों ने शहरी विकास योजनाएं लागू करने के लिए कई मकान गिरवा दिए. इस अभियान की वजह से हजारों लोगों को बेदखल और बेघर होना पड़ा, इसमें एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक विदेशी नागरिक भी थे.
बासयोनी कहती हैं, "हमने हर बार देखा है कि जो कोई भी शहजादे से असहमत होते हैं या उनके रास्ते में आते हैं, उन पर जेल जाने या मौत की सजा का खतरा मंडराने लगता है. चाहे वो शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारी हों, सोशल मीडिया आलोचक हों या वही लोग क्यों न हो जो बदकिस्मती से उस जमीन पर रहते आये हैं जिस पर हुकूमत कब्जा जमाना चाहती है."
जर्मन कंपनियों का भी दायित्व है
सेबेस्टियान जोन्स कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, सऊदी मानवाधिकार नीति की दशा और दिशा को प्रभावित करने के अवसर मौजूद हैं. पहले भी, अंतरराष्ट्रीय दबावों की वजह से फांसी की सजाएं स्थगित हुई हैं या लाउजाइन अल-हाथलाउल जैसी मानवाधिकार कार्यकर्ता जेल से रिहा की गयी हैं, भले ही उन पर कड़ी निगरानी रखी जाती रही हो या उन पर यात्रा का प्रतिबंध लगा हो. जोन्स कहते हैं, "इसका मतबल सऊदी सरकार पर कुछ करने का जितना ज्यादा दबाव पड़ेगा, उतनी ज्यादा संभावना इस बात की है कि वो एक लचीला, शांतिपूर्ण, और अपनी लाज रखने वाला समझौता तलाशने की इच्छुक होगी."
सऊदी अरब में मानवाधिकार के चिंताजनक स्थिति के विषय को जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बाएरोबाक ने खाड़ी की यात्रा के दौरान उठाया था. सऊदी विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान के साथ वार्ता में उन्होंने स्पष्ट किया कि आर्थिक सहयोग को "कानून के राज, मानवाधिकारों और आजादियों से अलग करने नहीं" नहीं देखा जा सकता.
जोन्स कहते हैं, दरअसल, नियोम की सामाजिक अनुकूलता या सामाजिक सुसंगति को बढ़ाना, जर्मनी के भी हित में है "क्योंकि बात सीधी सी है कि जर्मन कंपनियां प्रोजेक्ट में शामिल हैं और मानवाधिकार के संभावित उल्लंघनों का दोष सिर्फ सऊदी अरब पर नहीं मढ़ा जा सकता, जर्मन कंपनियां भी जिम्मेदार होंगी."
रिपोर्टः जेनिफर होलाइज, कर्स्टन निप