41 मुस्लिम देशों ने आतंकवाद से लड़ने के लिए एक गठबंधन बनाया है. सऊदी अरब में इसकी पहली बैठक हुई जिसमें क्राउन प्रिंस ने "धरती से आतंकवाद के सफाये का प्रण" लिया है. पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख इसके कमांडर इन चीफ हैं.
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सऊदी अरब की राजधानी रियाद में रविवार को हुई इस बैठक में सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने कहा, "हाल के सालों में आंतकवाद हमारे देशों में सक्रिय रहा है.. इस गठबंधन के साथ आज इसका खात्मा होगा."
इस गठबंधन का नाम इस्लामिक मिलिट्री काउंटर टेररिज्म कोएलिशन रखा गया है, जिसमें आधिकारिक रूप से 41 सदस्य हैं और इसे चरमपंथी हिंसा के खिलाफ एक व्यापक एकजुट इस्लामिक गठबंधन बताया जा रहा है. सऊदी क्राउन प्रिंस ने ही 2015 में इस गठबंधन का एलान किया था. प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान न सिर्फ सऊदी अरब की सत्ता पर लगातार अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं बल्कि पूरे मध्य पूर्व क्षेत्र में भी उनके कदमों से उलटफेर हो रहा है.
नये इस्लामी गठबंधन का एलान ऐसे समय में हुआ है जब कई सैन्य गठबंधन आतंकवादी गुट इस्लामिक स्टेट को सीरिया और इराक में उसके बचे खुचे ठिकानों से बेदखल करने में जुटे हैं. इन कोशिशों में सऊदी अरब और उसका अहम सहयोगी अमेरिका भी शामिल है.
सऊदी अरब से शीत युद्ध जीतता ईरान
ईरान और सऊदी अरब एक दूसरे को फूटी आंख नहीं देखना चाहते. दोनों के बीच शीत युद्ध छिड़ा रहता है. लेकिन फिलहाल इसमें ईरान को जीत मिलती दिख रही है. रियाद नर्वस हो रहा है.
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भीतरी माहौल
ईरान में अंदरूनी माहौल शांतिपूर्ण हैं. ईरान विरोधी डॉनल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद ईरानी राष्ट्रपति हसन रोहानी की लोकप्रियता भी अपने देश में बढ़ी है. पश्चिम के साथ परमाणु करार करने के बाद ईरान के लिए कूटनीति के दरवाजे खुल चुके हैं. यह बात सऊदी अरब को परेशान कर रही है.
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आर्थिक विकास
आर्थिक प्रतिबंधों में ढील मिलने के बाद से ईरान की अर्थव्यवस्था लगातार बेहतर हो रही है. आईएमएफ के मुताबिक ईरान की जीडीपी 23.3 अरब डॉलर से बढ़कर 426.7 अरब डॉलर की हो चुकी है. चीन के भारी निवेश के बाद अब रूस भी ईरान से 30 अरब डॉलर का समझौता करने जा रहा है.
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यूरोप का साथ
ईरान की कूटनीति अब यूरोप में भी असर कर रही है. ट्रंप ईरान के साथ परमाणु करार को रद्द करने की बात कह चुके हैं लेकिन यूरोप अब भी करार का समर्थन कर रहा है. अमेरिका के कड़े रुख के चलते रूस और चीन ने ईरान को खासी तवज्जो दे रहे हैं.
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तुर्की के साथ गठजोड़
कुर्द लोग, तुर्की और ईरान के साझा दुश्मन है. इराक और सीरिया से कुर्द गुटों को खड़ेदने के लिए दोनों देश हाथ मिला रहे हैं. सऊदी अरब और कतर के मतभेदों का फायदा भी ईरान को मिल रहा है. ईरान और तुर्की, कतर को मदद का भरोसा दे रहे हैं.
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इराक भी पाले में
कभी इराक और ईरान एक दूसरे को बिल्कुल नापसंद करते थे. लेकिन आज हालात बदल चुके हैं. इराकी कुर्दों ने देश के उत्तरी इलाके में आजादी की घोषणा कर दी है. कुर्दों को रोकने के लिए इराक पूरी तरह तेहरान पर निर्भर नजर आता है. ईरान के शिया उग्रवादी कुर्दों के खिलाफ इराकी फौज की मदद कर रहे हैं. अमेरिका ने इराक से उग्रवादियों को खदेड़ने को कहा, बगदाद ने इस मांग को ठुकरा दिया.
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हिज्बुल्लाह कनेक्शन
लेबनान में भी तेहरान का प्रभाव बढ़ा है. बेरुत की मौजूदा सत्ता उग्रवादी संगठन हिज्बुल्लाह के सामने कमजोर है. हिज्बुल्लाह को ईरान संरक्षण देता है.
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यमन में सऊदी अरब पर शिकंजा
हूसी उग्रवादी यमन में सरकार के विरुद्ध लड़ रहे हैं. हूसी समुदाय को ईरान का समर्थन है, वहीं सरकार को सऊदी अरब का. तमाम कोशिशों के बावजूद सऊदी अरब का सैन्य अभियान शिया हूसी उग्रवादियों पर काबू नहीं कर पाया है. आम लोगों पर हमले की घटनाओं के चलते उल्टा सऊदी अरब के सैन्य अभियान की बीच बीच में निंदा होती रहती है.
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असद की सत्ता
रूसी और ईरानी सेना के सहारे सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद मजबूत होते जा रहे हैं. इस्लामिक स्टेट के पैर उड़खते जा रहे है. जिन जिन इलाकों से आईएस भाग रहा है, वहां असद की सेना पैर जमा रही है. अब तो यूरोप भी मान रहा है कि सीरिया का गृह युद्ध असद की सत्ता को खत्म नहीं कर सकता.
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सऊदी प्रिंस का असर
सऊदी अरब के नए क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान अपने देश के भीतर ही राजनीतिक उथल पुथल मचा रहे हैं. वे कई वरिष्ठ मंत्रियों और अधिकारियों पर मुकदमे दर्ज करवा चुके हैं. विश्लेषक कह रहे हैं कि सऊदी अरब के राजा विरोधियों को किनारे लगा रहे हैं. इस भीतरी द्वंद्व का फायदा भी तेहरान को मिलेगा.
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नये गठबंधन में ज्यादातर सुन्नी इस्लामिक देश या फिर सुन्नी शासन वाले देश ही शामिल हैं. इसका मतलब है कि इसमें न तो सऊदी अरब का कड़ा प्रतिद्वंद्वी ईरान शामिल है और न ही सीरिया और इराक, जिनके नेताओं से ईरान से करीबी संबंध हैं. सऊदी अरब और ईरान के संबंधों में बरसों से कड़वाहट रही है लेकिन हाल में सीरिया और यमन के संकटों के अलावा लेबनान के सियासी घटनाक्रम ने इसे और बढ़ा दिया है. सऊदी अरब ईरान पर मध्य पूर्व में हथियारबंद गुटों का समर्थन करने का आरोप लगाता है जिसमें लेबनान के शिया गुट हिज्बुल्लाह का नाम भी आता है.
सऊदी अरब निभा रहा है घिनौनी भूमिका: वागेनक्नेष्ट
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इस गठबंधन में मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, युगांडा, सोमालिया, मॉरिटानिया, लेबनान, लीबिया, यमन और तुर्की जैसे देश शामिल हैं. पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख राहील शरीफ को इस गठबंधन का कमांडर इन चीफ बनाया गया है. उन्होंने कहा कि यह गठबंधन किसी धर्म या देश के खिलाफ नहीं है. उनके मुताबिक गठबंधन का मकसद सदस्य देशों के बीच संसाधनों और सूचनाओं के तालमेल से आतंकवाद से लड़ना है.
आधिकारिक तौर पर कतर इस गठबंधन में शामिल है, लेकिन सऊदी अरब समेत कई खाड़ी देशों ने उसका बहिष्कार कर रखा है, इसलिए कतर का कोई अधिकारी रियाद की बैठक में मौजूद नहीं था.
एके/एनआर (एएफपी)
इसलिए ईरान की सऊदी अरब से नहीं पटती
मध्य पूर्व के दो ताकतवर देशों सऊदी अरब और ईरान के बीच हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहता है. दोनों धर्म से लेकर तेल और इलाके में दबदबा कायम करने तक, हर बात पर झगड़ते हैं.
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शिया-सुन्नी टकराव
दोनों ही देश खुद को इस्लाम की दो अलग अलग शाखों का संरक्षक मानते हैं. सऊदी अरब जहां एक सुन्नी देश है, वहीं ईरान शिया देश. इसीलिए ये दोनों दुनिया भर में शिया और सुन्नियों के बीच होने वाले विवादों की धुरी माने जाते हैं.
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तेल के दाम
1973 में अरब-इस्राएल युद्ध के दौरान तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक ने तेल के दाम बहुत बढ़ा दिये थे. अरब तेल उत्पादक देशों ने इस्राएल समर्थक समझे जाने वाले देशों पर रोक लगा दी, जिनमें अमेरिका भी शामिल था.
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तनाव बढ़ा
ईरान चाहता था कि तेल के दाम और बढ़ाये जाएं ताकि उसके यहां महत्वाकांक्षी औद्योगिक विकास परियोजनाओं के लिए धन मिल सके. लेकिन सऊदी अरब नहीं चाहता था कि तेल के दामों में बेतहाशा वृद्धि हो. इसके पीछे उसका मकसद अपने सहयोगी देश अमेरिका को बचाना था.
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क्रांति का निर्यात
ईरान में 1979 में हुई इस्लामी क्रांति के दौरान पश्चिम समर्थक शाह को सत्ता से बेदखल किया गया और देश में इस्लामी गणतंत्र की स्थापना हुई. इसके बाद क्षेत्र के सुन्नी देशों ने ईरान पर आरोप लगाया कि वह उनके यहां क्रांति को "भेजने" की कोशिश कर रहा है.
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इराक-ईरान युद्ध
सितंबर 1980 में इराक ने ईरान पर हमला कर दिया और यह युद्ध आठ साल तक चला. सऊदी अरब ने वित्तीय रूप से इराकी सरकार की मदद की और अन्य सुन्नी देशों को भी ऐसा ही करने के लिए प्रोत्साहित किया. इससे ईरान और सऊदी अरब की कड़वाहट और बढ़ी.
तस्वीर: AP
हज में टकराव
सऊदी सुरक्षा बलों ने 1987 में मक्का में ईरानी श्रद्धालुओं के अनाधिकृतक अमेरिका विरोधी प्रदर्शनों के खिलाफ कार्रवाई की. इस दौरान 400 लोग मारे गये हैं. इससे गुस्साए ईरानियों ने तेहरान में सऊदी दूतावास में लूटपाट की.
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हज का सियासी इस्तेमाल
अप्रैल 1988 में सऊदी अरब ने ईरान से अपने राजनयिक रिश्ते तोड़ लिये. 1991 तक ईरान से कोई श्रद्धालु हज यात्रा पर नहीं गया. ईरान अकसर सऊदी अरब पर हज यात्रा को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लगाता रहा है.
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बेहतर हुए संबंध
ईरान में मई 1997 के राष्ट्रपति चुनावों में सुधारवादी मोहम्मद खतामी की जीत के बाद दोनों देशों के रिश्तों में सुधार देखने को मिला. मई 1999 में राष्ट्रपति ईरानी राष्ट्रपति ने सऊदी अरब का ऐतिहासिक दौरा किया था.
तस्वीर: Isna
इराक की जंग
2003 में इराक पर अमेरिकी हमले ने सऊदी-ईरान तनाव को और बढ़ दिया. अमेरिकी हमले के चलते इराक में बाथ पार्टी का शासन खत्म हुआ और बहुसंख्यक शिया समुदाय को सत्ता में आने का मौका मिला. इससे इराक पर ईरान का प्रभाव बढ़ने लगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/dpaweb
अरब स्प्रिंग
2011 में जब अरब दुनिया में बदलाव की लहर चली तो सऊदी अरब ने पड़ोसी बहरीन में अपने सैनिक भेजे. वहां सुन्नी शासक के खिलाफ बहुसंख्यक शिया लोग बड़े पैमाने पर सड़कों पर उतरे. सऊदी अरब ने ईरान पर बहरीन में गड़बड़ी फैलाने का आरोप लगाया.
तस्वीर: AFP/Getty Images/M. Al Shaikh
सीरिया संकट
ईरान-सऊदी अरब के झगड़े में 2012 के सीरिया संकट ने भी आग में घी का काम किया. सीरिया की जंग में जहां ईरान सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद का साथ दे रहा है, वहीं उनके खिलाफ लड़ रहे विद्रोहियों को सऊदी अरब और उसके सहयोगी अमेरिका का समर्थन मिला.
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यमन का मोर्चा
यमन संकट में भी सऊदी अरब और ईरान एक दूसरे के सामने आ खड़े हुए. मार्च 2015 में सऊदी अरब ने सुन्नी अरब देशों का एक गठबंधन बनाया, जिसने यमनी राष्ट्रपति अब्द रब्बू मंसूर हादी के समर्थन में यमन में हस्तक्षेप किया. वहीं ईरान हूती बागियों के साथ खड़ा दिखा.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Huwais
हज में भगदड़
सितंबर 2015 में हज यात्रा के दौरान भगदड़ हुई जिसमें 2,300 विदेशी श्रद्धालु मारे गये. मरने वालों में ज्यादातर ईरानी लोग शामिल थे. इसके बाद ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातोल्लाह खमेनेई ने कहा कि सऊदी शाही परिवार इस्लाम के सबसे पवित्र स्थलों की व्यवस्था संभालने लायक नहीं है.
तस्वीर: Getty Images/AFP
फिर टूटे रिश्ते
जनवरी 2016 में सऊदी अरब में एक प्रमुख शिया मौलवी निम्र अल निम्र को मौत की सजा दी गयी. उन पर सरकार विरोधी प्रदर्शन भड़काने के आरोप लगे. ईरान ने इस पर गहरी नाराजगी जतायी. ईरान में सऊदी राजनयिक मिशन पर हमले किये गये और सऊदी अरब ने ईरान से अपने राजनयिक रिश्ते तोड़ लिये.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/V. Salemi
हिज्बोल्लाह एंगल
मार्च 2016 में लेबनान के शिया मिलिशिया गुट और ईरान के सहयोगी हिज्बोल्लाह को अरब देशों ने आतंकवादी करार दिया. इससे पहले हिज्बोल्लाह के प्रमुख ने सऊदी अरब पर शिया और सुन्नियों के बीच "नफरत भड़काने" का आरोप लगाया था.
तस्वीर: AP
लेबनान पर 'पकड़'
नवंबर 2017 में लेबनान के प्रधानमंत्री साद हरीरी ने इस्तीफा दे दिया और कहा कि ईरान हिज्बोल्लाह के जरिए लेबनान पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है. पद छोड़ने के बाद हरीरी ने सऊदी अरब जाकर शाह सलमान से मुलाकात की.
तस्वीर: picture-alliance/AA/Bandar Algaloud
कतर संकट
इससे पहले जून 2017 में सऊदी अरब और उसके कई सहयोगी देशों ने कतर के साथ अपने रिश्ते तोड़ लिये. उन्होंने कतर पर ईरान से नजदीकी संबंध कायम करने और चरमपंथियों का समर्थन करने का आरोप लगाया.
तस्वीर: Getty Images for ANOC/M. Runnacles
ट्रंप के साथ सऊदी अरब
अक्टूबर 2017 में सऊदी अरब ने कहा कि वह ईरान के मुद्दे पर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की मजबूत रणनीति का समर्थन करता है. ट्रंप ने 2015 में ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर हुए समझौते को मंजूर करने से इनकार कर दिया.