कई हफ्तों से सऊदी महिलाएं ट्वीट कर मांग कर रही हैं कि उन्हें पुरूषों की सरपरस्ती से मुक्त किया जाए. सऊदी अरब में शुरू हुई नई बहस.
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कई हफ्तों से सऊदी महिलाएं ट्वीट कर मांग कर रही हैं कि उन्हें पुरूषों की सरपरस्ती से मुक्त किया जाए. सऊदी अरब में शुरू हुई नई बहस.
सऊदी अरब में महिलाओं को कानूनी तौर पर दबाए जाने की निंदा करने वाली एक रिपोर्ट के बाद ट्विटर पर एक नई बहस शुरू हो हो गई है. कई हफ्तों से सऊदी महिलाएं ट्वीट कर मांग कर रही हैं कि उन्हें पुरूषों की सरपरस्ती से मुक्त किया जाए. सऊदी समाज में किसी भी महिला की जीवन शैली से जुड़े सभी फैसले लेने का अधिकार कानूनी तौर पर उसके निकटतम पुरूष सरपरस्त को होता है. ये व्यक्ति महिला का पिता, पति और कभी-कभी तो बेटा भी हो सकता है. महिला का सारा जीवन इसी तरह की सरपरस्ती में बीतता है.
सऊदी महिलाएं, ब्लॉगर और कार्यकर्ता इस पुरूष सरपरस्ती को खत्म करने के लिए #TogetherToEndMaleGuardianship और #StopEnslavingSaudiWomen जैसे हैशटैग के साथ ट्विटर पर मुहिम चला रही हैं और समाज में सुधार की मांग कर रही है. ट्विटर पर महिलाएं बता रही हैं कि इस सरपरस्ती के चलते उनका जीवन किस तरह प्रभावित हो रहा है. पढ़ने और काम करने से रोके जाने से लेकर मर्दों जैसी आजादी न मिलने के खिलाफ वो अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं.
सऊदी अरब में महिलाएं क्या क्या नहीं कर सकतीं
इन हकों के लिए अब भी तरस रही हैं सऊदी महिलाएं
सऊदी अरब में लंबी जद्दोजहद के बाद महिलाओं को ड्राइविंग का अधिकार तो मिल गया है. लेकिन कई बुनियादी हकों के लिए वे अब भी जूझ रही हैं.
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पुरुषों के बगैर नहीं
सऊदी अरब में औरतें किसी मर्द के बगैर घर में भी नहीं रह सकती हैं. अगर घर के मर्द नहीं हैं तो गार्ड का होना जरूरी है. बाहर जाने के लिए घर के किसी मर्द का साथ होना जरूरी है, फिर चाहे डॉक्टर के यहां जाना हो या खरीदारी करने.
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फैशन और मेकअप
देश भर में महिलाओं को घर से बाहर निकलने के लिए कपड़ों के तौर तरीकों के कुछ खास नियमों का पालन करना होता है. बाहर निकलने वाले कपड़े तंग नहीं होने चाहिए. पूरा शरीर सिर से पांव तक ढका होना चाहिए, जिसके लिए बुर्के को उपयुक्त माना जाता है. हालांकि चेहरे को ढकने के नियम नहीं हैं लेकिन इसकी मांग उठती रहती है. महिलाओं को बहुत ज्यादा मेकअप होने पर भी टोका जाता है.
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मर्दों से संपर्क
ऐसी महिला और पुरुष का साथ होना जिनके बीच खून का संबंध नहीं है, अच्छा नहीं माना जाता. डेली टेलीग्राफ के मुताबिक सामाजिक स्थलों पर महिलाओं और पुरुषों के लिए प्रवेश द्वार भी अलग अलग होते हैं. सामाजिक स्थलों जैसे पार्कों, समुद्र किनारे और यातायात के दौरान भी महिलाओं और पुरुषों की अलग अलग व्यवस्था होती है. अगर उन्हें अनुमति के बगैर साथ पाया गया तो भारी हर्जाना देना पड़ सकता है.
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रोजगार
सऊदी सरकार चाहती है कि महिलाएं कामकाजी बनें. कई सऊदी महिलाएं रिटेल सेक्टर के अलावा ट्रैफिक कंट्रोल और इमरजेंसी कॉल सेंटर में नौकरी कर रही हैं. लेकिन उच्च पदों पर महिलाएं ना के बराबर हैं और दफ्तर में उनके लिए खास सुविधाएं भी नहीं है.
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आधी गवाही
सऊदी अरब में महिलाएं अदालत में जाकर गवाही दे सकती हैं, लेकिन कुछ मामलों में उनकी गवाही को पुरुषों के मुकाबले आधा ही माना जाता है. सऊदी अरब में पहली बार 2013 में एक महिला वकील को प्रैक्टिस करने का लाइसेंस मिला था.
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खेलकूद में
सऊदी अरब में लोगों के लिए यह स्वीकारना मुश्किल है कि महिलाएं भी खेलकूद में हिस्सा ले सकती हैं. जब सऊदी अरब ने 2012 में पहली बार महिला एथलीट्स को लंदन भेजा तो कट्टरपंथी नेताओं ने उन्हें "यौनकर्मी" कह कर पुकारा. महिलाओं के कसरत करने को भी कई लोग अच्छा नहीं मानते हैं. रियो ओलंपिक में सऊदी अरब ने चार महिला खिलाड़ियों को भेजा था.
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संपत्ति खरीदने का हक
ऐसी औपचारिक बंदिश तो नहीं है जो सऊदी अरब में महिलाओं को संपत्ति खरीदने या किराये पर लेने से रोकती हो, लेकिन मानवाधिकार समूहों का कहना है कि किसी पुरुष रिश्तेदार के बिना महिलाओं के लिए ऐसा करना खासा मुश्किल काम है.
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आला लिखती हैं, “क्या बकवास है किसी पुरूष के दस्तखत के बिना विदेश में नहीं पढ़ सकती हूं. मेरे सपने और भविष्य को कुचले जाने को कैसे स्वीकार कर लूं?”
वहीं जे नाम की एक यूजर ने लिखा, “ये बहुत ही आसान हैं, हम चाहते हैं कि हमें वयस्क माना जाए, बच्चे नहीं. सनकी या विकलांग नहीं.”
अस्माहान ने ट्वीट किया, “मैं ऐसे देश में रहती हूं कि जब तक मेरा पति इजाजत न दे मैं कहीं नहीं जा सकती हूं. मैं तो मर रही हूं. बस खा रही हूं सो रही हूं.”
अमेरिकी गैर सरकारी संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच इस मुहिम का समर्थन कर रहा है जिसने हाल में पुरूष सरपरस्ती की निंदा करने वाली अपनी एक रिपोर्ट को #TogetherToEndMaleGuardianship के साथ प्रकाशित किया है.
ह्यूमन राइट्स वॉच ने ट्वीट किया, “क्या इस बात की कोई तुक बनती है कि महिलाओं को यात्रा करने के लिए पुरूष सरपरस्तों से अनुमति लेनी पड़े?”
ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट में कई एनिमेशन वीडियो है जिनमें ऐसी महिलाओं की कहानियां बताई गई है जिनके सरपरस्त अपने अधिकारों का गलत फायदा उठाते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, “यह चलन सऊदी अरब में महिलाओं की आजादी की राह में सबसे बड़ी बाधा है जो वयस्क महिला को एक बच्चे में तब्दील कर देता है जो अपनी मर्जी कोई फैसला नहीं ले सकती है.”
हालांकि इस मुहिम के जबाव में कई लोगों ने पुरूष सरपस्ती के समर्थन की भी मुहिम शुरू कर दी है. ट्विटर पर कुछ लोग एक अरब हैशटेग चला रहे हैं जिसका मतलब है, “सऊदी महिलाओं को पुरूष सरपरस्ती पर गर्व है.” उनका कहना है कि ये चलन धार्मिक परंपरा का हिस्सा है.
खुद को यूनिवर्सिटी प्रोफेसर बताने वाले अमेराह साएदी मानते हैं कि कुछ पुरूष खुद को मिलने वाले अधिकारों का गलत फायदा उठाते हैं, लेकिन फिर भी वो इस बारे में किसी बदलाव के हक में नहीं हैं. उन्होंने ट्वीट किया, “कुछ सरपरस्तों द्वारा शोषण और अन्याय की समस्या को इस कानून को हटाकर हल नहीं किया जा सकता है, बल्कि शरिया कानून से हल किया जा सकता है.”
सोशल मीडिया से परे महिलाओं की इस मुहिम ने कई धार्मिक नेताओं को भी नाराज किया है. सऊदी अखबार 'ओकाज' ने देश के सबसे बड़े धार्मिक नेता ग्रैंड मुफ्ती शेख अब्दुलअजीज अल-शेख के हवाले से लिखा है कि पुरूष सरपरस्ती को हटाने की कोई भी बात सुन्नी इस्लाम के खिलाफ ‘अपराध' के बराबर होगी. वहीं मानवाधिकार कार्यकर्ता और संगठन अकसर सऊदी अरब पर महिलाओं के अधिकारों को दबाने का आरोप लगाते हैं.
जानिए, हज में क्या क्या करते हैं लोग
हज में क्या करते हैं लोग
दुनिया भर से लाखों मुसलमान हर साल हज के लिए सऊदी अरब जाते हैं. लेकिन वहां जाकर वे करते क्या हैं? जानिए...
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Al-Shaikh
इहराम
श्रद्धालुओं को खास तरह के कपड़े पहनने होते हैं. पुरुष दो टुकड़ों वाला एक बिना सिलाई का सफेद चोगा पहनते हैं. महिलाएं भी सेफद रंग के खुले कपड़े पहनती हैं जिनमें बस उनके हाथ और चेहरा बिना ढका रहता है. इस दौरान श्रद्धालुओं को सेक्स, लड़ाई-झगड़े, खुशबू और बाल व नाखून काटने से परहेज करना होता है.
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तवाफ
मक्का में पहुंचकर श्रद्धालु तवाफ करते हैं. यानी काबा का सात बार घड़ी की विपरीत दिशा में चक्कर लगाते हैं.
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सई
हाजी मस्जिद के दो पत्थरों के बीच सात बार चक्कर लगाते हैं. इसे सई कहते हैं. यह इब्राहिम की बीवी हाजरा की पानी की तलाश की प्रतिमूर्ति होता है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
अब तक उमरा
अब तक जो हुआ वह हज नहीं है. इसे उमरा कहते हैं. हज की मुख्य रस्में इसके बाद शुरू होती हैं. इसकी शुरुआत शनिवार से होती है जब हाजी मुख्य मस्जिद से पांच किलोमीटर दूर मीना पहुंचते हैं.
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जबल उर रहमा
अगले दिन लोग जबल उर रहमा नामक पहाड़ी के पास जमा होते हैं. मीना से 10 किलोमीटर दूर अराफात पहाड़ी के इर्द गिर्द जमा ये लोग नमाज अता करते हैं.
तस्वीर: AFP/Getty Images/M. Al-Shaikh
मुजदलफा
सूरज छिपने के बाद हाजी अराफात और मीना के बीच स्थित मुजदलफा जाते हैं. वहां वे आधी रात तक रहते हैं. वहीं वे शैतान को मारने के लिए पत्थर जमा करते हैं.
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फिर ईद
अगला दिन ईद के जश्न का होता है जब हाजी मीना लौटते हैं. वहां वे रोजाना के तीन बार के पत्थर मारने की रस्म निभाते हैं. आमतौर पर सात पत्थर मारने होते हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Jadallah
पहली बार के बाद
पहली बार पत्थर मारने के बाद बकरे हलाल किये जाते हैं और जरूरतमंद लोगों के बीच मांस बांटा जाता है. बकरे की हलाली को अब्राहम के अल्लाह की खातिर अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी का प्रतीक माना जाता है.
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सफाई
अब हाजी अपने बाल कटाते हैं. पुरुष पूरी तरह गंजे हो जाते हैं जबकि महिलाएं एक उंगल बाल कटवाती हैं. यहां से वे अपने सामान्य कपड़े पहन सकते हैं.
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फिर से तवाफ
हाजी दोबारा मक्का की मुख्य मस्जिद में लौटते हैं और काबा के सात चक्कर लगाते हैं.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/N. El-Mofty
पत्थर
हाजी दोबारा मीना जाते हैं और अगले दो-तीन दिन तक पत्थर मारने की रस्म अदायगी होती है.
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और फिर काबा
एक बार फिर लोग काबा जाते हैं और उसके सात चक्कर लगाते हैं. इसके साथ ही हज पूरा हो जाता है.
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सऊदी अरब में 2015 के आखिर में महिलाओं को स्थानीय चुनावों में मतदान का अधिकार दिया गया, लेकिन बहुत सी महिलाओं को मतदान केंद्रों पर पहुंचने के लिए पुरूष सरपरस्तों की जरूरत पड़ी. सऊदी अरब दुनिया का इकलौता ऐसा देश हैं जहां महिलाओं का ड्राइविंग की इजाजत नहीं है.