सऊदी अरब ने हाल के महीनों में महिलाओं के प्रति उदारवादी कदम उठाए हैं. जिसमें ड्राइविंग और शॉपिंग को लेकर नियमों में ढील दिए गए हैं. महिलाएं नए अधिकारों का जम कर इस्तेमाल भी कर रही हैं.
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सऊदी अरब में खुलेआम सिगरेट पीती महिलाएं. शायद ही ऐसी कल्पना कभी किसी ने की होगी. हालांकि अब यह सच होता दिख रहा है. रियाद के कैफे में रीमा ई सिगरेट का लंबा कश लेती हैं और बहुत सारा धुआं बाहर फेंकती हैं. इस दौरान उनके लिए आजादी के मायने ही बदल गए. रीमा को इस कैफे में पहचानने वाला कोई नहीं है. रियाद में निजी कंपनी के लिए काम करने वाली 27 साल की रीमा कहती हैं, "सार्वजनिक रूप से धूम्रपान मेरी नई आजादी की जीत का हिस्सा है. मुझे खुशी है मैं इसको चुन सकती हूं." अगले कुछ महीनों में सार्वजनिक रूप से महिलाओं का धूम्रपान आम बात होगी.
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रुढ़िवादी देश में इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. हाल के सालों में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने बदलावों की मुहिम शुरू की है. प्रिंस सलमान ने देश की छवि को उदारवादी बनाने के लिए आर्थिक और सामाजिक स्तरों पर नयापन लाने की कोशिश की है. सऊदी अरब में महिलाएं अब कार चला सकती हैं, खेल प्रतियोगिताएं और कंसर्ट में जा सकती हैं. साथ ही महिलाओं को पासपोर्ट हासिल करने के लिए पुरुष अभिभावक से अनुमति की आवश्यकता नहीं लेनी होती है.
रीमा पिछले दो साल से सिगरेट पी रही हैं. सिगरेट के नुकसान से परिचित होने के बावजूद उन्होंने यह कदम उठाया है. हालांकि वह चिंतित है कि परिवार को इसके बारे में पता चल जाएगा. रीमा कहती हैं, "मैं उन्हें अपनी निजी स्वतंत्रता के बारे में नहीं बताऊंगी क्योंकि वे नहीं समझेंगे कि महिलाएं भी पुरुषों की तरह धूम्रपान करने के लिए स्वतंत्र हैं."
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रीमा की ही तरह 26 साल की नजला (बदला हुआ नाम) ने कहा कि तेजी से सामाजिक बदलावों के बावजूद दोहरे मापदंड अभी भी मौजूद हैं. वह कहती हैं कि अगर महिलाएं धूम्रपान करती हैं तो उसे "कलंक और बदनामी" के रूप में देखा जाता है. पुरुषों के बीच नजला अकेली महिला है जो सिगरेट पी रही हैं और वह कहती हैं इससे वह "समाज को चुनौती" देना चाहती हैं. वह कहती हैं, "मेरे अधिकारों का तभी सम्मान होगा जब मेरा परिवार मुझे एक स्मोकर की तरह अपनाएगा." नजला बताती हैं कि जब उनकी एक दोस्त के परिवार को पता चला कि वह सिगरेट पीती है तो उसके परिवार ने उसे नशामुक्ति क्लिनिक में भर्ती करा दिया. नजला जब हाई स्कूल में थी तब उन्होंने धूम्रपान शुरू किया था. 2015 के एक शोध के मुताबिक हाई स्कूल की 65 फीसदी छात्राएं चोरी छिपे सिगरेट का सेवन करती हैं.
सरकार विरोधी प्रदर्शनों की लहर भारत समेत ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में चली हुई है. इनमें से कइयों का मोर्चा देश की महिलाओं ने संभाला है, जो बड़े जोखिम उठा कर व्यवस्था को चुनौती दे रही हैं.
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भेदभावपूर्ण कानून के खिलाफ
भारत के आम नागरिकों के समूहों ने देश में लागू हुए नए नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ कई हफ्तों से प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारी सत्ताधारी बीजेपी पर मुसलमानों के प्रति इस तथाकथित भेदभावपूर्ण कानून को वापस लेने का दबाव बना रहे थे.
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फासीवाद के खिलाफ संघर्ष
भारत के कई विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाली छात्राओं ने देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को ठेस पहुंचाने की कोशिशों का विरोध किया. विवादास्पद कानून के अलावा युवा स्टूडेंट ने फासीवादी सोच, स्त्री जाति से द्वेष, धार्मिक कट्टरवाद और पुलिस की बर्बरता के खिलाफ भी आवाज उठाई.
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जब निकाल फेंका हिजाब
ईरान में महिला आंदोलनकारियों ने देश की ताकतवर शिया सत्ता को चुनौती देते हुए अपना हिजाब निकाल फेंका था. पिछले कुछ सालों से ईरानी महिलाएं तमाम अहम मुद्दों को लेकर पितृसत्तात्मक रवैये और महिलाओं की आजादी पर पाबंदी लगाने वाली चीजों का विरोध करती आई हैं.
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दमनकारी सत्ता के खिलाफ
ईरानी महिलाओं ने 1979 की इस्लामी क्रांति के समय से ही सख्त पितृसत्तावादी दबाव झेले हैं. बराबरी के अधिकारों और बोलने की आजादी जैसी मांगों पर सत्ताधारियों ने हमेशा ही महिलाओं को डरा धमका कर पीछे रखा है.फिर भी महिलाएं हिम्मत के साथ तमाम राजनैतिक एवं नागरिक प्रदर्शनों में हिस्सा ले रही हैं.
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पाकिस्तानी महिलाएं बोल उठीं बस बहुत हुआ
भारत के पड़ोसी पाकिस्तान में भी बराबर का हक मांगने वाली महिलाओं के प्रति बुरा रवैया रहता है. इन्हें कभी "पश्चिम की एजेंट" तो कभी "एनजीओ माफिया" जैसे विशेषणों के साथ जोड़ा जाता है. महिला अधिकारों की बात करने वाली फेमिनिस्ट महिलाओं को अकसर समाज से अवहेलना झेलनी पड़ती है. फिर भी रैली, प्रदर्शन कर समाज में बदलाव लाने की महिलाओं की कोशिशें जारी हैं.
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लोकतंत्र को लेकर बड़े सामाजिक आंदोलन
पाकिस्तान में हुए अब तक के ज्यादातर महिला अधिकार आंदोलन कुछ ही मुद्दों पर केंद्रित रहे हैं, जैसे लैंगिक हिंसा, बाल विवाह और इज्जत के नाम पर हत्या. लेकिन अब महिलाएं लोकतंत्र-समर्थक प्रदर्शनों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने लगी हैं. पिछले साल पाकिस्तान की यूनिवर्सिटी छात्राओं ने राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन का नेतृत्व किया जिसकी मांग छात्र संघों की बहाली थी. दबाव का असर दिखा और संसद में इस पर बहस कराई गई.
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इंसाफ के लिए लड़तीं अफगानी महिलाएं
अमेरिका और तालिबान का समझौता हो गया तो अफगानिस्तान में एक ओर युद्धकाल का औपचारिक रूप से खात्मा हो जाएगा. लेकिन साथ ही बीते 20 सालों में अफगानी महिलाओं को जो कुछ भी अधिकार और आजादी हासिल हुई है वो खतरे में पड़ सकती है. 2015 में कुरान की प्रति जलाने के आरोप में भीड़ द्वारा पीट पीट कर मार डाली गई फरखुंदा मलिकजादा के लिए इंसाफ की मांग लेकर भी महिला अधिकार कार्यकर्ता सड़क पर उतरीं. (शामिल शम्स/आरपी)