एसबीआई की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में हाल के सालों में आर्थिक असमानता घटी है. असमानता के अनुमान को मापने के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आयकर डाटा का इस्तेमाल किया गया है.
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स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) के इकोनॉमिक्स डिपार्टमेंट की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में आय असमानता पिछले एक दशक में घटी है. एसबीआई के रिसर्च विभाग ने इस अध्ययन के लिए इनकम टैक्स के डाटा का विश्लेषण किया है.
रिपोर्ट कहती है कि वित्त वर्ष 2014-21 के दौरान देश में व्यक्तिगत आय असमानता में काफी गिरावट आई है, जिसमें 36.3 प्रतिशत करदाता कम आय से उच्च आयकर श्रेणी की ओर बढ़ रहे हैं, इसके नतीजतन वित्त वर्ष 2014 से वित्त वर्ष 21 तक 21.3 फीसदी अतिरिक्त आय हुई है.
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टैक्स देने वाले बढ़े
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इसी अवधि के दौरान 3.5 लाख रुपये से कम आय वालों के बीच आय असमानता 31.8 फीसदी से घटकर 15.8 फीसदी हो गई है, जिससे पता चलता है कि कुल आय में इस समूह की हिस्सेदारी उनकी आबादी की तुलना में 16 प्रतिशत बढ़ गई है.
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) फाइल करने वालों के आंकड़े पर गौर करें तो 5 लाख रुपये से 10 लाख रुपये के बीच सालाना आमदनी वाले लोगों की संख्या 295 फीसदी बढ़ी है. ये बढ़ोतरी असेसमेंट ईयर (एआई) 2013-14 से लेकर 2021-22 के बीच के हैं. जो इस बात का सबूत है कि कुल आमदनी वालों की संख्या बढ़ी है.
दूसरी ओर 10 लाख रुपये से 25 लाख रुपये तक की आय वाले लोगों द्वारा दाखिल आईटीआर की संख्या में 291 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. आयकर दाखिल करने वाले व्यक्तियों की कुल संख्या असेसमेंट ईयर 22 में सात करोड़ से बढ़कर असेसमेंट ईयर 23 में 7.4 करोड़ हो गई है. वहीं असेसमेंट ईयर 2023-24 में 8.2 करोड़ आईटीआर दाखिल किए जा चुके हैं.
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रिपोर्ट: खरीदने की क्षमता बढ़ी
रिपोर्ट के मुताबिक 19.5 फीसदी छोटी कंपनियां एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) ब्रांड चेन के माध्यम से बड़ी कंपनियां में बदल गईं हैं. साथ ही में इसमें यह भी दावा किया गया है कि महामारी के बाद निचली 90 प्रतिशत आबादी की खपत में 8.2 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है. रिपोर्ट में यह भी कहा है कि ऑनलाइन फूड ऑर्डर का ट्रेंड बढ़ा रहा है, और दावा किया गया कि उपभोग के रुझान जैसे कि जोमैटो जैसे फूड ऑर्डरिंग प्लेटफॉर्म से ऑर्डर करने की बढ़ती प्रवृत्ति "लुप्त हो रही असमानता" का संकेत है.
रिपोर्ट यह भी दावा करती है कि लोग ग्रामीण इलाकों में दोपहिया वाहनों को छोड़कर कार खरीद रहे हैं. ग्रामीण इलाकों में दोपहिया वाहनों की बिक्री में आई गिरावट को जानकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दबाव से जोड़ कर देख रहे थे.
लेकिन आर्थिक मामलों के जानकार एसबीआई की इस रिपोर्ट पर सवाल उठा रहे हैं. जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर अरुण कुमार कहते हैं कि असमानता को तीन तरह से मापा जाता है, पहला-उपभोग में असमानता, दूसरा-आय में असमानता और तीसरा-संपत्ति में असमानता. उनके मुताबिक संपत्ति में असमानता सबसे ज्यादा होती है उसके बाद आय में असमानता होती है और फिर उपभोग में असमानता होती है.
ये हैं सबसे अमीर भारतीय
360 वन वेल्थ हुरुन इंडिया की भारतीय अमीरों की 2023 की सूची जारी हो गई है. इस सूची में रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने गौतम अडाणी को पीछे छोड़ दिया है.
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सबसे अमीर भारतीय
रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी भारत के सबसे अमीर व्यक्ति बन गए हैं. मुकेश अंबानी गौतम अडाणी को पीछे छोड़ते हुए इस सूची में पहले नंबर पर आ गए हैं. अंबानी की नेटवर्थ 8.08 लाख करोड़ हो गई है.
तस्वीर: picture-alliance/abaca/I. Khan
गौतम अडाणी दूसरे नंबर पर
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद गौतम अडाणी को पिछले साल बड़ा झटका लगा था और इस बार हुरुन इंडिया रिच लिस्ट में वे दूसरे नंबर पर हैं. अडानी की नेटवर्थ 57 फीसदी तक कम हो कर 4.74 लाख करोड़ हो गई है.
अमीर भारतीयों की सूची में 2.78 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति के साथ साइरस पूनावाला तीसरे स्थान पर हैं. साइरस पूनावाला और परिवार की संपत्ति बढ़कर तीन गुना हो गई है.
तस्वीर: imago/Hindustan Times
शिव नादर चौथे पायदान पर
आइटी कंपनी एचसीएल के संस्थापक 78 वर्षीय शिव नादर ने सूची में चौथा स्थान बरकरार रखा है. उनके पास 2.28 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति है. पिछले एक साल में उनकी संपत्ति 23 फीसदी बढ़ी है.
तस्वीर: imago/Hindustan Times
गोपीचंद हिंदुजा पांचवें नंबर पर
उद्योगपति गोपीचंद हिंदुजा और उनके परिवार की नेटवर्थ 1.6 लाख करोड़ रुपये है. इस सूची में वे पांचवें स्थान पर हैं.
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स्टार्टअप के संस्थापक भी सूची में
360 वन वेल्थ हुरुन इंडिया की सूची में 84 स्टार्टअप के संस्थापकों के भी नाम हैं. स्टार्टअप जोहो की राधा वेंबू अमीर भारतीय सेल्फ मेड महिला के तौर पर सूची में शामिल हैं.
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"आय सर्वे से सही तस्वीर निकलेगी"
प्रोफेसर अरुण कुमार रिसर्च रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, "देश में केवल आठ करोड़ लोग रिटर्न फाइल कर रहे हैं. आठ करोड़ में से भी चार करोड़ शून्य रिटर्न फाइल करते हैं, बहुत कम ही लोग हैं जो वास्तव में टैक्स दे रहे हैं. सिर्फ शीर्ष के दो फीसदी लोगों के आधार पर आर्थिक असमानता के घटने की बात की जा रही है."
प्रोफेसर अरुण कुमार डीडब्ल्यू से कहते हैं कि रिपोर्ट में इनकम टैक्स का डाटा है उसके आधार पर देश की आर्थिक समानता के बारे में नहीं कहा जा सकता है. वो कहते हैं, "एक तो डाटा बहुत सीमित है. असली अमीर उसमें नहीं आ रहे हैं, जो ब्लैक इकोनॉमी वाले हैं वो लोग उसमें नहीं आ रहे हैं. इसके आधार पर हम यह कह नहीं सकते कि आर्थिक असमानता कम हुई या ज्यादा हुई."
साथ ही प्रोफेसर कुमार कहते हैं अगर आर्थिक असमानता को जानना है तो अलग से आय सर्वे कराना चाहिए. कुमार कहते हैं, "हम 140 करोड़ के डाटा में से सिर्फ आठ करोड़ डाटा का विश्लेषण कर रहे हैं. ब्लैक इनकम वाले इस डाटा में शामिल नहीं होते हैं."
सबको सबसे ज्यादा मौके देने वाली अर्थव्यवस्था कौन सी है
सिंगापुर पिछले दो साल से वैश्विक प्रतियोगितात्मकता रैंकिंग में अव्वल दर्जे पर था, लेकिन 2021 की सूची में वह नीचे खिसक गया है. जानिए कौन सा देश अब बन गया है सबको बराबर अवसर देने वाली अर्थव्यवस्था.
तस्वीर: Novartis
फिसला सिंगापुर
स्विट्जरलैंड के लॉजेन स्थित इंस्टीट्यूट फॉर मैनेजमेंट डेवलपमेंट की वैश्विक प्रतियोगितात्मकता रैंकिंग में पिछले दो सालों से चोटी पर रहा सिंगापुर अब फिसल गया है. वह अब दुनिया की सबसे प्रतिस्पर्धात्मक अर्थव्यवस्था नहीं रहा. संस्थान के मुताबिक, रोजगार कम होने, उत्पादकत में आई गिरावट और महामारी के असर की वजह से सिंगापुर अब गिर कर पांचवें पायदान पर पहुंच गया है.
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अर्थव्यवस्था में रिकॉर्ड गिरावट
पिछले साल सिंगापुर की अर्थव्यवस्था में 5.4 प्रतिशत की रिकॉर्ड गिरावट आई, हालांकि अब वहां हालात सुधर रहे हैं. सरकार ने कहा है कि पिछले छह महीनों से निर्यात लगातार बढ़ रहा है और मई में तो नौ प्रतिशत बढ़ोतरी दर्ज की गई है. इसी बदौलत रैंकिंग में चोटी के पांच देशों में सिंगापुर एशिया का एकमात्र प्रतिनिधि था.
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टॉप10 में कौन
चोटी के 10 देशों में एशिया से दो और इलाके हैं - हांग कांग और ताइवान. भारत और मलेशिया भी टॉप 10 तक में नहीं हैं. दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर महामारी का बड़ा असर पड़ा है.
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चीन का बेहतर प्रदर्शन
महामारी के दौरान भी वृद्धि दर्ज करने की वजह से चीन 20वें से 16वें स्थान पर पहुंच गया. संस्थान के मुताबिक चीन में "गरीबी का कम होना जारी रहा और बुनियादी ढांचा और शिक्षा को बढ़ावा मिलता रहा."
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अमेरिका और ब्रिटेन स्थिर
अमेरिका 10वें स्थान पर बना रहा और ब्रिटेन एक पायदान की बढ़त हासिल कर 18वें स्थान पर आ गया. संस्थान का कहना है कि दोनों देशों ने महामारी के दौरान "प्रभावशाली" आर्थिक नीतियां लागू कीं.
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यूरोप की हालत सबसे अच्छी
संस्थान का आकलन है कि कोरोना वायरस महामारी का काफी भारी असर झेलने के बावजूद यूरोप की अर्थव्यवस्थाओं ने "अधिकांश दूसरे देशों के मुकाबले संकट का बेहतर सामना किया."
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सबसे बेहतर देश
इस साल रैंकिंग में स्विट्जरलैंड ने शीर्ष स्थान पाया है. संस्थान के मुताबिक, स्विट्जरलैंड ने महामारी के दौरान "एक अनुशासित वित्तीय रणनीति अपनाई". चोटी के पांच देशों में इसके अलावा यूरोप के तीन देश और रहे - स्वीडन, डेनमार्क और नीदरलैंड. (डीपीए)