सुप्रीम कोर्ट ने 'द केरला स्टोरी' फिल्म पर पश्चिम बंगाल सरकार के लगाए बैन पर रोक लगा दी है. साथ ही अदालत ने फिल्म निर्माताओं को कहा है कि वो एक डिस्क्लेमर लगाएं कि फिल्म काल्पनिक है.
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अदालत में फिल्म को लेकर कई याचिकाएं दायर दी गई थीं. पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा लगाए गए बैन पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टि में हमारी यह राय है कि राज्य सरकार द्वारा दी गई सामग्री के आधार पर यह प्रतिबंध उचित नहीं है, इसलिए बैन करने वाले आदेश पर रोक लगाई जाती है.
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से भी कहा कि वो हर सिनेमा हॉल को सुरक्षा उपलब्ध करवाए और फिल्म देखने जाने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करे. तमिलनाडु सरकार ने अदालत को बताया था कि उसने राज्य में फिल्म के दिखाए जाने पर कोई बैन नहीं लगाया है, बल्कि सिनेमा हॉल वालों ने कहा है कि फिल्म में किसी की दिलचस्पी नहीं है इसलिए वो उसे नहीं दिखा रहे हैं.
इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म के निर्माताओं से भी कहा कि वो फिल्म में एक डिस्क्लेमर डालें कि फिल्म काल्पनिक घटनाओं पर आधारित है और 32,000 लोगों के धर्मांतरण के दावे को साबित करने के लिए कोई विश्वसनीय डाटा उपलब्ध नहीं है. अदालत के सामने तीसरी अपील फिल्म को सेंसर बोर्ड द्वारा मंजूरी दिए जाने के खिलाफ थी, जिस पर अदालत ने कहा कि इसके लिए जजों को फिल्म देखनी पड़ेगी और इस वजह से इस मामले को गर्मी की छुट्टियों के बाद सुना जाएगा.
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फिल्म में केरल में रहने वाली तीन ऐसी लड़कियों की कहानी दिखाई गई है जिनका जबरदस्ती या धोखे से धर्मांतरण करा कर उन्हें मुसलमान बना दिया जाता है और फिर उन्हें इस्लामिक स्टेट का हिस्सा भी बना दिया जाता है. जब फिल्म का ट्रेलर लांच हुआ था तब उसमें फिल्म के निर्माताओं ने दावा किया था कि ऐसा केरल की 32,000 हिंदू और ईसाई महिलाओं के साथ हुआ था.
इतनी बड़ी संख्या के दावे पर काफी विवाद हुआ. केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और कांग्रेस सांसद शशि थरूर जैसे नेताओं ने भी इस संख्या को भ्रामक बताया. फिल्म के खिलाफ जब विरोध बढ़ गया तो फिल्म के ट्रेलर को बदल दिया गया और उसमें 32,000 की जगह सिर्फ तीन लिख दिया गया. फिल्म समीक्षकों के मुताबिक यह फिल्म अभी तक करीब 165 करोड़ रुपए कमा चुकी है.
लेकिन दूसरी ओर फिल्म को लेकर कई स्थानों पर झगड़े ओर सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं भी हुई हैं. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अकोला जिले के हरिहरपेठ में फिल्म को लेकर एक इंस्टग्राम पोस्ट पर विवाद छिड़ गया गया था जिसके बाद दो समूहों के बीच पत्थरबाजी हुई. इस झड़प में कई गाड़ियों को नुकसान पहुंचा और कुछ गाड़ियां जला भी दी गईं. इस हिंसा में एक व्यक्ति मारा गया और कम से कम 10 लोग घायल हो गए.
इसी तरह जम्मू के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में फिल्म को लेकर छात्रों के दो समूहों के बीच हाथापाई हो गई, जिसके बाद कम से कम 10 छात्रों को निष्कासित कर दिया गया.
जर्मनी में है दुनिया का सबसे पुराना विशाल फिल्म स्टूडियो
रोमान पोलांस्की की "द पियानिस्ट", क्वेंटिन टैरेन्टीनो की "इनग्लोरियस बास्टर्ड्स" और कई मशहूर फिल्मों को एक कड़ी जोड़ती है - दुनिया का सबसे पुराना बड़े स्तर का स्टूडियो, जो है जर्मनी के बेबल्सबर्ग में.
तस्वीर: Francois Duhamel
एक फिल्म स्टूडियो का जन्म
हॉलीवुड में जब स्वतंत्र फिल्म निर्माता अपने अपने स्टूडियो बना रहे थे, उस समय जर्मन फिल्म निर्माता बर्लिन के ठीक बीच में शूटिंग कर रहे थे. लेकिन गर्म स्पॉटलाइटों की वजह से बार बार आग के अलार्म बजने लगते थे. जब निर्माताओं को शहर से बाहर कोई जगह खोजने के लिए कहा गया तो गुइदो सीबर ने बर्लिन के ठीक बाहर पोट्सडैम-बेबल्सबर्ग में एक जगह चुनी, जहां पहला स्टूडियो 1911 में बना.
पहली फिल्म: 'द डांस ऑफ द डेड'
तीन ही महीनों में बायोस्कोप नाम की कंपनी ने एक 3,250 वर्ग फुट का फिल्म स्टूडियो बना दिया. नाम दिया गया "स्मॉल ग्लासहाउस". फरवरी 1912 में वहां फिल्मांकन की जाने वाली पहली फिल्म बनी एस्टा नील्सन अभिनीत डेनिश मूक फिल्म 'द डांस ऑफ द डेड'. एक साल बाद उसी परिसर में एक और स्टूडियो और एक फिल्म लैब बनाए गए.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
टेक्नोलॉजी के पथ प्रदर्शक
1922 में जर्मन फिल्म निर्माण कंपनी यूएफए भी स्टूडियो से जुड़ गई. नई तकनीकों का विकास हुआ. "द लास्ट लाफ" फिल्म में पहली बार मूविंग कैमरा का इस्तेमाल हुआ. नई तकनीकों को सीखने हॉलीवुड के निर्देशक यहां आने लगे. हिचकॉक ने यहां तक कहा था, "मुझे फिल्में बनाने के बारे में जो भी मालूम है मैंने वो बेबल्सबर्ग में सीखा."
तस्वीर: picture-alliance/Keystone/Röhnert
क्लासिक फिल्म 'मेट्रोपोलिस'
फ्रित्ज लैंग ने बेबल्सबर्ग में दो सालों तक अपनी विज्ञान कथा फिल्म 'मेट्रोपोलिस' पर काम किया, जो मूक सिनेमा का एक मास्टरपीस है. आज के स्तर के हिसाब से उस समय इस फिल्म को बनाने में 14 लाख यूरो की लागत आई थी और यह उस समय दुनिया की सबसे महंगी फिल्म थी.
तस्वीर: picture alliance / dpa
प्रचार की मशीन
नाजियों ने सत्ता हासिल करने के बाद बेबल्सबर्ग पर भी सरकारी नियंत्रण कायम किया. 1933 से 1945 के बीच में हिटलर के प्रचार मंत्री जोसफ गोबेल्स के निर्देशन में करीब 1000 फिल्में बनाई गईं. इनमें "द जू सुस", "ट्राइंफ ऑफ द विल" आदि जैसी कई द्वेषपूर्ण प्रोपगैंडा फिल्में शामिल थीं.
तस्वीर: Mary Evans Picture Library
युद्ध के बाद
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1946 में बनने वाली पहली जर्मन फिल्म थी "मर्डरर्स अमंग अस". यह फिल्म नाजी शासन के तहत निजी अपराध बोध और जिम्मेदारी पर आधारित थी. इसकी शूटिंग बर्लिन के खंडहरों में हुई थी.
तस्वीर: picture-alliance/KPA
पूर्वी जर्मनी में
बेबल्सबर्ग स्टूडियो सोवियत अधिकृत इलाके में थे. सरकारी फिल्म कंपनी डीईएफए ने 1947 में वहां फिल्मांकन शुरू किया और पूरी जर्मनी के रहने तक 700 से ज्यादा फिल्में बनाई. इनमें कई समाजवादी प्रोपगैंडा फिल्में थीं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
दीवार के गिरने के बाद
1989 में डीईएफए को पूर्वी जर्मनी की सरकारी कंपनियों का निजीकरण करने वाले ट्रस्ट का नियंत्रण हो गया. 1992 में स्टूडियो को फ्रांसीसी कंपनी विवेन्दी यूनिवर्सल को बेच दिया गया. विवेन्दी ने इसके नवीनीकरण में करीब 50 करोड़ यूरो लगाए. ये एक आम बर्लिन की सड़क को दिखाते एक फिल्म सेट की तस्वीर है.
तस्वीर: picture-alliance/ ZB
आधुनिक युग
फिल्म निर्माताओं कार्ल वोबकेन और क्रिस्टोफ फिसर ने 2004 में कंपनी को खरीद लिया. आज 25,000 वर्ग मीटर में फैला 16 स्टूडियो का यह परिसर पूरे यूरोप का सबसे बड़ा स्टूडियो परिसर है. रोमान पोलांस्की की "द पियानिस्ट" (2002), क्वेंटिन टैरेन्टीनो की "इनग्लोरियस बास्टर्ड्स" (2009), "द हंगर गेम्स" की तीसरी और चौथी कड़ी जैसी मशहूर फिल्मों और टीवी सीरीज की शूटिंग यहीं हुई.
तस्वीर: Francois Duhamel
एक नया अध्याय
2022 की शुरुआत में अमेरिकी रियल एस्टेट कंपनी टीपीजी ने पोट्सडैम परिसर को खरीद लिया. लेकिन स्टूडियो बेबल्सबर्ग स्वतंत्र रूप से चलता रहेगा और सिनेमा के इतिहास के नए अध्याय रचता रहेगा. (सुजैन कॉर्ड्स)