भारत: अंगूठे की छाप से खाली हो रहे ग्रामीणों के बैंक खाते
३० सितम्बर २०२५
तीन साल पहले झारखंड के एक गांव में एक व्यक्ति सरकारी अधिकारी बनकर फातिमा बी (बदला हुआ नाम) के घर पहुंचा. उसने कहा कि वह सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर की पात्र हैं. लेकिन, चूंकि वह हस्ताक्षर नहीं कर सकती थीं, इसलिए उसने कहा कि उसे अपने अंगूठे का इस्तेमाल करके आवेदन करना होगा.
बी, उन लाखों भारतीयों में से एक हैं जो बायोमेट्रिक डाटा के जरिए अपने बैंक खातों तक पहुंचते हैं, लेकिन जब उस व्यक्ति ने उनसे एक डिवाइस पर अंगूठा दबाने को कहा, तो उन्हें शक नहीं हुआ. उस व्यक्ति ने पहले ही बी की बैंक खाते की जानकारी सिस्टम में डाल दी थी और उनके अंगूठे के निशान का इस्तेमाल करके उनके खाते से पैसे निकाल लिए.
इस ठगी के बारे में फातिमा बी कहती हैं, "हर बार जब मैंने बटन दबाया तो उसने कहा कि मशीन अंगूठे के निशान की पहचान नहीं कर पा रही है." उन्होंने उस मशीन पर आठ बार अंगूठे के निशान लगाए. उसके जाने के बाद जब बी ने अपना फोन चेक किया तो पाया कि उसके खाते से आठ लेनदेन में लगभग 24,000 रुपये निकाल लिए गए.
डिजिटल अरेस्ट की जांच में कितना आगे पहुंची जांच एजेंसियां?
सरकारी योजनाओं का लालच देकर साइबर ठगी
ग्रामीण भारत में इस तरह के साइबर अपराध बढ़ रहे हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2021 और 2024 के बीच साइबर अपराध के मामलों में 1,146 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. आंकड़ों के अनुसार, देश में 2022 में 17,470 साइबर अपराध दर्ज किए गए, जिनमें ऑनलाइन बैंक धोखाधड़ी के 6,491 मामले शामिल हैं.
दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संगठन डिजिटल एम्पावरमेंट फाउंडेशन के संस्थापक ओसामा मंजर कहते हैं कि साइबर अपराधों का वास्तविक स्तर आधिकारिक आंकड़ों से अधिक ज्यादा है. यह संगठन ग्रामीण भारतीयों को डिजिटल साक्षरता का प्रशिक्षण देता है.
मंजर ने बताया कि ग्रामीण भारतीय अधिक संख्या में धोखाधड़ी के शिकार हो रहे हैं, क्योंकि उनमें से अधिकतर लोग स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर रहे हैं और सरकार ने कल्याणकारी सेवाओं तक पहुंच के लिए डिजिटल वेरिफिकेशन जरूरी कर दी है.
भारत: साइबर अपराधी लूट रहे हैं लोगों की मेहनत की कमाई
एक क्लिक में साफ हो रहे बैंक खाते
गृह मंत्रालय के तहत काम करने वाले भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र के 2024 के आंकड़ों के अनुसार, साइबर अपराधियों ने 12,000 करोड़ रुपये से भी अधिक की ठगी देश भर में लोगों से की है. इसमें डिजिटल अरेस्ट के मामलों में 2,140 करोड़ रुपये की ठगी की गई है. यह वे मामले हैं, जिन्हें रिपोर्ट किया गया. सैकड़ों ऐसे भी मामले हैं जो पुलिस तक पहुंचे ही नहीं.
इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक साल 2023 में ग्रामीण भारत में इंटरनेट यूजर्स की संख्या 48.8 करोड़ से अधिक पहुंच गई, जो देश के कुल यूजर्स का 55 प्रतिशत है.
फातिमा बी जैसी कहानियां अब आम हो गई हैं. उनके राज्य, झारखंड के ग्रामीण इलाकों में सभी ने इस संदर्भ में रॉयटर्स से बातचीत में ऑनलाइन ठगी के प्रयासों का अनुभव साझा किया.
सरकारी योजनाओं का लालच बन रहा है "धोखाधड़ी का हथियार"
केरल स्थित निजी साइबर अपराध विशेषज्ञ धन्या मेनन ने कहा कि साइबर ठगी करने वाले अक्सर सरकारी योजनाओं के लिए आवेदन करने वाले ग्रामीणों को निशाना बनाते हैं. उन्होंने कहा, "धोखाधड़ी की रकम भले ही छोटी हो, लेकिन ग्रामीण भारत में यही छोटी रकम किसी के लिए जीवन भर की बचत हो सकती है."
पिछले साल आई एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण इलाकों में मजदूरी कम हो गई है और हाल के वर्षों में कर्ज में वृद्धि हुई है.
मेनन का कहना है कि ऐसी घटनाएं न सिर्फ लोगों की जमा पूंजी छीन रही हैं, बल्कि ग्रामीण भारत को डिजिटल दुनिया में और भी असुरक्षित बना रही हैं. उनके मुताबिक, "शहरी लोग अक्सर मुनाफे की उम्मीद में धोखाधड़ी का शिकार होते हैं, लेकिन ग्रामीण भारतीय तब फंसते हैं जब वे संकट में होते हैं- जैसे फसल बर्बाद हो जाए, घर में कोई बीमार पड़ जाए या खाने के लिए राशन न बचे.'"
टेलिग्राम पर बेची जा रही महाकुंभ में आई महिलाओं की तस्वीरें
मेनन कहती हैं कि ऐसे संकटों से राहत देने वाली सरकारी योजनाएं ही अब साइबर अपराधियों के लिए लालच देने का जरिया बन गई हैं. उन्होंने कहा, "वे अक्सर सरकारी डेटाबेस और निजी बैंकों से मिली जानकारी से लैस होते हैं, जिससे उन्हें पता होता है कि किसे, कब और कैसे निशाना बनाना है."
वे कहती हैं, "ये अपराधी जानते हैं कि पीड़ित ने कब सरकारी योजना या निजी बैंक से कर्ज के लिए आवेदन किया है. इसी जानकारी के दम पर वे भरोसा जीतते हैं, और फिर उसी भरोसे को तोड़कर ठग लेते हैं."
झारखंड के भटको गांव के मुखिया सुकेश्वर सिंह बताते हैं कि उन्हें हर हफ्ते कम से कम एक बार साइबर ठगों का फोन आता है, जो किसी न किसी बहाने से ठगी की कोशिश करते हैं. सिंह कहते हैं, "कभी मुफ्त कृषि उपकरण का लालच, कभी मोबाइल टावर के नाम पर मोटा किराया-हर पेशकश के पीछे एक ठगी छिपी होती है."