अब घर के पास रहना चाहते हैं लॉकडाउन में पैदल चले मजदूर
११ मई २०२२
2020 के लॉकडाउन के दौरान भूखे-प्यासे भीषण गर्मी में सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर घर लौटे मजदूरों ने बहुत से सबक सीखे हैं. अब वे कई बड़े फैसले ले रहे हैं.
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2020 में जब कोरोना वायरस की लहर ने कहर बरपाया और पूरे भारत को एकाएक लॉकडाउन में डाल दिया गया, तब मोहम्मद तनवीर भूखे-प्यास पैदल चलते हुए या किसी से लिफ्ट मांगते हुए 1,900 किलोमीटर दूर अपने घर पहुंचे थे. हजारों प्रवासी मजदूरों की तरह लॉकडाउन में तनवीर की भी नौकरी चली गई थी और उनके पास घर जाने के अलावा कोई चारा नहीं था. तब उन्होंने कसम खाई कि वह अपने परिवार से दूर जाकर काम नहीं करेंगे.
पूर्वी बिहार के रहने वाले तनवीर अब पूर्वी दिल्ली की एक मार्बल फैक्ट्री में काम करते हैं. वह अपनी पत्नी और बच्चों को भी साथ ले आए हैं. वह बताते हैं, "मेरी शादी दस साल पहले हुई थी लेकिन यह पहली बार है कि मेरी पत्नी और दोनों बच्चे मेरे साथ रह रहे हैं. चेन्नै में काम करते हुए मेरे पास यह विकल्प नहीं था.”
2020 में जब लॉकडाउन लागू हुआ तब तनवीर तमिलनाडू की राजधानी चेन्नई की एक मार्बल फैक्ट्री में काम कर रहे थे. नौकरी जाने के बाद उन्हें घर पहुंचने में बहुत मुश्किलें हुईं क्योंकि कोई साधन उपलब्ध नहीं था. वह बताते हैं, "तब मैं अक्सर परेशान रहता था कि घर में कोई बीमार हो गया तो क्या होगा. मैं इतनी दूर घर कैसे जाऊंगा. तब मैंने फैसला किया कि मैं घर से इतनी दूर काम नहीं करूंगा. मेरे परिवार ने भी कहा कि घर के पास रहना ही बेहतर है.”
उस अनुभव ने दिया सबक
तनवीर उन एक करोड़ से ज्यादा मजदूरों में से एक थे जिन्होंने भीषण गर्मी में हजारों किलोमीटर पैदल यात्रा की ताकि वे अपने घर पहुंच सकें. तब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक दिन टीवी पर आकर एकाएक लॉकडाउन का आदेश जारी कर दिया था. चूंकि सब कुछ पूरी तरह बंद हो गया था और लोगों के पास इतना वक्त भी नहीं था कि कोई वैकल्पिक इंतजाम कर सकें, इसलिए ये करोड़ों मजदूर पैदल ही सामान उठाकर घरों को निकल लिए थे. पैदल चलते उन मजदूरों की तस्वीरें दुनियाभर में वायरल हुई थीं.
गुलामी के भवर में आज भी फंसे हैं भारत के कई लोग
भारत और अफ्रीका जैसे देशों को आजादी सालों पहले मिल गई, लेकिन फिर भी कई लोग आज भी अलग-अलग रूपों में गुलामों वाली जिंदगी जी रहे हैं.
तस्वीर: Daniel Berehulak/Getty Images
भारत में दुर्दशा
80 लाख की संख्या के साथ भारत में सबसे ज्यादा आधुनिक गुलाम रहते हैं. इसके बाद 38.6 लाख के साथ चीन इस मामले में दूसरे स्थान पर आता है. पाकिस्तान में 31.9 लाख, उत्तर कोरिया में 26.4 लाख और नाइजीरिया में 13.9 लाख लोग आज भी गुलाम हैं.
मुनाफे के लिए लोगों से हर तरह का काम कराया जा रहा है. उन्हें देह व्यापार, बंधुआ मजदूरी और अपराधों की दुनिया में धकेला जा रहा है. कहीं उनसे भीख मंगवाई जा रही है, तो कहीं घरों में उनका शोषण हो रहा है. जबरन शादी और अंगों के व्यापार में भी उन्हें मुनाफे का जरिया बनाया जा रहा है.
तस्वीर: Pradeep Gaur/Zumapress/picture alliance
कुल कितने गुलाम
दुनिया में कम से 4.03 करोड़ लोग गुलामों की तरह रह रहे हैं. इसमें से दो करोड़ से खेतों, फैक्ट्रियों और फिशिंग बोट्स पर काम लिया जा रहा है. 1.54 करोड़ को शादी के लिए मजबूर किया जाता है जबकि पचास लाख लोग देह व्यापार में धकेले गए हैं.
तस्वीर: Sony Ramany/NurPhoto/picture alliance
यूएन का लक्ष्य
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इंसानों की तस्करी तेजी से बढ़ते हुए अपराध उद्योग की जगह ले रही है. संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक बंधुआ मजदूरी और जबरी विवाह को खत्म करने का लक्ष्य रखा है. लेकिन यह काम बहुत ही चुनौतीपूर्ण है.
तस्वीर: Stefanie Glinski/AFP/Getty Images
इंसानी तस्करी विरोधी दिवस
कहां पर कितने लोगों से गुलामों की तरह काम लिया जा रहा है, इस पर कहीं विश्वसनीय आंकड़े नहीं मिलते. लेकिन कुछ आंकड़े और तथ्य इतना जरूर बता सकते हैं कि समस्या कितनी गंभीर है. इसी की तरफ ध्यान दिलाने के लिए यूरोपीय संघ 18 अक्टूबर को इंसानी तस्करी विरोधी दिवस मनाता है.
तस्वीर: Vijay Pandey/dpa/picture alliance
महिलाएं और लड़कियां निशाना
आधुनिक गुलामों में हर दस लोगों में सात महिलाएं और लड़कियां हैं जबकि इनमें एक चौथाई बच्चे शामिल हैं. वैश्विक स्तर पर देखें तो हर 185 लोगों में से एक गुलाम है. आबादी के हिसाब से उत्तर कोरिया में सबसे ज्यादा आधुनिक गुलाम रहते हैं.
तस्वीर: Equivi
कहां क्या स्थिति
उत्तर कोरिया में 10 प्रतिशत आबादी को गुलाम बनाकर रखा गया है. इसके बाद इरिट्रिया में 9.3 प्रतिशत, बुरुंडी में चार प्रतिशत, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में 2.2 प्रतिशत और अफगानिस्तान में 2.2 प्रतिशत लोग गुलामों की जिंदगी जी रहे हैं.
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तो किसे अपराध कहेंगे?
2019 की शुरुआत तक 47 देशों में इंसानी तस्करी को अपराध घोषित नहीं किया गया था. 96 देशों में बंधुआ मजदूरी अपराध नहीं थी जबकि 133 देशों में जबरन शादी को रोकने वाला कोई कानून नहीं था.
तस्वीर: Colourbox
विकसित देश भी पीछे नहीं
अनुमान है कि इंसानी तस्करी से हर साल कम से कम 150 अरब डॉलर का मुनाफा कमाया जा रहा है. विकासशील ही नहीं, विकसित देशों में भी आधुनिक गुलाम मौजूद हैं. ब्रिटेन में 1.36 लाख और अमेरिका में चार लाख लोगों से गुलामों की तरह काम लिया जा रहा है. (स्रोत: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, वॉक फ्री फाउंडेशन)
तस्वीर: picture-alliance/PA Wire/D. Lipinski
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उन दुरूह यात्राओं ने इन मजदूरों के लिए बहुत कुछ बदल दिया. भारत में काम करने वाले लोगों का लगभग 20 प्रतिशथ यानी 14 करोड़ लोग ऐसे हैं जो असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं. ये लोग बेहद कठिन परिस्थितियों में, बहुत कम अधिकारों के साथ और अक्सर बहुत कम तन्ख्वाहों पर काम करते हैं.
कोविड लॉकडाउन के अनुभव ने इन मजदूरों को अपने लिए कुछ फैसले लेने पर मजबूर किया. बहुत से मजदूरों ने फैसला किया कि वे ज्यादा दूर जाकर काम नहीं करेंगे और घर के आसपास ही काम तलाशेंगे. मजदूरों के अधिकारों के लिए कार्यकर्ता कहते हैं कि कोरोना वायरस की बार-बार आ रही लहरों के कारण और दूर-दराज शहरों में खराब होतीं काम की परिस्थितियों के चलते बहुत से प्रवासी मजदूर अब घरों के नजदीक काम खोज रहे हैं. और, जो दूर शहरों में काम करने जा भी रहे हैं, वे मजबूत नेटवर्क बना रहे हैं ताकि जरूरत के समय एक दूसरे की मदद कर सकें.
केरल में स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ माइग्रेशन एंड डेवेलपमेंट नामक संस्था के अध्यक्ष एस इरूदया राजन कहते हैं, "लंबी दूरी के आप्रवासन में अब कमी आएगी. मजदूरों को वे दिन याद हैं और वे उस तरह के हालात को टालना चाहते हैं. अनिश्चितताओं को कम करने के लिए वे कम दूरी की ही यात्राएं करना चाहते हैं.”
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कामगारों के अधिकार
प्रवासी मजदूरों को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है. अपने दूर-दराजों गांवों से हजारों किलोमीटर दूर जाकर बड़े शहरों में ये लोग रिक्शा चलाने, टैक्सी चलाने, कपड़े सिलाई करने, भवन निर्माण में मजदूरी करने से लेकर फसल की कटाई आदि तक जैसे काम करते हैं जिनके बूते पर देश की अर्थव्यवस्था चलती है. जब ये लोग दूर शहरों में काम कर रहे होते हैं तब इनके परिवार अक्सर गांवों में संघर्ष करते हैं.
कब-कब सरकार ने कहा आंकड़े नहीं हैं
भारत में ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर भारत सरकार के पास आंकड़े नहीं हैं. विपक्ष सरकार से आंकड़े मांगता है सरकार कहती है हमें जानकारी ही नहीं है. एक नजर, ऐसे मुद्दों पर जिनके बारे में सरकार के पास डेटा नहीं हैं.
तस्वीर: Sonali Pal Chaudhury/NurPhoto/picture alliance
ऑक्सीजन की कमी से मौत
कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी से किसी की भी मौत नहीं होने के बयान के बाद सरकार दोबारा से डेटा जुटाएगी. सरकार ने संसद में 20 जुलाई को बयान दिया था कि देश में ऑक्सीजन की कमी से किसी की भी मौत नहीं हुई थी. लेकिन विपक्षी दलों के हंगामे और आलोचना के बाद सरकार ने राज्यों से दोबारा से ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों का आंकड़ा मांगा है.
कोरोना की पहली लहर में लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूर पैदल ही शहरों से गांव की ओर निकल पड़े. सफर के दौरान प्रवासी मजदूरों की सड़क हादसे, रेल ट्रैक पर चलने और अन्य कारणों से मौत हुई. स्ट्रैंडेड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क के आंकड़ों के मुताबिक पिछले लॉकडाउन के दौरान 971 प्रवासी मजदूरों की गैर कोविड मौतें हुईं. सरकार ने कहा था कि लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों की मौत के बारे में उसके पास डेटा नहीं है.
तस्वीर: DW/M. Kumar
बेरोजगारी और नौकरी गंवाने पर डेटा
मानसून सत्र में सरकार से सभी दलों के कम से कम 13 सांसदों ने कोरोना महामारी के दौरान बेरोजगारी और नौकरी गंवाने वालों का स्पष्ट डेटा मांगा था, लेकिन सरकार ने डेटा मुहैया नहीं कराया. इसके बदले केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भर भारत पैकेज, मेड इन इंडिया परियोजनाओं, स्वरोजगार योजनाओं और ऋणों का विवरण देकर इस मुद्दे को टाल दिया.
तस्वीर: Pradeep Gaur/Zumapress/picture alliance
किसान आंदोलन के दौरान मौत का आंकड़ा
23 जुलाई 2021 को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि किसान आंदोलन के दौरान कितने किसानों की मौत हुई इसकी जानकारी नहीं है, लेकिन पंजाब सरकार ने जो डेटा इकट्ठा किया है उसके मुताबिक कुल 220 किसानों की राज्य में मौत हुई. राज्य सरकार ने मृतकों के परिजनों को 10.86 करोड़ मुआवजा भी दिया है.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
कितना काला धन
मानसून सत्र में सरकार ने कहा है कि पिछले दस साल में स्विस बैंकों में कितना काला धन छिपाया गया है उसे इस बारे में कोई आधिकारिक अनुमान नहीं है. लोकसभा में कांग्रेस सांसद विन्सेंट एच पाला के सवाल के लिखित जवाब में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने यह बात कही. साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार ने बीते कई सालों में विदेशों में छिपाए गए काले धन को लाने की कई कोशिशें की हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Global Travel Images
क्रिप्टो करेंसी के कितने निवेशक
भारत में काम कर रहे निजी क्रिप्टो करेंसी एक्सचेंजों की संख्या बढ़ रही है, केंद्र के पास उन पर कोई आधिकारिक डेटा नहीं है. इन एक्सचेंजों से जुड़े निवेशकों की संख्या के बारे में भी कोई जानकारी नहीं है. देश में एक्सचेंजों की संख्या और उनसे जुड़े निवेशकों की संख्या पर एक प्रश्न के उत्तर में वित्त मंत्री ने 27 जुलाई को संसद में एक लिखित जवाब में कहा, "यह जानकारी सरकार द्वारा एकत्र नहीं की जाती है."
तस्वीर: STRF/STAR MAX/IPx/picture alliance
पेगासस जासूसी मामला
भारत ही नहीं पूरी दुनिया में पेगासस जासूसी मामला इस वक्त सबसे गर्म मुद्दा है. दुनिया के 17 मीडिया संस्थानों ने एक साथ रिपोर्ट छापी, जिनमें दावा किया गया था कि पेगासस नाम के एक स्पाईवेयर के जरिए विभिन्न सरकारों ने अपने यहां पत्रकारों, नेताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के फोन हैक करने की कोशिश की. भारत के संचार मंत्री ने इस मामले में लोकसभा में एक बयान में कहा कि फोन टैपिंग से जासूसी के आरोप गलत है.
भारत में मजदूर अधिकारों के लिए संघर्ष का लंबा इतिहास होने के बावजूद प्रवासी मजदूर बहुत कम यूनियन आदि के सदस्य बनते हैं. इस बारे में जानकार कहते हैं कि ये लोग अक्सर असंगठित क्षेत्र में समयबद्ध काम करते हैं.
18 साल तक गुजरात के सूरत में एक बुनकर के तौर पर काम कर चुके लिंगराज सेती अब कपड़ा मजदूरों के एक संगठन के सदस्य हैं जिसका नाम है प्रवासी श्रमिक सुरक्षा मंच. लॉकडाउन के दौरान इस संगठन ने अहम भूमिका निभाई थी. प्रवासी मजदूरों को खाना, पानी, मास्क और सैनेटाइजर आदि उपलब्ध कराने से लेकर घर ले जाने के लिए ट्रेन उपबल्ध कराने तक का काम इस संगठन ने किया.
संगठित हो रहे हैं मजदूर
ओडिशा स्थित अपने घर से 1,500 किलोमीटर दूर काम करने वाले सेती बताते हैं, "प्रवासी मजदूर भी ऐसे संगठनों का हिस्सा बनना चाहते हैं जहां वे जरूरत पड़ने पर मदद मांग सकें.” महामारी के बाद से प्रवासी श्रमिक सुरक्षा मंच का आकार लगातार बढ़ रहा है. सेती बताते हैं कि लॉकडाउन से पहले यानी मार्च 2020 में संगठन के 3,300 सदस्य थे जो अब बढ़कर पांच हजार को पार कर गए हैं.
चेहरा चमकाने वाले माइका का बदसूरत सच
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यह संगठन मजदूरों को रोजमर्रा की समस्याओं के अलावा मेहनताने के लिए मोलभाव करने, काम के घंटों पर बात करने और काम के हालात सुधारने जैसी मांगों की ओर भी जागरूक कर रहा है. 2020 में संगठन ने एक औपचारिक यूनियन के तौर पर रजिस्ट्रेशन करा लिया था.
सेती कहते हैं कि बहुत से कामगारों को लॉकडाउन के दौरान घर चलाने के लिए कर्ज लेना पड़ा, जिसे वे अब तक चुका नहीं पाए हैं. वह कहते हैं, "मजदूर जितनी मेहनत करते हैं, उन्हें उतना सम्मान नहीं मिलता. मजूदर एक दूसरे की मदद के लिए साथ आ रहे हैं ताकि उनके लिए हालात बेहतर हों.”