क्या करता है डीजे वाला बाबू जो थिरकने लगते हैं लोग
८ नवम्बर २०२२
वैज्ञानिकों ने पता लगा लिया है कि जब धुन बजती है तो क्यों पांव थिरकने लगते हैं. किस वजह से डीजे वाले बाबू के गाना लगाते ही नाचने वाले कुर्सियों से खड़े होकर फ्लोर पर आ जाते हैं
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जो नाचना जानते हैं और उसका मजा लेते हैं वे कहते हैं कि डांस अंदर से आता है. लेकिन किस हद तक यह अंदर से आता है और इसमें बास फ्रीक्वेंसी का कितना योगदान होता है, इस पर वैज्ञानिकों ने एक अनोखा अध्ययन किया है.
असल में इलेक्ट्रॉनिक म्यूजिक कॉन्सर्ट में यह अध्ययन किया गया जिसके नतीजे सोमवार को ‘करंट बायोलॉजी' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं. यह नतीजे दिखाते हैं कि जब शोधकर्ताओं ने बहुत कम फ्रीक्वेंसी वाला बास बजाया, तो लोगों ने 12 फीसदी ज्यादा डांस किया, जबकि बास की यह फ्रीक्वेंसी इतनी कम थी कि नाचने वाले इसे सुन भी नहीं पा रहे थे.
मैकमास्टर यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट डेविड कैमरन बताते हैं, "उन्हें पता भी नहीं चल रहा था कि कब म्यूजिक बदल रहा है. लेकिन इससे उनकी गति बदल रही थी.”
कैसे हुआ शोध?
इस शोध के नतीजे बताते हैं कि बास और डांस में एक विशेष संबंध है. डॉ. कैमरन खुद एक प्रशिक्षित ड्रमर हैं. वह कहते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक म्यूजिक कॉन्सर्ट में जाने वाले लोगों को तब ज्यादा मजा आता है जब बास ज्यादा होता है और वे इसे और बढ़ाने की मांग करते हैं. लेकिन ऐसा करने वाले वे अकेले नहीं हैं.
पर्दे वाले ईरान में डांस सिखाती बुशरा
ईरान की एक पेशेवर डांसर बुशरा पिछले 13 साल से डांस सीखने के शौकीनों को अपने साथ जोड़ रही हैं. राजधानी तेहरान में डांस इंस्ट्रक्टर बुशरा अपनी टोली के साथ परफॉर्मेंस आर्ट को आगे बढ़ा रही हैं.
तस्वीर: Majid Asgaripour/WANA/REUTERS
ईरान की राजधानी तेहरान में बैले डांस इंस्ट्रक्टर बुशरा केवल महिलाओं को डांस सिखाती हैं.
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पिछले 13 साल से बुशरा पेशवर तरीके से इस डांस को परफॉर्म कर रही हैं. बुशरा बैले करती हैं, ईरानी मिनिएचर डांस और सामा नामके पारंपरिक नाच में भी पारंगत हैं.
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33 साल की बुशरा को बचपन में अपनी एक सहेली को देख कर डांस में रुचि जगी. तेहरान में अपने डांस ग्रुप के साथ अभ्यास करती बुशरा.
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पिछले 10 सालों से बुशरा तेहरान में महिलाओं को डांस सिखा रही हैं. वे अपनी प्रस्तुति भी केवल महिलाओं के सामने ही दे सकती हैं.
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कोरोना महामारी शुरु होने के बाद बुशरा ने अपनी क्लासें ऑनलाइन चलानी शुरु कर दीं.
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जो ऑनलाइन क्लास नहीं ले सकते, उन्हें सुरक्षा उपायों का पालन करते हुए बुशरा मिल कर सिखाती हैं.
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बुशरा और उनके ट्रूप के सभी परफॉर्मेंस महामारी के कारण रद्द हो गए. यहां पारंपरिक डांस सामा की प्रस्तुति दे रहा है.
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ईरान के कल्चर एंड गाइडेंस मंत्रालय की अनुमति लेकर बुशरा ने अपना डांस समूह बनाया.
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ईरान में डांस सीखने के लिए आधिकारिक संस्थान नहीं हैं. अपने डांस ट्रूप के साथ सेल्फी लेती बुशरा.
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डॉ. कैमरन बताते हैं कि बहुत सी संस्कृतियों में कम फ्रीक्वेंसी वाले वाद्य यंत्रों का प्रयोग होता है. बास गिटार या बास ड्रम जैसे ये वाद्य यंत्र संगीत में जान डालने का काम करते हैं. कैमरन कहते हैं, "हम नहीं जानते थे कि बास से आप लोगों को ज्यादा नचवा सकते हैं.”
यह प्रयोग कनाडा की एक प्रयोगशाला ‘लाइवलैब' में हुआ जो एक कॉन्सर्ट हॉल भी है. यहां इलेक्ट्रॉनिग म्यूजिक के सितारे ऑरफिक्स का शो आयोजित हुआ. करीब 130 लोग इस शो को देखने आए. उनमें से 60 ने मोशन-सेंसर लगे हेडबैंड पहने थे, जो उनकी गति की निगरानी कर रहे थे.
कॉन्सर्ट के दौरान शोधकर्ता बीच-बीच में कम फ्रीक्वेंसी वाले बास बजा रहे स्पीकर ऑन-ऑफ करते रहे. दर्शकों से एक फॉर्म भी भरवाया गया, जिसमें कुछ सवाल पूछे गए थे. इन सवालों के जरिए यह सुनिश्चित किया गया कि किसी को भी स्पीकर ऑन या ऑफ होने का पता नहीं चला. इस तरह इस बात की पुष्टि हुई कि अन्य कारकों ने नतीजों को प्रभावित नहीं किया.
कैमरन कहते हैं, "मैं असर से बहुत प्रभावित हुआ.”
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तो क्यों नाचते हैं लोग?
उनका सिद्धांत है कि जब सुनाई ना भी दे, तब भी बास यानी नीचे का सुर लगाने से शरीर में संवेदनाएं पैदा होती है. त्वचा या मस्तिष्क के संतुलन बनाने वाले यानी कान के अंदरूनी हिस्से में पैदा होने वालीं ये संवेदनाएं गति को प्रभावित करती हैं. अपने आप ही ये संवेदनाएं मस्तिष्क के अगले हिस्से यानी फ्रंटल कॉरटेक्स तक जाती हैं.
चीन की अंडरग्राउंड संस्कृति
चमड़े के कपड़े, चमक-दमक वाला मेकअप और ऊंची एड़ी के जूते - इस अंदाज में एलजीबीटी समुदाय के लोगों ने बीजिंग के अंडरग्राउंड डांस इवेंट में दिखाए "वोगिंग" के जलवे.
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क्या है वोगिंग
चीन के एलजीबीटी समुदाय के लोगों के लिए डांस के साथ अपनी पहचान का जश्न मनाने का मौका होता है - वोगिंग.
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करते कैसे हैं
ऊंची एड़ी के जूते, सिर पर फैंसी विग और गले में फर डाले हुए लोग फैशन शो के जैसे तैयार होकर अपने डांस का जलवा दिखाते हैं.
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पहला बड़ा आयोजन
राजधानी बीजिंग के वोगिंग इवेंट में हिस्सा लेने सैकड़ों की तादाद में लोग पहुंचे. पहली बार इतने बड़े स्तर पर 'वोगिंग बॉल' आयोजित हुआ.
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खिताबी मुकाबला
ऐसे आयोजन में ऊंचे संगीत पर डांस पेश करने वाले लोगों की परफॉर्मेंस जज की जाती है और जीतने वालों को खिताबों से नवाजा जाता है.
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हाशिये वालों का जश्न
ऐसे इवेंट्स के आयोजक इसे "हाशिये पर पड़े समूहों के लिए खेल के मैदान जैसा" बताते हैं. मडोना ने इसे 1990 के अपने "वोग" नामके हिट गाने में दिखाया था.
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कहां से हुई शुरुआत
इस खास तरह के डांस की शुरुआत 1980 के दशक में हुई लेकिन 20वीं सदी की शुरुआत में न्यूयॉर्क की अंडरग्राउंड बॉलरूम संस्कृति विकसित हुई.
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कोई भी सीख सकता है
चीन में बीते कुछ सालों में बाकायदा वोगिंग बॉल की परफॉर्मेंस की तकनीक सीखने का चलन तेज हुआ है, जो मॉडलिंग, फैशन शो और डांस का मिश्रण है.
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रुढ़िवादी चीनी समाज
2001 में चीन ने समलैंगिकता को एक "मानसिक बीमारी" की श्रेणी से बाहर निकाला था. लेकिन ज्यादातर एलजीबीटी लोग अब भी ढंका छुपा सा जीवन जीते हैं.
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अमेरिका से चीन का सफर
अमेरिका के बाद जापान, कोरिया, ताइवान और हांगकांग से होती हुई यह संस्कृति हाल ही में चीन पहुंची है, जो बीते दो सालों में खासी फैली है.
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खुद को जाहिर करने की खुशी
वोगिंग में हिस्सा लेकर लोग अपनी यौनिकता और लैंगिकता को खुल कर जाहिर करते हैं और प्रतिष्ठित मान्यताओं कौ चुनौती पेश करते हैं.
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कैमरन कहते हैं कि यह सब अवचेतन रूप से होता है, ठीक वैसे ही जैसे शरीर फेफड़ों से हवा और दिल को रक्त साफ कराने का काम अवचेतन रूप से करवाता है. वह बताते हैं कि उनकी टीम का मानना है कि यदि इन संवेदनाओं से शरीर की गति-व्यवस्था को थोड़ी सी ऊर्जा मिलती है और वह अंगों को गतिमान कर देती है.
कैमरन भविष्य में और प्रयोगों के जरिए अपने सिद्धांत की पुष्टि करना चाहते हैं. हालांकि, इंसान नाचता क्यों है, इस रहस्य को सुलझाने का दावा वह नहीं करते. वह कहते हैं, "मेरी दिलचस्पी हमेशा लय में रही है, खासकर उस लय में जो हमें झूमने को मजबूर कर देती है.”
वह बताते हैं कि इसका एक जवाब सामाजिक सद्भाव के सिद्धांत से दिया जाता है. कैमरन कहते हैं, "जब आप अन्य लोगों के साथ सामंजस्य में होते हैं तो आपको उनके साथ एक रिश्ता महसूस होता है जो उस वक्त के बाद तक रहता है. इससे आपको बाद में भी खुशी का अहसास होता है.”