अब तक माना जाता रहा है कि होमोसेपियंस सबसे अलग और बेहतर जीव हैं और बाकी मानव प्रजातियां खत्म हो गईं. लेकिन अब पता चल रहा है कि होमोसेपियंस और दूसरी प्रजातियों के बीच शारीरिक संबंध बने थे.
दक्षिण अफ्रीका में सबसे पुराना कब्रिस्तान मिला हैतस्वीर: Luca Sola/AFP
विज्ञापन
बहुत लंबे समय तक मानव होने की एक छोटी सी स्पष्ट परिभाषा रही है. जटिल, विचारशील और गहरी भावनाओं वाले होमोसेपियंस को ही सच्चे अर्थों में मानव माना गया.
उससे पहले दो पैरों पर चलने वाला इंसान जैसे नियान्डर्थल आदि को पूरा मानव नहीं माना गया बल्कि उन्हें मानवजाति की विकास यात्रा का एक चरण ही समझा गया. आम समझ यह रही है कि नियान्डर्थल इसलिए खत्म हो गये थे क्योंकि होमोसेपियंस उनसे बेहतर थे.
लेकिन अब यह तस्वीर बदल रही है. अति प्राचीन अवशेषों से मिले डीएनए के अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों की समझ बेहतर हुई है. तकनीक में हुए अत्याधुनिक विकास ने मानव इतिहास के अध्ययन को क्रांतिकारी रूप से बदल दिया है. प्राचीन काल में धरती पर रहे इंसानों के अध्ययन की अलग-अलग शाखाएं खुली हैं और उनके बारे में सोच भी बदल रही है.
विशेष नहीं हैं होमोसेपियंस
नये अध्ययन इस समझ को चुनौती दे रहे हैं कि हम यानी होमोसेपियंस इतने भी विशेष नहीं हैं. जो प्रजातियां अब विलुप्त हो गयी हैं उनके साथ भी होमोसेपियंस ने लंबे समय तक धरती साझा की है और वे भी बहुत कुछ हमसे मिलते-जुलते ही थे.
रोसालिंद फ्रैंकलिन और छह दूसरी महिला वैज्ञानिक जिन्हें नजरअंदाज कर दिया गया
सत्तर साल पहले दो पुरुष शोधकर्ताओं ने डीएनए के डबल हेलिक्स आकार की घोषणा की थी, लेकिन इसका पता पहले रोसालिंद फ्रैंकलिन ने लगाया था. वो एकलौती महिला वैज्ञानिक नहीं हैं जिन्हें वो श्रेय नहीं दिया गया जिसकी वो हकदार थीं.
तस्वीर: World History Archive/picture alliance
फ्रैंकलिन की खोज की चोरी
70 साल पहले हमें पता चला कि हमारा डीएनए एक डबल हेलिक्स का आकार ले लेता है. इस खोज को छापने वाले जेम्स वॉटसन और फ्रांसिस क्रिक रातोरात मशहूर हो गए और दोनों ने मौरिस विल्किन्स के साथ 1962 में चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार जीता. लेकिन पहले यह खोज लंदन के किंग्स कॉलेज में विल्किन्स की एक सहकर्मी रोसालिंद फ्रैंकलिन ने की थी.
तस्वीर: Stanislav Rishnyak/Zoonar/picture alliance
छीन ली गई उपलब्धि
1950 के दशक में विज्ञान में पुरुषों का वर्चस्व था और फ्रैंकलिन के सहकर्मी उनकी इज्जत नहीं करते थे. उन्होंने ने ही डीएनए के एक स्ट्रैंड की पहली स्पष्ट तस्वीर ली थी जिसमें डबल हेलिक्स ढांचा स्पष्ट दिख रहा था. लेकिन वॉटसन ने खुफिया तरीके से फ्रैंकलिन का शोध देख लिया. फिर विल्किंस और वॉटसन ने मिल कर "अपनी" शोध प्रकाशित कर दी. फ्रैंकलिन की 37 साल की उम्र में ओवेरियन कैंसर से मौत हो गई.
तस्वीर: World History Archive/picture alliance
कैथरीन जॉनसन: दशकों तक नासा की गुमनाम हीरो
अश्वेत महिला गणितज्ञ कैथरीन जॉनसन ने जब 1958 में नासा में काम करना शुरू किया था तब नासा समेत अमेरिका का अधिकांश हिस्सा श्वेत और अश्वेत लोगों में बंटा हुआ था. गणित में पुरुषों का वर्चस्व भी था. जॉनसन के कैलकुलेशन अपोलो11 मून मिशन की सफलता के लिए बेहद जरूरी थे. उन्होंने नासा में कंप्यूटरों के इस्तेमाल में अग्रणी भूमिका भी निभाई. लेकिन वो जिस सम्मान की पात्र थीं उसे उन्हें दिए जाने में दशकों लग गए.
तस्वीर: ZUMAPRESS.com/picture alliance
यूनिस फूट की खोज, ग्रीनहाउस इफेक्ट
यूनिस फूट ने साबित किया था कि सूरज की किरणें जब कार्बियन डाइऑक्साइड से गुजरती हैं तब वो सबसे ज्यादा गर्म होती हैं. उन्होंने ही कहा था कि सीओटू के स्तर के बढ़ने से वायुमंडल का तापमान बदलेगा और जलवायु प्रभावित होगी. उनकी खोज 1857 में प्रकाशित भी हुई लेकिन नजरअंदाज कर दी गई. तीन साल बाद इससे मिलते जुलते नतीजे प्रकाशित करने के लिए वैज्ञानिक जॉन टिंडाल को 'द ग्रीनहाउस इफेक्ट' की खोज का श्रेय दिया गया.
तस्वीर: K. Fitzmaurice-Brown/blickwinkel/picture alliance
हेदी लमार: वो आविष्कारक जिसे सराहना नहीं मिली
हेदी लमार 1930 और 1940 के दशकों में हॉलीवुड की मशहूर सितारा थीं. लेकिन उन्हें बचपन से आविष्कारों में रुचि थी. उन्होंने टॉरपीडो के लिए एक रेडियो गाइडेंस सिस्टम बनाया जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजियों द्वारा जैमिंग से बचने के लिए फ्रीक्वेंसी हॉपिंग का इस्तेमाल करता था. इसी सिद्धांत पर आधारित तकनीक से वाईफाई और जीपीएस का आविष्कार हुआ. लेकिन लमार को सिर्फ एक खूबसूरत चेहरे के रूप में ही जाना गया.
तस्वीर: picture-alliance/ dpa
कुष्ठरोग का इलाज
चालमोग्रा पेड़ का तेल कुष्ठरोग के लक्षण कम कर सकता था लेकिन इसे खून में इंजेक्ट नहीं किया जा सकता था. 1916 में अफ्रीकी-अमेरिकी रासायनिक ऐलिस बॉल ने पता लगा लिया कि इसे कैसे फैटी एसिड और ईथाइल एस्टर में बदला जाए ताकी इंजेक्ट किया जा सके. लेकिन कुछ ही दिनों बाद उनका निधन हो गया और उनके सुपीरियर आर्थर डीन ने इसे "डींस मेथड" के नाम से प्रकाशित करवा दिया. सालों बाद इसे "बॉल्स मेथड" का नाम दिया गया.
तस्वीर: Tauseef Mustafa/AFP/Getty Images
लीसे माइटनर को छोड़ना पड़ा न्यूक्लियर फिशन पर शोध
न्यूकिल्यर फिशन यानी अणुओं का विभाजन परमाणु ऊर्जा का आधार है. यहूदी भौतिकवैज्ञानिक लीसे माइटनर ने जो सुझाव और आईडिया दिए उनसे उनके सहकर्मी ऑटो हान और फ्रित्ज स्ट्रासमैन ने न्यूक्लियर फिशन की खोज की. वो उनके साथ अपना काम जारी नहीं रख पाईं क्योंकि उन्हें 1938 में नाजी बर्लिन से भागना पड़ा. हान को 1944 में रसायन शास्त्र का नोबेल दिया गया. माइटनर का जिक्र भी नहीं किया गया.
तस्वीर: ASSOCIATED PRESS/picture alliance
पेनकिलर की आविष्कारक, कैंडेस पर्ट
1970 के दशक में कैंडेस पर्ट ने इंसानी दिमाग में उस ओपिएट रिसेप्टर का पता लगाया जो मॉर्फीन और अफीम जैसी दवाओं के प्रति प्रतिक्रियाशील होता है. यह एक अभूतपूर्व खोज थी लेकिन पर्ट ने जब यह खोज की तब वो जॉन्स आप्किन्स विश्वविद्यालय में सिर्फ एक स्नातक की छात्रा थीं. उनके प्रोफेसर सोलोमन स्नाइडर और दो और पुरुष शोधकर्ताओं ने 1978 में इस खोज के लिए बेसिक मेडिकल रिसर्च का 'लस्कर पुरस्कार' जीता.
तस्वीर: Everett Collection/picture alliance
द मटिल्डा इफेक्ट
वैज्ञानिक खोजों में महत्वपूर्ण रूप से शामिल होने वाली महिलाओं को उसका श्रेय नहीं दिया जाना इतना आम है कि इसे एक नाम से जाना जाता है: द मटिल्डा इफेक्ट. यह नाम महिला अधिकार एक्टिविस्ट मटिल्डा जे गेज के नाम पर पड़ा जिन्होंने 19वीं सदी के अंत में पहली बार इसकी व्याख्या की.
लंदन स्थित नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में मानव-विकास विशेषज्ञ क्रिस स्ट्रिंगर कहते हैं, "हम अब उन्हें पूर्ण मानव के रूप में देखते हैं. दिलचस्प यह है कि वे अलग तरह के मानव थे.”
यह समझ भी अब बढ़ रही है कि होमोसेपियंस के अन्य मानव प्रजातियों के साथ बेहद करीबी और शारीरिक संबंध भी रहे थे. इनमें नियान्डर्थल, डेनीसोवन्स और ऐसी अन्य प्रजातियां भी शामिल हैं, जिन्हें सिर्फ अलग तरह के डीएनए के जरिए पहचाना गया है.
अब वैज्ञानिक इस बात को लेकर पुष्ट हैं कि होमोसेपियंस सबसे पहले तीन लाख साल पहले अफ्रीका में नजर आये. अमेरिका के स्मिथसोनियन म्यूजियम में मानव उत्पत्ति के बारे में अध्ययन करने वाले प्रोग्राम के निदेशक रिक पॉट्स कहते हैं कि होमोसेपियंस और अन्य प्रजातियां एक साथ धरती पर रही थीं.
जब अफ्रीका में होमोसेपियंस पनप चुके थे तब भी यूरोप में नियान्डर्थल मौजूद थे. तब अफ्रीका में होमो हाइडलबेरजेनसिस और होमो नालेदी भी रह रहे थे. उसी वक्त इंडोनेशिया में छोटे कद के होमो फ्लेसिएनसिस मौजूद थे जिन्हें अक्सर हॉबिट के नाम से जाना जाता है. लंबी टांगों वाले होमो इरेक्टस उस वक्त एशिया में मौजूद थे.
समझदार थीं अन्य प्रजातियां
वैज्ञानिकों को अब इस बात का अहसास हो रहा है कि ये सभी मानव प्रजातियां होमोसेपियंस की प्रजातियां नहीं थीं. ये चचेरे-ममेरे भाइयों जैसे थे जो एक ही स्रोत से निकलकर अलग-अलग दिशाओं में बढ़े थे. पुरातात्विक खोजों ने दिखाया है कि कई प्रजातियों का व्यवहार बेहद जटिल था.
जैसे नियान्डर्थल मानव गुफाओं में चित्रकारी करते थे. होमो हाइडलबेरजेनसिस गैंडों और दरियाई घोड़ों जैसे विशाल प्राणियों का शिकार करते थे. कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि छोटे मस्तिष्क वाले होमो नालेदी होमोसेपियंस के विकास से पहले ही अपने मृत शरीरों को दक्षिण अफ्रीका की गुफाओं में लकड़ियों के साथ दफनाते थे.
लाखों साल पहले की गई हत्याओं की जांच जारी
03:55
This browser does not support the video element.
वैज्ञानिकों के मन में यह सवाल भी है कि अगर ये प्रजातियां एक जैसी थीं तो क्या उनके बीच शारीरिक संबंध भी थे. कुछ वैज्ञानिक इससे सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि होमोसेपियंस अफ्रीका से निकलकर अन्य हिस्सों में गये और उन्होंने बिना शारीरिक संबंध बनाये अन्य प्रजातियों की जगह ले ली.
न्यूयॉर्क की स्टोनी ब्रूक यूनिवर्सिटी में पुरात्तवविद जॉन शिया कहते हैं कि वह पहले सोचते थे कि नियान्डर्थल और होमोसेपियंस प्रतिद्वन्द्वी थे और "अगर उनका सामना हुआ होगा तो उन्होंने एक दूसरे को मार डाला होगा.”
लेकिन डीएनए अध्ययन अलग कहानी कहते हैं. ये अध्ययन बताते हैं कि दोनों प्रजातियों के बीच संबंध बने और आज का मानव उसी का परिणाम हैं. 2010 में स्वीडन के जीव-विज्ञानी सवांते पाबो और उनकी टीम ने एक जटिल पहेली सुलझायी थी. उन्होंने टुकड़ों में उपलब्ध डीएनएन नमूनों से नियान्डर्थल का पूरा जीनोम तैयार किया था. ऐसा करना पहले असंभव माना जाता था और इस खोज के लिए पाबो को पिछले साल नोबेल पुरस्कार मिला था.
विज्ञापन
मानव विकास का नया इतिहास
डीएनए परीक्षण से मिले सबूत दिखाते हैं कि होमोसेपियंस के नियान्डर्थल और डेनिसोवंस जैसी अन्य मानव प्रजातियों के साथ शारीरिक संबंध होते थे. इन शोधों में अन्य अज्ञात प्रजातियों के डीएनए अंश भी मिले हैं, जिनके जीवाश्म अब तक कहीं नहीं मिले हैं.
यह कहना तो मुश्किल है कि ये संबंध दुनिया के किस हिस्से में बने. ऐसा लगता है कि होमोसेपियंस अफ्रीका से निकलने के बाद और यूरोप पहुंचते ही नियान्डर्थल्स से मिल-जुल गये थे. हो सकता है कि डेनिसोवंस के साथ उनका मेल पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया में हुआ हो.
पोट्स कहते हैं, "उनके पास कोई नक्शा तो था नहीं इसलिए उन्हें पता नहीं था कि वे कहां जा रहे हैं. लेकिन जब वे पहाड़ पर चढ़े होंगे तो उन्हें दूसरी तरफ लोग नजर आये होंगे, जो दिखने में उनसे कुछ अलग थे. वे मिले होंगे. उन्होंने आपस में संबंध बनाये होंगे और जीन्स की अदला-बदली हुई होगी.”