मरने के बाद समय के साथ-साथ हड्डियों की गंध बदलती जाती है. इसलिए बहुत लंबे समय पहले खोए लोगों को खोजना मुश्किल हो जाता है. अब एक वैज्ञानिक इस गंध को बोतल में बंद करने की कोशिश कर रहा है.
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बेल्जियम का एक वैज्ञानिक देश की संघीय पुलिस के साथ मिलकर एक ऐसी सुगंध तैयार करने पर काम कर रहा है जो सूखी इंसानी हड्डियों की गंध जैसी हो. इसका मकसद यह है कि खोजी कुत्ते पुरानी और लंबे समय से गायब इंसानी अवशेषों को ढूंढने में सक्षम हो सकें.
वैज्ञानिक का नाम क्लेमां मार्टिन है और वह पहले ही इंसानी मांस के सड़ने-गलने पर निकलने वाली गंध को अलग कर चुके हैं. इस गंध का अब बेल्जियम के खोजी कुत्तों (कैडावर डॉग्स) को प्रशिक्षित करने के लिए उपयोग किया जाता है.
जब इंसानी शरीर का मुलायम ऊतक (सॉफ्ट टिश्यू) खत्म हो जाता है, तो हड्डियों में मौजूद गंध के अणुओं (सेंट मॉलिक्यूल्स) की संख्या काफी कम हो जाती है. मार्टिन ने समाचार एजेंसी रायटर्स को बताया कि यही वजह है कि यह एक चुनौती बन जाती है.
क्यों है चुनौती
उन्होंने कहा, "हड्डियों की गंध समय के साथ बदलती रहती है. तीन साल पुरानी हड्डी की गंध दस साल पुरानी हड्डी से अलग होगी और बीस साल पुरानी हड्डी की गंध उससे भी अलग होगी."
इसके अलावा, हड्डियों में झरझरा (पोरस) गुण होता है, जिसके कारण वे अपने आसपास के वातावरण की गंध को भी सोख लेती हैं, जैसे मिट्टी की या पेड़ों की.
ऐसे तैयार होते हैं अपराधियों को पकड़ने वाले कुत्ते
दुनिया भर में पुलिस के साथ कुत्ते भी अपराध के खिलाफ कार्रवाई में अहम भूमिका निभाते हैं. कोलकाता में पुलिस के कुत्तों को अपराधी पकड़ने से लेकर ड्रग्स और विस्फोटक तक ढूंढने की कड़ी ट्रेनिंग दी जाती है.
तस्वीर: Subrata Goswami/DW
खोजी कुत्ते
कोलकाता पुलिस के इन कुत्तों को अपराध के खिलाफ कार्रवाई में मदद लेने के लिए ट्रेन किया जा रहा है. कई ऐसे मामले होते हैं जहां पुलिस अधिकारी आसानी से मामले की तह तक नहीं जा सकते लेकिन ये कुत्ते अपनी विशेष ट्रेनिंग से विस्फोटक और ड्रग्स तक पहुंच जाते हैं.
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कब बना डॉग स्क्वाड
कोलकाता पुलिस का डॉग स्क्वाड 1971 में बनाया गया था. इस डॉग स्क्वाड का इस्तेमाल ना केवल अपराधियों की पहचान करने के लिए बल्कि अपराधों को रोकने के लिए भी किया जाता है. इसलिए उन्हें विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है.
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बड़ी भूमिका निभाते हैं ये विशेष कुत्ते
ये कुत्ते विस्फोटक और संदिग्ध चीजों को सूघने की क्षमता रखते हैं. जब कभी किसी वीआईपी की मूवमेंट होती है तो पहले इन कुत्तों से इलाके की छानबीन कराई जाती है. इसके बाद ही वीआईपी को अनजान जगहों पर कदम रखने की इजाजत मिलती है.
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सटीक जांच
इन कुत्तों के ट्रेनरों का कहना है कि इंसान जांच में गलती कर सकते हैं, लेकिन कुत्ते अपराधियों की पहचान करने में गलती नहीं करते. उनमें सूंघने की शक्ति, याददाश्त, दौड़ने और कूदने की क्षमता और बुद्धिमता इंसानों से कहीं अधिक होती है.
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खास नस्ल के कुत्ते
कोलकाता पुलिस डॉग स्क्वाड में डॉबरमैन, बीगल, गोल्डन रिट्रीवर, अल्सेशियन, जर्मन शेपर्ड, कॉकर स्पैनियल जैसी नस्ल के कुत्ते हैं. उनमें से प्रत्येक अलग-अलग कार्यों में कुशल है. इन कुत्तों को अलग-अलग विभाग में रखा जाता है, जैसे खोज और बचाव, आपराधिक जांच, नारकोटिक्स, बम स्क्वाड आदि.
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कैसे दी जाती है ट्रेनिंग
कोलकाता पुलिस के इन खास कुत्तों को पीटीएस यानी पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में ट्रेनिंग दी जाती है. ट्रेनिंग स्कूल के प्रभारी शांतनु मंडल के मुताबिक सप्ताह के अधिकांश दिन आउटडोर प्रैक्टिस होती है. कुत्तों को सुबह जल्दी उठाकर ट्रेनिंग मैदान में लाया जाता है और उन्हें अलग-अलग तरह की ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है.
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खाने का खास ख्याल
जिस तरह इंसानों को फिट रहने के लिए हर रोज स्वस्थ भोजन और कसरत की जरूरत है, उसी तरह इन विशेष कुत्तों को भी संतुलित आहार दिया जाता है. उन्हें डॉक्टर की सलाह के मुताबिक खाना दिया जाता है.
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छुट्टियां भी
एक कुत्ते को आमतौर पर छह से नौ महीने की उम्र में ट्रेनिंग के लिए दस्ते में भर्ती किया जाता है. उनकी देखभाल और मेडिकल का खर्चा पुलिस विभाग उठाता है. कुत्तों को रखने के लिए अलग-अलग कमरे होते हैं. गर्मी से बचने के लिए कूलर का भी इंतजाम रहता है. पुलिसवालों की तरह इन कुत्तों की भी छुट्टी होती है लेकिन इमरजेंसी होने पर उन्हें भी पुलिसवालों की तरह ड्यूटी पर जाना होता है.
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रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी
ये कुत्ते 8 साल की उम्र तक काम कर सकते हैं. हालांकि, कुत्तों के प्रदर्शन पर निर्भर करता है कि वे कितने साल में रिटायर होंगे. इंसानों की तरह उम्र के साथ उनके प्रदर्शन में गिरावट आ जाती है. रिटायर होने के बाद कई बार इन कुत्तों को पुलिसकर्मियों द्वारा गोद ले लिया जाता है.
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ट्रेनर और कुत्ते का रिश्ता
डॉग स्क्वाड में शामिल होने वाले कुत्तों को कम उम्र में ही प्रशिक्षित किया जाता है. हर एक कुत्ते के साथ एक हैंडलर नियुक्त होता है जो उसे ट्रेन करने के साथ पूरी ड्यूटी के समय उसके साथ होता है. समय के साथ कुत्ते और हैंडलर का रिश्ता एक गुरु और शिष्य का हो जाता है. रिपोर्ट: सुब्रत गोस्वामी
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फेडरल पुलिस डॉग ट्रेनिंग के प्रमुख क्रिस कार्दोएन ने कहा, "पुराने मामलों (कोल्ड केस) की स्थिति में, हमारे कुत्तों के लिए सूखी हड्डियों को ढूंढ पाना मुश्किल था. यही हमारी सबसे बड़ी कमी थी."
मई 2023 में जर्नल ऑफ फॉरेंसिक साइंसेज में प्रकाशित एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, सूखी हड्डियों से निकलने वाले वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों की पहचान करना बेहद चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि इनमें प्राकृतिक अपघटन की प्रक्रिया और पर्यावरणीय कारक प्रमुख भूमिका निभाते हैं. इस शोध में बताया गया कि हड्डियों की "गंध" पर मौसम, मिट्टी का प्रकार, वनस्पति और नमी का गहरा प्रभाव होता है.
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कुत्तों की ट्रेनिंग
ब्रसेल्स के बाहर स्थित एक पुलिस प्रशिक्षण केंद्र में इंस्पेक्टर क्रिस्टोफ वान लांगनहोवे और उनके कुत्ते ने मार्टिन की गंध तकनीक का प्रदर्शन किया. लांगनहोवे का कुत्ता स्प्रिंगर स्पैनियल नस्ल का है और उसका नाम ‘बोन्स' है,
कार्दोएन ने कुछ टिश्यू (ऊतक) को कंक्रीट के ब्लॉकों के बीच छिपाया और उनमें से केवल कुछ को गंध से संक्रमित किया. फिर, कुत्ते ने सही गंध मिलने पर भौंक कर संकेत दिया. कार्दोएन ने बताया, "हमारे ह्यूमन रिमेन्स डॉग (मानव अवशेष खोजी कुत्ते) की बुनियादी ट्रेनिंग में ‘डेथ सेंट' (मृत्यु की गंध) तीन मुख्य उपकरणों में से एक है."
खोजी कुत्ते का टेस्ट
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कैडावर डॉग्स को प्रशिक्षित करने में लगभग 1,000 घंटे लगते हैं और देश में किसी भी समय केवल चार ही ऐसे कुत्ते होते हैं. कोविड महामारी के समय कुत्तों को कोरोनावायरस सूंघने की ट्रेनिंग दी गई थी.
मार्टिन सूखी हड्डियों के अलग-अलग नमूनों का उपयोग करके गंध विकसित कर रहे हैं. इनमें एक अनजान व्यक्ति की हड्डियां भी शामिल हैं, जिन्हें एक सूटकेस में पाया गया था. इन हड्डियों को एक कांच के सिलेंडर में रखा गया है ताकि अणु बंद जगह में फैल सकें और फिर उन्हें निकाला जा सके.
मार्टिन ने कहा, "यह कुछ वैसा ही है जैसे एक इत्र बनाने वाला (पर्फ्यूमर) अपनी खुशबू बनाता है. वह अलग-अलग सुगंधों को मिलाता है."