वैज्ञानिकों ने खुद ही खत्म हो जाने वाला प्लास्टिक विकसित किया है, जिससे उन्हें प्रदूषण कम करने में मदद की उम्मीद है.
विज्ञापन
अमेरिका के वैज्ञानिकों ने एक नई तरह का प्लास्टिक विकसित किया है जो खुद ही खत्म हो जाता है. उन्होंने पॉलीयूरीथेन प्लास्टिक में एक बैक्टीरिया को मिलाया है. यह बैक्टीरिया प्लास्टिक खा जाता है और इस तरह प्लास्टिक खुद ही खत्म हो जाता है.
प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका नेचर कम्यूनिकेशंस में छपे एक शोध में इस प्लास्टिक के बारे में बताया गया है. शोधकर्ताओं के मुताबिक इस प्लास्टिक में मिलाया गया बैक्टीरिया तब तक निष्क्रिय रहता है जब तक कि प्लास्टिक इस्तेमाल में रहता है. लेकिन जब वह कूड़ा-कर्कट में मौजूद तत्वों के संपर्क में आता है तो सक्रिय हो जाता है और प्लास्टिक को खाने लगता है.
प्रदूषण घटाने में मदद
सैन डिएगो स्थित कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक हान सोल किम कहते हैं कि उन्हें उम्मीद है कि यह खोज "प्रकृति में प्लास्टिक-प्रदूषण को कम करने में” मददगार साबित होगी. इसका एक लाभ यह भी हो सकता है कि बैक्टीरिया प्लास्टिक को ज्यादा मजबूत बनाए.
शोध में शामिल एक अन्य वैज्ञानिक जोन पोकोर्सकी ने बीबीसी को बताया, "हमारी प्रक्रिया पदार्थ को ज्यादा खुरदुरा बना देती है. इससे उसका जीवनकाल बढ़ जाता है. और जब यह पूरा हो जाता है तो हम इसे पर्यावरण से बाहर कर सकते हैं, फिर चाहे यह किसी भी तरह फेंका जाए.”
ब्रिटेन ने जीता कूड़ा उठाने का विश्व कप
इस सप्ताह जब दुनिया भर से 21 टीमें टोक्यो में सबसे पहले 'स्पोगोमी विश्व कप' में कूड़ा इकट्ठा करने के लिए जमा हुईं, तो ब्रिटेन शीर्ष पर रहा. इस चैंपियनशिप का उद्देश्य पर्यावरण के मुद्दों के बारे में जागरूकता फैलाना था.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
क्या है "स्पोगोमी"
स्पोगोमी शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है. स्पोगोमी नाम अंग्रेजी के शब्द "स्पोर्ट" और कचरे के लिए जापानी शब्द "गोमी" के मेल से आया है.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
बढ़ती लोकप्रियता
गेम को सबसे पहले 2008 में जापान में शुरू किया गया था. सिर्फ इस साल पूरे जापान में 230 से अधिक खेलों का आयोजन किया गया. लेकिन विश्व कप का आयोजन पहली बार किया गया है.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ जागरूकता
इस विश्व कप के आयोजक निप्पॉन फाउंडेशन ने कहा कि विश्व कप का आयोजन पर्यावरणीय मुद्दों, खासकर महासागरों में प्लास्टिक प्रदूषण बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए किया गया था.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
चैंपियन बनी ब्रिटेन की टीम
इस प्रतियोगिता में विश्व के 21 देशों की टीमों ने भाग लिया. लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए टोक्यो में स्पोगोमी विश्व कप का आयोजन किया गया. ब्रिटेन की टीम ने इस खिताब को जीता.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
दूर-दूर से आए प्रतियोगी
हालांकि विश्व कप का आयोजन जापान में किया गया था, लेकिन ऑस्ट्रेलिया और यहां तक कि दुनिया के दूसरी तरफ ब्राजील के प्रतिनिधि भी इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए आए थे. हर टीम में तीन सदस्य थे.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
साफ-सफाई के लिए जापान दुनिया भर में मशहूर
जापान साफ-सफाई के लिए दुनिया भर में जाना जाता है. नतीजा ये हुआ कि वर्ल्ड कप में बाकी टीमों को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. लेकिन हर किसी को आश्चर्यचकित करते हुए ब्रिटिश टीम 'द नॉर्थ विल राइज अगेन' ने चैंपियन का दर्जा हासिल करने के लिए 57.27 किलोग्राम कचरा इकट्ठा किया. जापान दूसरे स्थान पर रहा.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
समुद्र में प्लास्टिक की बाढ़
अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संगठन (आईयूसीएन) के मुताबिक समुद्र में हर साल कम से कम 14 मिलियन टन प्लास्टिक आता है. इस प्लास्टिक को जानवर निगल रहे हैं. यही प्लास्टिक खाद्य श्रृंखला यानी फूड चेन में प्रवेश कर रहा है और पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचा रहा है.
तस्वीर: The Ocean Cleanup/abaca/picture alliance
7 तस्वीरें1 | 7
प्लास्टिक प्रदूषण दुनिया की एक बहुत गंभीर समस्या है. हर साल 35 करोड़ टन प्लास्टिक का कचरा धरती पर बढ़ रहा है. यह कचरा सिर्फ हवा में ही नहीं बल्कि खाने तक पहुंच चुका है और सेहत के लिए खतरा बन चुका है.
माइक्रोप्लास्टिक के रूप में यह पीने के पानी के जरिए भी शरीर के अंदर जा रहा है. साल 2021 में शोधकर्ताओं ने एक अजन्मे बच्चे के गर्भनाल में माइक्रोप्लास्टिक पाया था और भ्रूण के विकास पर संभावित परिणामों पर "बड़ी चिंता" व्यक्त की थी.
मुसीबत है प्लास्टिक
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनईपी की रिपोर्ट के मुताबिक अच्छी योजना के साथ काम किया जाए तो प्लास्टिक से दूरी बनाने पर दुनिया 2040 के अंत तक 4500 अरब डॉलर बचा सकती है. इसमें सिंगल यूज प्लास्टिक का उत्पादन न करने से बचने वाली लागत भी शामिल है. वैसे फिलहाल सबसे ज्यादा पैसा प्लास्टिक के कारण सेहत और पर्यावरण को रहे नुकसान पर खर्च हो रहा है.
नदी पर बिछी कचरे की चादर
बोस्निया की नदी में बहते कचरे की ये तस्वीरें डराने वाली हैं. पर्यटन पर आधारित वाइसग्राद शहर के इस मंजर से लोगों की रोजी-रोटी तक खतरे में पड़ गई है.
तस्वीर: Amel Emric/REUTERS
नदी पर कचरा
बोस्निया के वाइसग्राद शहर में आने वाले पर्यटकों का सामना इस मंजर से होता है. दारीना नदी पर तैरता यह कचरा सारे इलाके की सुंदरता पर एक बदनुमा दाग बन गया है.
तस्वीर: Amel Emric/REUTERS
ड्रमों की बाड़
दारीना नदी मोंटेनीग्रो और सर्बिया से होती हुई बोस्निया पहुंचती है. वहां करीब 20 साल पहले ड्रमों से एक बाड़ बनाई गई थी, जिसका मकसद नदी में आने वाले कचरे को रोकना था.
तस्वीर: Amel Emric/REUTERS
फैलती चादर
इन ड्रमों के कारण जमा होता कचरा अब 5,000 क्यूबिक मीटर में फैल चुका है. यह हर साल यहां जमा होता है. इसमें ज्यादातर प्लास्टिक की बोतल हैं लेकिन और चीजें भी मिल जाती हैं. यहां तक कि मरे हुए जानवरों से लेकर टीवी और फ्रिज तक.
तस्वीर: Amel Emric/REUTERS
अन्य शहरों का कचरा
विशेषज्ञ बताते हैं कि नदी जिन शहरों से बहकर आती है, उनका कचरा भी पानी में गिरता रहता है और वाइसग्राद में आकर जमा हो जाता है, क्योंकि यहां बाड़ लगी है.
तस्वीर: Amel Emric/REUTERS
जल और जीवन के लिए खतरनाक
हर साल बारिश के बाद यह कचरा जमा किया जाता है और इसे जलाया जाता है. विशेषज्ञ इसे भी खतरनाक मानते हैं क्योंकि उससे वायु प्रदूषण होता है. इसके अलावा नदी को भी खतरा पैदा हो गया है.
तस्वीर: Amel Emric/REUTERS
रोजी रोटी पर मार
स्थानीय लोग कहते हैं कि इस कचरे के कारण पर्यटन प्रभावित हो रहा है. वाइसग्राद शहर ओटोमान काल के एक पुल के लिए मशहूर है जिसे देखने हर साल हजारों लोग आते हैं.
तस्वीर: Amel Emric/REUTERS
6 तस्वीरें1 | 6
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने जो नई तरह का प्लास्टिक विकसित किया है, फिलहाल वह प्रयोगशाला में ही है लेकिन कुछ ही साल में यह रोजमर्रा के इस्तेमाल के लिए तैयार हो सकता है.
इस प्लास्टिक में जो बैक्टीरिया मिलाया गया है उसे बैसिलस सबटिलिस कहा जाता है. यह बैक्टीरिया खाने में एक प्रोबायोटिक के रूप में खूब इस्तेमाल होता है. लेकिन अपने कुदरती रूप में यह बैक्टीरिया प्लास्टिक में नहीं मिलाया जा सकता. इसके लिए उसे जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से तैयार करना पड़ता है ताकि वह प्लास्टिक बनाने के लिए जरूरी अत्यधिक तापमान को सहन कर सके.
विज्ञापन
वैकल्पिक प्लास्टिक
बायोडिग्रेडेबेल प्लास्टिक की चर्चा बीते कुछ सालों में काफी तेज हुई है. इस पर कई वैज्ञानिक काम कर रहे हैं. 2016 से ही इस पर काफी रिसर्च सामने आई है. 2021 में मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की एक टीम ने जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से बैक्टीरिया को प्लास्टिक बनाने की प्रक्रिया का तापमान सहन करने में कामयाबी पाई थी.
धरती की सबसे बड़ी समस्या से मुक्ति दिलाएंगे बांस?
07:12
आमतौर पर उपलब्ध प्लास्टिक को खत्म करना मुश्किल होता है क्योंकि उसका रासायनिक स्वभाव बेहद जटिल होता है. वह बहुत सूक्ष्म मॉलीक्यूल्स से बना होता है, जिन्हें मोनोमर कहते हैं. ये मोनोमर आपस में जुड़कर बहुत मजबूत पॉलीमर बनाते हैं.
हालांकि बहुत से विशेषज्ञों का मानना है कि इसके बजाय प्लास्टिक का इस्तेमाल घटाने पर जोर दिया जाना चाहिए. लेकिन एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक प्लास्टिक का इस्तेमाल तीन गुना हो जाने की संभावना है. इस कारण प्लास्टिक की रीसाइक्लिंग की कोशिशें बहुत कामयाब नहीं हो पाई हैं. इसलिए बहुत से वैज्ञानिक मानते हैं कि खुद ही खत्म हो जाने वाला प्लास्टिक प्रदूषण घटाने में ज्यादा कारगर साबित हो सकता है.