वैज्ञानिकों ने आकाशगंगा मिल्की-वे में सितारों की दो अति-प्राचीन श्रृंखलाओं को खोजा है, जिन्हें शिव और शक्ति के नाम से जाना जाता है.
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वैज्ञानिकों ने आसमान में शिव और शक्ति को खोज लिया है. हिंदू देवताओं के नाम से जानी जाने वाली ये सितारों की दो प्राचीन श्रृंखलाएं हैं जिनके बारे में माना जा रहा है कि मिल्की-वे के निर्माण में इनकी अहम भूमिका रही होगी. इस खोज से वैज्ञानिकों को मिल्की-वे की जीवन यात्रा के बारे में नई जानकारियां मिली हैं.
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के गाइया टेलीस्कोप से खोजी गईं इन श्रृंखलाओं के बारे में वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ये दो अलग-अलग आकाशगंगाओं के अवशेष हैं जिन्होंने मिलकर नई आकाशगंगा मिल्की-वे को जन्म दिया.
अंतरिक्ष की अभूतपूर्व तस्वीरें लेगा दुनिया का सबसे बड़ा डिजिटल कैमरा
चिली के खगोल वैज्ञानिक दुनिया के सबसे बड़े डिजिटल कैमरे की मदद से ब्रह्मांड के रहस्यों पर से पर्दा उठाना चाहते हैं. उन्हें उम्मीद है कि एक गाड़ी के आकार का यह कैमरा ऐसी तस्वीरें ले पाएगा जो पहले कभी नहीं ली गईं.
तस्वीर: Javier Torres/AFP
दुनिया का सबसे बड़ा कैमरा
रेगिस्तानी पहाड़ों और साफ नीले आसमान से घिरी उत्तरी चिली की वेरा सी रुबिन वेधशाला के खगोल वैज्ञानिक ब्रह्मांड के अध्ययन में क्रांति लाने की उम्मीद कर रहे हैं. इसके लिए उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े डिजिटल कैमरे को एक दूरबीन से जोड़ा है.
तस्वीर: Javier Torres/AFP
बड़ा बदलाव
स्टुअर्ट कॉर्डर 8,200 फुट ऊंचे 'सेरो पांचों' पहाड़ के ऊपर स्थित इस वेधशाला को चलाने वाले अमेरिकी शोध केंद्र नोआरलैब के डिप्टी निदेशक हैं. अगर वह सफल रहे तो चिली की राजधानी सैंटियागो से 560 किलोमीटर दूर उत्तर की तरफ स्थित यह वेधशाला "खगोल शास्त्र में एक मूलभूत बदलाव" ले कर आएगी.
तस्वीर: Javier Torres/AFP
नई नजर से अंतरिक्ष
यह उपकरण एक छोटी गाड़ी जितना बड़ा है और इसका वजन है 2.8 टन. अमेरिका द्वारा फंडेड इस परियोजना के प्रतिनिधियों ने बताया कि इससे अंतरिक्ष के बारे में ऐसी जानकारी मिलेगी जो पहले कभी नहीं मिली. उम्मीद की जा रही है कि 80 करोड़ डॉलर का यह कैमरा 2025 की शुरुआत में अपनी पहली तस्वीरें लेगा. यह हर तीसरे दिन तस्वीरें लेगा और वो तस्वीरें इतनी बारीक होंगी जितनी पहली कभी नहीं देखी गईं.
तस्वीर: Javier Torres/AFP
विशालकाय तस्वीरें
यह कैमरा 3,200 मेगापिक्सल पर तस्वीरें ले सकेगा, जिसकी वजह से यह तस्वीरें इतनी विशालकाय होंगी कि ऐसी सिर्फ एक तस्वीर को देखने के लिए 300 से ज्यादा मध्यम आकार के हाई रेसोल्यूशन टेलीविजनों की जरूरत होगी. कलिफोर्निया में बनाये गए इस उपकरण की क्षमता दुनिया के सबसे शक्तिशाली कैमरा - जापान में स्थित 870 मेगापिक्सल वाले हाइपर सुप्रीम-कैम - से तीन गुना ज्यादा है.
तस्वीर: Javier Torres/AFP
पहला लक्ष्य
नए कैमरे का पहला लक्ष्य होगा आसमान की 10 साल की एक समीक्षा को पूरा करना. इसे 'लिगेसी सर्वे ऑफ स्पेस एंड टाइम (एलएसएसटी)' कहते हैं और शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इससे दो करोड़ आकाशगंगाओं, 17 अरब सितारों और अंतरिक्ष में स्थित 60 लाख अन्य पिंडों के बारे में जानकारी पर से पर्दा उठेगा.
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एक साथ कई सितारे
चिलियन सोसाइटी ऑफ एस्ट्रोनॉमी (सोचियास) के अध्यक्ष ब्रूनो डीएस का कहना है कि इस उपकरण की मदद से शोधकर्ता "एक समय में एक सितारे के अध्ययन और उसके बारे में गहराई से जानने की जगह एक बार में हजारों सितारों का अध्ययन" कर पाएंगे.
तस्वीर: Javier Torres/AFP
चिली में आगे बढ़ता खगोल विज्ञान
इस परियोजना से खगोलीय अध्ययन में चिली की प्रमुखता और मजबूत होगी. सोचियास के मुताबिक, दुनिया की सबसे शक्तिशाली दूरबीनों में से एक तिहाई चिली में ही हैं और इस यह दुनिया के उन देशों में भी शामिल है जहां आसमान सबसे ज्यादा साफ नजर आता है.
तस्वीर: Javier Torres/AFP
चिली का कोई मुकाबला नहीं
मानवता की सबसे महत्वपूर्ण खगोलीय खोजों में से कई 'सेरो तोलोलो' वेधशाला में ही हुई हैं. सोचियास के प्रमुख डीएस का कहना है कि हालांकि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, चीन और स्पेन समेत कई दुनिया के कई देशों में महत्वपूर्ण वेधशालाएं खुली हैं, लेकिन खगोल विज्ञान की दुनिया में "चिली का कोई कोई मुकाबला" नहीं है. (यूली हुएनकेन)
तस्वीर: Javier Torres/AFP
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शक्ति और शिव श्रृंखलाओं के सितारों का रासायनिक ढांचा वही है जैसा 12-13 अरब साल पहले जन्मे सितारों में पाया गया है. दोनों श्रृंखलाओं का भार हमारे सूर्य से एक-एक करोड़ गुना ज्यादा है.
हिंदू पुराणों में शिव और शक्ति के मिलन से ब्रह्मांड के जन्म का जिक्र आता है. अब वैज्ञानिकों की खोज से यह पता चलता है कि मिल्की-वे का निर्माण किस प्रक्रिया से हुआ होगा.
जर्मनी के माक्स प्लांक इंस्टिट्यूट में खगोलविद ख्याति मल्हान इस शोध की मुख्य शोधकर्ता हैं, जो इसी हफ्ते ‘एस्ट्रोफिजिकल' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. मल्हान बताती हैं, "मोटे तौर पर हमारे शोध का मकसद फिजिक्स के मूल सवाल का हल खोजना है कि आकाशगंगाएं कैसे बनती हैं.”
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कैसे हैं शिव और शक्ति
मिल्की-वे करोड़ों-अरबों सितारों का समूह है जो करीब एक लाख प्रकाश वर्ष के दायरे में फैला हुआ है. सितारे, गैसें और सितारों की धूल के रूप में यह समूह एक लहर की तरह लंबाई में है. मल्हान कहती हैं, "हमारे अध्ययन से यह पता चला है कि मिल्की-वे का शुरुआती समय कैसा रहा होगा. हमने सितारों के उन दो समूहों की पहचान की है जो मिल्की-वे के निर्माण से पहले का आखिरी चरण रहा होगा.”
जिस गाइया टेलीस्कोप ने इस खोज में मदद की है, उसने 2013 में काम करना शुरू किया था. यह दूरबीन मिल्की-वे का अब तक का सबसे बड़ा थ्री-डी नक्शा तैयार कर रही है. इसके लिए सितारों की स्थिति, दूरियां और गति का आकलन किया जा रहा है. इसी डेटा से ख्याति मल्हान और उनके साथियों को शिव और शक्ति की पहचान का मौका मिला.
कहां छुपा है सौर मंडल का नौवां ग्रह
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जिस बिग-बैंग से आकाशगंगाओं का निर्माण शुरू हुआ, वह करीब 13.8 अरब साल पहले हुआ था. शिव और शक्ति अब आकाश गंगा के केंद्र से 30 हजार प्रकाश वर्ष दूर स्थित हैं. शिव केंद्र के ज्यादा पास है जबकि शक्ति समूह दूर की तरफ है.
13 अरब साल लंबी फिल्म
2022 में गाइया के जरिए ही वैज्ञानिकों ने सितारों के एक और समूह की खोज की थी, जिसे ‘पुअर ओल्ड हार्ट' नाम दिया गया था. यह समूह आकाशगंगा के जन्म के समय से वहां मौजूद है. लेकिन शिव और शक्ति समूह में जो सितारे हैं, उनकी रासायनिक संरचना आकाशगंगा के अन्य सितारों से अलग है.
क्या पाया यूरोप की नई अंतरिक्ष टेलिस्कोप ने
यूरोप के खगोल वैज्ञानिकों ने हाल ही में लॉन्च की गई अंतरिक्ष टेलिस्कोप यूक्लिड द्वारा ली गई तस्वीरें जारी की हैं. देखिए डार्क मैटर और डार्क ऊर्जा के रहस्यों पर से पर्दा हटाने के लिए बनाई गई इस टेलिस्कोप ने क्या पाया.
तस्वीर: ESA/Euclid/Euclid Consortium/NASA, image processing by J.-C. Cuillandre
डार्क मैटर की पड़ताल
यह यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) की हाल ही में लॉन्च की गई अंतरिक्ष टेलिस्कोप 'यूक्लिड' द्वारा ली गई पहली तस्वीरें हैं. इस टेलिस्कोप को डार्क मैटर और डार्क ऊर्जा के बारे में और पता करने के लिए बनाया गया है. माना जाता है कि ब्रह्मांड का 95 प्रतिशत इन्हीं शक्तियों से बना है. इस मिशन में नासा भी साझेदार है.
तस्वीर: Patrice Lapoirie/dpa/picture alliance
विशाल आकाशगंगाएं
इन तस्वीरों में सिर्फ 24 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर पर्सियस क्लस्टर की 1,000 आकाशगंगाएं और उसके पीछे फैलीं 1,00,000 से ज्यादा आकाशगंगाएं शामिल हैं. यह पर्सियस की तस्वीर है. वैज्ञानिक मानते हैं कि संगठित ढांचे जैसे लगने वाले पर्सियस जैसे विशाल क्लस्टरों का बनना ही डार्क मैटर के होने का प्रमाण है.
तस्वीर: ESA/Euclid/Euclid Consortium/NASA, image processing by J.-C. Cuillandre
हमारी आकाशगंगा की हमशक्ल
ईएसए के मुताबिक यह तस्वीरें इस टेलिस्कोप की 10 अरब प्रकाश वर्ष तक दूर, अरबों आकाशगंगाओं को देख सकने की क्षमता को दिखाती हैं. "हिडेन गैलक्सी" नाम की आकाशगंगा की तस्वीरें भी हैं जिसे हमारी आकाशगंगा की हमशक्ल माना जा रहा है.
तस्वीर: ESA/Euclid/Euclid Consortium/NASA, image processing by J.-C. Cuillandre
ब्रह्मांड के बिल्डिंग ब्लॉक
दूसरी तस्वीरों में एक अनियमित आकाशगंगा शामिल है. माना जा रहा है कि यह ब्रह्मांड के बिल्डिंग ब्लॉक जैसी दिखाई देती है. यूक्लिड इन सभी आकाशगंगाओं के प्रकाश का अध्ययन कर ब्रह्मांड का एक थ्रीडी मैप बनाएगी.
तस्वीर: ESA/Euclid/Euclid Consortium/NASA, image processing by J.-C. Cuillandre
ग्रैविटी से चिपके सितारे
यह करीब 7,800 प्रकाश वर्ष दूर स्थित एनजीसी 6397 नाम के ग्लोब्यूलर क्लस्टर की तस्वीर है. गुरुत्वाकर्षण द्वारा एक साथ थामे हुए लाखों सितारों के समूह को ग्लोब्यूलर क्लस्टर कहते हैं. कोई भी और टेलिस्कोप एक साथ एक पूरे ग्लोब्यूलर क्लस्टर की तस्वीर नहीं ले सकती.
तस्वीर: ESA/Euclid/Euclid Consortium/NASA, image processing by J.-C. Cuillandre
घोड़े के सिर वाली नेब्युला
यह घोड़े के सिर वाली नेब्युला का विस्तृत दृश्य है. इसे बर्नार्ड 33 के नाम से भी जाना जाता है और यह ओरियन तारामंडल का हिस्सा है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यूक्लिड की मदद से वो इस नेब्युला में वृहस्पति के घनत्व के कई ग्रहों को उनकी बाल्यवास्था में खोज पाएंगे. (रॉयटर्स)
तस्वीर: ESA/Euclid/Euclid Consortium/NASA, image processing by J.-C. Cuillandre
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इन सितारों में लोहा, कार्बन, ऑक्सीजन और अन्य भारी धातुएं कम मात्रा में मौजूद हैं. ये धातुएं उन सितारों में मौजूद थे जो ब्रह्मांड के निर्माण की शुरुआत में बने थे. जब उन सितारों का जीवन खत्म हुआ और वे टूटे तो ये तत्व पूरे ब्रह्मांड में बिखर गए.
मल्हान बताती हैं, "आदर्श रूप में हम मिल्की-वे के जन्म की शुरुआत से अब तक के पूरे सफर का नक्शा बनाना चाहते हैं. यह 13 अरब साल लंबी एक फिल्म जैसा होगा. लेकिन यह आसान नहीं है.”