आर्कटिक में वैज्ञानिक आइस मेमरी को संरक्षित करने में जुटे
१० अप्रैल २०२३
वैज्ञानिक आर्कटिक क्षेत्र की सबसे पुरानी बर्फ को संरक्षित करने की कोशिश में जुटे हुए हैं. ऐसी चिंताएं हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण बर्फ तेजी से पिघल सकती है.
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आर्कटिक क्षेत्र की बर्फीली परतों में हजारों साल पुराने पानी में हमारे ग्रह के बनने और यहां जीवन के जन्म के रहस्य दबे हुए हैं. हालांकि, अब वैज्ञानिक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि जलवायु परिवर्तन इस बर्फ को पिघला सकता है.
इटली, फ्रांस और नार्वे के शोधकर्ता नॉर्वे के स्वालबार्ड क्षेत्र में अत्यंत प्राचीन बर्फ को संरक्षित करने के मिशन पर हैं. इसे संरक्षित करने के लिए आर्कटिक से अंटार्कटिक, दक्षिणी ध्रुव तक बर्फ पहुंचाने की योजना है. पृथ्वी पर पानी की कहानी इसी अति प्राचीन बर्फ से जुड़ी हुई है.
आइस मेमोरी फाउंडेशन के उपाध्यक्ष कार्लो बारबांते ने कहा, "आर्कटिक जैसे उच्च अक्षांश क्षेत्रों में ग्लेशियर बहुत तेजी से पिघलने लगे हैं. इससे पहले कि जलवायु परिवर्तन इनमें मौजूद सभी अहम अर्काइव्स को मिटा दे हम इन अर्काइव्स को भविष्य के वैज्ञानिकों की पीढ़ियों के लिए संरक्षित करना चाहते हैं."
आठ विशेषज्ञों की टीम ने 1100 मीटर की ऊंचाई पर कैंप बनाया है. आइस मेमोरी के मुताबिक होल्टेडफुना आइसफील्ड में स्थापित इस कैंप से पिछले हफ्ते ड्रिलिंग शुरू की .
ये शोधकर्ता ट्यूब की मदद से धरती की सतह से 125 मीटर की गहराई से इस बर्फ को निकालेंगे. बर्फ के क्रिस्टल में मौजूद महत्वपूर्ण डेटा वैज्ञानिकों को पिछले जलवायु परिवर्तनों को समझने में मदद करते हैं. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि पिघला हुआ पानी धीरे-धीरे धरती की गहराई तक पहुंच रहा है और इस तरह प्राचीन बर्फ गायब हो सकती है.
आइस मेमरी फाउंडेशन के अध्यक्ष जेरोम चैपल्स ने कहा, "वैज्ञानिक पृथ्वी की सतह से इस आदिम सामग्री को बर्फ से गायब होते हुए देख रहे हैं." उन्होंने कहा, "यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है कि यह सुरक्षित रहे."
मानव गतिविधियों के कारण वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि ने 19वीं शताब्दी के बाद से तापमान में औसतन एक डिग्री सेल्सियस के दसवें हिस्से की वृद्धि की है.
अध्ययनों के मुताबिक आर्कटिक क्षेत्र शेष विश्व की तुलना में दो से चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है. शोधकर्ताओं का कहना है कि नॉर्वे के इस दूर दराज क्षेत्र से बर्फ को समुद्र के रास्ते यूरोप लाया जाएगा और फिर दक्षिणी ध्रुव में फ्रांको-इतालवी अंटार्कटिक स्टेशन पर रखा जाएगा.
एए/सीके (एएफपी, एपी)
गंभीर सूखा: क्या यूरोप सूख रहा है?
यूरोप में अभी बसंत ऋतु आई भी नहीं है और कई इलाके अभी से सूखे की चपेट में आ गए हैं. इन सर्दियों में बारिश और बर्फ दोनों कम गिरी है जिसकी वजह से पूरे यूरोप में नदियों और तालाबों में पानी का स्तर नीचे ही है.
तस्वीर: Luigi Costantini/AP/dpa/picture alliance
नीला नहीं भूरा
फ्रांस में एक महीने से भी ज्यादा वक्त से बारिश नहीं हुई है. यह 1959 के बाद सर्दियों में बारिश का सबसे लंबा इंतजार है. इसका मुख्य कारण है पश्चिमी यूरोप के ऊपर बने उच्च दबाव के हालात जो बारिश वाले बादलों को दूर भगा देते हैं. जलवायु परिवर्तन यूरोप में सूखे को एक स्थायी समस्या बना सकता है. यह फ्रांस की सबसे लंबी नदी लुआर है जो लगभग सूख चुकी है - और अभी सिर्फ मार्च ही है.
तस्वीर: STEPHANE MAHE/REUTERS
ऊर्जा की कमी का एक और दौर?
फ्रेंच ऐल्प्स में 346 एकड़ में फैले 'ला द शाम्बो' जलाशय में पानी का स्तर अभी से बहुत नीचे चला गया है. फ्रांस को 15 प्रतिशत बिजली इस तरह के पनबिजली संयंत्रों से मिलती है और देश में ऊर्जा संकट के एक और दौर को लेकर चिंताएं बढ़ती जा रही हैं. 2022 की गर्मियों में फ्रांस के कुछ परमाणु संयंत्रों को अस्थायी रूप से बंद करना पड़ा था, क्योंकि उन्हें ठंडा करने के लिए नदियों में पर्यापत पानी नहीं था.
तुलूस में पो दे कातालान नाम का पल गरोन नदी के ऊपर बना हुआ है. फ्रांस के कुछ हिस्सों में अभी से नल सूख गए हैं. सरकार को एक और सूखे भरी गर्मी के मौसम का खतरा लग रहा है, जिसकी तैयारी करने के लिए सरकार ने तुरंत कुछ कदम उठाने के आदेश दे दिए हैं. कुछ इलाकों में स्विमिंग पूल भरने या गाड़ियों को धोने पर बैन लगा दिया गया है. उम्मीद है कि पानी बचाने की एक राष्ट्रीय योजना इसी महीने में लाई जाएगी.
फरवरी में वेनिस में कम ज्वार के समय नहरों में पानी बिल्कुल सूख गया था और शहर की मशहूर गोंडोला मिटटी में अटकी हुई थीं. तब से शहर में स्थिति कुछ सामान्य हुई है. पिछले साल इटली में फसलें सूखे की वजह से गंभीर रूप से प्रभावित हुई थीं, विशेष रूप से देश के उत्तरी हिस्से में. डर लग रहा है कि इस साल गर्मियों में उससे ज्यादा नुकसान होगा.
तस्वीर: Luigi Costantini/AP/dpa/picture alliance
पानी नहीं तो पर्यटक नहीं?
पूरे उत्तरी इटली में सूखा पड़ा हुआ है. कहा जा रहा है कि मागियोर तालाब सिर्फ 38 प्रतिशत भरा हुआ है. इन सर्दियों में इतालवी ऐल्प्स में लंबी अवधि के औसत के हिसाब से सिर्फ आधी बर्फ गिरी थी, जिसका मतलब है पिछली गर्मियों के बाद से स्थिति में कुछ खास सुधार नहीं आया है. पिछले साल का सूखा 70 सालों में सबसे बुरा सूखा था. आशंका है कि सूखे का पर्यटन पर भी नकारात्मक असर होगा.
फरवरी के अंत में इटली के गारदा तालाब में पानी इतना नीचे था कि लोग बिना पांव गीले किए सान बियाजियो द्वीप तक पैदल जा सकते थे. इन सर्दियों में इतनी कम बर्फ और बारिश गिरी है कि इटली के सबसे बड़े तालाबों में पानी का स्तर 30 सालों में सबसे कम बिंदु तक गिर गया है. फ्रांस की ही तरह इटली की सरकार भी पानी की इस कमी का मुकाबला करने के लिए कदम उठाने की योजना बना रही है.
तस्वीर: PIERO CRUCIATTI/AFP
जर्मनी में जलवायु परिवर्तन की मार
जर्मनी के राइनलैंड-पालाटीनेट में राइन नदी से बालू के टीले निकल आए हैं. साल के इस वक्त के हिसाब से नदी का स्तर असामान्य रूप से नीचे है. यहां भी बारिश की कमी के अलावा स्थिति और खराब ऐल्प्स की बर्फ के पिघलने में कमी की वजह से हुई है. पिछली सर्दियां में जर्मनी में लगातार 12वीं बार ऐसा हुआ था जब सर्दियां काफी गर्म थीं. जर्मन मौसम विभाग के उवे कर्ष का कहना है, "जलवायु परिवर्तन कमजोर नहीं हो रहा है."
तस्वीर: Thomas Frey/dpa/picture-alliance
दक्षिण से उत्तरी यूरोप तक सूखा
कोर्सिका द्वीप पर 'ला द तोला' तालाब में भी पानी का स्तर बहुत नीचे जा चुका है. इन सर्दियों में ऐसे देशों में भी सूखा पड़ा है जहां सामान्य रूप से बहुत बारिश होती है. ब्रिटेन में यह फरवरी 30 सालों में सबसे सूखा फरवरी था. विशेषज्ञ गर्मियों में आने वाले हालात के बारे में बहुत चिंतित हैं.