जापान के रिसर्चरों ने एक ऐसा प्लास्टिक विकसित किया है जो समुद्र के पानी में जाने के कुछ ही घंटों बाद गल जाता है. समुद्र में प्लास्टिक कचरे के कारण बढ़ती मुश्किलों को हल करने में यह काफी मददगार हो सकता है.
नया प्लास्टिक महासागरों से प्लास्टिक प्रदूषण घटाने में मददगार हो सकता हैतस्वीर: Manami Yamada/REUTERS
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वैज्ञानिक लंबे समय से ऐसा प्लास्टिक बनाने की कोशिश कर रहे हैं जिसका जैवअपघटन मुमकिन हो यानी जो सड़ गल कर प्राकृतिक रूप से खत्म हो जाए. टोक्यो यूनिवर्सिटी के रिकेन सेंटर फॉर इमर्जेंट मैटर के रिसर्चरों ने एक नया मटीरियल तैयार किया है जो बहुत जल्दी टूट जाता है और अपने पीछे कोई तलछट या अपशिष्ट नहीं छोड़ता. इससे पर्यावरण में मौजूद प्लास्टिक प्रदूषण को घटाने में मदद मिल सकती है.
आखिर कितना प्लास्टिक कचरा है दुनिया में
कोशिश की जा रही है कि दिसंबर, 2024 तक प्लास्टिक कचरे को कम करने की दुनिया की पहली संधि पर सभी देशों के बीच सहमति हो जाए. आइए जानते हैं कि आखिर कितना प्लास्टिक कचरा दुनिया में फैल चुका है.
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230 गुना बढ़ गया है उत्पादन
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के मुताबिक आज 1950 के मुकाबले प्लास्टिक के मूलभूत अंग सिंथेटिक पॉलिमर का वैश्विक उत्पादन 230 गुना बढ़ गया है. 2000 से 2019 के बीच ही कुल उत्पादन दोगुना होकर 46 करोड़ टन हो गया. स्टील, एल्युमीनियम और सीमेंट जैसे उत्पादों से भी ज्यादा तेजी से सिंथेटिक पॉलिमर का उत्पादन हो रहा है. ओईसीडी के मुताबिक, 2060 तक यह आंकड़ा 46 करोड़ टन से 1.2 अरब टन हो जाएगा.
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कहां बन रहा है सबसे ज्यादा प्लास्टिक
प्लास्टिक उत्पदान में यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से अमेरिका, मध्य पूर्व और चीन में हुई है. कोविड-19 महामारी और उसके बाद आए आर्थिक संकट की वजह से हेल्थकेयर, फूड रिटेल और ई-कॉमर्स में एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक की खपत बढ़ गई है.
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एक अरब टन प्लास्टिक कचरा
2000 से 2019 के बीच दुनियाभर में बनने वाले प्लास्टिक कचरे की संख्या दोगुने से भी ज्यादा बढ़ कर, 15.6 करोड़ टन से 35.3 करोड़ टन हो गई. अनुमान है कि 2060 तक यह तीन गुना बढ़ कर एक अरब टन हो जाएगी. इसमें से दो-तिहाई से भी ज्यादा कचरा ऐसी चीजों का है जो पांच साल से भी कम चलती हैं, जैसे प्लास्टिक पैकेजिंग का सामान, कपड़े आदि.
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4.4 करोड़ टन हो सकता है कचरा
ओईसीडी का अनुमान है कि 2060 तक पर्यावरण में मौजूद कचरे की मात्रा दोगुना बढ़कर 4.4 करोड़ टन हो जाएगी, जिसमें से अधिकांश कचरा बड़ा प्लास्टिक होगा. लेकिन इसमें से काफी छोटे छोटे कण भी होंगे जिन्हें खून में और मां के दूध में पाया गया है.
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क्या होता है प्लास्टिक कचरे का
पूरी दुनिया में प्लास्टिक कचरे का सिर्फ नौ प्रतिशत रिसाइकल किया जाता है, 19 प्रतिशत को जलाया जाता है और करीब 50 प्रतिशत लैंडफिल यानी बड़े बड़े गड्ढों में पहुंच जाता है. बाकी 22 प्रतिशत अवैध रूप से फेंक दिया जाता है, खुले में जला दिया जाता है या यूं ही पर्यावरण में छोड़ दिया जाता है.
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समुद्री कचरा ज्यादातर प्लास्टिक
ओईसीडी के मुताबिक 2.2 करोड़ टन प्लास्टिक पर्यारण में मिल गया, जिसमें से 60 लाख टन नदियों, तालाबों और सागरों में गया. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के मुताबिक, समुद्री कचरे का कम से कम 85 प्रतिशत प्लास्टिक है.
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कार्बन उत्सर्जन में भी बड़ा योगदान
प्लास्टिक का अच्छा खासा कार्बन पदचिह्न भी होता है. 2019 में प्लास्टिक की वजह से 1.8 अरब टन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन हुआ, जो दुनियाभर के कुल उत्सर्जन का 3.4 प्रतिशत है. ओईसीडी और यूएनईपी के मुताबिक इस उत्सर्जन में से करीब 90 प्रतिशत प्लास्टिक के उत्पादन और प्रोसेसिंग से आया. (एएफपी)
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घंटे भर में गल गया प्लास्टिक
टोक्यो के नजदीक वाको सिटी की एक प्रयोगशाला में वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़ों को गल कर खत्म होते दिखाया. प्लास्टिक के टुकड़ों को लगभग एक घंटे के लिए बाल्टी में भरे नमक वाले पानी में डाला गया. घंटे भर में ही ये टुकड़े गल कर खत्म हो गए.
रिसर्चरों की टीम ने अभी इस मटीरियल को व्यापारिक तौर पर पेश करने की योजना नहीं बनाई है. हालांकि ताकुजो आइदा के नेतृत्व में चल रहे इस रिसर्च में उद्योग जगत के लोगों की काफी दिलचस्पी है. खास तौर से ऐसी कंपनियां जो पैकेजिंग से जुड़ी हैं.
आइदा का कहना है कि नया मटीरियल उतना ही मजबूत है जितना कि पेट्रोलियम वाला प्लास्टिक लेकिन जब इसे नमक के संपर्क में लाया जाता है तो यह अपने मूल घटकों में तुरंत टूट जाता है. उन घटकों को फिर प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाले बैक्टीरिया खत्म कर देते हैं. इस तरह से इस प्रक्रिया में हानिकारक माइक्रोप्लास्टिक नहीं बनता है.
जापान के वैज्ञानिकों ने ऐसा प्लास्टिक बनाया है जो नमक के साथ जाने पर गल जाता हैतस्वीर: Manami Yamada/REUTERS
माइक्रोप्लास्टिक जलीय जीवन के लिए खतरा बन गया है. यह हमारे भोजनचक्र में भी शामिल हो गया है. नमक धरती पर मौजूद मिट्टी में भी होता है तो ऐसे में नए मटीरियल का करीब पांच सेंटीमीटर का टुकड़ा 200 घंटे तक मिट्टी में रहने के बाद भी खत्म हो जाता है.
ना जहरीला ना ज्वलनशील
इस मटीरियल का इस्तेमाल कोटिंग के बाद सामान्य प्लास्टिक की तरह हो सकता है. फिलहाल रिसर्चरों की टीम कोटिंग के बेहतरीन तरीकों पर ही काम कर रही है. यह प्लास्टिक ना तो जहरीला है ना ही ज्वलनशील और यह कार्बन उत्सर्जन भी नहीं करता.
कैसे प्लास्टिक का कचरा कला में तब्दील हो रहा है
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दुनिया भर के वैज्ञानिक प्लास्टिक के कचरे की बढ़ती समस्या काकोई बढ़िया समाधान ढूंढने की कोशिश में जुटे हुए हैं. 5 जून को मनाया जाने वाला विश्व पर्यावरण दिवस इस तरह की कोशिशों के लिए और ज्यादा उत्साह जगाता है.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का आकलन है कि 2040 तक प्लास्टिक का प्रदूषण वर्तमान स्थिति से दोगुना हो जाएगा. इसका मतलब है कि हर साल महासागरों में जाने वाले प्लास्टिक कचरे की मात्रा 2.3-3.7 करोड़ टन तक हो जाएगी. आइदा का कहना है, "बच्चे इसका चुनाव नहीं कर सकते कि वो किस ग्रह पर अपना जीवन बिताएंगे. यह हमारा कर्तव्य है कि हम यह तय करें कि हम उनके लिए जितना संभव है बेहतर पर्यावरण छोड़ कर जाएंगे."