डार्विन के 164 साल बाद प्राकृति के नये नियम का प्रस्ताव
१७ अक्टूबर २०२३
मानव विकास का वर्णन करने वाला डार्विन का सिद्धांत तो असल सिद्धांत का एक हिस्सा भर है. वैज्ञानिकों ने यह कहते हुए नया सिद्धांत दिया है.
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1859 में अपनी किताब ‘ऑन द ऑरिजिन ऑफ स्पीशिज' में चार्ल्स डार्विन ने मानव विकास का सिद्धांत दिया और कहा कि समय के साथ-साथ जीव नये गुण विकसित करते रहते हैं जो उनके अस्तित्व और पुनरोत्पादन में मदद करते रहते हैं. इस सिद्धांत ने विज्ञान जगत में क्रांतिकारी बहस छेड़ दी थी.
अब 164 साल बाद नौ वैज्ञानिकों और दार्शनिकों ने प्रकृति का एक नया सिद्धांत दिया है जिसमें डार्विन के सिद्धांत को एक विस्तृत परिघटना का हिस्सा बताया गया है. यह परिघटना अणुओं, खनिजों, ग्रहीय वातावरण, ग्रहों, सितारों और उनके पार भी घटती है.
नया प्रस्तावित सिद्धांत कहता है कि प्रकृतिक व्यवस्था कहीं अधिक विस्तृत प्रचलन, विविधता और जटिलता के साथ विकसित होती है.
लौट आया अंतरिक्ष में फंसा यात्री
एक साल से ज्यादा वक्त बिताने वाले नासा एस्ट्रोनॉट फ्रैंक रूबियो पृथ्वी पर लौट आये हैं. तकनीकी खराबी के कारण वह आईएसएस पर फंस गये थे.
तस्वीर: Dmitri Lovetsky/POOL AP/dpa
लौट आये फ्रैंक रूबियो
नासा एस्ट्रोनॉट फ्रैंक रूबिया पृथ्वी पर लौट आये हैं. बीते बुधवार वह अपने दो और सहयोगियों के साथ कजाखस्तान में उतरे. सोयूज एमएस-3 कैप्सुल में उनके साथ रूसी अंतरिक्ष यात्री सर्गेई प्रोकोपयेव और दिमित्री पेटेलियन भी थे.
तस्वीर: Frank Rubio/NASA/ZUMAPRESS/picture alliance
371 दिन अंतरिक्ष में
रुबियो ने अंतरिक्ष में 371 दिन बिताये. हालांकि वह सिर्फ छह महीने के लिए गये थे लेकिन उन्हें जिस यान से लौटना था, उसमें खराबी आ गयी और वह इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर फंस गये.
तस्वीर: AFP
अमेरिकी रिकॉर्ड
रूबियो अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा समय तक रहने वाले अमेरिकी बन गये हैं. पिछले हफ्ते आईएसएस से ही दिये एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि यह एक अविश्वसनीय चुनौती थी और बहुत कठिन थी.
तस्वीर: Dmitri Lovetsky/ASSOCIATED PRESS/picture alliance
अंतरिक्ष में रहने का रिकॉर्ड
अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा वक्त बिताने का रिकॉर्ड रूसी यात्री वालेरी पोल्यकोव के नाम है, जिन्होंने 473 दिन बिताये थे. वह 1990 के दशक में अंतरिक्ष में रहे थे.
तस्वीर: Maxim Shemetov/REUTERS
धरती के 6,000 चक्कर
रूबियो ने पृथ्वी की कक्षा के लगभग 6,000 चक्कर लगाये और 15.70 करोड़ किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा की. नासा के मुताबिक यह धरती से चांद की 328 यात्राओं के बराबर है.
तस्वीर: Dmitri Lovetsky/POOL AP/dpa
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कार्नेज इंस्टिट्यूशन ऑफ साइंस में मिनरेलॉजिस्ट और एस्ट्रोबायोलॉजिस्टन रॉबर्ट हेजन उन नौ वैज्ञानिकों में से एक हैं जिन्होंने यह शोधपत्र लिखा है. हेजन कहते हैं, "हम विकास को एक वैश्विक प्रक्रिया के तौर पर देखते हैं जो जीवित और अजीवित दोनों ही तरह के तमाम समूहों पर लागू होता है. इससे समय के साथ-साथ पैटर्न और विविधता बढ़ती जाती है.”
कैसे होता है विकास?
‘लॉ ऑफ इनक्रीजिंग फंक्शनल इनफॉर्मेशन' नाम से यह शोध पत्र प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकैडमी ऑफ साइंसेज पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. यह कहता है कि विकसित होते जीवित और अजीवित तंत्र अलग-अलग तरह के ढांचे बनाते हैं जो आपस में संवाद करते हैं. अणु या कोशिका जैसे ये ढांचे लगातार विकसित होते हैं, मसलन कोशिकाएं टूटती हैं और नयी कोशिकाएं बनती हैं. इन सभी ढांचों के अलग-अलग काम हो सकते हैं और इस कारण लगातार विकास होता है.
हेजन कहते हैं, "हमारे पास स्थापित नियम हैं जो इन रोजमर्रा की प्रक्रियाओं का वर्णन करते हैं. मसलन, बल, गुरुत्वाकर्ण, चुंबकीय बल, ऊर्जा या विद्युत आदि के नियम. लेकिन अपने आप या मिलकर भी ये नियम इस सवाल का जवाब नहीं देते कि ब्रह्मांड लगातार और अधिक विविध और जटिल क्यों होता जा रहा है. यह विविधता और जटिलता अणुओं से लेकर खनिजों तक और अन्य स्तरों पर बढ़ती है.”
15 फुट का रोबोट
टोक्यो की एक स्टार्ट-अप कंपनी शुबामे इंडस्ट्रीज ने 4.5 मीटर यानी लगभग 15 फुट लंबा एक दैत्याकार रोबोट तैयार किया है. अब तक इस तरह के रोबोट फिल्मों में ही नजर आये हैं.
तस्वीर: Issei Kato/REUTERS
आरचेक्स, दैत्याकार रोबोट
शुबामे के इस रोबोट का नाम है आरचेक्स (ARCHAX), जिसका रूप-रंग जापानी एनीमेशन सीरीज के किरदार गंडैम से मिलता-जुलता है.
तस्वीर: Issei Kato/REUTERS
अंदर बैठेगा पायलट
आरचेक्स में एक कॉकपिट है और पायलट इसमें बैठकर रोबोट को चला सकता है. इसकी कीमत 30 लाख डॉलर यानी लगभग 25 करोड़ रुपये है.
तस्वीर: Issei Kato/REUTERS
कैमरे हैं आंखें
पायलट के सामने एक मॉनिटर लगा है जिसमें उसे बाहर का नजारा दिखाई देता है. बाहर कैमरे लगे हैं जो अंदर स्क्रीन पर तस्वीरें भेजते हैं.
तस्वीर: Issei Kato/REUTERS
साढ़े तीन टन वजन
साढ़े तीन टन के इस रोबोट के दो मोड हैं. एक रोबोट मोड है, जो सीधा खड़ा होता है. दूसरा व्हीकल मोड जिसमें यह एक विशाल ट्रक में तब्दील हो जाता है और 10 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चल सकता है.
तस्वीर: Issei Kato/REUTERS
25 साल के सीईओ का सपना
शुबामे के सीईओ 25 साल के रेयो योशिदा हैं जो कहते हैं कि वह जापानी एनीमेशन से बहुत प्रभावित हैं. वह कहते हैं, “जापान एनीमेशन, गेम्स, रोबोट और ऑटोमोबाइल में बहुत अच्छा है इसलिए मैंने सोचा कि कुछ ऐसा बनाया जाए जिसमें ये सारी चीजें शामिल हो जाएं.”
तस्वीर: Issei Kato/REUTERS
क्या करेगा आरचेक्स?
योशिदा को उम्मीद है कि एक दिन यह दैत्याकार रोबोट अंतरिक्ष उद्योग या आपदा के वक्त राहत के कामकाज में फायदेमंद साबित होगा.
तस्वीर: Issei Kato/REUTERS
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उदाहरण के लिए सितारों में सिर्फ दो तत्व हाइड्रोजन और हीलियम ही 13.8 अरब साल पहले बिग बैंग के मुख्य तत्व थे. सितारों की पहली पीढ़ी ने अपने नाभिक में होने वाली थर्मोन्यूकलियर फ्यूजन प्रक्रिया के जरिये 20 से ज्यादा भारी तत्वों को जन्म दिया, जैसे कि कार्बन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन आदि. अपने जीवन चक्र के बाद जब इन सितारों में विस्फोट हुआ तो ये तत्व पूरे ब्रह्मांड में फैल गये. उसके बाद सितारों की जो पीढ़ी तैयार हुई उन्होंने लगभग 100 और नये तत्व बनाये.
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बढ़ती जटिलताएं
इसी तरह पृथ्वी पर जीवित तत्वों की जटिलता लगातार बढ़ती रही और वे एक कोशिकीय से बहुकोशिकीय होते चले गये. हेजन कहते हैं, "कल्पना कीजिए कि अणुओं परमाणुओं का एक ही तंत्र खरबों तरह से अलग-अलग तंत्रों में मौजूद हो सकता है. इनमें से बहुत कम ही तंत्र काम करेंगे. यानी उनकी कोई लाभदायक भूमिका होगी. और प्रकृति उन्हीं लाभदायक समीकरणों का इस्तेमाल करेगी.”
प्रकृति द्वारा इस चुनाव को वैज्ञानिकों ने तीन श्रेणियों में बांटा है. यानी प्रकृति तीन अवधारणाओं पर चुनाव करती हैः लगातार बने रहने की क्षमता, विकास करने की सक्रियता और वातावरण के अनुरूप ढलने के लिए विशेष गुण हासिल करने की क्षमता.
पहली बार उल्कापिंड की धूल लेकर लौटा रेक्स
सात साल की यात्रा के बाद नासा का अंतरिक्ष यान उल्कापिंडों के नमूनों का सबसे बड़ा जखीरा लेकर धरती पर लौट आया.
तस्वीर: Rick Bowmer/AP/dpa/picture alliance
सात साल बाद लौटा रेक्स
सात साल तक चले एक अभियान का 24 सितंबर 2023 को सफल पटाक्षेप हुआ जब नासा का अंतरिक्ष यान उल्कापिंडों के नमूनों का सबसे बड़ा जखीरा लेकर धरती पर लौट आया. 24 सितंबर को अमेरिका के यूटा राज्य के रेगिस्तान में यह यान सुरक्षित उतर गया.
तस्वीर: Keegan Barber/AFP
बेनू की धूल
रेक्स ने बेनू की सतह से 250 ग्राम धूल जमा की. नासा का कहना है कि यह थोड़ी सी धूल भी जानकारियों से भरपूर होगी. वे यह भी पता लगा सकेंगे कि किस तरह के उल्कापिंड भविष्य में पृथ्वी के लिए खतरनाक हो सकते हैं.
तस्वीर: Keegan Barber/AFP
बड़ी उम्मीदें
वैज्ञानिकों को बड़ी उम्मीदें हैं कि ये नमूने हमारे सौर मंडल की रचना-संरचना के बारे में समझ में नये अध्याय जोड़ेंगे. साथ ही इस सवाल के जवाब मिलने की भी उम्मीद है कि पृथ्वी का वातावरण कब और कैसे इंसान के रहने लायक बना.
तस्वीर: George Frey/AFP
भावुक पल
ऑसिरिस-रेक्स मिशन की मुख्य वैज्ञानिक दांते लॉरेटा ने मीडिया से बातचीत में कहा कि जब वैज्ञानिकों को पता चला कि कैपसुल का मुख्य पैराशूट खुल चुका है तो बहुत से लोग भावुक हो गये. लॉरेटो ने कहा, “मेरी आंखों से सच में आंसू बहने लगे थे. यह वो पल था जब हमें यकीन हो गया था कि हम घर लौट आए हैं. मेरे लिए असली साइंस तो अभी शुरू हो रही है.”
तस्वीर: George Frey/AFP
6.21 अरब किलोमीटर की यात्रा
नासा ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा कि 6.21 अरब किलोमीटर की यह यात्रा अपनी तरह का पहला अभियान है. नासा प्रमुख बिल नेल्सन ने अभियान की जमकर तारीफ की और कहा कि उल्कापिंडों की धूल के नमूने “वैज्ञानिकों को हमारे सौर मंडल के शुरुआती दिनों के बारे में अभूतपूर्व जानकारी देंगे.”
तस्वीर: George Frey/AFP
बेनू की यात्रा
ऑसिरिस-रेक्स अभियान का अंतिम चरण बेहद जटिल था लेकिन अमेरिका के स्थानीय समय के मुताबिक सुबह 8.52 बजे यूटा के रेगिस्तान में सेना के ट्रेनिंग रेंज पर उसकी आरामदायक लैंडिंग हुई. इसे 2016 में भेजा गया था और वह बेनू उल्कापिंड पर उतरा था.
तस्वीर: NASA/Goddard/University of Arizona/Handout via REUTERS
भविष्य के लिए
अब इन नमूनों को ह्यूस्टन के जॉनसन स्पेस सेंटर को भेजा जाएगा. करीब एक चौथाई नमूनों का तो फौरन परीक्षण के लिए इस्तेमाल कर लिया जाएगा जबकि कुछ हिस्से को जापान और कनाडा भी भेजा जाएगा. एक हिस्से को भविष्य की पीढ़ियों के लिए संभाल कर रख दिया जाएगा.
तस्वीर: Rick Bowmer/AP/dpa/picture alliance
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तैरने, चलने, उड़ने और सोचने की क्षमताएं इन्हीं विशेष गुणों के उदाहरण हैं. मानव प्रजाति तब उभरी जब विकास के दौरान चिंपैंजियों से अलग होकर मानवों ने खड़े होने जैसे विशेष गुण हासिल किये, चलना सीखा और उनके मस्तिष्क का आकार बढ़ा.
कार्नेज इंस्टिट्यूशन में ही एस्ट्रोबायोलॉजिस्ट माइकल वोंग इस शोध पत्र के मुख्य लेखक हैं. वह कहते हैं, "यह शोध महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रक्रियाओं में मौजूद ब्रह्मांड को समझाता है. इस तरह के सिद्धांत के प्रतिपादन की अहमियत ये है कि यह हमारे ब्रह्मांड को बनाने वाले विभिन्न तंत्रों के विकास के व्यवहार को समझाता है. और शायद यह भविष्यवाणी करने में मदद करे कि एक दूसरे से अनजान तंत्र किस तरह विकसित होंगे. जैसे कि शनि के चंद्रमा टाइटन पर ऑर्गैनिक केमिस्ट्री कैसे काम करेगी.”