वैज्ञानिकों ने एक मादा गैंडे के गर्भ में भ्रूण प्रत्यारोपित करने में सफलता हासिल कर ली है. दुनिया का यह पहला सफल मामला है जब इस तरह से मादा गैंडे को गर्भवती किया गया है.
विज्ञापन
वैज्ञानिकों ने एक मादा गैंडे को प्रत्यारोपण से गर्भवती कर दिया है. उन्होंने भ्रूण को इस मादा के गर्भ में प्रत्योरोपित कर दिया है. इस सफलता से उत्साहित वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस तरीके से गैंडों की प्रजाति व्हाइट राइनो को विलुप्त होने से बचाया जा सकेगा, जिनकी संख्या बहुत कम हो चुकी है.
अन्य प्रजातियों पर परीक्षण करते हुए शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में व्हाइट राइनो का भ्रूण तैयार किया था. इसके लिए अन्य मादा गैंडों से लिए गए अंडाणुओं और शुक्राणुओं का प्रयोग किया गया और उन्हें पिछले साल सितंबर में केन्या में एक मादा गैंडे में प्रत्यारोपित किया गया.
अगले साल होगा जन्म
केन्या के ओल-पेजेता कंजरवेटरी में यह मादा राइनो अब 70 दिनों की गर्भवती है. बुधवार को शोधकर्ताओं ने कहा कि 6.4 सेंटीमीटर का नर-भ्रूण अच्छी तरह विकसित हो रहा है. राइनो 16 से 18 महीने तक गर्भवती रहती हैं. यानी, इस बच्चे का जन्म अगले साल हो सकता है.
इस परीक्षण पर काम कर रहे वैज्ञानिकों के समूह ने एक बयान में कहा, "सफल भ्रूण-प्रत्यारोपण और गर्भाधान प्रयोग की सफलता का सबूत है और शोधकर्ता अब उन व्हाइट राइनो पर इसे आजमा सकते हैं, जिन्हें विलुप्ति से बचाना इस अभियान का मुख्य मकसद है.”
इन जानवरों को बचाने का आखिरी मौका
अंधाधुंध शिकार और आवास के नष्ट होने के कारण दुनिया भर में कई जीव खतरे में पड़ गए हैं. आइए जानते हैं ऐसी विलुप्त हो रही आठ प्रजातियों के बारे में जिन्हें बचाने के लिए तुरंत कदम उठाने होंगे.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Karumba
उत्तरी सफेद राइनो
इस प्रजाति का आखिरी नर सूडान भी हाल ही में मर गया. विलुप्त हो चुकी इस प्रजाति को अब भी वैज्ञानिक आईवीएफ तकनीक के जरिए फिर से वापस लाने की कोशिशों में लगे हैं. वहीं बाकी ने मान लिया है कि हमने इन्हें हमेशा हमेशा के लिए खो दिया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Karumba
दक्षिण चीनी बाघ
बाघों की सभी प्रजातियों में यह सबसे ज्यादा खतरे में है. सन 1970 से ही एक भी दक्षिण चीनी बाघ प्राकृतिक माहौल में नहीं दिखा है. कब्जे में रखे गए ऐसे बाघ भी संख्या में 80 से कम ही हैं. इन्हें भी एक तरह से खत्म मान ही लिया गया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Joe
आमूर तेंदुआ
प्रकृति में ऐसे 80 से भी कम तेंदुए रहते हैं. इस तरह यह हमारी पृथ्वी पर पाई जाने वाली सबसे दुर्लभ बड़ी बिल्लियों में से एक है. दक्षिणी चीन, उत्तरी रूस और कोरियाई प्रायद्वीप के जंगलों में इसका प्राकृति आवास रहा है. इसे सबसे बड़ा खतरा शिकार और घटते जंगलों से है.
तस्वीर: AP
वाक्विता या खाड़ी सूंस
खाड़ी सूंस के नाम से लोकप्रिय वाक्विता दुनिया की सबसे दुर्लभ समुद्री जीव है. इस समय शायद ऐसी केवल 15 मछलियां ही बची हों. हालांकि इसका कभी भी सीधे शिकार नहीं किया गया लेकिन कैलिफोर्निया के खाड़ी इलाके में एक दूसरी मछली टोटोआबा को पकड़ने के लिए डाले जाने वाले जालों में यह अकसर खुद ही फंस जाया करती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/WWF/Tom Jefferson
काला गैंडा
इनका भी वही हश्र हो सकता है जो सफेद राइनो का हो गया है. यह तादाद में केवल 5,000 ही बचे हैं. जिनकी तीन उपजातियां पहले ही गायब हो चुकी हैं. अवैध शिकार के कारण इनकी यह हालत हुई है और अब भी लोग सींग के लिए इनके पीछे पड़े हैं.
तस्वीर: Imago/Chromorange
लाल भेड़िया
दुनिया में केवल 30 लाल भेड़िए ही बचे हैं. रेड वुल्फ को गंभीर रूप से खतरे में पड़ी प्रजाति माना जाता है और इसे बचाने के काफी प्रयास जारी हैं. यह ग्रे वुल्फ और कायोटे के बीच का एक आनुवंशिक मिश्रण है. 1960 के दशक में चलाए गए एक अभियान से इन्हें काफी नुकसान पहुंचा. अब यह केवल उत्तरी कैरोलाइना में ही बचे हैं.
तस्वीर: Creative Commons
साओला
इन्हें सबसे पहले 1992 में देखा गया. शर्मीले और छुप कर रहने वाले साओला को 'एशियाई यूनिकॉर्न' भी कहा जाता है. इनका दिखना इतना दुर्लभ है कि आज तक केवल चार को ही रिसर्चर उनके प्राकृतिक आवास में देख सके हैं. विएतनाम और लाओस के जंगलों में इनका आवास माना जाता है. वे भी शायद 100 के आसपास ही बचे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
पूर्वी गोरिल्ला
धरती पर जिंदा बचा सबसे बड़ा प्राइमेट अब अवैध शिकार और जंगलों के कटने के कारण खुद खतरे में है. गोरिल्ला की यह उपजाति आबादी में कुल 3,800 के आसपास बची है. इनकी आबादी को स्थाई बनाने में अब भी काफी प्रयास किए जाने बाकी हैं. (इनेके मूलेस/आरपी)
तस्वीर: picture-alliance/WILDLIFE/A. Rouse
8 तस्वीरें1 | 8
अफ्रीका में करीब 20 हजार व्हाइट राइनो बचे हैं. अपने सींगों के कारण यह प्रजाति और अन्य प्रजातियां शिकारियों के निशाने पर रही हैं. इस वजह से इनकी संख्या बहुत कम हो गई थी लेकिन पिछले कुछ सालों से चलाए जा रहे संरक्षण अभियान के कारण अब इनकी संख्या बढ़ रही है. लेकिन उत्तरी व्हाइट राइनो के पूरी दुनिया में सिर्फ दो प्राणी बचे हैं.
कोई नर नहीं बचा
27 साल की नाजिन और उसकी 17 साल की बेटी फातू दोनों मादाएं ओल-पेजेता में रहती हैं लेकिन वे दोनों ही कुदरतीतौर पर गर्भधारण नहीं कर सकतीं. 2018 में दुनिया के आखिरी व्हाइट राइनो को सूडान में दया-मृत्यु दे दी गई थी. 45 साल के उस गैंडे की उम्र बहुत ज्यादा हो गई थी और वह स्वस्थ नहीं था. नाजिन उसी की संतान है.
वैज्ञानिकों ने उस गैंडेके शुक्राणु संभालकर रख लिए थे. इसके अलावा चार और नरों के शुक्राणुओं को संरक्षित करके रखा गया है. उम्मीद की जा रही है कि ये शुक्राणु मादाओं में रोपित करके और ज्यादा व्हाइट राइनो पैदा करने में मदद मिलेगी.
40 साल बाद लौटे विलुप्त हुए राइनो
40 साल तक विलुप्त रहने के बाद ये राइनो फिर लौट आए हैं. और अपने साथ पर्यटक व भविष्य के लिए उम्मीदें भी लाए हैं.
तस्वीर: REUTERS
लौट आए राइनो
मोजाम्बिक में चार दशक पहले ये राइनो विलुप्त हो गए थे. अब एक योजना के तहत स्थानीय नेशनल पार्क में इन्हें फिर से लाया गया है.
तस्वीर: REUTERS
एक हजार मील दूर से
मोजाम्बिक में ये ब्लैक एंड वाइट राइनो एक हजार मील दूर दक्षिण अफ्रीका से लाए गए हैं.
तस्वीर: REUTERS
पीस पार्क्स की कोशिश
दोबारा देश में राइनो लाने की यह कोशिश पीस पार्क्स फाउंडेशन ने की है. प्राणी संरक्षण के लिए काम करने वाले एंथनी एलेग्जैंडर कहते हैं कि इस ऐतिहासिक प्रजाति को एक बार फिर देश में देखना बहुत उत्साहवर्द्धक है.
तस्वीर: Siphiwe Sibeko/REUTERS
दो साल तक आते रहेंगे
मई 2022 में राइनो को लाने का यह काम शुरू हुआ था जो दो साल तक जारी रहेगा. इस दौरान 40 राइनो इस नेशनल पार्क में लाए जाएंगे.
तस्वीर: REUTERS
2,300 फिर लौटे प्राणियों का घर
दस लाख एकड़ में फैले इस पार्क में 2,300 से ज्यादा प्राणी हैं जिन्हें दोबारा यहां लाया गया है. पीस पार्क्स को उम्मीद है कि इस स्थानांतरण से प्राणियों की संख्या बढ़ाने में मदद मिलेगी.
तस्वीर: REUTERS
गृह युद्ध का असर
मोजांबीक में 15 साल तक चले गृह युद्ध और शिकार का वन्य जीवन पर बहुत बुरा असर हुआ था. 1992 में यह युद्ध खत्म हुआ लेकिन हालात अब तक पूरी तरह सामान्य नहीं हो पाए हैं.
तस्वीर: REUTERS
6 तस्वीरें1 | 6
कुछ संरक्षण-समूहों का कहना है कि आईवीएफ तकनीक से व्हाइट राइनो को बचा पाने में अब बहुत देर हो चुकी है क्योंकि चाड, सूडान, युगांडा, कांगो और सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्किन में उनके कुदरती रहवास युद्धों की भेंट चढ़ चुके हैं.
इस आधार पर यह तर्क भी दिया जा रहा है कि शोधकर्ताओं की कोशिश अन्य प्रजातियों को बचाने की होनी चाहिए, जिनके बचने की संभावनाएं ज्यादा हैं.