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समाज

वैज्ञानिकों ने दो महीने पहले ही भारत सरकार को चेतावनी दी थी

३ मई २०२१

भारत सरकार द्वारा स्थापित वैज्ञानिकों की एक सलाहाकर समिति ने मार्च में ही चेतावनी दी थी कि कोरोना का नया वैरियंट कहर बरपाने वाला है. विशेषज्ञों ने सख्त कदमों, मेडिकल सप्लाई बढ़ाने और लॉकडाउन लगाने की बात भी कही थी.

तस्वीर: Debajyoti Chakraborty/NurPhoto/picture alliance

भारत सरकार द्वारा कोरोना वायरस पर अध्ययन और शोध के लिए स्थापित वैज्ञानिकों की एक सलाहाकर समिति के पांच वैज्ञानिकों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया है कि उनकी चेतावनी को सरकार ने नजरअंदाज किया. चार वैज्ञानिकों ने कहा कि चेतावनी के बावजूद सरकार ने वायरस को फैलने से रोकने के लिए कड़ी पाबंदियां लगाने में कोई रुचि नहीं दिखाई. लाखों लोग बेरोक-टोक राजनीतिक रैलियां और धार्मिक आयोजनों में शामिल होते रहे. दसियों हजार किसान नई दिल्ली की सीमा पर धरने पर बैठे रहे. नतीजा यह निकला कि भारत इस वक्त कोरोनो वायरस की सबसे बुरी मार से गुजर रहा है. देश में नए मामलों और मरने वालों की संख्या रोज नए रिकॉर्ड बना रही है.

2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश का यह सबसे बड़ा मानवीय संकट कहा जा रहा है जिसमें दो लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. बहुत से वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत में दूसरी लहर का कहर ज्यादा इसलिए भी है क्योंकि कोरोना वायरस का नया वैरियंट ज्यादा खतरनाक है. इस नए वैरियंट के खतरे के बारे में इंडियन सार्स कोव-2 जेनेटिक्स कन्सॉर्टियम (INSACOG) नामक एक समिति ने मार्च में ही एक केबिनेट सचिव राजीव गाबा को इसके बारे में चेतावनी दी थी जो सीधे भारत के प्रधानमंत्री के साथ काम करते हैं. हालांकि इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है कि यह सूचना प्रधानमंत्री मोदी को दी गई या नहीं. इस बारे में प्रधानमंत्री ऑफिस से बात करने की कोशिश नाकाम रही है.

INSACOG को भारत सरकार ने पिछले साल दिसंबर में स्थापित किया था. इस समिति का मकसद कोरोनो वायरस के ऐसे वैरियंट्स का पता लगाना था जो लोगों की सेहत के लिए खतरनाक हो सकते हैं. इस समिति में दस राष्ट्रीय प्रयोगशालाएं शामिल हैं जो वायरस पर अध्ययन में सक्षम हैं. INSACOG के एक सदस्य और इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ लाइफ साइंसेज के निदेशक अजय पारिदा के मुताबिक शोधकर्ताओं ने सबसे पहले फरवरी में इस नए वैरियंट का पता लगाया जिसे अब B.1.617 कहा जाता है.

INSACOG ने अपने शोध के नतीजे स्वास्थ्य मंत्रालय के नैशनल सेंटर ऑपर डिजीज कंट्रोल के साथ 10 मार्च से पहले ही साझा कर दिए थे. एक वैज्ञानिक ने बताया कि इस शोध में चेतावनी दी गई थी कि कोरोना वायरस की दूसरी लहर जल्द ही भारत के विभिन्न हिस्सों को अपनी चपेट में ले सकती है. यह शोध और चेतावनी स्वास्थ्य मंत्रालय को भी भेजी गईं. स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस बारे में पूछे गए सवालों का जवाब नहीं दिए हैं.

INSACOG ने इस बारे में एक प्रेस रिलीज भी तैयार की थी जिसमें स्पष्ट कहा गया था कि नया वैरियंट बेहद खतरनाक है और इसके नतीजे बहुत ज्यादा चिंताजनक हो सकते हैं. मंत्रालय ने यह बयान दो हफ्ते बाद 24 मार्च को जारी किया लेकिन ‘बहुत ज्यादा चिंताजनक' शब्द उसमें से हटा दिये गए. मंत्रालय के बयान में सिर्फ इतना कहा गया कि नया वैरियंट पहले से ज्यादा समस्याप्रद है और टेस्टिंग बढ़ाने वाले क्वारंटीन करने जैसे कदम उठाए जाने की जरूरत है. लेकिन सरकार ने इस शोध के नतीजों पर ज्यादा मजबूत कदम क्यों नहीं उठाए? इस सवाल के जवाब में

INSACOG के प्रमुख शाहिद जमील कहते हैं कि उन्हें लगता है कि अधिकारी इन सबूतों की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे थे. जमील कहते हैं, "नीति को साक्ष्य आधारित होना चाहिए ना कि साक्ष्यों को नीति आधारित. मुझे आशंका है कि नीति बनाते विज्ञान को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया गया. लेकिन मुझे पता है कि मेरा काम कहां तक है. वैज्ञानिक होने के नाते हम साक्ष्य उपलब्ध कराते हैं. नीतियां बनाना सरकार का काम है."

लेकिन यह स्पष्ट है कि सरकार ने कोई कड़े कदम नहीं उठाए. उसके बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मुख्य सिपहसालार और विपक्षी नेता राजनीतिक रैलियां करते रहे. सरकार ने कई हफ्ते चलने वाले कुंभ मेले को भी होने दिया जिसमें लाखों लोगों ने हिस्सा लिया. हालांकि वैज्ञानिक मानते हैं कि कोरोना वायरस के मामलों में जिस तरह उछाल आया वह उनके अनुमान से कहीं ज्यादा तेज था इसलिए सिर्फ राजनेताओँ पर जिम्मेदारी नहीं डाली जा सकती.

कोरोना वायरस के कारण दो लाख से अधिक मौतें हुईं.तस्वीर: Faisal Khan/NurPhoto/picture alliance

INSACOG की एक अन्य सदस्य नैशनल इंस्टीट्यूट ऑप बायोमेडिकल जेनॉमिक्स के निदेशक सौमित्र दास कहते हैं, "सरकार पर इल्जाम डालने का कोई मतलब नहीं है." लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय के आधीन काम करने वाले एनसीडीसी के निदेशक सुजीत कुमार सिंह ने हाल ही में एक निजी ऑनलाइन मीटिंग में कहा कि अप्रैल की शुरुआत में ही कड़े कदम उठाए जाने की जरूरत थी. 19 अप्रैल को हुई इस मीटिंग में सिंह ने कहा था कि 15 दिन पहले ही लॉकडाउन लग जाना चाहिए था. हालांकि सिंह ने यह नहीं बताया कि उन्होंने सरकार को चेताया था या नहीं लेकिन उन्होंने यह जरूर कहा कि मामले की गंभीरता के बारे में उन्होंने सरकार को जानकारी दे दी थी.

18 अप्रैल को हुई के मीटिंग का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "यह बहुत-बहुत स्पष्टता के साथ बताया गया था कि अगर एकदम कड़े कदम नहीं उठाए गए तो लोगों की मौतों को रोकना बहुत मुश्किल हो जाएगा." सिंह ने यह भी बताया कि इस मीटिंग में कुछ अधिकारियों ने छोटे शहरों में मेडिकल सप्लाई की कमी के कारण कानून-व्यवस्था बिगड़ने का डर भी जताया था. ऐसा कई शहरों में देखा जा चुका है. सुजीत कुमार सिंह ने रॉयटर्स के सवालों के जवाब नहीं दिए.

जिस 18 अप्रैल की मीटिंग की बात सिंह कर रहे थे, उसके दो दिन बाद 20 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम संबोधन में कहा कि देश को लॉकडाउन से बचाना है. उन्होंने कहा, "हमें देश को लॉकडाउन से बचाना है. मैं राज्यों से भी अनुरोध करूंगा कि लॉकडाउन को आखिरी विकल्प रखें. हमें लॉकडाउन से बचने की पूरी कोशिश करनी है और छोटे-छोटे इलाकों को बंद करने पर काम करना है." इस बयान से पांच दिन पहले 15 अप्रैल को 21 विशेषज्ञों और सरकारी अधिकारियों के एक ग्रूप ‘नैशनल टास्क फोर्स फॉर कोविड-19' में विचार-विमर्श के बाद इस बात पर सहमति बनी थी कि ‘हालात गंभीर हैं और हमें लॉकडाउन लगाने से नहीं झिझकना चाहिए.'

यह ग्रुप पिछले अप्रैल में बनाया गया था और इसका काम सरकार को कोरोना वायरस महामारी पर सलाह देना है. इसके अध्यक्ष वीके पॉल हैं जो कोरोना वायरस पर प्रधानमंत्री के मुख्य सलाहकार हैं.

वीके/एए (रॉयटर्स)

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