अमेरिका और इस्राएल के वैज्ञानिकों ने बिना नर या मादा का प्रयोग किए, प्रयोगशाला में चूहों का भ्रूण तैयार कर लिया. इसे ‘डॉली’ भेड़ के जन्मने जितनी अहम खोज माना जा रहा है.
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वैज्ञानिकों ने एक कृत्रिम चूहा बनाया है. चूहे का यह कृत्रिम भ्रूण बनाने में ना नर चूहे का स्पर्म लिया गया है और ना मादा चूहे के अंडाणु या गर्भाश्य. प्रयोगशाला में बनाए गए ये चूहों के भ्रूण बिल्कुल वैसे हैं जैसे कुदरती रूप से गर्भधारण के बाद साढे आठ दिन के भ्रूण दिखते हैं. आकार ही नहीं, इनके दिल की धड़कनें भी ज्यों की त्यों हैं.
शोधकर्ता उम्मीद कर रहे हैं कि भविष्य में उन्हें अपने प्रयोगों के लिए प्रयोगशालाओं में असली जानवरों को कत्ल करने की जरूरत नहीं पड़ेगी और वे यूं कृत्रिम रूप से बनाए गए जीवों पर ही शोध कर सकेंगे. यह मानव के कृत्रिम भ्रूण तैयार करने की दिशा में भी एक अहम कदम हो सकता है.
इस शोध का हिस्सा नहीं रहे स्पेन के नेशनल बायोटेक्नोलॉजी सेंटर के लुइस मोंटोलियू कहते हैं, "इसमें कोई संदेह नहीं कि हम एक तकनीकी क्रांति के सम्मुख है. यह अभी सक्षम नहीं है लेकिन इसमें गुंजाइश भरपूर है. यह डॉली के भेड़ के जन्म जैसी वैज्ञानिक खोज है.”
बच्चे पैदा करने के लिए इन्हें सेक्स की जरूरत नहीं
अगर बच्चा पैदा करना हो तो एक योग्य साथी की सबसे पहले जरूरत होगी. लेकिन कुछ जीवों ने इस प्रक्रिया से पूरी तरह बचने का तरीका निकाल लिया है. इन जीवों में संतानोत्तपत्ति के लिए नर और मादा का मिलन जरूरी नहीं है.
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बगैर जोड़ी के बच्चा!
लैंगिक प्रजनन उत्पत्ति का सफल विचार है जिसके बारे में इंसानों को भी जानकारी है. आपको बच्चा पैदा करना हो तो एक योग्य साथी की सबसे पहले जरूरत होगी. कुछ जीवों ने इस लंबी प्रक्रिया से पूरी तरह बचने का तरीका निकाल लिया है. वे अलैंगिक हैं और खुद का क्लोन बना लेते हैं.
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वर्जिन कैंसर
ये केकड़े इसका एक अच्छा उदाहरण है. मीठे पानी में पलने वाले इन केकड़ों ने 2003 में पहली बार दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा. जर्मन जीवविज्ञानियों ने देखा कि एक पूरी किस्म में केवल मादाएं ही थीं, जो खुद का क्लोन बना लेती थीं. इन केकड़ों की इस खूबी के बारे में पहले कोई जानकारी नहीं थी.
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म्यूटेशन से क्लोन तक
मार्बल कैंसर लैंगिक प्रजनन से कैसे दूर हुए यह साफ नहीं है. हालांकि इनके जीन का विश्लेषण करने से पता चला है कि ये उत्तर अमेरिकी क्रेफिश प्रजाति से जुड़े हुए हैं. वैज्ञानिक को आशंका है कि इनमें से किसी क्रेफिश का म्यूटेशन 1990 के दशक में हुआ जिसके कारण ये केकड़े लैंगिक प्रजनन से अलैंगिक प्रजनन की ओर चले गए.
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लाखों साल की उम्र
ब्डेलॉयडी नाम का यह जीव बगैर सेक्स के पिछले 4 करोड़ सालों से रह रहा है. इस लंबे अंतराल में पृथ्वी पर पर्यावरण की स्थिति में कई बार बदलाव हुए लेकिन यह जीव अब भी अस्तित्व में है और वो इसलिए क्योंकि यह दूसरे जीवों से जीन लेकर अपने डीएनए में शामिल कर लेता है जैसे कि बैक्टीरिया या फिर फफूंद.
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आरंभिक निवासियों के लिए आदर्श
अलैंगिक प्रजनन का सबसे बड़ा फायदा है कि केवल एक महिला ही पूरी आबादी की शुरुआत कर सकती है. तस्वीर में दिख रहा सरीसृप वर्जिन गेको है. यह प्रशांत महासागर के बिल्कुल अलग थलग द्वीपों पर रहता है और पेड़ पौधों के साथ बहक कर शायद किनारों पर पहुंच गया. अगर मादाएं प्रजनन के लिए पुरुषों पर निर्भर हों तो संदिग्ध परिस्थितियों में वे ऐसा कभी नहीं करेंगी.
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बंधन से निकलती है युक्ति
सेल्फ क्लोनिंग कोई बहुत दूर की कौड़ी नहीं है यह बात कैद में रह रहे जीवों ने दिखा दिया. 2006 में लंदन के चिड़ियाघर में रह रही वर्जिन मादा कोमोडो ड्रैगन ने चार बच्चों को जन्म दिया. चारों बच्चे नर थे और जाहिर है कि उनके क्लोन वहां मौजूद नहीं थे क्योंकि बच्चों में केवल मां का डीएनए था.
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विकल्प के रूप में सेक्स
माराम झींगा, ब्डेलॉयडी और गेको तो हमेशा मादा होते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी जीव हैं जिनके लिए सेक्स वैकल्पिक है. इनमें एक उदाहरण है यह सतरंगी छिपकली. यह छिपकली मध्य और दक्षिण अमेरिका में रहती है. इनकी कुछ आबादी तो केवल मादाओं की है लेकिन कुछ ऐसी भी आबादियां हैं जिनमें नर और मादा साथ रहते हैं.
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एक्वेरियम में कुमारी
यहां तक कि कैद में रहने वाली शर्कों में भी अलैंगिक प्रजनन देखा गया है. उदाहरण के लिए 2007 में अमेरिकी एक्वेरियम में एक शार्क बिना किसी नर के संपर्क में आये गर्भवती हो गई और फिर एक मादा बच्चे को जन्म दिया. बंबू शार्क और जेब्रा शार्क पहले ही क्लोन को जन्म दे चुकी हैं.
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तो क्या अब पुरुष बेकार हो गए हैं?
स्तनधारियों में अलैंगिक प्रजनन अब तक नहीं देखा गया है. वैज्ञानिकों को संदेह है कि हमारे लिए बच्चे पैदा करना बेहद जटिल है. यह एक अच्छी बात है क्योंकि लैंगिक प्रजनन म्यूटेशन से होने वाले नुकसान के जोखिम को कम कर देता है. इसके साथ ही हर बार जीन का नया मिश्रण बनता है जो नए जलवायु की परिस्थितियों के अनुसार हमें खुद को ढालने में मदद करता है.
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गुरुवार को नेचर पत्रिका में यह शोध छपा है जिसमें कैलिफॉर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की माग्डालेना जेरनिका-गोएट्ज और उनके सहयोगियों की खोज के बारे में विस्तार से बताया गया है. इसी महीने की शुरुआत में ऐसा ही अध्ययन इस्राएल के वाइजमान इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में काम करने वाले जैकब हाना ने ‘सेल' पत्रिका में भी प्रकाशित किया था. हाना नेचर में छपे अध्ययन के भी सह लेखक हैं.
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कैसे हुआ अध्ययन?
स्टेल-सेल बायोलॉजी की विशेषज्ञ जेरनिका-गोएट्ज कहती हैं कि इस अध्ययन का एक उद्देश्य यह समझना था कि इंसानों में बहुत से गर्भ शुरुआती अवस्था में ही क्यों गिर जाते हैं और 70 प्रतिशत मामलों में आईवीएफ के जरिए रोपे गए भ्रूण विकसित क्यों नहीं हो पाते. वह बताती हैं कि इस पूरी प्रक्रिया को कुदरती रूप से विकसित हो रहे भ्रूण के जरिए समझना कई वजहों से मुश्किल है जिनमें से एक यह भी है कि बहुत कम मानव भ्रूण शोध के लिए दान दिए जाते हैं. और फिर, मानवीय भ्रूणों पर प्रयोग करते वक्त वैज्ञानिक एक नैतिक दुविधा से भी गुजरते हैं. ऐसे में कृत्रिम भ्रूण तैयार करना एक विकल्प हो सकता है.
कृत्रिम भ्रूण तैयार करने की प्रक्रिया को नेचर में छपे अध्ययन में समझाया गया है. वैज्ञानिकों ने चूहों से ली गईं भ्रूण कोशिकाओं को दो और तरह की कोशिकाओं के साथ मिलाया. एक खास तरह की कटोरी में इन तीनों कोशिकाओं को मिलाया गया. जेरनिका-गोएट्ज बताती हैं कि तैयार हुए सभी भ्रूण तो एकदम दोषरहित नहीं थे लेकिन जो सबसे अच्छे थे वे किसी भी रूप में चूहों के कुदरती भ्रूण से अलग नहीं थे. दिल जैसे एक अंग के साथ-साथ उनमें सिर जैसा एक अंग भी बन गया था.
क्लोनों की रेस में 'फर्स्ट'
20 साल पहले आई दुनिया की पहली क्लोन भेड़ डॉली तो सबको याद है, लेकिन उसके बाद भी कई जानवरों के क्लोन बनाने की कोशिशें हुईं. मिलिए डॉली की क्लोन बिरादरी के और सदस्यों से.
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क्लोनों की रेस में 'फर्स्ट'
दुनिया में एक वयस्क स्तनधारी जीव की पहली क्लोन थी भेड़ डॉली. 5 जुलाई 1996 को जन्मी डॉली का कोई पिता नहीं था, लेकिन तीन मांएं थीं. उसे एक भेड़ की बॉडी सेल, दूसरे का अंडा और तीसरी सरोगेट का गर्भ मिला था. 6 साल जीने के बाद डॉली की फेफड़ों की बीमारी के कारण मौत हो गई. अब डॉली को नेशनल म्यूजियम ऑफ एडिनबरा में संरक्षित करके रखा गया है.
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आधा घोड़ा, आधा गधा
आइदाहो जेम का जन्म 2003 में हुआ. यह दुनिया का पहला क्लोन खच्चर था. लेकिन इसे आइडाहो का रत्न ऐसे ही नहीं कहा गया. असल में इसकी खासियत ये थी कि वह कई पुरस्कार जीत चुके रेसिंग खच्चर का जेनेटिक भाई था.
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कॉपी कैट
"सीसी" दुनिया की पहली क्लोन कैट है. 2011 में टैक्सस में जन्मी इस बिल्ली का यह नाम उसके हूबहू अपने पेरेंट जैसे होने के कारण पड़ा. मांग तो बहुत है लेकिन बिल्लियों की व्यावसायिक स्तर पर क्लोनिंग नहीं की जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
एक जैसे पांच
नोएल, एंजेल, स्टार, जॉय और मेरी - पांचों सूअर बहनें 5 मार्च 2000 को पैदा हुईं. इन्हें बनाने वाली पीपीएल थेरेप्युटिक्स ने उम्मीद जताई कि इससे इंसान के शरीर में लगाने लायक अंग और कोशिकाएं स्तनधारी जीव सूअर के शरीर में बनाने का रास्ता खुलेगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
डेजर्ट ब्यूटी
पहला क्लोन ऊंट 2009 में बना. दुबई के कैमल रिप्रोडक्शन सेंटर में जन्मे इस ऊंट को एक खास किस्म के ऊंट की प्रजाति के जीन्स को सुरक्षित रखने के लिए बनाया गया था. रेगिस्तान वाले इलाकों में ऊंट का इस्तेमाल सामान ढोने के अलावा रेसिंग के लिए होता है.
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स्पेन की फाइटिंग बुल
2010 में स्पेन के वैज्ञानिकों ने पहले फाइटिंग बुल का क्लोन बना डाला. लेकिन गॉट नाम का यह सांढ़ रिंग में लड़ाने के लिए नहीं ब्रीडिंग के लिए बनाया गया. इसकी सरोगेट मां एक बहुत शांत फ्रीजियन प्रजाति की डेयरी वाली गाय थी.
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बंदर
ओरेगन के वैज्ञानिकों ने 2000 में रीसस मंकी की प्रजाति का पहला क्लोन बनाया. इसका नाम टेट्रा रखा गया जो कि ग्रीक भाषा का शब्द है और इसका अर्थ है चार. रिसर्चरों ने चार भ्रूण तैयार किए और उन्हें चार मांओं में इंप्लांट किया. केवल टेट्रा जीवित बचा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
सबसे प्यारा पालतू
दक्षिण कोरिया की एक रिसर्च टीम ने 2005 में दुनिया का पहला क्लोन कुत्ता बनाया. स्नूपी एक अफगानी कुत्ता था. फिर 2014 में राजधानी सोल की एक बायोटेक कंपनी ने एक और कुत्ते का क्लोन बनाया. इस बार एक 12 साल के छोटे पैरों वाले कुत्तों की प्रजाति की नकल बनाई गई और निकला यह मिनी विनी. कंपनी कुत्तों के क्लोन बना कर 90,000 यूरो तक में बेचती है.
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जेरनिका-गोएट्ज बताती हैं, "चूहों के भ्रूणों के संदर्भ में यह पहला मॉडल है जो मस्तिष्क के विकास के अध्ययन की सुविधा देता है.
जेरनिका-गोएट्ज और हाना दोनों बताते हैं कि वे लोग सालों से इस अध्ययन पर काम कर रहे हैं जिसकी शुरुआत दशकों पहले हुई थी. जेरनिका-गोएट्ज के दल ने अपना शोध पत्र पिछले साल नवंबर में नेचर पत्रिका को भेजा था.
आगे क्या होगा?
वैज्ञानिक कहते हैं कि अब इन कृत्रिम भ्रूणों को साढ़े आठ दिन से ज्यादा विकसित करने पर काम किया जाएगा और अंततः इसे बीस दिन के चूहे के बच्चे तक ले जाना है. नेचर पत्रिका में छपे शोध के सह-लेखक ज्यांलूका अमाडेई कहते हैं कि साढ़े आठ दिन से ज्यादा तक ले जाना काफी मुश्किल काम है. केंब्रिज यूनिवर्सिटी के अमाडेई बताते हैं, "हमें लगता है कि हम उन्हें यह बाधा पार कराने में कामायाब हो जाएंगे ताकि वे विकसित होना जारी रख सकें.”
वैज्ञानिकों का मानना है कि 11 दिन के बाद प्लेसेंटा ना होने की वजह से भ्रूण का विकास रुक जाएगा लेकिन उन्हें उम्मीद है कि किसी दिन वे एक कृत्रिम प्लेसेंटा भी तैयार कर लेंगे. हालांकि अभी उन्हें संदेह है कि बिना गर्भ के वे इन भ्रूण को गर्भ की पूरी प्रक्रिया पार करवा सकते हैं.