स्कॉटलैंड में महिलाओं को मुफ्त में मिलेंगे पीरियड प्रोडक्ट्स
२५ नवम्बर २०२०
स्कॉटलैंड की संसद ने सर्वसम्मति से महिलाओं से जुड़े स्वच्छता उत्पादों को बांटने वाला कानून पास किया है. यह कदम ऐसे वक्त में उठाया गया है जब कई चैरिटी कह रही हैं कि महामारी के दौरान "पीरियड पॉवर्टी" बढ़ रही है.
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कानून के पास हो जाने के बाद स्कॉटलैंड मासिक धर्म से जुड़े उत्पादों को मुफ्त में देने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है. स्कॉटिश संसद ने सर्वसम्मति से पीरियड प्रोडक्ट्स बिल के पक्ष में मतदान किया, जिससे सार्वजनिक भवनों में सैनिटरी उत्पादों तक मुफ्त पहुंच एक कानूनी अधिकार बन गया है. मतदान के पहले संसद की सदस्य मोनिका लेनॉन ने कहा, "हम सभी सहमत हैं कि किसी को भी चिंता नहीं करनी चाहिए कि उनका अगला टैम्पॉन या सैनिटरी पैड दोबारा कहां से मिलने जा रहा है." अप्रैल 2019 में लेनॉन ने ही इस बिल को संसद में पेश किया था. उन्होंने संसद में कहा स्कॉटलैंड "पीरियड पॉवर्टी" के इतिहास में ऐसा करना वाला पहला देश होगा. उन्होंने कहा, "इसको होने में काफी समय लग गया."
कानून के तहत मासिक धर्म से जुड़े उत्पाद को सामुदायिक केंद्रों, युवा क्लबों, शौचालयों और फार्मेसियों में भी रखा जाएगा. महिलाओं और युवतियों के लिए तय जगहों पर टैम्पॉन और सैनिटरी पैड उपलब्ध कराए जाएंगे और मासिक धर्म के साथ महिलाएं इन वस्तुओं को मुफ्त में प्राप्त कर सकेंगी. उन्हें अब इसे खरीदने के लिए स्टोर या बाजार नहीं जाना पड़ेगा.
कानून के तहत यह सुनिश्चित करने की कोशिश की गई है कि पूरे देश में मासिक धर्म से संबंधित सभी वस्तुओं को मुफ्त में मुहैया कराया जाए. विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और स्कूलों को भी अपने शौचालयों में उत्पाद को मुफ्त देने के लिए कहा गया है ताकि छात्राएं जरूरत के मुताबिक उनका इस्तेमाल कर सकें.
महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण नीति
सांसद मोनिका लेनॉन जिन्होंने इसके लिए अभियान चलाने के चार साल बाद बिल पेश किया, कानून को दुनिया को रास्ता दिखाने वाला बताया है. उन्होंने कहा कि स्कूलों को भी मासिक धर्म पर शिक्षा देने की जरूरत है ताकि मासिक धर्म के कलंक को खत्म किया जा सके. स्कॉटलैंड में समुदायों और स्थानीय सरकार की कैबिनेट सचिव एलिन कैंपबेल का कहना है कि यह कानून साफ संदेश देता है कि स्कॉटलैंड किस तरह का देश बनता दिखना चाहता है.
स्कॉटलैंड की फर्स्ट मिनिस्टर निकोला स्टर्जन ने इस कदम का स्वागत किया है. उन्होंने एक ट्वीट में लिखा, "मुझे इस महत्वपूर्ण कानून के पक्ष में मतदान करने पर गर्व है. स्कॉटलैंड दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है, जो जरूरतमंद लोगों को मुफ्त में मासिक धर्म के उत्पाद उपलब्ध कराता है." उन्होंने लिखा, "महिलाओं और लड़कियों के लिए एक महत्वपूर्ण नीति."
भारत में माहवारी शब्द अब भी शर्म और चुप्पी की संस्कृति में लिपटा हुआ है. जब भी कहीं इसका जिक्र होता है तो धीमें, दबे और सांकेतिक शब्द एक फुसफुसाहट की भाषा का रूप ले लेते हैं. इस पर चुप्पी तोड़ने की जरूरत है.
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अंतरराष्ट्रीय दिवस
28 मई को "विश्व माहवारी स्वच्छता दिवस" के रूप में मनाया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य समाज में फैली मासिक धर्म संबंधी गलत भ्रांतियों को दूर करने के साथ साथ महिलाओं और किशोरियों को माहवारी के बारे में सही जानकारी देना है. महीने के वो पांच दिन आज भी शर्म और उपेक्षा का विषय बने हुए हैं. इस फुसफुसाहट को अब ऐसा मंच मिल रहा है जहां इसे बुलंद आवाज में बदला जा सके.
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चुप्पी तोड़ो बैठक
दिल्ली स्थित स्वयंसेवी संस्था गूंज भारत के कई गांवों में माहवारी पर "चुप्पी तोड़ो बैठक" कराती है. इनमें गांव की महिलाएं माहवारी से जुड़े अपने अनुभव साझा करती हैं. यहां उन्हें सैनिटरी पैड की अहमियत के बारे में जाता है. ये बैठक माहवारी से जुड़ी शर्म और चुप्पी को हटाने का एक जरिया है ताकि महिलाएं अपनी सेहत को माहवारी से जोड़ कर देख सकें और इस विषय पर नि:संकोच अपनी बात रख सकें.
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गीली कतरनें
राजस्थान की 25 साल की दुर्गा कहती हैं, "एक ही कपड़े को बार बार इस्तेमाल करना पड़ता है और माहवारी का एक एक दिन पहाड़ जैसा कटता है." इस्तेमाल की गई कपड़े की कतरनों को वे ठीक तरह धो भी नहीं पातीं और शर्म के कारण उन्हें कपड़ों के नीचे सूखने के लिए डाल देतीं हैं. कई बार कतरनें ठीक से नहीं सूखे पातीं और नमी भरा कपड़ा इस्तेमाल करना पड़ता है.
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डिग्निटी पैक्स
यह एनजीओ शहरों से प्राप्त कपड़ों से महिलाओं के लिए सूती कपड़े के सैनिटरी पैड बनाता है. इन्हें देश भर के गांवों में "माहवारी डिग्निटी पैक्स" के रूप में बांटा जाता है. एक किट में 10 कपड़े के बने सैनिटरी पैड के साथ–साथ महिलाओं के लिए अंडर-गारमेंट्स भी रखे जातें हैं. ये डिग्निटी पैक्स उन महिलाओं के लिए एक बड़ी राहत होते हैं, जिन्हें माहवारी के दौरान एक कपड़े का टुकड़ा भी नहीं मिल पाता.
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दयनीय हालात
गरीबी और अज्ञानता के चलते महिलाएं अपनी "मासिक जरूरत" को कभी मिट्टी, तो कभी घास या प्लास्टिक की पन्नी, पत्ते और गंदे कपड़ों से पूरा करती हैं. इसके चलते वे गंभीर बीमारियों का शिकार होती रहती हैं. माहवारी के दौरान हाथों-पैरों में सूजन और अत्यधिक रक्तस्राव होना बहुत सी महिलाओं के लिए आम बात है. संस्था महिलाओं के साथ माहवारी से जुड़ी ऐसी मुश्किलों पर संवाद करती है.
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माई पैड
शहरों में लोगों से घर के पुराने कपडे जमा किए जाते हैं, जैसे चादर, पर्दे, साड़ियां इत्यादि. इन्हें अच्छी तरह धो कर साफ किया जाता है और फिर पैड के आकार में काटा जाता है. हर पैड हाथ से बनता है. कोई कपड़े की कटाई का काम करता है, कोई इस्त्री का तो कोई सिलाई का. हर पैड एक जैसे आकार का बनता है. इस पहल को नेजेपीसी यानी नॉट जस्ट अ पीस ऑफ क्लोथ नाम दिया गया है.
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आगे बढ़ो
इसके अलावा माहवारी पर बातचीत को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पूरे देश में "रेज़ योर हैंड" नाम की एक मुहिम भी चलाई गई है. यह मुहिम महिलाओं की गरिमा और माहवारी दोनों को एक समय में एक साथ संवाद में लाने की कोशिश है. इसी के तहत चुप्पी तोड़ो बैठक का आयोजन किया जाता है. इस तरह की बैठकों से समाज की मानसिकता को बदलने की कोशिश की जा रही है.