कहां के हैं सैंटा क्लॉज
२२ दिसम्बर २०१७
यूरोप की आल्प्स पहाड़ियों से निकली लोककथाओं में आधी बकरी और आधे दैत्य जैसे एक चरित्र क्रांपुस का जिक्र है. देखिए सैंटा का ये भयानक साथी हाल के सालों में लोकप्रिय क्यों होने लगा है.
सैंटा का डरावना साथी क्रांपुस
यूरोप की आल्प्स पहाड़ियों से निकली लोककथाओं में आधी बकरी और आधे दैत्य जैसे एक चरित्र क्रांपुस का जिक्र है. देखिए सैंटा का ये भयानक साथी हाल के सालों में लोकप्रिय क्यों होने लगा है.
क्रिसमस का दानव
क्रांपुस एक काल्पनिक चरित्र है. इसे दक्षिण जर्मनी, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया, इटली और चेक गणराज्य जैसे आल्प्स पहाड़ियों वाले क्षेत्र में जाना जाता है. दैत्य जैसा दिखने वाला क्रांपुस क्रिसमस सीजन में प्रकट होता है और शैतानी करने वाले बच्चों को सजा देता है. जानवरों की तरह फर से ढका क्रांपुस गाय के गले जैसी घंटी अपनी कमर में बांधता है.
क्रूरता का प्रतीक
सेंट निकोलास का यह डरावना साथी नटखट बच्चों की तलाश में रहता है और हाथ आ जाने पर उन्हें पकड़ कर अपनी पीठ पर रखी टोकरी में डाल देता है. इसके बाद वो ऐसे बच्चों को पाताल लोक में ले जाता है. इतने भयानक अंजाम के बारे में जानने के बावजूद लोग क्रिसमस सीजन के दौरान क्रांपुस के साथ समारोह में हिस्सा जरूर लेते हैं.
इस लड़की ने जरूर बदमाशी की है
ऑस्ट्रिया के एक समारोह में पहुंचे क्रांपुस ने लोगों की भीड़ से इस लड़की को धर दबोचा. आल्प्स पहाड़ियों में बसे गांवों में होने वाले ऐसे समारोहों में जब लोग दौड़ते-भागते हैं तो कई बार दर्श और क्रांपुस आपस में उलझ भी जाते हैं. लेकिन यह सब मजे मजे में केवल समारोह में मस्ती के लिए होता है.
पागान पुराण से निकली
यह परंपरा कम से कम 16वीं सदी से चली आ रही है. दक्षिण जर्मनी की प्राचीन पागान परंपरा में देवी माने जाने वाली पेर्षटा के मानने वाले इकट्ठा होते थे. क्रांपुस दौड़ अमेरिका तक में आयोजित होती है और सैन फ्रांसिस्को और पोर्टलैंड जैसे शहरों में देखी जा सकती है.
सींगों वाले दैत्य से आधुनिक भूतों तक
एक पारंपरिक क्रांपुस को सींग और फरों वाला बताया जाता है. उसके चेहरे पर हाथ से कढ़े हुए लकड़ी के मुखौटे होते हैं. लेकिन ऑस्ट्रिया में तो इसके खूंखार दैत्य का स्वरूप भी दिया जाता है. नॉयश्टिफ्ट नामकी जगह पर ऐसा क्रांपुस दिखा जो आसानी से किसी आधुनिक हॉलीवुड हॉरर फिल्म का चरित्र हो सकता है.
क्रांपुस रन
तिरोल इलाके में बसे कई गांवों में क्रांपुस एसोसिएशन बने हैं. पिछले करीब एक दशक से ऐसे हर एक एसोसिएशन में लगभग 100 सदस्य हैं. यह क्रांपुस की परंपरा में आधुनिकता का मेल कराते हैं. इनकी क्रांपुस परेड सेंट निकोलास पर निर्भर नहीं बल्कि पूरे नवंबर और दिसंबर के शुरुआती हफ्तों में लगातार होती है.
छाल के नीचे कौन
चेक गणराज्य के कुछ हिस्सो में क्रांपुस की खूब धूम होती है. पूरी साज सज्जा के साथ इसमें हिस्सा लेने वाला एक व्यक्ति परेड के बाद थोड़ा सुस्ताते हुए. घुटनों पर लगाई जाने वाली नी-कैप से पता चलता है कि ये परेड में गिरने पड़ने और छोटी मोटी चोटों के लिए तैयार होते हैं.
बवेरिया में गढ़े जाते हैं चेहरे
लकड़ी पर नक्काशी करने वाले ये कारीगर जर्मनी के बवेरिया प्रांत में स्थित अपनी कार्यशाला में क्रांपुस के नए मुखौटे बनाने का काम करते हुए. मुखौटों को डरावना बनाने की कोई सीमा नहीं है. कभी जानवरों के असली सींग लगाए जाते हैं तो कभी आग उगलने वाली आंखें बनाने के लिए उनमें एलईडी लाईटें लगाई जाती हैं.
बच्चों ही नहीं बुरी आत्माओं को भी डर
क्रांपुस इतना बुरा भी नहीं होता जो केवल बच्चों को ही सताए. शैतानी करने वाले बच्चों को डराकर उन्हें अच्छा बच्चा बनने के रास्ते पर लाने के अलावा, वे जाड़ों में आने वाली बुरी आत्माओं को भी दूर भगाते हैं. यह समुदाय के लिए उनका सबसे बड़ा कर्तव्य है. (नाडीने बेर्गहाउसेन/आरपी)