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भारत में चीतों की मौत की क्या वजहें हो सकती हैं

२५ अप्रैल २०२३

भारत में चीतों के पुनर्वास के लिए किए गए प्रयासों को एक और झटका लगा है. मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित कूनो राष्ट्रीय उद्यान में एक नर चीते की मौत हो गई है. इससे पहले एक मादा चीते की मौत हुई थी.

कूनो नेशनल पार्क में चीता
कूनो नेशनल पार्क में चीतातस्वीर: Press Information Bureau/Pib Pho/Planet Pix/ZUMA/picture alliance

सात दशक पहले भारत में चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया गया था. लेकिन इसके बाद भारत सरकार ने देश में चीतों को बसाने के लिए प्रयास शुरू किए. इसी क्रम में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते और नामीबिया से आठ चीते लाए गए थे.

कैसे हुई उदय की मौत

अफ्रीका से लाए गए 12 चीतों में से एक की मौत रविवार को हो गई. उसको भारत में उदय नाम दिया गया था. कूनो राष्ट्रीय उद्यान में रविवार को जब वह बाड़े में अस्वस्थ नजर आया तो अधिकारियों ने उसे बेहोश कर उसका इलाज किया लेकिन वह मर गया. भारत के राष्ट्रीय बाघ संरक्षण कार्यक्रम के अमित मल्लिक ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि मौत के कारणों का पता लगाने के लिए परीक्षण किए जा रहे हैं.

इससे पहले इसी साल मार्च में नामीबियाई चीता साशा की किडनी की बीमारी की वजह से मौत हो गई थी. अधिकारियों का कहना है कि छह महीने पहले नामीबियाई समूह चीते के भारत आने से पहले उन्हें बीमारी के बारे में सूचित नहीं किया गया था.

वन्यजीव विशेषज्ञ यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या 'बड़ी बिल्ली' मध्य प्रदेश में अपने नए आवास में स्थानांतरित होने से पहले गुर्दे के संक्रमण से पीड़ित थी या बाद में संक्रमित हो गई थी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल कूनो में चीते छोड़े थेतस्वीर: Press Information Bureau/Pib Pho/Planet Pix/ZUMA/picture alliance

भारत में चीतों को दोबारा बसाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रमुख प्रतिष्ठा परियोजना है. पिछले साल जब सितंबर में नामीबिया से भारत में चीते आए तो थे तो उन्होंने खुद चीतों को जंगल में छोड़ा था. ये पहला मौका था जब इतने बड़े मांसाहारी जानवर को महाद्वीप से निकालकर दूसरे महाद्वीप के जंगलों में लाया गया था.

इस कार्यक्रम के तहत अगले एक दशक में एक सौ के करीब चीतों को भारत में लाने का लक्ष्य है.

क्या भारत में टिक पाएंगे नामीबिया के चीते

भारत से कैसे लुप्त हुए चीते

19वीं शताब्दी से पहले तक भारत समेत एशिया में चीते अच्छी खासी संख्या में थे. चीतों की उस प्रजाति को एशियाई चीता कहा जाता था. आज यह सिर्फ ईरान में बचे हैं. ज्यादातर देशों में शिकार के लिए चीतों को कैद करने और उनका शिकार करने के कारण एशिया के ज्यादातर देशों से चीते लुप्त हो गए.

भारत में 1947 में कोरिया (सरगुजा) के राजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने आखिरी तीन का शिकार किया. इसके पांच साल बाद 1952 में भारत में एशियाई चीतों को आधिकारिक रूप से लुप्त घोषित कर दिया. अब 70 साल बाद चीते भारत लाये गये हैं, लेकिन ये अफ्रीकी चीते हैं. बीते पांच दशकों में भारत के कुछ वन्य अधिकारियों ने ईरान से एशियाई चीते लाने की बहुत कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी. इसके बाद ही दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से चीते लाने की पहल की गयी.

मार्च के ही महीने में एक नामीबियाई मादा चीते ने कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चार शावकों को जन्म दिया था. इन चीतों को 50 दिन छोटे बाड़ों में क्वारंटीन रखने के बाद बड़े बाड़े में शिफ्ट कर दिया गया. इसके बाद तीन मादा और दो नर चीतों को एक बाडे़ में छोड़ा गया था.

चीतों के सामने चुनौतियां

आलोचकों ने चेतावनी दी है कि बड़ी संख्या में तेंदुओं से शिकार के लिए प्रतिस्पर्धा के कारण ये जीव भारतीय आवास के अनुकूल होने के लिए संघर्ष कर सकते हैं.

नामीबिया में लीबनिज-आईजेडडब्ल्यू के चीता रिसर्च प्रोजेक्ट के शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों ने हाल ही में कहा है कि पुनर्वास कार्यक्रम ने "स्थानिक पारिस्थितिकी" को नजरअंदाज कर दिया और कूनो राष्ट्रीय उद्यान का आकार इन बड़े जानवारों की तुलना में बहुत कम है, आमतौर पर जितना उनके लिए जरूरी होता है.

दुनिया के जंगलों में आज 7,000 से कम चीते बचे हैं. इनमें से 99 फीसदी से ज्यादा अफ्रीका में हैं. एक अनुमान के मुताबिक बीते 100 साल में चीतों ने अपना 90 फीसदी इलाका खोया है और इसका असर सिर्फ उनकी आबादी पर ही नहीं बल्कि पूरे इकोसिस्टम पर पड़ा है. बड़े शिकारी जीव जिस इलाके में रहते हैं, वहां कई वनस्पतियों को फिर से पनपने का मौका मिलता है.

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