हिमालय में मिला द्वितीय विश्वयुद्ध के विमान का मलबा
२५ जनवरी २०२२
हिमालय में अपने पिता के अवशेष खोजने के लिए एक अमेरिकी शख्स ने जमीन आसमान एक कर दिया. अब करीब 80 साल बाद अरुणाचल के पहाड़ों में उस विमान के परखच्चे मिले हैं, जिस पर उसके पिता सवार थे.
विज्ञापन
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान तत्कालीन बर्मा (अब म्यांमार), चीन और पूर्वोत्तर भारत में मित्र सेनाओं और जापानी सेना के बीच जबरदस्त युद्ध छिड़ा था. इस दौरान सैनिकों और सैन्य मशीनरी को ट्रांसपोर्ट करने के लिए अमेरिकी सेना के बड़े विमानों की मदद ली जा रही थी. मित्र देशों के सामने सबसे बड़ी चुनौती जापानी सेना को पूर्वोत्तर भारत में हराने की थी. इसके लिए चीन और पूर्वोत्तर भारत के बीच सॉलिड डिफेंस लाइन बनाई जा रही थी.
भीषण होती जंग के बीच 1945 में दक्षिणी चीन के कुनमिंग से एक अमेरिकी ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट सी-46 ने उड़ान भरी. विमान में 13 लोग सवार थे और उन्हें हिमालय पार कर भारत पहुंचना था. लेकिन अरुणाचल के पहाड़ी इलाके में विमान बुरे मौसम का शिकार हो गया. अब 77 साल बाद पहली बार विमान का मलबा मिला है. विमान के अवशेष खोजने वाले खोजी दल के अमेरिकी लीडर क्लैटन कुलेस कहते हैं, "इस विमान से फिर कभी कोई संदेश नहीं मिला. वह अचानक गायब हो गया."
क्लैटन एक साहसिक कारनामे करने वाले इंसान हैं. इस विमान का मलबा खोजने की कई कोशिशें नाकाम होने के बाद बिल शेरर ने उनसे संपर्क किया. बिल के पिता उस विमान में सवार थे. बिल कहते हैं, "मैं बिना पिता के बड़ा हुआ हूं. मैं तो सिर्फ अपनी लाचार मां के बारे में ही सोच सकता हूं, जिनके पति लापता थे. वह भी 13 महीने का एक बच्चा उसकी गोद में छोड़कर."
आज बिल खुद बुजुर्ग हो चुके हैं. कमजोर पड़ती जिंदगी के बीच उन्हें लगता है कि आखिरकार उनका लक्ष्य पूरा हो चुका है. न्यूयॉर्क से समाचार एजेंसी एएफपी को भेजे ईमेल में बिल ने कहा, "अभी तो मेरी खुशी की कोई सीमा नहीं है, मैं जान चुका हूं कि वो (पिता) कहां हैं. दुख और आनंद का पल एक साथ आया है."
खोजी अभियान के दौरान कई लोगों की मौत भी हुई. विमान का मलबा खोजने के लिए छाती तक गहरी बर्फीली नदियों को पार करना था और कड़ाके की सर्दी में कई पहाड़ों का चप्पा चप्पा छानना था. क्लैटन कुलेस ने स्थानीय लिसू समुदाय की मदद ली. गाइड लिसू समुदाय के लोग ही बने. 2018 में खोज अभियान के दौरान तीन लिसू लोगों की मौत भी हो गई. सितंबर के महीने में अचानक बहुत ज्यादा बर्फबारी हो गई और तीनों खोजी हाइपोथर्मिया से मारे गए. दो लोग बाल बाल बचे.
खोजी दल ने बहुत ऊंचाई पर सर्च कैंप बनाया था. क्लैटन कहते हैं, "मेरे लिसू गाइड और कुली उतनी ऊंचाई पर बनाए गए कैंप को लेकर बहुत शंका में रहते थे."
दिसंबर 2020 में बर्फीली चोटियों पर आखिरकार विमान का पहला सुराग मिल गया. ज्यादा खोज करने पर विमान का टेल नंबर मिल गया. टेल नंबर लापता सी-46 विमान से मेल खा गया, लेकिन मलबे में इंसान का कोई अवशेष नहीं मिला.
एक्सपर्ट्स और सैन्य दस्तावेजों को मुताबिक दूसरे विश्वयुद्ध में हिमालय के इलाके में कई अमेरिकी विमान लापता हुए. ये विमान बहुत ऊंचाई पर खराब मौसम भी झेलते थे और जापानी गोलीबारी भी. भारत, चीन और म्यांमार में लड़ी जा रही उस जंग के दौरान लाखों सैनिक मारे गए और हजारों विमान क्रैश हुए.
ओएसजे/एके (एएफपी)
1945: त्रासदी का अंत
हार, मुक्ति और कब्जा. मई 1945 में जर्मनी के आत्मसमर्पण के साथ यूरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म हुआ. जर्मनी मलबे में था. अमेरिकी और सोवियत सैनिक जर्मनी के सैनिकों और नागरिकों से मिले जिनके खिलाफ वे सालों से लड़ रहे थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
अंत की शुरुआत
नॉर्मंडी में 6 जून 1944 को मित्र राष्ट्रों की सेना के उतरने के साथ नाजी जर्मनी के पतन की शुरुआत का बिगुल बज गया. 1945 के शुरू में अमेरिकी सैनिक जारलैंड पहुंचे और जारब्रुकेन के करीब उन्होंने एक गांव पर कब्जा कर लिया. अभी तक जर्मन सैनिक हथियार डालने को तैयार नहीं थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
प्रतीक से ज्यादा
हिटलर की टुकड़ियों की हार को रोकना काफी समय से संभव नहीं था, फिर भी राजधानी बर्लिन में अप्रैल 1945 में जमकर लड़ाई हो रही थी. सोवियत सेना शहर के बीच में ब्रांडेनबुर्ग गेट तक पहुंच गई थी. उसके बाद के दिनों में राजधानी बर्लिन में हजारों सैनिकों और गैर सैनिक नागरिकों ने आत्महत्या कर ली.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कोलोन में पेट्रोलिंग
पांच साल में 262 हवाई हमलों के बाद राइन नदी पर स्थित शहर कोलोन में भी मई 1945 में युद्ध समाप्त हो गया. करीब करीब पूरी तरह नष्ट शहर में कुछ ही सड़कें बची थीं जिनपर अमेरिकी सैनिक गश्त कर रहे थे. ब्रिटिश मार्शल आर्थर हैरिस के बमवर्षकों ने शहर का हुलिया बदल दिया था जो आज भी बना हुआ है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
प्रतीक वाली तस्वीर
जर्मनी को दो ओर से घेरने वाली सेनाओं का मिलन टोरगाऊ में एल्बे नदी पर स्थित पुल के मलबे पर हुआ. 25 अप्रैल 1945 को सोवियत सेना की 58वीं डिवीजन और अमेरिकी सेना की 69वीं इंफेंटरी डिवीजन के सैनिक एक दूसरे से मिले. इस प्रतीकात्मक घटना की यह तस्वीर पूरी दुनिया में गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
सदमे में विजेता
अमेरिकी सेना के पहुंचने तक म्यूनिख के निकट दाखाऊ में स्थित नाजी यातना शिविर में बंदियों को मारा जा रहा था. इस तस्वीर में अमेरिकी सैनिकों को शवों को ट्रांसपोर्ट करने वाली एक गाड़ी पर देखा जा सकता है. दिल के कड़े सैनिक भी संगठित हत्या के पैमाने पर अचंभित थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
विजय का झंडा
2 मई 1945 को एक सोवियत सैनिक ने बर्लिन में संसद भवन राइषटाग पर हसिया हथौड़े वाला सोवियत झंडा लहरा दिया. शायद ही और कोई प्रतीक तृतीय राइष के पतन की ऐसी कहानी कहता है जैसा कि विजेता सैनिकों द्वारा नाजी सत्ता के एक केंद्र पर झंडे का लहराना.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
18 मिनट में मौत
उत्तर जर्मनी के छोडे शहर एम्डेन का त्रासदीपूर्ण दुर्भाग्य. 6 सितंबर 1944 को वहां पर कनाडा के लड़ाकू विमानों ने 18 मिनट के अंदर 15,000 बम गिराए. एम्स नदी और समुद्र के मुहाने पर स्थित बंदरगाह पर अंतिम हवाई हमला 25 अप्रैल 1945 को हुआ. युद्ध में बुरी तरह बर्बाद हुए यूरोपीय शहरों में एम्डेन भी शामिल है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
मोर्चे से युद्धबंदी
जो जर्मन सैनिक युद्ध में बच गया उसके लिए युद्धबंदी का जीवन इंतजार कर रहा था. सोवियत कैद के बदले ब्रिटिश और अमेरिकी सेना के कैद को मानवीय समझा जाता था. 1941 से 1945 के बीच 30 लाख जर्मन सैनिक सोवियत कैद में गए. उनमें से 11 लाख की मौत हो गई. अंतिम युद्धबंदियों को 1955 में रिहा किया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
सबसे अहम खबर
यही खबर पाने के लिए अमेरिकी सैनिक लड़ रहे थे. 2 मई 1945 को अमेरिकी सैनिकों को सेना के अखबार स्टार एंड स्ट्राइप्स से अडोल्फ हिटलर की मौत के बारे में पता चला. सैनिकों के चेहरों पर राहत की झलक देखी जा सकती है. द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत करीब आ रहा था.
तस्वीर: picture alliance/dpa/Everett Colle
मलबे में उद्योग
पहले विश्वयुद्ध की तरह स्टील और हथियार बनाने वाली एसेन शहर की कंपनी क्रुप हिटलर के विजय अभियान में मदद देने वाली प्रमुख कपनी थी. यह परंपरासंपन्न कंपनी मित्र देशों की सेनाओं की बमबारी के प्रमुख लक्ष्यों में एक है.1945 तक क्रुप के कारखानों में हजारों बंधुआ मजदूरों से काम लिया जाता था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
नष्ट बचपन
वे युद्ध को समझ नहीं सकते, फिर भी जर्मनी में हर कहीं दिखने वाला मलबा लाखों बच्चों के लिए खेलने की जगह है. मलबों से दबे जिंदा बमों से आने वाले खतरों के बावजूद वे यहां खेलते हैं. एक पूरी पीढ़ी के लिए युद्ध एक सदमा है जिसकी झलक जर्मनों की कड़ी मेहनत और किफायत में दिखती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
युद्ध से क्या बचा
युद्ध में इंसान. यह जर्मन सैनिक जिंदा बच गया. लेकिन जिंदगी सामान्य होने में अभी देर है. जर्मनी में 1945 में पीने का पानी, बिजली और हीटिंग लक्जरी थी. इसमें जिंदा रहने के लिए जीजिविषा, गुजारा करने की इच्छा और मुसीबतों और अभाव से निबटने का माद्दा चाहिए.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बर्लिन में वसंत
युद्ध की समाप्ति के 70 साल बाद बर्लिन, ठीक ब्रांडेनबुर्ग गेट के सामने. वह जगह जहां अतीत वर्तमान के साथ नियमित रूप से टकराता है. मई 45- बर्लिन में वसंत के नाम वाली एक प्रदर्शनी राजधानी में जर्मनी सेना के आत्मसमर्पण और यूरोप में दूसरे विश्वयुद्ध के खात्मे की याद दिला रही है.