ब्रिटेन की सीक्रेट लैब बना रही है पहली क्वांटम घड़ी
३ जनवरी २०२५
पूरी दुनिया में क्वांटम तकनीक विकसित करने की होड़ बढ़ रही है. ब्रिटेन की एक टॉप सीक्रेट लैब देश की पहली क्वांटम घड़ी बना रही है.
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ब्रिटेन की एक टॉप-सीक्रेट लैब देश की पहली क्वांटम घड़ी बना रही है. यह घड़ी ब्रिटिश सेना की खुफिया और जासूसी क्षमता को बढ़ाने में मदद करेगी. ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय ने गुरुवार को यह जानकारी दी.
यह घड़ी इतनी सटीक होगी कि अरबों सालों में भी एक सेकंड का समय नहीं खोएगी. रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "यह तकनीकसमय को एक अभूतपूर्व पैमाने पर मापने की क्षमता प्रदान करेगी."
रक्षा खरीद मंत्री मारिया ईगल ने कहा, "इस नई और क्रांतिकारी तकनीक का परीक्षण न केवल हमारी कार्यक्षमता को मजबूत करेगा, बल्कि उद्योग, विज्ञान क्षेत्र और उच्च-कौशल वाले रोजगार को भी बढ़ावा देगा."
जीपीएस पर निर्भरता होगी कम
यह क्रांतिकारी तकनीक रक्षा विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रयोगशाला द्वारा विकसित की जा रही है. यह घड़ी जीपीएस पर निर्भरता को कम करेगी, जिसे दुश्मन द्वारा बाधित या ब्लॉक किया जा सकता है.
हालांकि यह दुनिया की पहली क्वांटम घड़ी नहीं है. 15 साल पहले अमेरिका के कॉलराडो विश्वविद्यालय ने नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड्स एंड टेक्नोलॉजी के साथ मिलकर एक क्वांटम घड़ी विकसित की थी.
लेकिन ब्रिटिश सरकार ने बताया कि "यूके में बनाई गई अपनी तरह की यह पहली डिवाइस" है. मंत्रालय ने कहा कि इसे अगले पांच वर्षों में सेना में तैनात किया जा सकता है.
क्वांटम घड़ी कैसे काम करती है?
क्वांटम घड़ी समय को रिकॉर्ड करने के लिए क्वांटम मैकेनिक्स का उपयोग करती है. यह परमाणुओं के अंदर ऊर्जा में होने वाले बदलावों को मापकर अत्यधिक सटीक समय देती है.
समय का इतिहास
लम्हा या वक्त, लगातार हाथ से फिसलता जा रहा है. लेकिन इसका अहसास भी हमें घड़ी ही कराती है. चलिए जानते हैं कि समय के इतिहास को.
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सूर्य की दशा
भारत के पौराणिक ग्रंथों में समय का जिक्र मिलता है. ईसा पूर्व से भी हजारों साल पहले भारत में समय को सूर्य की स्थिति से आंका जाता था. तब प्रहर के मानक बनाकर समय की गणना की जाती थी.
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सूर्य घड़ी
सूर्य घड़ी का इस्तेमाल प्राचीन मिस्र की सभ्यता ने किया. माना जाता है कि सूर्य घड़ी वैज्ञानिक रूप से समय की गणना करने वाला पहला आविष्कार है. आज भी सूर्य घड़ी देखकर समय का मोटा अंदाजा लग जाता है. लेकिन बादल लगे हों तो सूर्य घड़ी काम नहीं करती.
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रेत घड़ी
इस घड़ी का आविष्कार कब और कहां हुआ ये कहना मुश्किल है. लेकिन माना जाता है कि रेत घड़ी अरब में खोजी गई. मध्यकाल के दौरान रेत से कांच बनाने की कला विकसित हुई. कांच को खास बनावट में ढालकर उसके भीतर रेत भरी गई. रेत के एक खाने से दूसरे खाने में आने के समय के मुताबिक वक्त का अंदाजा लगाया जाता था.
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जल घड़ी
तस्वीर में भले जल घड़ी का आधुनिक मॉडल हो लेकिन असली वॉटर क्लॉक ईसा पूर्व 16वीं शताब्दी में बनाई गई. यह भी रेत की घड़ी के समान ही थी, लेकिन इसमें रेत की जगह पानी होता था. उसकी टपकती बूंदों से समय का अंदाजा लगाया जाता था.
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घंटाघर
18वीं शताब्दी में यूरोप में घड़ी के जरिये दिन को घंटों के हिसाब से बांटने का तरीका खोज लिया गया. फिर बड़ी घड़ियां भी बनाई जाने लगी. तब चर्च सबसे अहम जगह होती थी, इसीलिए चर्च में घड़ियां लगाई गईं. भारत के कुछ शहरों में आज भी घंटाघर वाली इमारतें इसकी गवाह हैं.
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पॉकेट वॉच
कहा जाता है कि फ्रांस और स्विट्जरलैंड की सीमा पर बसे गांवों में बेहद गरीबी थी. सर्दियों में वहां रोजगार का कोई मौका नहीं था. इसीलिए वहां लोगों ने लकड़ी की घड़ियां बनानी शुरू कीं. धीरे धीरे वे घड़ी बनाने में माहिर हो गए. इस तरह पॉकेट वॉच का जन्म हुआ.
घंटाघर की घड़ी धीरे धीरे सिकुड़ती गई और पॉकेट वॉच में तब्दील हो गई. बेहतर होती तकनीक के साथ ही यूरोपीय देश कलाई की घड़ी बनाने में सफल हुए. धीरे धीरे घड़ियां फैशन और प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गईं. घड़ियों के कई बड़े ब्रैंड आज भी इसकी मिसाल हैं.
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खास से आम हुई घड़ी
1980 के दशक तक घड़ी पहनना कई देशों में सम्मान की बात होती थी. घड़ियां भी महंगी थीं. लेकिन 1990 के दशक में स्वैच ब्रांड ने सस्ती घड़ियां पेश कीं. इसके साथ ही दुनिया भर में सस्ती घड़ियां बनाने की होड़ छिड़ गई और समय हर कलाई तक पहुंचने लगा.
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इलेक्ट्रॉनिक घड़ी
एक तरफ स्विट्जरलैंड, रूस और ब्रिटेन समेत कुछ देश टिक टिक घड़ी बनाने में एक्सपर्ट बनते जा रहे थे. तभी जापान इलेक्ट्रॉनिक घड़ी लेकर आया. वॉटरप्रूफ होने के साथ साथ यह डिजिटल घड़ियां आसानी से समय भी बता देती थी. कांटे वाली घड़ियों में टाइम देखना सीखना पड़ता था.
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परमाणु घड़ी
समय की सबसे बेहतर रीडिंग तो परमाणु घड़ी ही देती है. आज पूरी दुनिया का टाइम इन्ही घड़ियों के जरिये सेट किया जाता है. एटॉमिक घड़ी अणु के तापमान और इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजिशन फ्रीक्वेंसी के आधार पर काम करती है. सैटेलाइटें, जीपीएस और रेडियो सिग्नल भी इसी घड़ी के आधार पर चलती हैं.
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स्मार्ट वॉच
अब घड़ियां सिर्फ समय बताने वाली मशीनें भर नहीं रह गई हैं. स्मार्ट वॉच कही जाने वाली नई घड़ियों में अब एक छोटा कंप्यूटर भी होता है. यह धड़कन, सेहत, मैसेज, कॉल्स, पैदल कदमों की संख्या और नींद के घंटों पर नजर रखता है.
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सटीक समय रिकॉर्ड करना सैटेलाइट नेविगेशन, मोबाइल फोन और डिजिटल टीवी सहित कई तकनीकों के लिए बेहद जरूरी है. यह क्वांटम विज्ञान जैसे अनुसंधान क्षेत्रों में नए आयाम खोल सकता है.
सामान्य घड़ियों में समय मापने की सटीकता सीमित होती है. ये धीरे-धीरे समय का अंतर पैदा करती हैं, जैसे कि हर महीने कुछ सेकंड का बदलाव. इन पर तापमान, दबाव और चुंबकीय क्षेत्रों का असर पड़ता है. उन्नत तकनीकों जैसे सैटेलाइट नेविगेशन या वैज्ञानिक शोध के लिए इनकी सटीकता पर्याप्त नहीं होती.
दुनिया भर में कंपनियां और सरकारें क्वांटम तकनीक से होने वाले लाभों को भुनाने के लिए भारी निवेश कर रही हैं. पिछले महीने गूगल ने एक नई क्वांटम कंप्यूटिंग चिप पेश की. गूगल का दावा है कि यह चिप कुछ मिनटों में वह काम कर सकती है, जिसे करने में सुपरकंप्यूटर को 10 सेप्टिलियन (1 के पीछे 24 शून्य) साल लगेंगे.
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क्वांटम तकनीक में होड़
क्वांटम तकनीक की शुरुआत 20वीं सदी में क्वांटम मैकेनिक्स के सिद्धांतों से हुई थी. 1920 के दशक में माक्स प्लांक और अल्बर्ट आइंस्टाइन ने ऊर्जा और प्रकाश के कणों पर शोध किया. 1980 में क्वांटम कंप्यूटिंग की अवधारणा आई. अब यह तकनीक घड़ियों, कंप्यूटर और संचार में क्रांति ला रही है.
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अमेरिका और चीन भी क्वांटम अनुसंधान में भारी निवेश कर रहे हैं. अमेरिका ने इस संवेदनशील तकनीक के निर्यात पर सख्त प्रतिबंध लगाए हैं. एक विशेषज्ञ, ओलिवियर एजेर्टी ने अक्टूबर में बताया था कि पिछले पांच वर्षों में इस तकनीक में निजी और सार्वजनिक निवेश 20 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. 2022 में क्वांटम मैकेनिक्स के वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था.
ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि भविष्य के अनुसंधान से इस तकनीक को छोटा और बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए तैयार किया जाएगा. इससे यह घड़ी सैन्य वाहनों और हवाई जहाजों जैसी कई अन्य तकनीकों में उपयोग के लिए उपलब्ध हो सकेगी.