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फेसबुक जैसी तेज कार्रवाई और कहीं क्यों नहीं

१८ मार्च २०१५

बरेली स्कूल के एक छात्र के फेसबुक पोस्ट के भड़काऊ होने के आरोप में उसे 24 घंटे के अंदर हिरासत में ले लिया गया. भारत का पुलिस प्रशासन ऐसी फुर्ती देश में घट रहे इससे भी गंभीर आपराधिक मामलों में क्यों नहीं दिखाता.

तस्वीर: Reuters/D. Ruvic

सोशल मीडिया पर अपनी राय व्यक्त करते हुए सामुदायिक हित जैसी तमाम बातों का ध्यान रखने में यूजर की ही भलाई है. लेकिन भारत में इन मामलों में जितना तेज पुलिस एक्शन दिखता है, वैसा तब नहीं दिखता जब कोलकाता में किसी वृद्धा के बलात्कार के आरोपी 24 घंटे बाद भी पकड़े नहीं जाते. आईटी कानूनों का इतनी शिद्दत से पालन करने वाले अधिकारी हिंसा, हत्या और बलात्कार जैसे मामलों में भी ज्यादा नहीं तो कम से कम उतनी संजीदगी ही दिखाते तो कितना अच्छा होता.

ऋतिका पाण्डेय, डॉयचे वेलेतस्वीर: DW/P. Henriksen

फेसबुक ने हाल ही में नए निर्देश जारी कर हिंसा, आत्महत्या या यौन हिंसा के लिए उकसाने वाली भड़काऊ पोस्ट पर सख्ती बढ़ाने का फैसला किया है. इसके अलावा आतंकवाद या आतंकियों को किसी भी तरह का समर्थन देने वाले संदेशों पर भी प्रतिबंध होगा. किसी भी तरह की अश्लीलता की शिकायत आने पर उसकी समीक्षा होगी और उसे बैन किया जाएगा. भारत में इन निर्देशों से शायद ज्यादा अंतर ना आए, क्योंकि पहले से ही भारत के फेसबुक यूजर फेसबुक कंटेट को लेकर आपत्तियां दर्ज करवाने में सबसे आगे हैं.

भारत सरकार ने 2014 के आखिरी छह महीनों के भीतर ही फेसबुक को 5,832 पोस्ट हटाने को कहा था. इसके मुकाबले पाकिस्तान से ऐसे केवल 54 अनुरोध मिले. भारत सरकार ने जिन पोस्ट्स पर आपत्तियां जताईं थीं, वह ज्यादातर धर्मविरोधी या भड़काऊ भाषण से जुड़ी थीं. उत्तर प्रदेश के बरेली स्कूल के छात्र पर भी धार्मिक सद्भाव बिगाड़ने और किसी धर्म विशेष को भड़काने वाली टिप्पणी करने का आरोप लगा है.12वीं क्लास के इस छात्र ने कथित रूप से समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान के नाम का इस्तेमाल कर फेसबुक पर पोस्ट किया था. पुलिस ने 24 घंटे के भीतर कार्यवाई करते हुए इस लड़के को उसके घर से गिरफ्तार कर लिया.

भारत का संविधान देश के हर नागरिक को अभिव्यक्ति की आजादी देता है. लेकिन देश की दंड संहिता ऐसे व्यक्ति के लिए 3 साल तक की जेल का प्रावधान करता है जिनके कृत्य से लगे कि उन्होंने "इरादतन धार्मिक भावनाओं को भड़काया है." पेरिस में व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दॉ पर आतंकियों के जानलेवा हमले की निंदा भारत के कई बुद्धिजीवियों ने भी की थी, लेकिन इनमें ही कुछ ऐसे भी हैं जो खुद अपने देश में किताबों और कलाकारों पर प्रतिबंध लगाने का समर्थन भी करते हैं. शायद इसलिए कि वे जानते हैं कि प्रशासन उन्हें बचाने के लिए सामने नहीं आएगा लेकिन उनके खिलाफ कार्यवाई करने में देर नहीं करेगा.

दुनिया भर में सक्रिय कई आतंकी संगठन फेसबुक, ट्विटर और दूसरी सोशल मीडिया साइटों के जरिए नए रंगरूटों और फंडिंग का इंतजाम कर रहे हैं. बीते महीनों में खुद को इस्लामिक स्टेट कहने वाले आतंकी संगठन ने कई विदेशी बंधकों को ना सिर्फ जान से मारा बल्कि उनके वीडियो रिकॉर्ड कर इन साइटों पर शेयर भी किया. इस तरह ये प्लेटफॉर्म उनके विचारों का प्रचार करने में एक बेहद महत्वपूर्ण औजार साबित हो रहे हैं, जिन्हें रोकने के लिए इंटरनेट पर भी कुछ हदें तय करना एक जरूरी कदम है.

फेसबुक और ऐसे दूसरे प्लेटफार्म अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए केवल सर्वसम्मति वाले कंटेट को ही जगह देने के असंभव लक्ष्य को पाने की कोशिश कर रहे हैं. इंटरनेट पर हाल ही में अपनी अलग तरह की कॉमेडी के लिए मशहूर यूट्यूब चैनल एआईबी के वीडियो को अश्लीलता के आरोप में बैन कर दिया गया, तो वहीं निर्भया कांड पर आधारित एक ब्रिटिश डॉक्यूमेंट्री के भारत में प्रसारण पर रोक होने के बावजूद इंटरनेट पर ही कई लोगों ने इसे देखा. इन तमाम प्रतिबंधों का कारण कहीं ना कहीं इतने विशाल देश में एक दूसरे से काफी अलग धार्मिक और जातीय मान्यताओं और संवेदनाओं का होना है. लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश को अभिव्यक्ति की आजादी की गारंटी के रास्ते भी तलाशने होंगे.

ब्लॉग: ऋतिका पाण्डेय

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