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मानवाधिकारसंयुक्त राज्य अमेरिका

सीआईए पर फिर लगा सीक्रेट सर्विलांस प्रोग्राम चलाने का आरोप

११ फ़रवरी २०२२

सीआईए ने अमेरिकी नागरिकों से जुड़ी जानकारियों का गोपनीय डेटा बनाया है. दो डेमोक्रैटिक सांसदों ने आरोप लगाया कि नागरिकों की जासूसी से जुड़े अपने इस प्रोग्राम की जानकारी सीआईए ने जनता और संसद, दोनों से छुपा कर रखी.

USA | CIA Zentrale
अमेरिकी खुफिया एजेंसियों पर अपने ही नागरिकों के खिलाफ मास सर्विलांस प्रोग्राम चलाने के आरोप पहले भी लगे हैं. 9/11 के बाद आतंकवाद से लड़ने और राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत करने के लिए खुफिया एजेंसियों ने जानकारियां इकट्ठा करने की जो प्रक्रिया अपनाई, उसपर भी गंभीर सवाल उठे. तस्वीर: Dennis Brack/Danita Delimont/imago images

सीनेटर रॉन वायडन और मार्टिन हेनरिक लंबे समय से खुफिया एजेंसियों के कामकाज में पारदर्शिता बढ़ाए जाने की वकालत करते आए हैं. 2013 में वायडन ने ही नेशनल इंटेलिजेंस के तत्कालीन निदेशक जेम्स क्लैपर से वह सवाल पूछा था, जिसके चलते आगे चलकर एनएसए के सीक्रेट मास सर्विलांस प्रोग्राम का खुलासा हुआ. सीआई ने जो डेटा जमा किया है वह किस तरह का है, यह ब्यौरा अभी नहीं दिया गया है.

किन सीनेटरों ने लगाया आरोप?

आरोप लगाने वाले दोनों सीनेटरों में से एक हैं, ऑरेगॉन से डेमोक्रैटिक सेनेटर रॉन वायडन और, न्यू मैक्सिको से डेमोक्रैटिक सेनेटर मार्टिन हेनरिक. वायडन और हेनरिक दोनों ने अप्रैल 2021 में खुफिया विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को एक चिट्ठी भेजी थी. इसमें अधिकारियों से कहा गया था कि वे इस गोपनीय प्रोग्राम को सार्वजनिक करने से जुड़े और ब्यौरे उपलब्ध करवाएं. 10 फरवरी, 2022 को इस चिट्ठी का एक बड़ा अंश गोपनीय कागजातों की सूची से हटाकर सार्वजनिक कर दिया गया. वायडन और हेनरिक का आरोप है कि अपने इस प्रोग्राम के लिए सीआईए ने कानूनी दायरे से बाहर जाकर काम किया.

सीआईए पर लगे आरोपों पर एजेंसी की निजता और नागरिक अधिकार के लिए जिम्मेवार अधिकारी क्रिस्टी स्कॉट ने एक बयान जारी किया. इसमें कहा गया, "राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े बेहद जरूरी मकसद को पूरा करने के अपने मिशन के दौरान अमेरिकी नागरिकों की निजता और अधिकारों का सम्मान करना सीआईए की प्रतिबद्धता है. हम अपनी जिम्मेदारी समझते हैं और इस पर बहुत गंभीर हैं. सीआईए पारदर्शिता के लिए भी प्रतिबद्ध है, लेकिन इसके साथ ही अपनी खुफिया जानकारियों के सोर्स और तरीकों को सुरक्षित रखना भी हमारा दायित्व है."

पहले भी लगते रहे हैं आरोप

सीआईए और नैशनल सिक्यॉरिटी एजेंसी (एनएसए) दोनों के काम का दायरा विदेश से जुड़ा है. आमतौर पर उन्हें अमेरिकी नागरिकों और अमेरिकी कंपनियों की जांच का अधिकार नहीं है. ऐसी घरेलू जानकारियां जमा करना सामान्य तौर पर उनके काम की परिधि में नहीं आता. मगर ये एजेंसियां विदेशों से जुड़ी जो जानकारियां और कम्युनिकेशन इकट्ठा करती हैं, उस विशाल भंडार में कई बार प्रसंगवश अमेरिकी नागरिकों के संदेश और डेटा भी सामने आते रहे हैं.

ऐसे में लंबे समय से आशंकाएं जताई जा रही थीं. खुफिया एजेंसियां घरेलू स्तर पर अपने नागरिकों से जुड़े किस तरह के ब्यौरे जमा कर रही हैं, इसपर सवाल उठते रहे हैं.

अतीत में भी अमेरिकी खुफिया एजेंसियां अपने नागरिकों की जासूसी कर चुकी हैं. मसलन, नागरिक अधिकार आंदोलन के समय एफबीआई ने गोपनीय तरीके से डॉक्टर मार्टिन लूथर किंग की निगरानी की थी. उनकी बातचीत को रिकॉर्ड किया था. वियतनाम युद्ध के समय भी सीआईए ने 'ऑपरेशन केयॉस' नाम का एक सीक्रेट सर्विलांस प्रोग्राम चलाया था. इसमें जांच की गई थी कि अमेरिका के भीतर वियतनाम युद्ध के विरोध में जो आंदोलन चल रहा था, उसका किसी बाहरी देश से तो कोई संबंध नहीं था.

इन खुफिया एजेंसियों की जिम्मेदारी है कि वे अमेरिका और अमेरिकी नागरिकों से जुड़ी जानकारियों की हिफाजत करें. इसमें 'रीडेक्टिंग' की प्रक्रिया भी शामिल है. इसके तहत अगर किसी खुफिया जानकारी में किसी अमेरिकी नागरिक का नाम है, तो उस रिपोर्ट की प्रिंटिंग या उसे सार्वजनिक किए जाने से पहले उसे हटाना होगा. अगर यह जानकारी किसी जांच के लिए अहम है, उस सूरत में रीडेक्टिंग नहीं की जाती है. रीडेक्टिंग किए गए हिस्से को फिर से दिखाए जाने की प्रक्रिया 'अनमास्किंग' कहलाती है.

सीआईए क्या बताता है?

9/11 कमीशन ऐक्ट की अनुशंसा पर 2004 में अमेरिका में एक स्वतंत्र एजेंसी बनाई गई. इसका नाम है, प्राइवेसी ऐंड सिविल लिबर्टिज ओवरसाइट बोर्ड. इसका काम यह सुनिश्चित करना है कि आतंकवाद और आतंकवादी हमलों को रोकने के लिए अमेरिकी सरकार जो भी काम करे, उनमें अमेरिकी नागरिकों की निजता और उनके अधिकारों का भी ध्यान रखा जाएगा. सीआईए ने अपने प्रोग्राम से जुड़े कई कागजात बोर्ड को सौंपे थे. इन कागजातों में अमेरिकी नागरिकों से जुड़ी जानकारियां हटा ली गई थीं. बोर्ड ने ये कागजात जारी किए.

इन कागजातों के मुताबिक, जब सीआईए के विश्लेषक जानकारियां इकट्ठा करने से जुड़े एजेंसी के प्रोग्राम पर काम करते हैं, तो उन्हें अपने स्क्रीन पर एक चेतावनी दिखती है. इसमें बताया गया होता है कि अमेरिकी नागरिकों से जुड़ी जानकारियां निजता कानून के अंतर्गत आती हैं. इस निजता कानून के दायरे में आने वालों से जुड़ी जानकारियां केवल तभी जमा की जा सकती हैं अगर वे किसी अहम विदेशी खुफिया जानकारी हासिल करने के लिए बेहद जरूरी हों.

वायडन के सवाल से मास सर्विलांस प्रोग्राम का पता चला

सेनेटर रॉन वायडन और मार्टिन हेनरिक लंबे समय से खुफिया एजेंसियों के ज्यादा पारदर्शी होने की वकालत करते आए हैं. एनएसए के मास सर्विलांस प्रोग्राम से जुड़े जरूरी ब्यौरे सामने आने में भी वायडन की भूमिका रही है. करीब एक दशक पहले मार्च 2013 में नेशनल इंटेलिजेंस के तत्कालीन निदेशक जेम्स आर क्लैपर को सीनेट इंटेलिजेंस कमेटी ने तलब किया  था. यहां वायडन ने क्लैपर से पूछा कि क्या एनएसए लाखों अमेरिकी नागरिकों से जुड़ा किसी भी तरह का डेटा जमा कर रही है? क्लैपर ने इससे इनकार करते हुए कहा कि एजेंसी सुनियोजित तौर पर ऐसा कुछ नहीं कर रही है. क्लैपर ने कहा कि कुछ मामलों में जरूरत पड़ने पर एजेंसी ऐसा करती है या कर सकती है, लेकिन जानबूझकर ऐसा नहीं किया जाता.

बाद में पता चला कि क्लैपर ने कमेटी को गलत जानकारी दी थी. पता चला कि एनएसए ने बड़े स्तर पर अमेरिकी नागरिकों के फोन रिकॉर्ड्स का मेटाडेटा जमा किया. एनएसए के साथ अनुबंध पर काम करने वाले एडवर्ड स्नोडेन ने खुलाया किया कि एजेंसी किस तरह अमेरिकी नागरिकों की जासूस करवा रही है. इसके लिए एक मास सर्विलांस प्रोग्राम चला रही है. वह लाखों अमेरिकियों के फोन रिकॉर्ड का मेटाडेटा जमा कर रही है. स्नोडेन ने कुछ गोपनीय दस्तावेज भी जारी किए थे, जिनसे संकेत मिलता था कि अमेरिकी नागरिक इंटरनेट पर जो भी गतिविधि करते हैं, उसपर निगरानी रखने की भी क्षमता एजेंसी के पास है.

बाद में क्लैपर ने सीनेट इंटेलिजेंस कमिटी को चिट्ठी भेजकर माफी भी मांगी. उन्होंने लिखा कि कमिटी में वायडन को दिया गया उनका जवाब भ्रामक था. 2016 में क्लैपर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. क्लैपर का कहना था कि उन्होंने सीनेट कमेटी के आगे एनएसए के घरेलू सर्विलांस प्रोग्राम की गलत व्याख्या दी थी. उनका कहना था कि उन्होंने झूठ नहीं बोला था, बस वह 'पैट्रिअट ऐक्ट' के बारे में भूल गए थे.

'पैट्रिअट ऐक्ट' के सेक्शन 215 में प्रावधान था कि खुफिया एजेंसियां राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी किसी जांच के लिए जरूरी बताकर किसी भी तरह की जानकारी हासिल करने का आदेश 'फॉरेन इंटेलिजेंस सर्विलांस कोर्ट' से ले सकती थीं. चाहे अमेरिकी नागरिकों से जुड़ी ये जानकारियां संविधान के पहले संशोधन द्वारा दी गई सुरक्षा के दायरे में ही क्यों न आती हों. अमेरिकी सरकारों और एजेंसियों पर इस सेक्शन के बेजा इस्तेमाल के आरोप लगते आए थे. 15 मार्च, 2020 को यह विवादित सेक्शन खत्म हो गया.

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चिट्ठी में क्या लिखा है?

वायडन और हेनरिक के मौजूदा पत्र के मुताबिक, सीआईए का बड़े स्तर पर जानकारी इकट्ठा करने का प्रोग्राम 'एक्जिक्यूटिव ऑर्डर संख्या 12333' के अंतर्गत काम कर रहा है. इस ऑर्डर पर सबसे पहले 1981 में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने दस्तखत किया था. मगर सीआईए का प्रोग्राम बाद के सालों में कांग्रेस के बनाए नए कानूनों और सुधारों के दायरे से बाहर हैं. दोनों सांसदों ने चिट्ठी में लिखा है कि अमेरिकी जनता गुमराह ना हो कि खुफिया एजेंसियां उनकी जो जानकारियां जमा करती हैं, वे सारी गतिविधियां अब तक हुए कानूनी सुधारों के दायरे में हैं.

सीआईए ने 10 फरवरी को जो अतिरिक्त कागजात जारी किए हैं, उनसे एक ऐसे प्रोग्राम की भी जानकारी मिलती है जिसका मकसद इस्लामिक स्टेट के खिलाफ वित्तीय आंकड़े जमा करना था. इस प्रोग्राम से जुड़े ब्यौरों में भी कुछ अमेरिकी नागरिकों से जुड़ी जानकारियां थीं.

रिपोर्टः स्वाति मिश्रा (एपी)

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