समंदर किनारे लकड़ी की बल्लियां गाड़ दी गईं, फिर उन पर नारियल की टहनियां लपेट दी गईं. अफ्रीकी देश सेनेगल ने इस तरह बढ़ते समंदर को भी रोका है और अपने तटों को करीब 30 मीटर बढ़ा भी दिया है.
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पश्चिमी अफ्रीका का देश सेनेगल लगातार बढ़ते समंदर से परेशान हो रहा था. अटलांटिक महासागर की ताकतवर लहरें उसके तटों को निगलती जा रही थीं. तटीय इलाके के क्षरण का सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा था. पूरे पश्चिमी अफ्रीका की 56 फीसदी आर्थिक गतिविधियां तटीय इलाकों में ही होती हैं. विश्व बैंक के मुताबिक एक तिहाई आबादी भी इन्हीं तटीय इलाकों में रहती हैं.
जलवायु परिवर्तन और समुद्र के बढ़ते जल स्तर जैसी विकराल समस्याओं का असर सेनेगल के दिओगू द्वीप पर भी पड़ा. स्थानीय महिला संगठन की हेड अंगेल दिआत कहती हैं, "पहले समंदर बहुत दूर था, हम बस उसकी आवाज सुना करते थे, वह दिखता नहीं था." लेकिन वक्त गुजरने के साथ ही समंदर की आवाज तेज होने लगी और फिर वह बहुत करीब आ गया.
अर्थव्यवस्था का अहम स्रोत हैं समुद्र तटतस्वीर: Robert Adé/DW
अस्तित्व का संकट झेल रहे दिओगू द्वीप के लोगों ने बढ़ते समंदर को रोकने के लिए एक प्रयोग किया. द्वीपवासियों ने पहले तट पर बल्लियां लगाईं और फिर उन्हें नारियल की हरीभरी टहनियों से लपेट दिया. इसके साथ ही स्थानीय लोगों ने बोरों में रेत भरकर एक दीवार सी भी बना दी. 2019 में यह प्रयोग शुरू किया गया. प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों के मुताबिक जिन इलाकों में ये किया गया, वहां आज तट 30 मीटर बढ़ चुका है.
स्थानीय प्राइमरी स्कूल में टीचर गिलबेर्ट बासेन कहते हैं, "जब कभी भी हमें जमीन हासिल होती है तो हम इस ढांचे को आगे बढ़ा सकते हैं. कुछ और बल्लियां लगा सकते हैं. जैसी एक कहावत भी है कि चिड़िया तिनका तिनका जोड़कर अपना घोसला बनाती है."
जुलाई 2022 में बासेन और प्रोजेक्ट के प्रमुख पैट्रिक शेवालिए ने नई जमीन में लाल रंग का निशान लगाया. फिर उन्होंने नई लकड़ियां लगाई. ऐसे ही एक प्रयोग के दौरान उन्होंने देखा कि नारियल की सूखी टहनियां ज्यादा रेत रोकती हैं.
असल में सेनेगल के लोगों तक यह जानकारी कनाडा से पहुंची. कनाडा में क्यूबेक यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने साबित किया कि इस तरह के ढांचों से तटों की रक्षा की जा सकती है. बासेन कहते हैं, "हमारे पास जो कुछ भी छोटा मोटा है, हम उसी से असाधारण काम कर सकते हैं." दिओगू द्वीप के बच्चे भी अब इस काम में बड़ों का हाथ बंटाते हैं.
बीच फुटबॉल सेनेगल में बेहद लोकप्रिय हैतस्वीर: picture alliance/Godong
बर्बाद होते समुद्री तट
दुनिया के तमाम तटीय इलाकों की तरह सेनेगल में भी कई तटों का कटाव जारी है. संयुक्त राष्ट्र के ग्लोबल पैनल में शामिल जलवायु वैज्ञानिकों के मुताबिक पश्चिमी अफ्रीका के कई निचले इलाके खारे पानी में समाते जा रहे हैं. विश्व बैंक के मुताबिक 2017 में तटों के क्षरण के कारण बेनिन, आइवरी कोस्ट, सेनेगल और टोगो जैसे देशों को 3.8 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. उत्तरी सेनेगल में सेनेगल नदी और समंदर के बीच बसे प्रायद्वीप के 10 हजार लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाना पड़ा.
अपने द्वीप को बचाने की जी जान से कोशिश कर रहे दिओगू के कुछ लोगों को लगता है कि उन्हें भी एक दिन यहां से निकलना ही होगा. गांव के मुखिया चेरिफ दिआते कहते हैं, "ये स्वीकार करना आसान बिल्कुल नहीं है लेकिन एक दिन इस गांव को भी यहां से बाहर निकलना ही होगा."
सेनेगल के बारगनी में तेजी से करीब आता महासागरतस्वीर: Katrin Gänsler
जलमग्न होती दुनिया
ऐसी चिंताएं सिर्फ पश्चिमी अफ्रीका के जेहन में नहीं हैं. दुनिया की आर्थिक और सामरिक महाशक्ति कहा जाने वाला देश अमेरिका भी इससे अछूता नहीं है. इसी साल की शुरुआत में आई एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई कि 2050 तक अमेरिका में तटों पर समंदर 25-30 सेंटीमीटर ऊंचा उठ जाएगा.
भारत और इंडोनेशिया जैसे बड़े आबादी वाले देशों में चढ़ता समंदर एक करोड़ से ज्यादा लोगों को पलायन करने पर मजबूर करेगा. इंडोनेशिया तो अपने क्षेत्रफल का करीब साढ़े छह फीसदी हिस्सा खो देगा.
ओएसजे/एनआर (रॉयटर्स)
धरती पर जीवन सागर से चलता है
पृथ्वी के सबसे बड़े हिस्से पर सागर है और यह जलवायु को नियंत्रित करता है. धरती के मौसम से लेकर रंग तक सब इस पर निर्भर है. जलवायु परिवर्तन का असर सागरों पर भी है लेकिन यह कितना है इसे वैज्ञानिक भी नहीं जान पाए हैं.
हमारा नीला ग्रह
पृथ्वी को नीला ग्रह यूं ही नहीं कहा जाता. हमारी धरती की सतह का 71 फीसदी और जीवमंडल का 90 फीसदी हिस्सा समुद्र है. यह जीवन के लिए जरूरी है और पृथ्वी पर मौजूद ऑक्सीजन का 50 से 80 फीसदी यहीं से आता है. कार्बन चक्र के लिए यह बेहद जरूरी है. पृथ्वी पर सागर कब बने यह अब भी नहीं पता है, लेकिन समझा जाता है कि यह करीब 4.4 अरब वर्ष पहले बने थे और शुरुआती जीवन में इन्होंने उत्प्रेरक की भूमिका निभाई थी.
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गहराई के रहस्य
विशाल आकार के बावजूद हम सागर के बारे में बहुत कम जानते हैं. वास्तव में अभी पानी के नीचे छिपी दुनिया का 80 फीसदी से ज्यादा ऐसा है जिसकी पड़ताल नहीं की गई है. वैज्ञानिक गहराई में छिपे रहस्यों को ढूंढने पर काम कर रहे हैं जिनसे शायद हमें पर्यावरण के परिवर्तनों को समझने में ज्यादा मदद मिलेगी. यह भी पता चल सकेगा कि जलवायु परिवर्तन के दौर में सागर के संसाधन का प्रबंधन कैसे किया जाए.
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पृथ्वी का जलवायु नियंत्रक
हम यह जानते हैं कि पृथ्वी के जलवायु के नियंत्रण में सागर बड़ी भूमिका निभाते हैं. अब यह चाहे सौर विकिरण को अवशोषित करना हो, तापमान का वितरण हो या फिर मौसम के चक्र को चलाना हो. हालांकि जलवायु परिवर्तन ने इस संतुलन को बिगाड़ना पहले ही शुरू कर दिया है. इससे सागर के इकोसिस्टम से जुड़े कामों की क्षमता पर असर पड़ रहा है जैसे कि कार्बन का भंडारण और ऑक्सीजन का निर्माण.
सागर में जीवन
सागर में कम से कम 230,000 ज्ञात जीव रहते हैं. कोरल रीफ जैसे समुद्र तल केकड़ों, स्टारफिश, घोंघे के साथ ही रंग बिरंगी रीफ मछलियों को पनाह देते हैं. छिछली गहराइयों में कई तरह की वनस्पतियों का गुजर बसर होता है. ज्यादा गहराई वाले इलाकों में शार्क, व्हेल और डॉल्फिन अठखेलियां करती हैं. यानी सागर के पग पग पर जीवन है.
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अनोखे और शानदार जीव
वैज्ञानिकों के इस दावे पर कोई हैरानी नहीं होती कि दो तिहाई से ज्यादा सागर के जीवों की अब तक खोज नहीं हुई है. हालांकि रिसर्चरों को हर साल कुछ नए जीव मिल रहे हैं. इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जिन्हें पहले कभी नहीं देखा गया. अब इस स्क्वीडवर्म को ही देखिए. इसे 2007 में सेलिब्स सी में खोजा गया. अभी और क्या सामने आना है इसके बारे में हर कोई कयास लगा सकता है.
तस्वीर: Laurence Madin, WHOI
खतरे का संकेत
इतनी विशालता के बावजूद सागर दबाव में है. इसका सबसे सहज उदाहण है दुनिया भर में कोरल रीफ की सफाई की बढ़ती घटनाएं. बढ़ते तापमान और प्रदूषण के कारण कोरल पर तबाव बढ़ रहा है और वहां से खास किस्म का शैवाल बाहर जा रहा है. यह शैवाल ही उन्हें बढ़ने और प्रजनन करने देता है. ऐसे में पीछे बस डरावने कंकाल ही बच जा रहे हैं. कुछ कोरल इससे उबर सकते हैं लेकिन लगातार दबाव बना रहा तो उनकी मौत का खतरा बढ़ जाएगा.
तस्वीर: XL Catlin Seaview Survey
कोई आसरा नहीं
जलवायु परिवर्तन का असर समुद्री जीवों पर भी हो रहा है. हाल की एक रिसर्च दिखाती है कि मछली, घोंघा और केकड़ों की स्थानीय आबादी धरती पर लुप्त हो रहे जीवों की तुलना में दोगुनी तेजी से गायब हो रही है. इसका मुख्य कारण है अधिकतम तापमान का बढ़ना. सागर में गर्मी बढ़े तो बचने के लिए कोई कहां जाए. दुखद यह है कि ज्यादातर समुद्री जीव खुद को इतना नहीं ढाल पाएंगे कि बदलती परिस्थितियों का सामना कर सकें.
भारी पिघलन
पृथ्वी का वह हिस्सा जो ठोस पानी यानी हिम और बर्फ से ढंका है वह गर्मी के कारण पिघल रहा है. कहीं बर्फ पिघल रही है तो कहीं ग्लेशियर. मौजूदा पिघलन से ही दुनिया भर में समुद्री जलस्तर बढ़ रहा है और समुद्रों की अम्लीयता भी बढ़ रही है. इसकी वजह है आर्कटिक सागर के तल के पर्माफ्रॉस्ट से निकलने वाली मीथेन गैस.
तस्वीर: Getty Images/M. Tama
टूटती जीवनरेखा
मनुष्य बहुत गहराई से समुद्र से जुड़ा हुआ है. हजारों सालों से मानव समुदाय सागर किनारों पर बसते आए हैं. वो भोजन और रोजगार के लिए उस पर निर्भर हैं. आज करीब एक अरब से ज्यादा की आबादी निचले तटवर्ती इलाकों में रहती है जो समुद्र के जलस्तर के बढ़ने की वजह से खतरे में आने वाला है.
तस्वीर: imago
खत्म होते बियाबान
हालांकि इंसानों से संपर्क की कीमत सागरों ने चुकाई है. दुनिया के सागर क्षेत्र का महज 13 फीसदी इलाका ही ऐसा है जहां इंसानी गतिविधियां नहीं चल रही हैं. तटवर्ती इलाकों से लगते क्षेत्र में तो अब कोई बियाबान बचा ही नहीं. तकनीकी रूप से आगे बढ़ने का मतलब यह है कि आर्कटिक महासागर के सुदूर इलाके भी अब अनछुए नहीं रह गए हैं. बाकी बचे बियाबानों को बचा पाना आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बड़ी चुनौती होगी.