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ट्रेन से कट कर हाथियों की मौत रोकने की नई पहल

प्रभाकर मणि तिवारी
२९ नवम्बर २०२२

पश्चिम बंगाल के खासकर उत्तरी इलाके में ट्रेन से कट कर हाथियों की मौत की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे ने एक नई पहल की है.

पश्चिम बंगाल समेत देश के कई हिस्सों में रेल के पटरी से हाथियों के घायल होने की खबरें आती हैं
पश्चिम बंगाल समेत देश के कई हिस्सों में रेल के पटरी से हाथियों के घायल होने की खबरें आती हैंतस्वीर: PRABHAKAR/DW

रेलवे ने बंगाल के उत्तरी डुआर्स इलाके में रेल की पटरियों पर एडवांस्ड एलीफैंट इंट्रूसन डिटेक्शन सिस्टम नामक एक पूर्व चेतावनी प्रणाली लगाई गई है. हाल ही में इस पायलट परियोजना का परीक्षण किया गया. इससे हाथी के पटरी के नजदीक आते ही इसकी सूचना नजदीकी स्टेशन पर पहुंच जाएगी. उसके बाद उस पटरी से होकर गुजरने वाली ट्रेनों के ड्राइवरों को अलर्ट किया जा सकेगा.

पश्चिम बंगाल के अलावा उड़ीसा और असम में भी ट्रेन से कट कर हाथियों की मौत की घटनाओं पर अब तक अंकुश नहीं लगाया जा सका है. बीते एक दशक में अकेले बंगाल के डुआर्स इलाके में ही ट्रेन से कट कर सौ से ज्यादा हाथियों की मौत हो चुकी है. इसे रोकने के लिए राज्य सरकार, वन विभाग और रेलवे के बीच कई बार बैठकें हुईं और कुछ कदम भी उठाए गए. लेकिन उनका कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका.

क्या नया कर रहा है रेलवे विभाग

अब ऐसी घटनाओं को रोकने की दिशा में ठोस पहल करते हुए रेलवे ने डायना रेल ब्रिज से अलीपुरदुआर जिले के मदारीहाट तक सेंसर लगाया है. हाल ही में हुए इसके परीक्षण के लिए  एक प्रशिक्षित हाथी को मौके पर ले जाया गया था. रेलवे के अधिकारियों का कहना है कि इस पूरी परियोजना पर 620 करोड़ की लागत आएगी और इसके लिए जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (जीआईसीए) ने वित्तीय सहायता मुहैया कराई है.

सिलीगुड़ी से अलीपुरदुआर को जाने वाली ब्रॉडगेज की जो रेलवे लाइन डुआर्स से होकर गुजरती है वह करीब 160 किमी लंबी है. इस रूट पर महानंदा वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी, चापरामारी वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी और बक्सा टाइगर रिजर्व के अलावा गोरूमारा और जलदापाड़ा नेशनल पार्क के कुछ हिस्से भी हैं.

कैसे काम करती है तकनीक

पूर्वोत्तर सीमांत (एनएफ) रेलवे के अलीपुरदुआर डिवीजन के डिवीजनल रेलवे मैनेजर दिलीप कुमार सिंह बताते हैं, "यह स्वचालित चेतावनी प्रणाली ऑप्टिकल फाइबर आधारित है. इस रूट पर कई ऐसी जगहें हैं जहां से जंगली जानवर रेल की पटरियां पार करते हैं. उन इलाको में यह प्रणाली लगाई जाएगी.”

उन्होंने बताया कि किसी जानवर और खासकर जंगली हाथी के रेलवे की पटरी के 10 मीटर के दायरे में आते ही नजदीकी स्टेशन के अलावा नजदीकी लेवल क्रासिंग पर तैनात गेटमैन और अलीपुरदुआर स्थित कंट्रोल रूम को इसकी सूचना मिल जाएगी. उसके बाद उस इलाके से गुजरने वाली तमाम ट्रेनों के ड्राइवरों को अलर्ट भेज दिया जाएगा. इससे उनको ट्रेनों की गति घटाने या फिर उसे रोकने का पर्याप्त समय मिल जाएगा ताकि ट्रेन से कट कर हाथियों की मौत नहीं हो.

अब तक जंगली हाथियों के पटरियों के पास पहुंचने की सूचना वन विभाग के कर्मचारी रेलवे को देते थे. उसके बाद रेलवे ड्राइवरों को इसकी सूचना देता था. लेकिन इसमें काफी समय लग जाता था और तब तक हादसा हो जाता था.

पू.सी.रेलवे के अलीपुरदुआर डिवीजन के डिवीजनल कमर्शियल मैनेजर इंचार्ज एस.उमेश बताते हैं, "अब तक 80 किमी लंबी पटरियों के पास यह प्रणाली लगा दी गई है. इसका परीक्षण भी कर लिया गया है. परीक्षण में वन विभाग की भी सहायता ली गई है."

पर्यावरण मंत्रालय की ऐलीफेंट टास्क फोर्स की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, हाथियों के लिए ट्रेन से कट कर मरने के लिहाज से पश्चिम बंगाल दूसरा सबसे खतरनाक राज्य है. इस मामले में असम अव्वल है जहां सबसे ज्यादा हाथी ट्रेनों की भेंट चढ़े हैं. उत्तर बंगाल में यह समस्या बरसों पुरानी है. हर बार ऐसे हादसे के बाद वन विभाग और रेल प्रशासन कुछ दिनों तक सक्रिय रहता है. लेकिन बाद में मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है.

कई और कदमों की जरूरत

वर्ल्ड वाइड फंड फार नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) ने कुछ साल पहले इलाके के सर्वेक्षण के बाद अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि इलाके से गुजरने वाली ट्रेनों की रफ्तार कम करना और अतिरिक्त सतर्कता जरूरी है. रिपोर्ट में कहा गया था कि इलाके में छोटी लाइन को बड़ी लाइन में बदलने के बाद ट्रेनों की रफ्तार बढ़ी है. संगठन ने इन हादसों के लिए वन विभाग व रेलवे कर्मचारियों के बीच तालमेल की कमी को भी जिम्मेदार ठहराया था. उसने हाथियों की आवाजाही के सीजन में उक्त इलाके में ट्रेनों की गति घटा कर अधिकतम 30 किमी प्रति घंटे करने की सिफारिश की थी..

वन्यजीव प्रेमियों ने रेलवे की इस पहल का स्वागत किया है. इस पायलट परियोजना के कामयाब होने के बाद इसे हाथियों की आवाजाही के तमाम कॉरिडोर के पास लगाया जाएगा. वन विभाग की वाइल्ड लाइफ वार्डन सीमा चौधरी कहती हैं, यह काफी सराहनीय पहल है. लंबे समय तक आंदोलन और दर्जनों हाथियों की मौत के बाद यह पहल की गई है. रेलवे मंत्रालय की ओर से शुरू की गई इस परियोजना में वन विभाग हरसंभव सहयोग देगा.

एक अन्य वन्य जीव कार्यकर्ता अनिमेष चौधरी कहते हैं, देर आयद दुरुस्त आयद. लेकिन अगर पहले ही यह कदम उठाया गया होता तो कई हाथियों को बचाया जा सकता था. राज्य के पूर्व मुख्य वन संरक्षक उज्जवल भट्टाचार्य बताते हैं, "वन विभाग ने रेलवे के साथ बातचीत में इन मौतों पर अंकुश लगाने के लिए कई सुझाव रखे थे. इनमें ट्रेनों की गति कम करना और संवेदनशील स्थानों यानी गलियारों के दोनों ओर रेलवे पटरियों के किनारे चारदीवारी का निर्माण शामिल है. लेकिन उनका कोई नतीजा नहीं निकला. अब शायद इन हादसों को टालना संभव होगा."

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