अयोध्या पुलिस ने शहर की कई मस्जिदों में आपत्तिजनक सामान और पोस्टर फेंकने के आरोप में सात लोगों को गिरफ्तार किया है. पुलिस ने बताया कि कुल 11 लोगों ने मिल कर शहर में सांप्रदायिक तनाव बनाने के लिए यह साजिश की थी.
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अयोध्या पुलिस का कहना है कि कुल 11 लोगों ने मिलकर 26 अप्रैल की रात शहर की कई मस्जिदों में आपत्तिजनक पोस्टर, सूअर का मांस और कुरान के फटे हुए पन्ने डाल कर शहर में दंगा फैलाने की कोशिश की.
सीसीटीवी फुटेज में दिखाई दे रहा है कि चार मोटरसाइकिलों पर सवार इन लोगों ने इन गतिविधियों को करते समय सर पर उजली टोपियां पहनी हुई थीं, जिससे देखने पर लगे कि ये काम मुसलमानों ने किया हो.
लेकिन पुलिस ने बताया कि टोपी पहनना भी इनकी साजिश का हिस्सा था क्योंकि जिन सात लोगों को अभी तक गिरफ्तार किया गया है उनके नाम महेश कुमार मिश्रा, प्रत्युष श्रीवास्तव, नितिन कुमार, दीपक कुमार गौड़, बृजेश पांडेय, शत्रुघ्न प्रजापति और विमल पांडेय हैं.
पुलिस ने इनमें से महेश कुमार मिश्रा को 'मुख्य साजिशकर्ता' बताया और यह भी बताया और उसने यह साजिश दिल्ली में हाल ही में घटी घटनाओं का विरोध करने के लिए रची. चार और लोग अभी तक फरार हैं. पुलिस ने स्पष्ट कहा कि इन लोगों का उद्देश्य अयोध्या के "माहौल को बिगाड़ना" और वहां की "अमन-चैन की संस्कृति को प्रभावित करना" था.
दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में 16 अप्रैल को रामनवमी के अवसर पर बिना पुलिस की अनुमति एक 'शोभायात्रा' निकाली गई थी, जिसमें शामिल लोगों पर हथियारों का प्रदर्शन करने और भड़काऊ नारे लगाने का आरोप लगा था. इस घटना के बाद वहां सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी.
अब बारी उत्तर प्रदेश की
रामनवमी और उसके आस पास के दिनों में और भी कई राज्यों में ठीक इसी तरह की घटनाएं हुई थीं, जिनमें इस तरह की 'शोभायात्राओं' के दैरान भड़काऊ नारे लगाए गए और भड़काऊ गाने भी चलाए गए. इसके बाद इन सभी स्थानों पर सांप्रदायिक हिंसा हुई, जिनमें कई लोगों की जान चली गई और काफी संपत्ति को भी जला दिया गया.
इन घटनाओं के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि उनके प्रदेश में रामनवमी पर दंगे तो दूर "कोई तू-तू मैं मैं भी नहीं हुई." लेकिन अयोध्या की इस घटना ने दिखाया है कि उत्तर प्रदेश में भी सुनियोजित तरीके से सांप्रदायिक हिंसा भड़काने की कोशिश की जा रही है.
दिल्ली दंगे: तब और अब
दिल्ली दंगों के एक साल बाद दंगा ग्रस्त इलाकों में लगता है कि पीड़ित परिवार आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन क्या इस तरह की हिंसा का दर्द भुलाना आसान है? तब और अब के बीच के फर्क की पड़ताल करती डीडब्ल्यू की कुछ तस्वीरें.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
दहशत का एक साल
दिल्ली दंगों के एक साल बाद, क्या हालात हैं दंगा ग्रस्त इलाकों में.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
चेहरे पर कहानी
एक दंगा पीड़ित महिला जिनसे 2020 में पीड़ितों के लिए बनाए गए एक शिविर में डीडब्ल्यू ने मुलाकात की थी. अपनों को खो देने का दर्द उनकी आंखों में छलक आया था.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
एक साल बाद
यह महिला भी उसी शिविर में थी और कुछ महीने बाद अपने घर वापस लौटी. अब वो और उनका परिवार अपने घर की मरम्मत करा उसकी दीवारों पर नए रंग चढ़ा रहा है, लेकिन उनकी आंखों में अब भी दर्द है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
आगजनी
दंगों में हत्याओं के अलावा भारी आगजनी भी हुई थी. शिव विहार तिराहे पर स्थित इस गैराज और उसमें खड़ी गाड़ियों को भी आग के हवाले कर दिया गया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
एक साल बाद गैराज किसी और को किराए पर दिया जा चुका है. स्थानीय लोगों का दावा है बीते बरस नुकसान झेलने वालों में से किसी को भी अभी तक हर्जाना नहीं मिला है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
दहशत
गैराज पर हमला इतना अचानक हुआ था कि उसकी देख-रेख करने वाले को बर्तनों में पका हुआ खाना छोड़ कर भागना पड़ा था. दंगाइयों ने पूरे घर को जला दिया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
कमरे की मरम्मत कर उसे दोबारा रंग दिया गया है. देख-रेख के लिए नया व्यक्ति आ चुका है. फर्नीचर नया है, जगह वही है.
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बर्बादी
दंगों में इस घर को पूरी तरह से जला दिया गया था. तस्वीरें लेने के समय भी जगह जगह से धुआं निकल रहा था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
साल भर बाद भी यह घर उसी हाल में है. यहां कोई आया नहीं है. मलबा वैसे का वैसा पड़ा हुआ है. दीवारों पर कालिख भी नजर आती है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
सब लुट गया
दंगाइयों ने यहां से सारा सामान लूट लिया था और लकड़ी के ठेले को आग लगा दी थी. जाने से पहले दंगाइयों ने वहां के घरों को भी आग के हवाले कर दिया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
जिंदगी अब धीरे धीरे पटरी पर लौट रही है. नया ठेला आ चुका है और उसे दरवाजे के बगल में खड़ा कर दिया गया है. अंदर एक कारीगर काम कर रहा है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
सड़क पर ईंटों की चादर
दंगों के दौरान जाफराबाद की यह सड़क किसी जंग के मैदान जैसी दिख रही थी. दो दिशाओं से लोगों ने एक दूसरे पर जो ईंटों के टुकड़े और पत्थर फेंके थे वो सब यहां आ गिरे थे.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
आज यह कंक्रीट की सड़क बन चुकी है. जन-जीवन सामान्य हो चुका है. आगे तिराहे पर भव्य मंदिर बन रहा है.
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दुकान के बाद दुकान लूटी गई
मुस्तफाबाद में एक के बाद एक कर सभी दुकानें लूट ली गई थीं. हर जगह सिर्फ खाली कमरे और टूटे हुए शटर थे.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
आज उस इलाके में दुकानें फिर से खुल गई हैं. लोग आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन मुश्किल से गुजर-बसर हो रही है.
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बंजारे भी नहीं बच पाए
इस दीवार के सहारे झुग्गी बना कर और वहां चाय बेचकर यह बंजारन अपना जीविका चला रही थी. दंगाइयों ने इसकी चाय की छोटी सी दुकान को भी नहीं छोड़ा था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
उसी लाल दीवार के सहारे बंजारों ने नए घर बना तो लिए हैं, लेकिन वो आज भी इस डर में जीते हैं कि रात के अंधेरे में कहीं कोई फिर से आग ना लगा दे.
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टायर बाजार
गोकुलपुरी का टायर बाजार दंगों में सबसे बुरी तरह से प्रभावित जगहों में था. लाखों रुपयों का सामान जला दिया गया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
टायर बाजार फिर से खुल चुका है. वहां फिर से चहलकदमी लौट आई है लेकिन दुकानदार अभी तक दंगों में हुए नुक्सान से उभर नहीं पाए हैं.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
जंग का मैदान
जाफराबाद, मुस्तफाबाद, शिव विहार समेत सभी इलाकों की शक्ल किसी जंग के मैदान से कम नहीं लगती थी. जहां तक नजर जाती थी, सड़क पर सिर्फ ईंट, पत्थर और मलबा था.
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एक साल बाद
साल भर बाद यह सड़क किसी भी आम सड़क की तरह लगती है, जैसे यहां कुछ हुआ ही ना हो. लेकिन लोगों के दिलों के अंदर दंगों का दर्द और मायूसी आज भी जिंदा है. (श्यामंतक घोष)