दिल्ली एनसीआर इलाके में वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए और भी कड़े कदमों की घोषणा की गई है. दिल्ली सरकार ने कहा है कि वो वीकेंड पर लॉकडाउन लगाने के लिए भी तैयार है.
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वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने मंगलवार 16 नवंबर की रात दिल्ली एनसीआर इलाके में बढ़ते वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए नए निर्देश दिए. दिल्ली और आसपास के सभी शहरों में स्कूल और कॉलेज अगले आदेश तक बंद रहेंगे.
इसके अलावा एनसीआर के सभी राज्यों यानी दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, और राजस्थान में 21 नवंबर तक सभी निर्माण संबंधी गतिविधियों पर रोक लगा दी गई है. एनसीआर के 300 किलोमीटर के दायरे में सक्रिय कोयले से चलने वाले 11 बिजली के संयंत्रों में से सिर्फ पांच चलते रहेंगे और बाकियों को फिलहाल बंद कर दिया जाएगा.
औद्योगिक प्रदूषण पर भी लगाम
दिल्ली में सिर्फ आवश्यक वस्तुओं को लाने वाले ट्रकों को आने की अनुमति दी जाएगी. इसके अलावा बाकी सभी तरह के ट्रकों के दिल्ली में प्रवेश पर 21 नवंबर तक बैन रहेगा. एनसीआर में राज्य सरकारों को कहा गया है की वो 50 फीसदी कर्मचारियों से घर से काम कराएं और निजी क्षेत्र के दफ्तरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करें.
दिल्ली में स्मॉग की चादर से ढंका राष्ट्रपति भवनतस्वीर: Imtiyaz Khan/AA/picture alliance
इस दौरान अगर कोई व्यक्ति या संस्था खुले में निर्माण सामग्री का ढेर लगाते हुए पाई गई तो उस पर कड़ा जुर्माना लगाया जाएगा. सड़कों पर कचरा फेंकने के लिए भी कड़ा जुर्माना लगाया जाएगा. सरकारों को सड़कों की सफाई करने वाली मशीनों की संख्या बढ़ाने के लिए भी कहा गया है.
इलाके में मौजूद गैस से चलने की क्षमता वाले सभी उद्योगों से कहा गया है कि वो अपना परिचालन गैस पर ही करें अन्यथा उन्हें बंद कर दिया जाएगा. बिना स्वीकृति प्राप्त ईंधनों पर चलने वाले उद्योगों को बंद करने का निर्देश दिया गया है.
लॉकडाउन का प्रस्ताव
10 सालों से ज्यादा पुराने डीजल वाहनों और 15 सालों से ज्यादा पुराने पेट्रोल वाहनों को सड़क पर चलने की अनुमति नहीं दी जाएगी. दिल्ली सरकार को जल्द से जल्द पर्याप्त संख्या में सीएनजी बसें सड़कों पर उतारने के लिए कहा गया है.
स्मॉग के बीच लोधी गार्डन में सुबह की सैर करते लोगतस्वीर: ANUSHREE FADNAVIS/REUTERS
इसके अलावा एनसीआर राज्यों को आपात सेवाएं छोड़ कर बाकी सभी जगह डीजल के जनरेटरों के इस्तेमाल को प्रतिबंधित करने के लिए भी कहा गया है. इन सभी निर्देशों को सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश किया गया है.
अदालत 17 साल के ऐक्टिविस्ट आदित्य दुबे द्वारा प्रदूषण की समस्या पर दायर किए गए एक मुकदमे पर सुनवाई कर रही है. दिल्ली सरकार अदालत को पूरे एनसीआर में लॉकडाउन लगाने का प्रस्ताव दे चुकी है. सरकार ने अदालत को वीकेंड पर लॉकडाउन लगाने का ताजा प्रस्ताव दिया है.
अपनी हवा को बचाने के लिए लाएं जीवन में ये छोटे से बदलाव
विश्व आर्थिक फोरम के अनुसार दुनिया में दस में से नौ लोग बुरी हवा में सांस लेने पर मजबूर हैं. सरकारें कुछ करेंगी, इस इंतजार में ना रहें. खुद अपने जीवन में ये छोटे छोटे बदलाव लाइए और अपनी हवा में बदलाव देखिए.
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पेड़ उगाएं
यह कोई बहुत मुश्किल काम तो नहीं है. अपने मोहल्ले में कोई जगह पसंद कर लें और वहां अपने परिवार के साथ मिलकर पेड़ लगाएं. पेड़ जहरीली गैसों को सोख लेते हैं. यह सिर्फ आपके शारीरिक ही नहीं, मानसिक स्वास्थ्य को भी फायदा पहुंचाते हैं.
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घर में पौधे लगाएं
आधुनिक दुनिया में हम ऐसी बहुत सी चीजों का इस्तेमाल करते हैं जो हमारी और पर्यावरण की सेहत को नुकसान पहुंचाती हैं, फिर वो चाहे वॉशिंग पाउडर हो या डियोड्रेंट. नासा का कहना है कि हर दस वर्ग मीटर पर घर में एक पौधा जरूर होना चाहिए क्योंकि पौधे जहरीले तत्वों को सोख लेते हैं.
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मीट कम खाएं
मीट उद्योग हवा में मीथेन की बढ़ती मात्रा के लिए जिम्मेदार है. रिसर्चर तो यह भी कहते हैं कि मीट की ही तरह दूध भी आबोहवा को नुकसान पहुंचा रहा है. गाय के जुगाली करने से मीथेन निकलती है. दूध के उद्योग के लिए जब एक ही जगह ढेर सारी गाय जमा होती हैं, तो वहां हवा की गुणवत्ता बदल जाती है.
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सर्क्यूलर इकॉनमी को अपनाएं
जहां भी मुमकिन हो चीजों को रीसाइकल करें. अखबार, कांच की शीशियां, पुराने गत्ते जब आप कबाड़ी को देते हैं, तो वो इनकी रीसाइक्लिंग का काम करता है. अगर आप इन्हें अलग नहीं करेंगे, तो बाकी के कूड़े के साथ वो भी लैंडफिल में पहुंचेंगे और कूड़े के पहाड़ जमा होते रहेंगे. साथ ही जब इन्हें जलाया जाएगा तो हवा खराब होगी.
बड़े शहरों में तो साइकल से दफ्तर जाना मुश्किल है लेकिन वहां बस और ट्राम से सफर तो किया ही जा सकता है. छोटे छोटे फासलों के लिए कार या बाइक ना निकालें. पैदल चल कर जाएंगे तो आपकी भी सेहत अच्छी रहेगी और आपकी आबोहवा की भी.
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कंप्यूटर बंद कीजिए
जब जरूरत ना हो तब लाइट बंद कर दें, ये तो आप जानते ही हैं. लेकिन बहुत से लोग रात को टीवी और लैपटॉप पूरी तरह बंद नहीं करते हैं. ऐसा नहीं है कि इनसे कोई जहरीली गैस निकलती है, लेकिन बिजली ज्यादा खर्च होती है. और बिजली के लिए जीवाश्म ईंधन की खपत होती है जो पर्यावरण की जान ले रहा है.