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उत्तर प्रदेश में बीजेपी के विधायक छोड़ रहे हैं पार्टी

१२ जनवरी २०२२

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों से कुछ ही सप्ताह पहले बीजेपी के विधायकों ने इस्तीफा दे कर पार्टी को चौंका दिया है. इसके पीछे निजी महत्वाकांक्षाएं तो हैं ही लेकिन इससे पार्टी के लिए नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं.

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तस्वीर: Samiratmaj Mishra/DW

उत्तर प्रदेश के पडरौना से विधायक स्वामी प्रसाद मौर्य के उत्तर प्रदेश सरकार में श्रम मंत्री के पद से इस्तीफे के बाद राज्य की राजनीति में में एक नया मोड़ आ गया है. विधान सभा चुनावों में एक महीने का समय भी नहीं बचा है और ऐसे समय में मंत्री पद पर बैठे नेता का इस्तीफा सरकार और और पार्टी की छवि के लिए नुकसानदेह हो सकता है.

राज्यपाल को अपना इस्तीफा भेजते हुए मौर्य ने कहा कि वो "दलितों, पिछड़ों, किसानों, बेरोजगार नौजवानों और छोटे-लघु एवं मध्यम श्रेणी के व्यापारियों की की उपेक्षात्मक उपेक्षात्मक रवैये के कारण उत्तर प्रदेश के योगी मंत्रिमंडल से इस्तीफा" दे रहे हैं.

हालांकि अटकलें लग रही हैं कि उन्होंने अपने बेटे समेत कई सहयोगियों के लिए पार्टी से आने वाले चुनावों में टिकट की मांग की की थी और इस्तीफे का कारण इस मांग का अस्वीकार किया जाना था.

बीजेपी की चिंता

उनके बेटे उत्कृष्ट मौर्य ने 2017 में बीजेपी के टिकट पर ऊंचाहार विधान सभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था लेकिन वो वो समाजवादी पार्टी के मनोज कुमार पांडे से हार गए थे. मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य अभी भी बीजेपी में हैं और बदाऊं से सांसद हैं.

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मौर्य के साथ एक तस्वीर ट्वीट की और लिखा कि उनका और उनके समर्थकों का सपा में स्वागत है. हालांकि मौर्य ने खुद अभी तक सपा में शामिल होने की घोषणा नहीं की है.

उनके इस्तीफे का बीजेपी पर क्या असर हुआ इसका अंदाजा उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के ट्वीट से लगाया जा जा सकता है. उन्होंने सार्वजनिक तौर पर स्वामी प्रसाद मौर्य से "बैठकर बात" करने की अपील की.

कई मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता अभी भी उनसे बात कर रहे हैं और उन्हें मनाने की कोशिश कर रहे हैं. कहा जा रहा है कि बीजेपी चिंतित है कि चूंकि मौर्य पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, उनके चले जाने से जनता में कहीं यह यह संदेश ना चला जाए कि पिछड़ी जातियां बीजेपी से नाराज हैं.

सपा का फायदा

खबर है कि बीजेपी के चार और विधायकों रोशन लाल वर्मा, ब्रजेश प्रजापति, भगवती प्रसाद सागर और विनय शाक्य ने भी पार्टी छोड़ दी है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने यहां तक ​​कहा है कि 10 से 12 और विधायक पार्टी छोड़ने वाले हैं.

अगर मौर्य और अन्य पिछड़ा वर्ग के नेता सपा में शामिल होते हैं तो सपा को चुनावों में में इससे काफी फायदा मिल सकता है. इससे बीजेपी पर सिर्फ तथाकथित अगड़ों के हितों के लिए काम करने के आरोपों के सपा के अभियान को बल मिलेगा.

इसके अलावा सपा यह संदेश भी दे पाएगी कि पार्टी के अंदर यादवों के अलावा दूसरी पिछड़ी जातियों जातियों को भी महत्व दिया जा रहा है. आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि पार्टी छोड़ने का यह सिलसिला बीजेपी तक सीमित रहता है और या दूसरी पार्टियों को भी भी इस समस्या का सामना करना पड़ता है.

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