यौन उत्पीड़न पर चुप्पी साधने को मजबूर भारत की महिला खिलाड़ी
१७ जून २०२२
दुनिया के कई देशों की तरह भारतीय महिला एथलीट भी यौन उत्पीड़न का सामना कर रही हैं. कई मामलों में कोच और मेंटर ही शोषण करने वालों में शामिल हैं. एथलीट ऐसे सिस्टम की मांग कर रही हैं, जहां वे बिना किसी डर के शिकायत कर सकें.
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पिछले सप्ताह भारतीय खेल प्राधिकरण (एसएआई) ने मुख्य साइकिलिंग कोच आरके शर्मा को बर्खास्त कर दिया. इसकी वजह यह थी कि एक महिला साइकलिस्ट ने उनके ऊपर गंभीर आरोप लगाए थे. महिला खिलाड़ी का आरोप था कि स्लोवेनिया के प्रशिक्षण दौरे के दौरान शर्मा ने उनके साथ "गलत व्यवहार" किया.
महिला खिलाड़ी ने आरोप लगाया कि कोच ने उन्हें होटल के एक ही कमरे में अपने साथ रहने के लिए मजबूर किया. कोच ने यह बहाना बनाया कि कमरे की व्यवस्था दो लोगों के एक साथ रहने के हिसाब से की गई है. जांच समिति की प्रारंभिक रिपोर्ट में महिला साइकिल चालक के आरोपों को सही पाया गया.
जिस हफ्ते महिला साइकलिस्ट ने कोच के ऊपर यह आरोप लगाया, उसी हफ्ते एक अन्य भारतीय महिला नाविक ने भी आरोप लगाया कि जर्मनी में प्रशिक्षण के दौरान उनके कोच ने उन्हें ‘असहज' कर दिया. सेलिंग फेडरेशन के सामने कई बार इस मुद्दे को उठाने और कोई कार्रवाई न होने के बाद महिला एथलीट ने भारतीय खेल प्राधिकरण का रुख किया.
कीर्तिमान बनाने वाली पहली महिलाएं
अमेरिका में हिलेरी क्लिंटन के पहली महिला राष्ट्रपति बनने की संभावनाएं जताई जा रही हैं. लेकिन उनसे पहले भी कई क्षेत्रों में कई महिलाओं ने पहली बार बहुत कुछ किया है, देखिए..
सन 1974 में इजाबेला पेरॉन अर्जेंटीना की राष्ट्रपति बनीं. वो दुनिया में किसी देश की राष्ट्रपति बनने वाली पहली महिला रहीं.
तस्वीर: dpa
पहली महिला प्रधानमंत्री
श्रीलंका की नेता श्रीमावो भंडारनायके ने 1960 में चुनाव जीतने के बाद पहली महिला प्रधानमंत्री बनने का गौरव पाया.
तस्वीर: Picture-Alliance/dpa/H. Sanden
अंतरिक्ष में महिला का पहला कदम
वैलेंटीना तेरेश्कोवा अंतरिक्ष में जाने वाली दुनिया की पहली महिला थीं. 1963 में अंतरिक्षयान वॉस्टॉक 6 में सवार सोवियत कॉस्मोनॉट तेरेश्कोवा ने धरती के चारों ओर 48 बार चक्कर लगाया.
तस्वीर: imago/ITAR-TASS
एवरेस्ट की चोटी पर पहली महिला
1975 में जापान की जुंको ताबेई दुनिया के सबसे ऊंचे पर्व शिखर की चोटी तक पहुंचने वाली पहली महिला पर्वतारोही बनीं. 35 की आयु में अपने शेरपा गाइड आंग शेरिंग के साथ उन्होंने ये कामयाबी पाई.
तस्वीर: Reuters/G. Chitrakar
पहला नोबेल पुरस्कार
सन 1903 में वैज्ञानिक मेरी क्यूरी भौतिकशास्त्र का नोबेल पुरस्कार जीतने वाली पहली महिला बनीं. मैडम क्यूरी ने एक बार फिर 1911 में रसायनशास्त्र के क्षेत्र में दुबारा नोबेल जीता.
ये तो सिर्फ हाल की कुछ घटनाएं हैं. पिछले साल जुलाई में एक बड़ा मामला सामने आया था. उस समय सात महिला एथलीटों ने प्रसिद्ध खेल कोच पी. नागराजन के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. 19 वर्षीय एक महिला एथलीट से जुड़े मामले में नागराजन को गिरफ्तार किया गया था. इस एथलीट ने अपने आरोप में कहा था कि किसी तरह का विरोध करने पर कोच ने उसे और उसके परिवार के सदस्यों को जान से मारने की धमकी दी थी.
ग्लोबल ऑब्जर्वेटरी फॉर जेंडर इक्वॉलिटी एंड स्पोर्ट की सीईओ पायोशनी मित्रा ने डॉयचे वेले को बताया, "खेल के क्षेत्र में कोच और एथलीट के संबंध के बीच पद का जो फासला होता है, उसकी वजह से एथलीट विशेष रूप से कमजोर होते हैं. खेल में चापलूसी की संस्कृति है, इसलिए, ‘ग्रूमिंग' आम बात हो जाती है. इस वजह से एथलीटों के लिए आगे आना और शिकायत करना मुश्किल हो जाता है.”
मित्रा आगे कहती हैं, "खेलों में एक और सामान्य बात यह है कि सभी लोग सभी चीजें देखते हैं, लेकिन कोई सामने नहीं आना चाहता. दूसरे शब्दों में कहें, तो लोग तमाशबीन खड़े रहते हैं. वे दुर्व्यवहार के बारे में जानते हुए भी किसी तरह का कदम नहीं उठाते हैं. लोगों के खुलकर न बोलने और सामने न आने की वजह से आरोपी के पक्ष में यथास्थिति बरकरार रहती है. यह खासकर उन मामलों में ज्यादा होता है, जब आरोपी शक्तिशाली हो.”
सूचना के अधिकार के आवेदन से मिले आंकड़ों के अनुसार 2010 से 2020 के बीच भारतीय खेल प्राधिकरण को यौन उत्पीड़न की 45 शिकायतें मिलीं. इनमें 29 कोच के खिलाफ की गई थीं.
इतनी शिकायतों के बावजूद जिस स्तर पर कार्रवाई होनी चाहिए थी, उतनी नहीं हुई. सजा के तौर पर पांच कोच के वेतन में कटौती की गई, एक को निलंबित किया गया और दो का अनुबंध समाप्त किया गया.
नाम न छापने की शर्त पर एक शीर्ष महिला खिलाड़ी ने डॉयचे वेले को बताया, "लंबे समय तक पूछताछ जारी रहने की वजह से कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की गई. कुछ कोच को युवा एथलीटों के साथ काम करना जारी रखने की अनुमति दी गई थी. भारत में खेल के क्षेत्र में दुर्व्यवहार इस तंत्र का अभी भी हिस्सा बना हुआ है.”
भारत को ओलंपिक में मेडल दिलाने वाली महिला खिलाड़ी
भारत में क्रिकेट खिलाड़ियों की जितनी चर्चा होती है उतनी ओलंपिक के सितारों की नहीं. यहां देखिए उन महिला खिलाड़ियों को जिन्होंने ओलंपिक में भारत का झंडा लहराया है.
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मीराबाई चानू
टोक्यो ओलंपिक में मीराबाई चानू ने वेटलिफ्टिंग की 49 किलोग्राम श्रेणी में रजत पदक जीतकर भारत का खाता खोला था. चानू कहती हैं कि उन्होंने 2016 के ओलंपिक में पदक चूकने के बाद काफी मेहनत की थी. पांच साल की मेहनत सफल होने पर वे बहुत खुश हैं.
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पीवी सिंधु
पीवी सिंधु ने साल 2016 के रियो दे जनेरो ओलंपिक में सिल्वर मेडल भारत के नाम किया. इसके बाद उन्होंने टोक्यो ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया. वे लगातार दो ओलंपिक में मेडल जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी हैं. उनका पूरा नाम पुसरला वेंकट सिंधु है.
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कर्णम मल्लेश्वरी
कर्णम मल्लेश्वरी भारत को ओलंपिक में मेडल दिलाने वाली पहली महिला हैं. कर्णम को वेट लिफ्टिंग में कांस्य पदक मिला है. यह मेडल उन्होंने साल 2000 के सिडनी ओलंपिक में जीता था. उन्होंने स्नैच श्रेणी में 110 किलोग्राम और क्लीन एंड जर्क में 130 किलोग्राम भार उठा कर यह मुकाम हासिल किया. कर्णम का जन्म आंध्र प्रदेश में हुआ था.
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साइना नेहवाल
साइना नेहवाल दूसरी भारतीय एथलीट हैं जिन्होंने साल 2012 के लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीता. बैडमिंटन के लिए ओलंपिक पदक जीतने वाली वह पहली महिला हैं. साइना का जन्म हरियाणा में हुआ था. साइना नेहवाल की जिदंगी पर बॉलीवुड फिल्म `साइना` बन चुकी है. इस फिल्म में परिणीति चोपड़ा ने साइना का किरदार निभाया है.
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मेरी कॉम
मेरी कॉम अकेली भारतीय महिला हैं जिन्होंने देश को बॉक्सिंग में मेडल दिलाया. मेरी को साल 2012 के लंदन ओलंपिक गेम्स में कांस्य पदक मिला था. इसके साथ ही मेरी कॉम ने छह विश्व खिताब भी अपने नाम किए हैं. मेरी का जन्म मणिपुर में हुआ था. मेरी कॉम पर बॉलीवुड में फिल्म भी बन चुकी है. इस फिल्म में प्रियंका चोपड़ा ने मेरी कॉम का किरदार निभाया था.
साक्षी मलिक ने ओलंपिक में कांस्य पदक हासिल किया है. यह मेडल उन्हें साल 2016 के रियो ओलंपिक में फ्रीस्टाइल कुश्ती के 58 किलो भार वर्ग के लिए मिला था. इसके साथ ही वह पहली महिला पहलवान हैं जिन्होंने ओलंपिक में एक पदक जीता है. साक्षी का जन्म हरियाणा में हुआ था.
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ज्यादा से ज्यादा एथलीट सामने कैसे आ सकती हैं
भारत में मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय खेल संघों की संख्या 56 है. हालांकि, इनमें से महज कुछ ही संघ ऐसे हैं, जिनके पास विशेष रूप से यौन उत्पीड़न की जांच के लिए आंतरिक शिकायत समितियां हैं. कई एथलीट इस बात की पुष्टि करती हैं कि भारतीय खेलों में यौन शोषण आम बात है. हालांकि, वर्षों तक शोषण के मानसिक आघात से गुजरने के बाद दोषियों का नाम सामने लाना मुश्किल हो सकता है.
प्रसिद्ध भारतीय एथलीट अंजू बॉबी जॉर्ज विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप पदक अपने नाम कर चुकी हैं. उन्हें यूनिफॉर्म नेशनल स्पोर्ट्स डेवलपमेंट कोड बनाने के लिए 2017 में नौ सदस्यीय सरकारी पैनल का हिस्सा बनाया गया था. उन्होंने सिफारिश की थी कि पूरे भारत की महिला एथलीटों के लिए एक हेल्पलाइन नंबर की स्थापना की जाए और इसका संचालन भारतीय खेल प्राधिकरण की एक वरिष्ठ महिला अधिकारी करे.
जॉर्ज ने डीडब्ल्यू को बताया, "अभी तक कुछ भी नहीं हुआ. अभी इसमें संशोधन ही किया जा रहा है. खेल के उद्देश्यों के लिए खतरा बन रहे दोषियों पर कार्रवाई करने के कई तरीके हैं, लेकिन सबसे बड़ी बात है कि कार्रवाई करने की नीयत होनी चाहिए.” उन्होंने आगे कहा, "टीम इवेंट के दौरान इस बात की संभावना ज्यादा होती है कि पुरुष कोच या सहयोगी स्टाफ किसी तरह का दुर्व्यवहार कर सकते हैं.”
पिछले साल जॉर्ज को वर्ल्ड एथलेटिक्स से वुमन ऑफ द ईयर अवार्ड मिला था. उन्हें यह अवार्ड प्रतिभा को संवारने, भारत में युवा लड़कियों को खेलों में भाग लेने और लैंगिक समानता के लिए लड़ने को लेकर प्रोत्साहित करने के लिए मिला था. जॉर्ज ने कहा, "खेल संगठनों को नेतृत्व करना होगा. वातावरण को सही करना होगा. ऐसा होने पर ही कमजोर एथलीट आगे बढ़कर शिकायत करने में सुरक्षित महसूस करेंगी.”
मिलिए खेलों की कुछ सुपर महिलाओं से
महिलाएं खेलों में पुरुषों के साथ बराबरी के लिए दशकों से लड़ रही हैं. कई सफल महिला खिलाड़ियों के इस संघर्ष ने खेलों की दुनिया को हिला के रख दिया, लेकिन कई क्षेत्रों में वो सफलता ज्यादा वक्त तक चली नहीं.
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एक बड़ी लैंगिक बाधा ध्वस्त
10 अप्रैल, 2021 को रेचल ब्लैकमोर ने खेलों की दुनिया की सबसे बड़े लैंगिक बाधाओं में से एक को तोड़ दिया. वो इंग्लैंड की कठिन ग्रैंड नेशनल प्रतियोगिता को जीतने वाली पहली महिला जॉकी बन गई हैं. आयरलैंड की रहने वाली 31 वर्षीय ब्लैकमोर ने जीत हासिल करने के बाद उन्होंने कहा, "मैं अभी पुरुष या महिला जैसा महसूस ही नहीं कर रही हूं. बल्कि मैं अभी इंसान जैसा भी महसूस नहीं कर रही हूं. यह अविश्वसनीय है."
तस्वीर: Tim Goode/empics/picture alliance
टेनिस की दुनिया का चमकता सितारा
1970 के दशक में बिली जीन किंग ने टेनिस में पुरुष और महिला खिलाड़ियों को एक जैसी पुरस्कार राशि देने के लिए संघर्ष किया था. 12 ग्रैंड स्लैम जीत चुकीं किंग ने कुछ और महिला खिलाड़ियों के साथ विरोध में अपनी अलग प्रतियोगिताएं ही शुरू कर दीं, जो आगे जाकर महिला टेनिस संगठन (डब्ल्यूटीए) बनीं. उनके संघर्ष का फल 1973 में मिला, जब पहली बार यूएस ओपन में एक जैसी पुरस्कार राशि दी गई.
तस्वीर: Imago Images/Sven Simon
हर चुनौती को हराया
कैथरीन स्विटजर बॉस्टन मैराथन में भाग लेने वाली और उसे पूरा करने वाली पहली महिला थीं. उस समय महिलाओं को इस मैराथन में सिर्फ 800 मीटर तक भाग लेने की इजाजत थी, जिसकी वजह से स्विटजर ने अपना पंजीकरण गुप्त रूप से करवाया था. इस तस्वीर में जैकेट और टोपी पहने गुस्साए हुए रेस के निर्देशक ने स्विटजर का रेस नंबर फाड़ देने की कोशिश की थी. उनके विरोध के कुछ साल बाद महिलाओं को लंबी दूरी तक दौड़ने की अनुमति मिली.
तस्वीर: picture alliance/dpa/UPI
दर्शकों की पसंद
इटली की साइक्लिस्ट अल्फोंसिना स्ट्राडा ने 1924 की जीरो दी इतालिया के लिए अल्फोंसिन स्ट्राडा के नाम से पंजीकरण करवा कर आयोजनकर्ताओं को चकमा दे दिया. उन्हें पता ही नहीं चला कि वो एक महिला हैं. बाद में जब उन्हें पता चला तो उसके बावजूद स्ट्राडा को रेस में भाग लेने की अनुमति दे दी गई और इस तरह वो पुरुषों की रेस को शुरू करने वाली अकेली महिला बन गईं.
तस्वीर: Imago Images/Leemage
छू लो आकाश
1990 के दशक तक महिलाएं स्की जंपिंग में हिस्सा नहीं ले सकती थीं, लेकिन 1994 में एवा गैंस्टर पहली महिला "प्री-जंपर" बनीं. 1997 में वो ऊंचे पहाड़ से छलांग लगाने वाली पहली महिला जंपर बनीं. पहला विश्व कप 2011 में आयोजित किया गया और ओलंपिक में यह खेल पहली बार 2014 में खेला गया.
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आइस हॉकी में महिलाएं
मेनन ह्यूम ने 1992 में उत्तरी अमेरिका के लोकप्रिय नेशनल हॉकी लीग में हिस्सा लेने वाली पहली महिला बनकर इतिहास रच दिया. उन्होंने एक प्री सीजन मैच में एक पीरियड के लिए खेला लेकिन बाद में उसी साल वो बाकायदा सीजन में प्रोफेशनल मैच में खेलने वाली पहली महिला भी बनीं.
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फुटबॉल में रेफरी
1993 में स्विट्जरलैंड की निकोल पेटिनात पुरुषों के चैंपियंस लीग फुटबॉल मैच में रेफरी बनने वाली पहली महिला बनीं. वो स्विस लीग, महिलाओं के विश्व कप और यूरोपीय चैंपियनशिप के फाइनल में भी रेफरी बनीं. हालांकि उनकी उपलब्धियों के बावजूद आज भी महिला रेफरियों की संख्या ज्यादा नहीं है. जर्मनी की बिबियाना स्टाइनहाउस इस मामले में अपवाद हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Pressefoto ULMER
महिला ड्राइवर
इटली की मारिया टेरेसा दे फिलिप्पिस उन दो महिलाओं में से एक हैं जिन्हें फार्मूला वन रेस में गाड़ी चलाने वाली महिला होने का गौरव हासिल है. 1958 से 1959 के बीच, मारिया ने तीन ग्रां प्री में भाग लिया. इटली की ही लैला लोम्बार्दी उन्हीं के पदचिन्हों पर चलीं और 1974 से 1976 के बीच में 12 रेसों में हिस्सा लिया. उसके बाद से आज तक एफवन रेसों में महिलाएं हिस्सा नहीं ले पाई हैं.
तस्वीर: picture-alliance/empics
पुरुषों की कोच
कोरीन डाइकर चार अगस्त 2014 को पुरुषों की यूरोपीय फुटबॉल लीग में चोटी की दो श्रेणियों के एक मैच में कोच बनने वाली पहली महिला कोच बनीं. वो 2017 में फ्रांस की राष्ट्रीय महिला टीम की कोच भी बनीं. पुरुषों के फुटबॉल में आज भी उनकी अलग ही जगह है. आज भी कई महिला टीमों के कोच पुरुष हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
महिलाओं के लिए जीवन समर्पित
जर्मन फुटबॉल कोच मोनिका स्टाब एक सच्ची पथ प्रदर्शक हैं. वो पूरी दुनिया में घूम घूम कर महिलाओं और लड़कियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर रही हैं. उनका मानना है कि "खेलों में सकारात्मक फीडबैक आत्मविश्वास को बढ़ा देता है. जिंदगी से गुजरने के लिए यह आवश्यक है." - आंद्रेआस स्तेन-जीमंस
तस्वीर: picture alliance/dpa/N.Mughal
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कैसे बदलेगा सिस्टम?
प्रतिस्पर्धी खेलों में चुने जाने के लिए कोई तय पैमाना न होने की वजह से भी कई मामलों में महिला एथलीट खुलकर अपनी बातें नहीं रख पाती हैं. उन्हें डर होता है कि अगर वे ऐसा करती हैं, तो उनका करियर खराब हो सकता है.
खेलो इंडिया स्टेट सेंटर ऑफ एक्सिलेंस में खेल और प्रशिक्षण विज्ञान की प्रमुख पीएसएम चंद्रन ने डॉयचे वेले को बताया, "प्रतिस्पर्धी खेलों में चयन के लिए महिलाओं को जिम्मेदारी दी जाए. ऐसे संगठनों का नेतृत्व करने के लिए महिला एथलीटों की कोई कमी नहीं है.”
कई एथलीट और खिलाड़ी यह भी मानते हैं कि सरकार को सभी खेल इकाइयों के लिए आंतरिक शिकायत समितियों के प्रदर्शन की जानकारी देने वाली नियमित रिपोर्ट प्रकाशित करना और संगठन की वेबसाइट पर विवरण प्रकाशित करना अनिवार्य करना चाहिए.
मित्रा कहती हैं, "हाल के समय में हमारे पास जो शिकायतें आयी हैं, उन्हें खेल के सिस्टम को बदलने और इसे सुरक्षित बनाने के अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए. सत्ता में रहने वाले लोग अक्सर मौजूदा स्थिति को बनाए रखना पसंद करते हैं और ऐसी शिकायतों को खेल की प्रतिष्ठा पर हमला मानते हैं.”
फुटबॉल के पावरहाउस में क्रिकेट खेलने वाली लड़कियां