जिन महिलाओं के साथ यौन हिंसा होती है उनके मस्तिष्क में खून के संचार में रुकावट होने की संभावना अधिक हो जाती है. इससे उन्हें डिमेंशिया या ब्रेन स्ट्रोक होने का खतरा बढ़ जाता है.
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उत्तरी अमेरिका में हर तीन में से एक महिला को अपने जीवन में कम से कम एक बार यौन हिंसा झेलनी पड़ती है. यूएस सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन (सीडीसी) द्वारा प्रकाशित आंकड़ों में यह जानकारी सामने आई है.
वैश्विक स्तर पर भी आंकड़ा लगभग यही है. संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएन विमिन के अनुसार, एक अनुमान के मुताबिक, दुनियाभर की 73.6 करोड़ महिलाओं के साथ उनके साथी और दूसरे लोगों ने कम से कम एक बार यौन हिंसा को अंजाम दिया है.”
यूएन विमिन ने इस आंकड़े के लिए, विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन का हवाला दिया है. यह संख्या दुनियाभर की 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की सभी लड़कियों और महिलाओं का 30 प्रतिशत है. ऐसे में यह एक बड़ी समस्या है.
अब एक अमेरिकी अध्ययन में पाया गया है कि यौन हिंसा का अनुभव करने वाली महिलाओं को हमले के दौरान लगी चोट के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं, जैसे पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर, चिंता या अवसाद का सामना करना पड़ सकता है. इससे उनके बीच ब्रेन स्ट्रोक और डिमेंशिया का खतरा बढ़ सकता है.
अध्ययन की प्रमुख लेखक और पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय की प्रोफेसर रेबेका थर्स्टन कहती हैं, "यौन हमला एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है. इसके बावजूद, महिलाओं के लिए बहुत ही सामान्य अनुभव है."
वह कहती हैं, "यह एक कष्टदायक अनुभव है. इससे महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है. यह अध्ययन महिलाओं में स्ट्रोक और डिमेंशिया के खतरे की पहचान करने की दिशा में बड़ा कदम है."
मस्तिष्क में खून के प्रवाह में रुकावट
थर्स्टन, पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय में मनोचिकित्सा की प्रोफेसर और महिला बायोबेहेवियरल हेल्थ लेबोरेटरी की निदेशक हैं. उन्होंने नॉर्थ अमेरिकन मेनोपॉज सोसाइटी की 2021 की बैठक में अध्ययन के नतीजे पेश किए. इसे ‘ब्रेन इमेजिंग ऐंड बिहेवियर' जर्नल में प्रकाशित किया जाएगा.
अध्ययन के लिए, थर्स्टन और उनकी टीम ने अमेरिका में प्रौढ़ावस्था में पहुंच चुकीं 145 महिलाओं की जांच की. जांच में शामिल 68% महिलाओं ने बताया कि उनके ऊपर कम से कम एक बार हमला हुआ है. इनमें से 23% महिलाओं ने यौन उत्पीड़न की बात कही.
शोधकर्ता यह पता लगाना चाहते थे कि क्या हमले और मस्तिष्क में श्वेत पदार्थ की उच्च तीव्रता के बीच कोई संबंध है. श्वेत पदार्थ खून के प्रवाह में रुकावट के संकेत हैं और इससे मस्तिष्क को नुकसान पहुंच सकता है.
2019: पांच तरीके, जो यौन हिंसा के खिलाफ बने विरोध का हथियार
भारत में 2019 को बलात्कार की कई जघन्य घटनाओं के लिए याद किया जाएगा. वहीं दुनियाभर में यह यौन हिंसा के खिलाफ महिलाओं के संघर्ष का साल रहा है. एक नजर उन पांच तरीकों पर, जिनके जरिए महिलाओं ने अपना प्रतिरोध जताया.
अरब देश ट्यूनिशिया में एक स्कूल के बाहर कथित तौर पर हस्तमैथुन कर रहे एक सांसद की फुटेज सामने आने के बाद वहां #MeToo या #EnaZeda आंदोलन शुरू हुआ. बहुत सी महिलाओं ने सोशल मीडिया पर बताया कि कैसे उन्हें यौन उत्पीड़न का सामना पड़ा है. इससे पहले पूरी दुनिया में इस आंदोलन के जरिए कई सफेदपोश लोगों की हकीकत सामने आई.
तस्वीर: picture-alliance/D. Christian
"आपके रास्ते में बलात्कारी"
चिली की महिलावादी कार्यकर्ताओं के गीत "A Rapist in your Path" की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दी. मेक्सिको, फ्रांस और तुर्की जैसे कई देशों में सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस गीत पर परफॉर्म किया. गीत के बोल सरकार और देशों की आलोचना करते हैं कि वे बलात्कार को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रहे हैं. यौन अपराधों के लिए महिलाओं को जिम्मेदार ठहराने वाली सोच को भी यह गीत खारिज करता है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Blackwell
"यहां राजनीति नहीं चलेगी"
स्पेन में धुर दक्षिणपंथी पार्टी वोक्स के एक नेता ने जब महिलाओं के खिलाफ हिंसा की निंदा करने वाले एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया तो प्रदर्शनकारी राजधानी मैड्रिड की सड़कों पर उतर आए और ट्रैफिक जाम कर दिया. सामाजिक कार्यकर्ता नादियो ओटमान ने खावियर ऑर्तेगा स्मिथ का विरोध करते हुए कहा, "लैंगिक हिंसा के साथ आप राजनीति नहीं खेल सकते."
तस्वीर: Imago Images/Agencia EFE/E. Naranjo
जापान में नौकरी के बदले सेक्स?
जापान में कुछ प्रोफेसर और यूनिवर्सिटी छात्र मिल कर एक मुहिम चला रहे है जिसका मकसद नौकरी खोजने वाले ग्रेजुएट्स का यौन उत्पीड़न रोकना है. उनका कहना है कि नौकरियां कम हैं और इच्छुक लोग बहुत सारे हैं. ऐसे में नौकरी देने वाले ग्रेजुएट्स की मजबूरी का फायदा उठाने से नहीं हिचकते. बहुत से युवा नौकरी ना मिल पाने के डर से इस बारे में बात भी नहीं करते.
तस्वीर: BMwF/Ina Fassbender
रूस में सख्त कानून की वकालत
रूस में घरेलू हिंसा के खिलाफ कोई कानून नहीं है. तीन साल पहले एक बिल संसद में लाया गया जो पास नहीं हो पाया. इस साल बिल को फिर से संसद में लाया गया. लेकिन महिला आधिकार कार्यकर्ता इसका विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि बिल में महिलाओं के संरक्षण के लिए पर्याप्त प्रावधान नहीं हैं. वे इससे ज्यादा मजबूत बिल की वकालत कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/TASS/M. Grigoryev
गंभीर स्थिति
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि दुनिया भर में एक तिहाई से ज्यादा महिलाएं ऐसी हैं जो अपने जीवन में कभी ना कभी यौन हिंसा का शिकार हुई हैं. भारत में 2012 के गैंगरेप कांड के बाद से महिलाओं की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है. बावजूद इसके बलात्कार की घटनाएं लगातार सुर्खियां बन रही हैं. (स्रोत: ह्यूमन राइट्स वॉच, रॉयटर्स, संयुक्त राष्ट्र, एमनेस्टी इंटरनेशनल)
मस्तिष्क को स्कैन करने के दौरान श्वेत पदार्थ की उच्च तीव्रता छोटे सफेद धब्बे के रूप में दिखाई देती है. ये धब्बे स्ट्रोक, डिमेंशिया या इसी तरह के अन्य खतरों के शुरुआती संकेत हैं. इन संकेतों से स्ट्रोक और डिमेंशिया के खतरों का दशकों पहले पता लगाया जा सकता है.
अध्ययन में शामिल महिलाओं के मस्तिष्क के स्कैन से पता चला है कि जिन महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार हुआ है, उनमें उन महिलाओं की तुलना में सफेद पदार्थ ज्यादा थे जिनके साथ दुर्व्यवहार नहीं हुआ. साथ ही, यह भी पता चला कि यौन हमले की वजह से सफेद पदार्थ ज्यादा थे.
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समय से पहले खतरे की पहचान
2018 में भी एक अध्ययन किया गया था. थर्स्टन ने पाया था कि जिन महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न हुआ था, उनमें अवसाद या चिंता विकसित होने की संभावना काफी अधिक थी. साथ ही, इन्हें सामान्य महिलाओं की तुलना में नींद भी कम आती है.
अवसाद, चिंता और नींद संबंधी परेशानियां सभी को खराब स्वास्थ्य से जोड़ा गया है. मानसिक स्वास्थ्य की वजह से ह्रदय रोग भी हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, नींद में कमी की वजह से उच्च रक्तचाप, डायबिटीज और मोटापे का खतरा बढ़ जाता है.
थर्स्टन का कहना है कि नया अध्ययन उन पहले के परिणामों पर आधारित है. यहां तक कि जब शोधकर्ताओं ने नए अध्ययन में मानसिक या अन्य स्वास्थ्य स्थितियों की जांच की, तो उन्होंने पाया कि जिन महिलाओं पर हमला किया गया था, उनमें अभी भी सफेद पदार्थ की अधिकता थी. साथ ही, उनमें स्वास्थ्य से जुड़ी दूसरी समस्याएं, जैसे कि अवसाद या हमले के बाद पीटीएसडी भी देखी गई.
दिल्ली दुनिया का सबसे भयानक महानगर
थॉम्पसन रॉयटर्स फॉउंडेशन के एक सर्वे में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के मामलों में दिल्ली दुनिया के सबसे खराब महानगरों के तौर पर सामने आया.
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खतरनाक शहर
जून से जुलाई 2017 के बीच दुनिया के 19 महानगरों में यह सर्वे कराया गया था. दिल्ली में हुये निर्भया गैंगरेप की पांचवी बरसी से ठीक दो महीने पहले एक बार फिर सामने आया है कि दिल्ली महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे खतरनाक शहर है.
तस्वीर: picture alliance / AA
चौथा स्थान
दिल्ली दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला दूसरा सबसे बड़ा महानगर है. इसकी आबादी लगभग 2 करोड़ 60 लाख है. इस सर्वे में बलात्कार, यौन अपराधों और उत्पीड़न के मामलों में दिल्ली को बेहद खराब स्थान मिला. नतीजों में दिल्ली दुनिया का चौथा सबसे भयानक महानगर साबित हुआ.
तस्वीर: Getty Images
बांग्लादेश से भी पिछड़ा
महिलाओं की सुरक्षा के मामले में दिल्ली की स्थिति बांग्लादेश के ढाका से भी बदतर निकली. सर्वे के नतीजों में ढाका को सातवां स्थान मिला वहीं लाओस को आठवां स्थान मिला .
तस्वीर: Getty Images
सबसे खतरनाक शहर
इस लिस्ट में दुनिया का सबसे खतरनाक शहर के तौर पर मिस्र के काहिरा का नाम सामने आया. वहीं महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के मामलों में पाकिस्तान का कराची शहर दुनिया का दूसरा सबसे भयानक महानगर साबित हुआ.
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आर्थिक मामलों में भी खराब
महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के मामलों के अलावा आर्थिक स्त्रोत जैसे शिक्षा, जमीन में हिस्सा, बैंक अकाउंट आदि में भी महिलाओं की हिस्सेदारी को लेकर भी दिल्ली को नीचे से तीसरा स्थान मिला. इस सूची में लंदन सबसे बेहतरीन अंकों के साथ पहले पायदान पर रहा.
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स्वास्थ्य के मामले में भी बुरी हालत
दिल्ली की मातृ मृत्यु दर पर नियंत्रण सहित स्वास्थ्य सेवाओं के लिए महिलाओं की पहुंच को लेकर भी स्थिति खराब है. दिल्ली फिर से नीचे से पांचवें स्थान पर है, जो लाओस से भी नीचे है, जबकि लंदन एक बार फिर शीर्ष पर रहा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
सबसे सुरक्षित शहर
महिलाओँ के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों के खतरों के मामले में टोक्यो सबसे सुरक्षित शहर के तौर पर सामने आया. दिल्ली की तुलना में यौन अपराधों के मामले में पाकिस्तान के कराची शहर को बेहतर माना गया.
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पूरी कहानी ये है कि अध्ययन के अनुसार, डिमेंशिया के शुरुआती लक्षणों को महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार से जोड़ा जा सकता है. थर्स्टन का कहना है कि शोध से पता चलता है महिलाओं के साथ होने वाले यौन दुर्व्यवहार को रोकने की जरूरत है. ऐसा नहीं होने पर उनके जीवन में डिमेंशिया और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाएगा.
नॉर्थ अमेरिकन मेनोपॉज सोसाइटी की मेडिकल डायरेक्टर स्टेफनी फोबियन का कहना है कि नया अध्ययन महिलाओं के स्वास्थ्य देखभाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.
फोबियान कहती हैं, "स्ट्रोक और डिमेंशिया से बचने के लिए शुरुआती संकेतों की पहचान करना जरूरी है. इस तरह के अध्ययन एक महिला की जिंदगी और मानसिक स्वास्थ्य पर दर्दनाक अनुभवों के दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराते हैं."