यूएन: पिछले 20 सालों में प्राकृतिक आपदाओं में तेज वृद्धि
१३ अक्टूबर २०२०
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक पिछले 20 सालों में प्राकृतिक आपदाओं में तेज वृद्धि हुई है. जिसके कारण जान और माल का नुकसान तो ही रहा है बल्कि दुनिया भर में आर्थिक नुकसान भी हो रहा है.
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संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि पिछले 20 वर्षों में चरम मौसम की घटनाओं में नाटकीय रूप से बढ़ोतरी हुई है. प्राकृतिक आपदाओं के कारण लोग मर रहे हैं और दुनिया भर में आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है. यूएन के मुताबिक एशिया सबसे ज्यादा प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित हुआ है. यूएन के मुताबिक चीन में (577) और अमेरिका में (467) सबसे अधिक आपदा की घटनाएं साल 2000 से लेकर 2019 तक दर्ज की गईं. इसके बाद भारत में 321, फिलीपींस में 304 और इंडोनेशिया में 278 आपदा से जुड़ी घटनाएं दर्ज की गईं.
संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवस के मौके पर इस रिपोर्ट को जारी किया है. शीर्ष के 10 देशों में से आठ देश एशिया में स्थित हैं. दुनिया में हर साल 13 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवस मनाया जाता है. दो दशक के दौरान 7,348 प्रमुख आपदा की घटनाओं को विश्व स्तर पर दर्ज किया गया. इन आपदाओं में दस लाख से अधिक लोगों की मौत हुई और 4.2 अरब लोग प्रभावित हुए. दो दशक के दौरान 2.97 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान भी दर्ज किया गया.
बड़ी बाढ़ की संख्या दोगुनी होकर 3,254 हो गई. सूखा और जंगलों में आग लगने की घटनाओं ने भी कहर बरपाया. आपदा जोखिम कम करने के लिए यूएन महासचिव की विशेष प्रतिनिधि मामी मिज़ुटोरी के मुताबिक, "विस्तृत जलवायु आपातकाल से अधिक लोग प्रभावित हो रहे हैं." उन्होंने सरकारों से पूर्वानुमान चेतावनी में निवेश करने के साथ-साथ आपदा जोखिम कम करने की रणनीतियां अपनाने को कहा है.
बेल्जियम के लौवेन विश्वविद्यालय में आपदाओं की महामारी विज्ञान पर अनुसंधान केंद्र की देबारती गुहा-सापिर कहती हैं, "अगर चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि का यह स्तर इसी तरह जारी रहता है तो वास्तव में अगले 20 सालों में इंसान का भविष्य बहुत अंधकारमय दिखता है." अनुसंधान केंद्र ने ही इस रिपोर्ट के लिए आंकड़े मुहैया कराए हैं. उनके मुताबिक, "गर्म हवा के थपेड़े अगले 10 साल में हमारे लिए, खासकर गरीब देशों के लिए, सबसे बड़ी चुनौती बनने जा रहे हैं."
जलवायु परिवर्तन से समुद्र तेजी से गर्म होते जा रहे हैं. इनका सिर्फ समुद्री जीवन पर ही बुरा प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि इसका मतलब भविष्य में मौसम में और तेज परिवर्तन, समुद्री तूफान का आना और जंगलों में आग लगना होगा.
तस्वीर: NGDC
दक्षिणी ध्रुव पर कैलिफोर्निया
अंटार्कटिका पर तैनात वैज्ञानिकों ने वहां का तापमान मापा तो लॉस एंजेलेस के बराबर निकला. फरवरी में रिकॉर्ड 18.3 डिग्री तापमान और वह भी उत्तरी अंटार्कटिक में अर्जेंटीना के रिसर्च स्टेशन पर. नासा के अनुसार यह वहां अब तक का सबसे ज्यादा तापमान था.
तस्वीर: Earth Observatory/ NASA
नियमित रूप से आता तूफान
समुद्रों के गर्म होने से ट्रॉपिकल तूफानों की तादाद बढ़ रही है. हरिकेन या टायफून का सीजन लंबा होने लगेगा और खासकर उत्तरी अटलांटिक और पूर्वोत्तर प्रशांत में उनकी संख्या भी बढ़ेगी. मौसम बदलने का असर भविष्य में भारी नुकसान पहुंचाने वाले तूफान के रूप में सामने आएगा.
तस्वीर: AFP/Rammb/Noaa/Ho
समुद्र का बढ़ता जलस्तर
धरती के वातावरण में तापमान बढ़ता है तो सागर भी गर्म होने लगते हैं. इसका नतीजा पानी के बढ़ने के रूप में दिखता है. पानी बढ़ेगा तो समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा और बाढ़ आएगी या समुद्र तट पर स्थित इलाके डूबने लगेंगे.
पानी की सतह के गर्म होने से उसका वाष्पीकरण होगा और बरसात के बाद बाढ़ आएगी. कुछ इलाके डूब जाएंगे तो दूसरे इलाकों में सूखा पड़ेगा. नतीजा होगा फसल का न होना या जगलों में आग लगने से उसका नष्ट होना. भविष्य में आग का मौसम लंबा खिंचेगा और जंगलों पर खतरा लंबे समय तक बना रहेगा.
तस्वीर: Reuters/AAP Image/D.
इकोसिस्टम में बदलाव
गर्म सागर का मतलब होगा समुद्री जीव अपने पुराने घरों से भागने लगेंगे और आखिर में सारा समुद्रूी जलजीवन ठंडे इलाकों में चला जाएगा. मछलियां और समुद्री जानवर समतल से ध्रुवीय इलाकों की ओर चले जाएंगे. उत्तरी सागर में तो मछली का भंडार पहले से ही सिकुड़ने लगा है.
तस्वीर: by-nc-sa/Joachim S. Müller
समुद्रों का अम्लीकरण
गर्मी की वजह से कार्बन डाय ऑक्साइड पानी में घुल जाता है, समुद्री पानी का पीएच वैल्यू बढ़ जाता है और पानी का अम्लीकरण हो जाता है. पानी में अम्ल की मात्रा बढ़ने से स्टारफिश, शीप, कोरल और झींगों का बढ़ना रुक जाता है. नतीजा ये होगा कि उनका अस्तित्व मिट जाएगा.
चारे की कमी
कार्बन डाय ऑक्साइड के समुद्री पानी में घुलने से पीएच वेल्यू घटेगी तो छोटे अल्गी आयरन को सोख नहीं पाते. अल्गी यदि आइरन को नहीं सोखेंगे तो उनका विकास नहीं होगा और समुद्री जीवों को चारा नहीं मिलेगा. इस तरह वे भी पानी के अम्लीकरण से प्रभावित होंगे.
तस्वीर: picture alliance / dpa
ऑक्सीजन की कमी
गर्म पानी कम ऑक्सीजन का संग्रह करते हैं. इस तरह गर्म होते समुद्र का मतलब ये भी है कि ऑक्सीजन की प्रचुर मात्रा वाले इलाके कम होते जाएंगे. बहुत सी नदियों, झीलों और तालाबों में अभी ही कम ऑक्सीजन वाले मौत के कुएं मौजूद हैं. यहां कम ऑक्सीजन के कारण जीवों का रहना मुश्किल है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Schmidt
अल्गी का बढ़ना
गर्म और कम ऑक्सीजन वाले पानी में जहरीले अल्गी तेजी से बढ़ते हैं. उनका जहर मछलियों और दूसरे समुद्री जीवों को मार डालता है. पानी पर अल्गी या शैवाल के कालीन बहुत सारी जगहों पर मछली उद्योग को नुकसान पहुंचा रहे हैं. यहीं चिली के तट की एक तस्वीर.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/F. Marquez
सफेद कोरल का कंकाल
पानी के गर्म होने से समुद्री कोरल का सिर्फ रंग ही खत्म नहीं होता बल्कि ब्लीचिंग की वजह से बढ़ने की उसकी क्षमता भी खत्म हो जाती है. कोरल रीफ मरने लगते हैं और समुद्री जीवों को न तो सुरक्षा दे पाते हैं और न ही खाना. समुद्री जीवों के शिकार करने की जगह भी खत्म हो जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Naupold
बदलती समुद्री लहरें
यदि समुद्र के गर्म होने से उत्तरी अटलांटिक लहर की धारा बाधित होती है तो इसका मतलब पश्चिमी और उत्तरी यूरोप में शीतलहर होगा. यही लहर समुद्री पानी के प्रवाह को निर्धारित करती है और इसी से सतह का घना पानी घूमकर गहरे ठंडे इलाके की ओर जाता है.