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ऑस्ट्रेलिया के लोग जो खुद को देश का नागरिक नहीं मानते

विवेक कुमार
८ मई २०२३

ऑस्ट्रेलिया में कुछ लोग कहते हैं कि उन पर देश का कानून लागू नहीं होता. वे खुद को संप्रभु नागरिक कहते हैं और उनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. अमेरिका में पनपा यह आंदोलन फैल रहा है.

ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया तस्वीर: Mark Baker/AP Photo/picture alliance

ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स प्रांत के मैजिस्ट्रेट मार्क डगलस ने कहा है कि कथित संप्रभु नागरिकों के कारण देश की अदालतों पर बोझ बढ़ रहा है. ये संप्रभु नागरिक ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया के संघीय, राज्य और स्थानीय कानून उन पर लागू नहीं होते क्योंकि वे मानते हैं कि ये कानून गलत हैं.

ये ऐसे लोग हैं जो अक्सर सरकार की शक्तियों, टैक्स और कानून व्यवस्था को चुनौती देते हैं. अक्सर ये लोग इन कानूनों को लेकर अदालतों में चले जाते हैं और अपने मुकदमे खुद ही लड़ते हैं.

स्थानीय सार्वजनिक प्रसारक एबीसी को दिए इंटरव्यू में मैजिस्ट्रेट डगलस ने कहा कि न्यू साउथ वेल्स न्यायिक आयोग में करीब आधी शिकायतें ऐसे लोगों द्वारा दायर की जाती हैं जो खुद अपने मुकदमे लड़ते हैं. पिछले छह महीने में इनमें 20 से 30 फीसदी की वृद्धि हुई है और बहुत से मामले ऐसे हैं जिनमें संप्रभु नागरिक कानूनों को चुनौती दे रहे हैं.

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एबीसी रेडियो से बातचीत में उन्होंने कहा, "आप कोई फाइल उठाएं और पता चलेगा कि यह पार्किंग फाइन के बारे में है जिसमें 300 पेज हैं. और फिर आपको लगेगा कि इसमें वही कथित-कानूनी दलीलें होंगी.”

कोविड के बाद बढ़ते मुकदमे

कोविड महामारी के बाद कथित संप्रभु नागरिकों द्वारा दायर मुकदमों में खासी वृद्धि देखी जा रही है. अन्य कई जजों ने भी इस बात को उठाया है. मैजिस्ट्रेट डगलस बताते हैं कि पिछले छह महीने में 50 से ज्यादा स्थानीय जजों ने कथित संप्रभु नागरिकों द्वारा दायर मुकदमे देखे हैं, जो साफ दिखाता है कि ऐसे मुकदमों की संख्या लगातार बढ़ रही है.

इन मुकदमों में आमतौर पर छोटे-मोटे मामले होते हैं, जैसे पार्किंग फाइन, बिना लाइसेंस के गाड़ी चलाना, अवैध प्रवेश या नशीली दवाओं का सेवन आदि. लेकिन चूंकि इनमें कानूनों को ही चुनौती दी जाती है, इसलिए ऐसे मुकदमों में ज्यादा वक्त लगता है और व्यवस्था पर बोझ बढ़ता है.

पिछले दिनों एक मामला आया था जिसमें एक कथित संप्रभु नागरिक ने अपने सोशल मीडिया फॉलोअर्स को कहा कि वे वेस्ट ऑस्ट्रेलिया प्रांत के मुख्यमंत्री को गिरफ्तार कर लें. इस व्यक्ति पर मुकदमा दर्ज किया गया, जिसे बाद में वापस ले लिया गया.

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मैजिस्ट्रेट डगलस ने कहा कि ये लोग अमेरिकी कानूनों, बाइबल और यहां तक कि अमेरिका के स्वतंत्रता घोषणा पत्र तक का हवाला देते हैं और कई बार तो जजों पर ही मुकदमा दायर कर देने की बात कहते हैं. ये लोग कहते हैं कि संविधान अवैध है, इसलिए उन पर कोई कानून लागू नहीं होता. इसलिए वे जुर्माने या टैक्स नहीं देना चाहते. मैजिस्ट्रेट डगलस पर एक संप्रभु नागरिक ने एक करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर यानी करीब 50 करोड़ रुपये का दावा कर रखा है.

इन लोगों ने कोविड के दौरान लागू किए गए नियमों को भी अवैध बताया था. नवंबर 2021 में इन लोगों ने मेलबर्न में एक रैली भी निकाली थी.

संप्रभु नागरिकता आंदोलन

ग्रिफिथ क्रिमिनोलॉजी इंस्टिट्यूट में सीनियर लेक्चरर डॉ. कीरन हार्डी ने इस आंदोलन पर शोध किया है. वह लिखते हैं, "इन लोगों में साझा सूत्र यह विश्वास है कि संप्रभु लोगों पर ऑस्ट्रेलिया का कानून लागू नहीं होता. इसका कोई कानूनी आधार नहीं है. ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले हर व्यक्ति पर समान कानून लागू होते हैं. यही कानून के राज की मूल भावना है.”

संप्रभु नागरिकता आंदोलन एक अंतरराष्ट्रीय आंदोलन है. विशेषज्ञों के मुताबिक जिस तरह एक देश संप्रभु होता है और उसके ऊपर किसी अन्य देश का नियंत्रण या प्रभाव नहीं होना चाहिए, उसी तरह ये लोग मानते हैं कि इन लोगों पर किसी सरकार या संविधान का नियंत्रण या प्रभाव नहीं हो सकता. यह आंदोलन ऑस्ट्रेलिया में ही नहीं, कई अन्य देशों में भी प्रचलित है, जिनमें अमेरिका प्रमुख है.

यह आंदोलन अमेरिका में ही शुरू हुआ था. अपने आंदोलन को आधार देने के लिए ये लोग कई तरह के राजनीतिक सिद्धांतों का सहारा लेते हैं. उनमें रिडेंपशन थ्योरी एक है. रिडेंपशन का सिद्धांत 1933 में अमेरिका के दिवालिया होने से निकला है जब सरकार ने सोने को मुद्रा के आधार के रूप में त्याग दिया था. रिडेंपशन थ्योरी दावा करती है कि तब अमेरिकी सरकार ने सोने की जगह लोगों को अपनी संपत्ति बताया और अन्य देशों के साथ इस संपत्ति के आधार पर लेन देन करना शुरू कर दिया.

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1970 के दशक में इस आंदोलन ने अमेरिका में खासा जोर पकड़ा. अमेरिका के सदर्न पावर्टी लॉ सेंटर ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि विलियम पोर्टर गेल नाम के एक व्यक्ति ने ‘पोसे कोमिटेटस' नाम का सरकार विरोधी संगठन बनाया, जिसकी बातें नस्लवाद और यहूदी विरोध से प्रेरित थीं. आने वाले दशकों में यह आंदोलन ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों में फैल गया.

बढ़ती संख्या का खतरा

ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और कुछ अन्य देशों में इस आंदोलन के मानने वालों की अच्छी खासी संख्या है, जो खुद के बनाए पहचान पत्र लेकर चलते हैं और खुद को ही पुलिस मानते हैं. इस आधार पर ये देश के कानूनों को अमान्य कहते हैं.

ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड राज्य में 2021 में एक व्यक्ति को नशीली दवाओं के मामले में गिरफ्तार किया गया था. उस व्यक्ति ने अपने मुकदमे में तर्क दिया कि कानून उस पर लागू नहीं होते. तब जज ग्लेन कैश ने उस व्यक्ति और उसके तर्कों की तीखी निंदा करते हुए अपने फैसले में लिखा था, "सिर्फ तर्क सुनकर पता चल जाता है कि यह कोरी बकवास है. जाहिर है कि यह व्यक्ति उस अंतरराष्ट्रीय समूह का हिस्सा है जो पिछले कुछ सालों से कानून से बचने कि विफल कोशिश कर रहे हैं.”

हालांकि, व्यवहारिक रूप से ऐसा नहीं है कि कोई कानून देश के नागरिकों पर लागू ना हो, लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि कोविड महामारी के बाद ऐसे लोगों संख्या में वृद्धि हुई है जो खुद को संप्रभु नागरिक कहने लगे हैं.

डॉ. हार्डी कहते हैं, "यह स्पष्ट है कि अगर इस पर प्रभावशाली रूप से नियंत्रण नहीं किया गया तो इसके बढ़ जाने की गुंजाइश है.”

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